डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल में भारत को ध्यान में रखनी होगी यह पांच चीज़ें
उन्हें समझना होगा कि न्यूज़ीलैंड किस प्रकार से अपना क्रिकेट खेलता है, और उसके अनुसार अपने खेल में बदलाव करना होगा

न्यूज़ीलैंड टीम आक्रामकता पर नहीं बल्कि अनुशासन पर विश्वास करती है
हर टीम की क्रिकेट खेलने की अपनी अलग शैली होती है और टेस्ट क्रिकेट में न्यूज़ीलैंड का पसंदीदा तरीक़ा लंबे समय तक खेल पर नियंत्रण बनाए रखना है। ऐसे समय भले ही खेल किसी भी दिशा में ज़्यादा आगे नहीं बढ़ता, लेकिन उन्हें इस तरह खेल को चलाना पसंद है। वह धीरे-धीरे खेल पर अपनी पकड़ को मज़बूत करने में विश्वास रखते हैं। अगर वे एक या दो सत्र के लिए मैच के प्रवाह को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं, तो वे जानते हैं कि उनके पास इसे और आगे बढ़ाने की कला है। बल्ले और गेंद के साथ, उनके अधिकांश खिलाड़ी आक्रामकता पर अनुशासन को चुनते हैं।
बोरिंग क्रिकेट खेलने के लिए तैयार रहें
जब आपका सामना ऐसी टीम से होता है जो न्यूज़ीलैंड की तरह खेलती है, तब उन्हें सम्मान देना और अपने खेल में बदलाव करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। टेस्ट मैचों में ऐसे कई चरण होते हैं जब न्यूज़ीलैंड के तेज़ गेंदबाज़ एक भरी हुई ऑफ़ साइड फ़ील्ड के साथ ललचाने वाली लाइन में गेंदबाज़ी करते हैं। उनकी लेंथ भी ड्राइव लगाने के लिए आदर्श लंबाई से थोड़ी छोटी होती है लेकिन इतनी छोटी नहीं की आप आसानी से बैकफ़ुट पर जाकर शॉट खेल सकें। पहले दिन को छोड़कर आमतौर पर न्यूज़ीलैंड की पिचें बल्लेबाज़ी के लिए अनुकूल हो जाती हैं। यही वजह है कि उनके गेंदबाज प्रभावी ढंग से रनों को रोकने की भूमिका निभाना जानते हैं। भारत के बल्लेबाज़ों को उनकी इस रणनीति का सम्मान करना चाहिए और ज़्यादा आक्रामक होने से बचना चाहिए। टेस्ट मैच के नतीजे को बदलने के लिए एक या दो विकेट काफ़ी होते है।
बाउंसर का इस्तेमाल करें
इंग्लैंड की परिस्थितियों को आमतौर पर लगातार शॉर्ट-पिच गेंदबाज़ी करने के लिए आदर्श नहीं माना जाता है, लेकिन अगर आपके पास इस भारतीय गेंदबाज़ी आक्रमण की तरह गति है, तो आपको बाउंसरों का खुलकर इस्तेमाल करना चाहिए। न्यूज़ीलैंड के बल्लेबाज़ों के उन गेंदों पर आक्रमण करने की संभावना नहीं है लेकिन उन्हें आसानी से फ़्रंटफ़ुट पर आने और शरीर के करीब से गेंद को खेलने से रोकने के लिए अच्छी चाल होगी। जब आप न्यूज़ीलैंड जैसी बल्लेबाज़ी टीम का सामना करते हैं, तो समय-समय पर उनके पिंजरे को खड़खड़ाना महत्वपूर्ण है। जबकि अधिकांश गेंदबाज़ रॉस टेलर और कॉलिन डि ग्रैंडहोम को बाउंसर फेंकेंगे, भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों को हेनरी निकोल्स, डेवन कॉन्वे और टॉम लेथम के ख़िलाफ़ भी उनका इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, जब भी कोई बल्लेबाज़ नया-नया क्रीज़ पर आता है, तो उसके पैर जमने से पहले हमेशा अवसर की एक छोटी सी खिड़की होती है, जहां बाउंसर उन्हें परेशान करने में मददगार साबित होते हैं।
ज़रूरत से ज़्यादा आक्रामक लाइन और लेंथ पर गेंदें न करे
केन विलियमसन और शायद रॉस टेलर के अलावा, न्यूज़ीलैंड का बल्लेबाज़ी क्रम सुपरस्टार्स से भरा हुआ नहीं है। उनमें से ज़्यादातर बल्लेबाज़ आकर्षक शॉट-मेकर नहीं हैं जो विपक्ष और दर्शकों का ध्यान समान रूप से आकर्षित करते हैं। बल्लेबाज़ी में उनका दृष्टिकोण बहुत सरल है (शायद डि ग्रैंडहोम को छोड़कर): उनमें से ज़्यादातर खिलाड़ी जानते हैं कि उनका ऑफ़ स्टंप कहां है और बहुत सारी गेंदों को छोड़कर या उन्हें शरीर के करीब खेलने के स्तंभों पर ख़ुशी-ख़ुशी अपनी पारी का निर्माण करते हैं। लेथम, कॉन्वे, टॉम ब्लंडल, बीजे वॉटलिंग और यहां तक की विलियमसन जैसे बल्लेबाज़ कुछ हद तक विपक्षी गेंदबाज़ों को थकाने में विश्वास रखते हैं। चूंकि वे गेंदों को ऑन-द-राइज़ खेलने वाले बल्लेबाज़ नहीं हैं, गेंदबाज़ों को उन्हें थोड़ी फ़ुल और सीधी गेंदें डालने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हालांकि उस तरह की गेंदबाज़ी करना बुरी रणनीति नहीं है, यह महत्वपूर्ण है कि भारत इसे ज़रूरत से ज़्यादा न करे। उन्हें गेंदबाज़ी क्रम के रूप में धैर्य रखने की ज़रूरत है। जब रक्षात्मक बल्लेबाज़ी शैलियों का सामना किया जाता है, तो गेंदबाज़ जादूई गेंदें डालने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि टेस्ट क्रिकेट में अधिकांश विकेट 'सामान्य' गेंदों पर गिरते हैं और यह लगातार प्रयासों का दबाव ही है जो गलतियां पैदा करता है। अनुशासन का मुकाबला अनुशासन से करें और देखें कि पहले अपनी पलकें कौन झपकता है।
बल्लेबाज़ी क्रम के निचले हिस्से से आ सकते हैं महत्वपूर्ण रन
भारत और न्यूज़ीलैंड के पास शानदार तेज़-गेंदबाज़ हैं (और मैं यहां 'शानदार' ऐसे ही नहीं कह रहा हूं)। दोनों पक्षों की काब़िलियत को ध्यान में रखते हुए, यह लगभग तय है कि दोनों जल्दी आक्रमण करेंगे और नियमित अंतराल पर विकेट लेंगे। जबकि अधिकांश बल्लेबाज़ी पारियां एक या दो बड़ी पारियों के आधार पर बनाई जाती हैं, इस बात की प्रबल संभावना है कि साउथैंप्टन में ऐसा न हो। इसलिए जब निचले क्रम के बल्लेबाज़ बीच मैदान में बल्लेबाज़ कर रहें हो, तब भी प्रतियोगिता में बने रहना महत्वपूर्ण है। चारों ओर हरियाली और नमी के साथ, इंग्लैंड की परिस्थितियां पारंपरिक स्विंग गेंदबाज़ी के लिए अनुकूल है, लेकिन रिवर्स स्विंग के लिए नहीं। तथ्य में इस बात को जोड़ें कि न्यूज़ीलैंड का कोई भी गेंदबाज़ ज़्यादा तेज़ नहीं है, तो यह भारतीय निचले क्रम को महत्वपूर्ण योगदान देने का अवसर प्रदान करता है, जिसे उन्हें दोनों हाथों से स्वीकार करना होगा।
पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज़ आकाश चोपड़ा (@cricketaakash) ने तीन किताबें लिखी हैं, जिनमें से नवीनतम है द इनसाइडर: डिकोडिंग द क्राफ़्ट ऑफ़ क्रिकेट। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब-एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।
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