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एक सपाट और डेड पिच पर विश्व की दो शीर्ष टेस्ट टीमों की भिड़ंत

कानपुर टेस्ट में शानदार गेंदबाज़ी की प्रदर्शनी ने खेल को बनाया रोमांचक

परिस्थितियां। गेंदबाज़। बल्लेबाज़।
जब दो सर्वश्रेष्ठ टीमें आमने-सामने होती हैं तो उसका असर पूरे विश्व क्रिकेट पर भी सकारात्मक तौर से पड़ता है
परिस्थितियां
कानपुर के टेस्ट की 2518वीं गेंद पर पहली बार एक ऐसा बैट-पैड कैच का चांस बना था जो नज़दीकी क्षेत्ररक्षक तक कैरी करने में सफल रहा था। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि उस दौरान क्षेत्ररक्षक अपने सामान्य स्थान से आगे खड़े थे। इसके कारण उस फ़ील्डर के पास कैच को पकड़ने के लिए पर्याप्त समय नहीं था। इसके बाद एक और ऐसा ही कैच लेग गली के पास भी गया था लेकिन वह फ़ील्डर से दूर था।
पूरे मैच में एक ही ऐसा कैच था जो स्लिप(दूसरे स्लिप) तक कैरी कर पाया। वह भी एक तेज़ गेंदबाज़ की गेंद पर ऐसा हुआ। हालांकि यह भी ध्यान देने वाली बात है कि दूसरे स्लिप का वह खिलाड़ी अपने स्थान से काफ़ी ज़्यादा आगे खड़ा था। हालांकि तेज़ गेंदबाज़ों की गेंद कीपर तक आराम से कैरी कर रही थी।
इस मैच में गिरी 36 विकेटों में से सिर्फ़ चार ही नॉन-विकेटकीपर द्वारा लपकी गई हैं, यानि ये 2001 से भारत में खेले गए किसी भी टेस्ट मैच में संयुक्त रूप से सबसे कम है। भारतीय कोच राहुल द्रविड़ को वह टेस्ट अच्छे से याद होगा जब पिछली बार ऐसा हुआ था क्योंकि उस मैच में वह भी शामिल थे और इसी मैदान पर ही वह टेस्ट खेला गया था। उस टेस्ट में राहुल द्रविड़ 254 ओवर तक मैदान में थे और भारतीय गेंदबाज़ों को 13 विकेट ही मिली थी।
इससे साफ पता चलता है कि इस पिच पर गेंदबाज़ों के लिए कुछ ख़ास मदद नहीं थी। स्पिन गेंदबाज़ों के लिए पिच में टर्न तो थी लेकिन बाउंस उन्हें सपोर्ट नहीं कर रही थी। अगर कोई बल्लबेाज़ फ़्लाइट से बीट भी हो जाता था तो उनके पास एडजस्ट करने के लिए पर्याप्त समय होता था क्योंकि पिच काफ़ी धीमी थी। बल्लेबाज़ को आउट करने के लिए स्पिनर्स के पास मुख्यत:दो ही विकल्प थे - एलबीडब्ल्यू और बोल्ड। इसमें कोई चकित होने वाली बात नहीं थी कि हमें इस मैच में कोई परिणाम देखने को नहीं मिला।
गेंदबाज़ी
इस मैच में एक समय ऐसा लग रहा था कि शायद कोई ना कोई परिणाम सामने निकल कर आएगा और यही इस मैच का सबसे बड़ा सरप्राइज था। अगर मैच में हर दिन ख़राब रोशनी के कारण 10 मिनट पहले खेल को ना रोका जाता तो शायद इस मैच का परिणाम निकल सकता था। एक ऐसे मैच में जहां 36 विकेट गिरे हों, 4 नॉन विकेट कीपर कैच किसी भी टेस्ट मैच की तुलना में सबसे कम है। इन परिस्थितियों में इस प्रकार की गुणवत्तापूर्ण गेंदबाज़ी तारीफ योग्य है।
यह भी देखने वाली बात थी कि यह मैच दुनिया के दो बेस्ट टीमों के बीच खेला जा रहा था। अगर पिच से गेंद अपेक्षा के अुनरूप घूमती है तो आपको इन बल्लेबाज़ो को आउट करने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
न्यूज़ीलैंड के बल्लेबाज़ जल्दी ग़लती नहीं करते हैं। ख़ास कर के जब वह सोच लेते हैं कि उन्हें रन नहीं बनाना है तो ग़लती की गुंजाइश और भी कम हो जाती है। आर अश्विन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह गेंद के साथ किस तरह का कमाल कर सकते हैं। कोण के साथ गेंदबाज़ी, अलग-अलग ग्रिप, अलग-अलग रिलीज़ प्वाइंट, बार-बार बल्लेबाज़ों को हवा में बीट करना, बमुश्किल कोई कमज़ोर गेंद फेंकना। एक मृत प्रयास पिच पर यह किसी जादूई गेंदबाज़ी से कम नहीं था।
पहली पारी में अक्षर पटेल ने राउंड आर्म गेंदों फेंक कर कई गेंद पर टर्न प्राप्त कर रहे थे। और साथ ही अपने पेस में कई कारगर बदलाव के दम पर वह पांच विकेट लेने में क़ामयाब रहे। अंतिम दिन रवींद्र जाडेजा ने भी पिच पर जो कुछ भी था उसका पूरा लाभ उठाते हुए तेज़ फेंकी गई गेंदों पर टर्न प्राप्त करने में सफल रहे। इसके कारण वह केन विलियमसन के विकेट के सहित कुल 4 विकेट प्राप्त करने में सफल रहे।
इसके बाद अगर कीवी गेंदबाज़ों के बारे में बात की जाए तो काइल जेमीसन ने अपनी लंबाई का फ़ायदा उठाते हुए भारतीय बल्लेबाज़ों को काफ़ी परेशान किया। उन्होंने साउदी के साथ मिल कर 14 विकेट लिए। हालांकि न्यूज़ीलैंड के स्पिनरों का प्रदर्शन इस पिच पर कुछ ख़ास नहीं रहा। उनकी इकॉनमी 2.89 की रही और औसत 97.67 की रही, जबकि भारतीय गेंदबाज़ों की इकॉनमी 1.58 और औसत 17.58 का रहा।
बल्लेबाज़ी
टॉम लेथम ने कुल 428 गेंदों तक बल्लेबाजी की, लेकिन उन्हें सिर्फ़ 147 रन बनाने दिया गया। ऐसा इसलिए था क्योंकि उनके ख़िलाफ़ की जाने वाली गेंदबाज़ी की गुणवत्ता काफ़ी शानदार थी। चूंकि भारत घर पर हावी है, अगर किसी भी प्वाइंट पर भारत के गेंदबाज़ कमज़ोर गेंदबाज़ी करते तो लेथम अंतिम पारी में लक्ष्य का पीछा करने का प्रयास ज़रूर करते।
भारतीय बल्लेबाज़ो को अपनी कुछ ग़लतियों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा। भारतीय बल्लेबाज़ो ने इस मैच में लगभग 164 ग़लतियां की और उसके कारण उनके 17 विकेट गिरे। वहीं न्यूज़ीलैंड के बल्लबाज़ों ने 233 ग़लतिया की और उसके कारण उनके 19 विकेट गिरे। भारतीय टीम में चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे को लेकर कई सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।
हालांकि भारत ने जिस समय पर अपनी पारी घोषित की उस पर भी कई प्रश्न उठाए गए। पारी घोषित करने से पहले आख़िरी सत्र में भारत ने 20.4 ओवर की बल्लेबाज़ी की थी और उस दौरान उन्होंने 67 रन बनाए थे।
द्रविड़ ने इस बारे में कहा, "हमने चाय से ठीक पहले श्रेयस को खो दिया। उस समय हमारी टीम का स्कोर सात विकेट के नुकसान पर 167 रन था और उस समय हम मुश्किल में थे। इसी कारणवश हमें उस साझेदारी की अत्यंत आवश्यकता थी। पारी घोषित करने से 45 मिनट पहले तक हम दबाव में थे। अगर कुछ देर बाद आउट हो गए होते तो न्यूज़ीलैंड को 2.2 या 2.3 के रन दर से 110 ओवरों में 240-50 रन बनाने की आवश्यकता होती। इसी कारणवश हमें अक्षर और साहा के बीच उस साझेदारी की आवश्कता थी।"
अंत में परिस्थितियों की जीत हुई। सभी पांच दिनों की मेहनत टेस्ट के आख़िरी कुछ मिनटों में सिमट गई। धूंधला प्रकाश। घड़ी की टिक-टिक। प्रत्येक ओवर के बाद लाइट मीटर का निकला जाना। समीक्षाएं। इन सब के बीच, जाडेजा और अश्विन की जादूगरी। एक टीम सूर्यास्त के समय को दूर धकेलना चाह रही थी। दूसरी सोच रही थी कि अभी अंधेरा क्यों नहीं हुआ है। क्या शानदार पांचवां दिन था यह।

सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo के अस्सिटेंट एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर राजन राज ने किया है।