बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी : बॉल ट्रैकिंग और कंट्रोल डाटा हमें क्या बताता है
बुमराह अंतर पैदा कर सकते थे लेकिन वह अंत में नहीं थे। इसके बजाय, यह लेंथ और पुजारा मॉडल था जिसमें सीरीज़ जीती और हारी गई

ऊंची सीम और नीचा बाउंस पर्थ में भारत के लिए आदर्श संयोजन साबित हुआ। वे अपनी 6 से 8 मीटर की गुड लेंथ पर बने रहकर गेंदबाज़ी कर सकते थे और स्टंप्स को हिट कर सकते थे। ऑस्ट्रेलिया अपनी ड्राइव वाली पारंपरिक 5 से 7 मीटर की गुड लेंथ के साथ गए और बदले में उन्होंने काफ़ी छोटी गेंद की। ऑस्ट्रेलिया के पहली सुबह भारत को 150 रनों पर ढेर करने के बाद भी उन्होंने 5 मीटर से आगे 35 गेंद फुलर की, जो कुछ गेंदबाज़ी का 20 प्रतिशत था।
या तो भारत ने जो देखा उससे सीख ली या फिर वे अपनी स्वाभाविक अच्छी लेंथ पर ही अड़े रहे, जो इन परिस्थितियों के लिए सबसे अच्छी साबित हुई। ऑस्ट्रेलिया दो ओवर में एक बार से भी कम बार स्टंप पर बना रहा। भारत ने हर ओवर में एक बार विकेट पर आक्रमण किया। भारत के तेज़ गेंदबाज़ों ने जो 18 विकेट लिए, उनमें से आठ या तो बोल्ड हुए या पगबाधा।
अत्यधिक सीम मूवमेंट सीरीज़ का अहम अंग रहा। जसप्रीत बुमराह ने पर्थ में पहली पारी में औसतन 0.9 डिग्री गेंद घुमाई। यह 2020 में क्राइस्टचर्च में 1.1 डिग्री के बाद उनका सर्वश्रेष्ठ था और सिडनी में एक बार फिर उन्होंने ऐसा किया जहां भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हार के लिए डराया,जहां पहली पारी में बढ़त लेने के बाद भी वे दूसरी पारी में कम तेज़ गेंदबाज़ी विकल्प से जूझे जहां बुमराह की चोट ने उन्हें बड़ा आघात पहुंचाया।
नेथन लायन ने पूरी सीरीज़ में 122.4 ओवर किए जो घर में तीन से अधिक टेस्अ में उनकी सबसे कम गेंदबाज़ी थी।
ऑस्ट्रेलिया में चेतेश्वर पुजारा की तरह डिफ़ेंड करना फ़ायदेमंद है। इन दिनों तर्क यह है कि गेंदबाज़ी करना कभी आसान नहीं होता, इसलिए अपने नाम वाली अंतिम गेंद से पहले अपने शॉट खेलना बेहतर है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में मौजूदा कूकाबुरा जब नई होती है तो बहुत तेज़ी से चलती है, और फिर नरम होने के बाद काफ़ी हद तक स्थिर हो जाती है।
नेथन मैक्स्वीनी, उस्मान ख़्वाजा और मार्नस लाबुशेन ने ऑस्ट्रेलिया के लिए पुजारा वाला रोल निभाने का फ़ैसला किया। पहली पारी में तीन में से दो पारियों में जब ट्रैविस हेड 30 ओवर के बाद उतरे तो उन्होंने शतक लगाए। ये केवल शतक नहीं थे बल्कि तेज़ शतक से जिसने भारत को हिला डाला।
इसका मतलब यह नहीं है कि ऋषभ पंत को उनके लड़ने की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाए, जो उन्होंने करने की कोशिश भी की, जिसमें उनका गेंद छोड़ने का प्रतिशत और स्ट्राइक रेट इसका गवाह है लेकिन एक टीम के तौर पर भारत बेहतर हो सकता था अगर आक्रामक बल्लेबाज़ सही समय पर एंट्री लेते।
ऑस्ट्रेलिया ने फिर भी सैम कॉन्स्टास को मैदान पर उतारा और उनको इंग्लैंड की तरह खेलने का मौक़ा दिया। नई गेंद से बुमराह के हाथों 6.5 के औसत पर आठ विकेट गंवाने के बाद, वे शायद उनके ख़िलाफ़ कुछ जोख़िम लेने के लिए बेताब थे, क्योंकि वास्तव में इससे अधिक बुरा क्या हो सकता था?
इसका परिणाम टेस्ट में रिवर्स स्कूप का सबसे पहला प्रयास था और 65 गेंदों की पारी में 28 ख़राब शॉट लगाए गए, जो 2015 के बाद से टेस्ट मैचों में अर्धशतकीय पारी में टिम साउथी के बाद दूसरा सबसे कम नियंत्रण था।
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कॉन्टास ने भारत को 90 मिनट तक बहुत अधिक फुलर गेंदबाज़ी करने को मजबूर किया, लेकिन भारत की लेंथ सीरीज़ के बाक़ी मैचों में अच्छी रही। उनके तेज़ गेंदबाज़ 56% समय 5-8 मीटर बैंड में रहे, जबकि ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज़ 51% समय 5-8 मीटर बैंड में रहे, लेकिन बुमराह के अलावा अन्य गेंदबाज़ों को वहां से नतीजे़ पाने में संघर्ष करना पड़ा। बुमराह को हटा दें, तो भारत के अन्य तेज़ गेंदबाज़ों ने 5-8 मीटर बैंड में 52% गेंदें फ़ेंकी और 36.25 की औसत से 16 विकेट लिए। ऑस्ट्रेलिया ने 24.71 की औसत से 38 विकेट लिए। बुमराह ने 11.7 की औसत से 20 विकेट लिए।
बुमराह के अलावा अन्य भारतीय गेंदबाज़ों का बिजनेस एरिया से सस्ते में विकेट लेने में असमर्थता दोनों टीमों के बीच बड़ा अंतर था। इसके पीछे कई कारक हो सकते हैं। ब्रिसबेन में नई गेंद के साथ आकाश दीप की लाइनें अच्छी नहीं थीं। बीच के तीन टेस्ट में, शायद लंबे गेंदबाज़ों ने पिच से अधिक रन निकाले। शायद भारत के तेज़ गेंदबाज़ों को क़िस्मत का साथ नहीं मिला।
असल में भारत मेलबर्न और एडिलेड में थोड़ा अनलक्की रहा। कॉन्स्टास मेलबर्न में पहले सत्र में बच गए जिसके बाद बल्लेबाज़ी आम तौर पर आसान हो गई। डे-नाइट टेस्ट में दोनों पक्षों ने बराबर संख्या में ख़राब शॉट खेले, लेकिन भारत दो बार और ऑस्ट्रेलिया केवल एक बार आउट हुआ। पूरी सीरीज़ में, आकाश दीप ने 54 रन पर सिर्फ़ चार विकेट लेकर 30% बार ख़राब शॉट खिलाए, लेकिन फिर भी, बारिश के कारण ब्रिसबेन में भारत वास्तव में भाग्यशाली रहा।
शॉर्ट गेंद भी दोनों टीमों के बीच एक बड़ा अंतर साबित हुईं। दोनों टीमें पारी के 40वें ओवर तक औसतन बराबरी पर रहीं। भारतीय गेंदबाज़ों ने गेंद को ज़्यादा स्विंग किया, सीम निकालने के मामले में ऑस्ट्रेलिया की बराबरी की। बुमराह ने शायद घरेलू तेज़ गेंदबाज़ो से ज़्यादा सीम की हो, लेकिन अगले 40 ओवर में जब गेंद पुरानी हो गई और सतह से कम सहायता मिल रही थी, तो ऑस्ट्रेलिया ने बढ़त बना ली।
हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने पहले चार टेस्ट मैचों में सिर्फ़ चार गेंदबाज़ों को ही खिलाया था, लेकिन उनके चार अग्रणी गेंदबाज़ों में अधिक गुणवत्ता और अनुभव था।
ऑस्ट्रेलिया ने बाउंसर से दस विकेट लिए, जबकि भारत ने एक विकेट लिया। इनमें से ज़्यादातर विकेट समय पर लिए गए, जिसमें मेलबर्न में यशस्वी जायसवाल, एडिलेड में पंत, ब्रिसबेन में रवींद्र जडेजा शामिल थे। पैट कमिंस ने सबसे आगे रहकर 146 बाउंसर फ़ेंके और 25 में से नौ विकेट लिए।
जब हेड और स्टीवन स्मिथ ने अच्छा प्रदर्शन किया था, तब पुरानी गेंद से भारत ने कोई ख़तरा पैदा नहीं किया।
ऑस्ट्रेलिया वाकई में यह जानता है कि डे-नाइट टेस्ट कैसे खेला जाता है। उन्होंने चार विकेट बहुत फु़लर गेंद पर लिए और चार बल्लेबाज़ों को बाउंस पर आउट किया, जबकि भारतीय गेंदबाज़ गुड लेंथ पर ही अटके रहे जहां पर उन्हें कम फ़ायदा मिला। ऐसा लगता है कि ऑस्ट्रेलिया गुलाबी गेंद से मिलने वाली अतिरिक्त उछाल और गति का अधिकतम लाभ उठाना चाहता था, हालांकि एडिलेड में गेंद सबसे कम सीम करती थी।
सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo न्यूज़ लेखक हैं।
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