भारत ने एक घंटे के अंदर डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल पर अपनी पकड़ क्यों गंवाई?
उन्हें अपना कुल स्कोर बढ़ाने और दिन के बचे ओवरों को कम करने के लिए ज़्यादा समय तक बल्लेबाज़ी करने की ज़रूरत थी। फिर उन्होंने आक्रमण क्यों किया?

क्या आप मेरे कुछ सवालों के जवाब दे सकते हैं?
इस वेबसाइट पर "स्टैट्सगुरू" टूल या अन्य ऑनलाइन संसाधनों का उपयोग किए बिना इन प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करें।
वनडे क्रिकेट में कप्तान के रूप में कपिल देव का जीत प्रतिशत कितना था? क्या सौरव गांगुली की भारतीय टीम टेस्ट या वनडे रैंकिंग में कभी शीर्ष स्थान पर पहुंची थी? अगर हां, तो कितने समय के लिए वह पहले पायदान पर विराजमान थे? अपने पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ की तुलना में एमएस धोनी का वनडे में जीत प्रतिशत क्या था? ये कुछ नीरस और कठिन सवाल हैं, है ना? आइए इसे आसान बनाते हैं। जब भारत ने अपना पहला विश्व कप जीता था तब टीम के कप्तान कौन थे? जब भारत ने 2007 में टी20 विश्व कप और 2011 में 50 ओवर का विश्व कप अपने नाम किया था तब टीम की अगुवाई किसने की थी? आपने शायद प्रश्नों को पूरी तरह पढ़ने से पहले ही उत्तर दे दिया। बेशक वह कपिल देव थे जिन्होंने 1983 में भारत को अपना पहला विश्व कप जिताया था, और अन्य दो सवालों का जवाब महेंद्र सिंह धोनी है।
क्रिकेट में विरासत इसी को तो कहते हैं। हम में से कई लोग इसे केवल अंकों और संख्याओं के दृष्टिकोण से बताना चाहते हैं परंतु खेल में ऐसा कभी नहीं होगा। और यह मुझे हाल ही में संपन्न हुए विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फ़ाइनल की ओर ले आता है। हालांकि ऐसी बहुत सी चीजें थीं जो इस फ़ॉर्मेट के बारे में सही नहीं थीं, शायद कुछ समय बाद लोग इन ख़ामियों को भूल भी जाएंगे। लेकिन जो बात सभी को हमेशा याद रहेगी वो ये कि न्यूज़ीलैंड टेस्ट क्रिकेट के 144 साल के इतिहास में पहले विश्व टेस्ट चैंपियन है।
विश्व कप फ़ाइनल में ट्ऱॉफ़ी पर कब्ज़ा करने का एकमात्र तरीका है मैच को जीतना। ऐसे में करो-या-मरो वाले अंदाज़ में खेला जाता क्रिकेट दिलों में उत्साह पैदा करता है। विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फ़ाइनल उन चंद अवसरों में से एक था जहां मैच को ड्रॉ करने पर भी आप विजेता घोषित किए जाते - सही शब्दों में संयुक्त विजेता। जब ड्रॉ भी जीत के बराबर हो, तो उस विकल्प पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। जीत के लिए जाना बिल्कुल सही बात है, लेकिन अगर जीत असंभव प्रतित हो, तो उस मैच को ड्रॉ करने का पूरा प्रयास करना चाहिए। आप भले ही जीतने में सफ़ल नहीं हुए, लेकिन यह सुनिश्चित करने में कोई शर्म की बात नहीं हैं कि विपक्ष आपको हराने में नाकामयाब रहा।
यहीं पर मुझे लगता है भारतीय टीम से दूसरी पारी में बल्लेबाज़ी करते समय भूल हो गई। उन्होंने अंतिम दिन की शुरुआत भले ही मैच को परिणान तक ले जाने की सोच के साथ की हो, लेकिन विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा के दो विकेटों ने उन्हें पहले घंटे में ही बैकफ़ुट पर धकेल दिया। अजिंक्य रहाणे कभी भी क्रीज़ पर व्यवस्थित नहीं दिखे और ऋषभ पंत अपने मौके लेते रहे; लंच ब्रेक में नाबाद रहना उनकी ख़ुशकिस्मती थी।
रहाणे के आउट होने के बाद पंत और रवींद्र जाडेजा के बीच छठे विकेट की साझेदारी परवान चढ़ने लगी। पंत ने अपना बल्ला चलाया, जाडेजा ने सूझ-बूझ से भरा क्रिकेट खेला। गेंद थोड़ी पुरानी हो गई थी और ऐसा लगा कि उसने हरकत करना कम कर दिया था। बाउंसरों की बौछार करने नील वैगनर राउंड द विकेट आ गए थे। लंच के समय भारत पांच विकेट खो कर 98 रनों की बढ़त ले चुका था। दिन के खेल में अब भी 75 ओवर बाकी थे।
टेस्ट क्रिकेट की सुंदरता खेल के बीच ये प्राकृतिक ब्रेक हैं, जो आपको अपनी भावनाओं पर लगाम लगाने, स्थिति का आकलन करने और योजनाओं पर फिर से विचार करने की अनुमति देते हैं। उस समय भारत के पास दो संभावित गेम प्लान हो सकते थे और दोनों में लंच के बाद पहले घंटे में उन्हें एक भी विकेट नहीं गंवाना था। एक बार जब भारत सफ़लतापूर्वक उस स्थिति में पहुंच जाता तो वह खेल को तेज़ी से आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकता था। या वह बचे हुए विकेटों को ध्यान में रखकर ज़्यादा देर तक बल्लेबाज़ी कर सकता था। अगर वह लंच के बाद पहले घंटे में बिना विकेट खोए बल्लेबाज़ी करते, तो स्कोर में 25-30 रन जुड़ जाते और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि खेल के बचे 75 ओवरों में से 15 ओवर खेले जाते। ठीक उस समय वह कुछ और रन बनाकर न्यूज़ीलैंड की मैच जीतने की इच्छओं की सही माएने में परिक्षा लेते।
पर पंत तो बल्ला घुमाने की सोच के साथ दूसरे सत्र में बल्लेबाज़ी करने उतरे थे। बाउंसर ट्रैप के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे रवींद्र जाडेजा ने अपना विकेट गंवा दिया, और उसके बाद अपनी ओर आने वाली हर छोटी गेंद पर प्रहार करने के इरादे के साथ रवि अश्विन क्रीज़ पर आए।
वैगनर के बाउंसर ट्रैप की ये ख़ास बात है कि आप आसानी से इससे बाहर नहीं निकल सकते। आप उन्हें थका सकते हैं, लेकिन लगातार प्रहार कर उन्हें गेंदबाज़ी क्रम से हटा नहीं सकते। भारत को पहली योजना चुननी थी परंतु उन्होंने दूसरी योजना के साथ जाने का फ़ैसला किया।
ऐसा नहीं है कि वैगनर ने अश्विन या पंत को आउट किया, लेकिन जिस हिसाब से उन दोनों ने गेंद को खेला, उससे कई चीज़ें साफ़ हो गई। भारत मुश्किल स्थिती से बाहर नहीं आया था, वह अब भी सुरक्षा से बहुत दूर था जब पंत ने फिरसे चहलकदमी करने का निर्णय लिया। इस बार गेंद और बल्ले का संपर्क हुआ लेकिन केवल बाहरी किनारे के साथ। गेंद ऊपर उठी और पीछे भागते हुए हेनरी निकल्स ने शानदार कैच पकड़ा और भारत को निराशा के अंधकार में धकेल दिया।
दूसरी पारी में टीम के सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी के खेल में खामियां ढूंढना अपराधिक लग सकता है, लेकिन यह भी उतना ही गलत है अगर किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन की दूसरों के प्रदर्शन से तुलना की जाए।
टेस्ट टीम में वापस आने के बाद से पंत ने भारत को आशा रखने और विश्वास करने की इजाज़त दी है। सिडनी की पारी उत्साह से भरी हुई थी। गाबा की पारी को टेस्ट मैच की चौथी पारी में भारतीय बल्लेबाज़ों की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक के रूप में दर्ज किया जाएगा। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ शतकीय पारी - टेस्ट क्रिकेट में अपने पैर जमा रहे खिलाड़ी की - नियंत्रित आक्रामकता के बारे में थी। पंत ने बहुत सारी गेंदों को छोड़ना शुरू कर दिया था, स्पिन या स्विंग के ख़िलाफ़ शॉट लगाना बंद कर दिया था और दिखाया था कि नियंत्रण में रहकर आक्रमण करना विपक्षी टीमों को कितना नुक्सान पहुंचा सकता है। वह न केवल एडम गिलक्रिस्ट जैसे कीपर-बल्लेबाज़ का भारतीय रूप थे, बल्कि टीम की बल्लेबाज़ी की गहराई की चिंता किए बिना पांच गेंदबाज़ों को खिलाने की अनुमति देते थे।
अंतिम दिन पंत की योजना या तो स्विंग गेंद के ख़िलाफ़ अपने कौशल में उनके विश्वास (या उसकी कमी) की प्रतिबिंब थी, या शायद वह अपनी प्रतिष्ठा के पिंजरे में कैद हो गए थे। हमने उन्हें बल्ले से हर तरह के अविश्वसनीय काम करते देखे हैं। टेस्ट में जेम्स एंडरसन या सफेद गेंद वाली क्रिकेट में जोफ़्रा आर्चर को रिवर्स स्कूप करने की कल्पना भी कौन करेगा? फिर भी, हमने पंत को कभी भी तेज़ गेंदबाज़ों के सामने कदमताल करते हुए नहीं देखा, यहां तक कि सफ़ेद गेंद वाली क्रिकेट में भी। वह क्रीज़ से खेलना पसंद करते हैं, या क्रीज की गहराई का इस्तेमाल करना। इसलिए उनका यूं बाहर निकलना थोड़ा अजीब लगा। क्या लंच के समय उन्हें यह नहीं बताया गया था कि उनके तरीके टीम की योजना से मेल नहीं खा रहे थे? या टीम की योजना आक्रामक रहने की थी, जिसका मतलब था कि बल्लेबाजों को इन मुश्किल परिस्थितियों में रन बनाने के लिए अपने तरीके ख़ुद ढूंढने थे?
अश्विन के रवैये से साफ़ पता चलता है कि वह पंत की तरह बल्लेबाज़ी करने की कोशिश कर रहे थे। साउथैंप्टन में वह अश्विन नहीं थे जिनको हमने सिडनी में अनगिनत गेंदें शरीर पर खाते हुए देखा था। यहां वह शॉट्स के लिए जा रहे थे - पुल, ड्राइव और बहुत कुछ। पंत के आउट होने के बाद ट्रेंट बोल्ट की बाहर जाती गेंद पर ड्राइव लगाते हुए वह उसी ओवर में आउट हो गए। उसके बाद तो केवल समय का खेल बचा था। भारत ने ना तो पर्याप्त ओवरों का इस्तेमाल किया था और ना ही बोर्ड पर पर्याप्त रन बनाए थे जिससे परिणाम उनके पक्ष में हो सके।
हां, न्यूट्रल मैदान वास्तव में न्यूट्रल नहीं था, क्योंकि उसने न्यूज़ीलैंड का ज़्यादा साथ दिया। दोनों टीमों की तैयारी भी काफ़ी अलग थी और वह भी न्यूज़ीलैंड के पक्ष में गई। लेकिन इन सब बातों को भुला देना चाहिए और भुलाया जाएगा। लेकिन एक चीज़ जिसे भूलना भारत के लिए मुश्किल हो सकता है, वह एक घंटे का खेल जिसके वजह से भारत को विश्व टेस्ट चैंपियनशिप की ट्रॉफ़ी से हाथ धोना पड़ा।
क्या यह गलत योजना थी या योजना का अभाव या फिर योजनाओं पर अमल करने की कमी? इसका जवाब तो भारतीय ड्रेसिंग रूम ही जानता है। यह भारतीय टीम लगातार पांच सालों से टेस्ट रैंकिंग में टॉप पर बनी हुई है, लेकिन दुर्भाग्य से इतिहास उस एक घंटे को ही याद रखेगा जिसकी भारत ने योजना नहीं बनाई थी। टीमों और कप्तानों की विरासत उनके द्वारा जिताई गई ट्रॉफ़ियों से याद रखी जाती है। इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपने कितनी लड़ाइयां जीती अगर आप अंततः युद्ध जीतने में असफ़ल हो गए।
भारतीय टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज़ आकाश चोपड़ा (@cricketaakash) ने तीन किताबें लिखी हैं, जिनमें से नवीनतम है द इनसाइडर: डिकोडिंग द क्राफ़्ट ऑफ़ क्रिकेट। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब-एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।
Read in App
Elevate your reading experience on ESPNcricinfo App.