जाडेजा और उनके इतने अच्छे होने का अभिशाप
वह एक बार फिर लोकप्रिय लैजेंड्स में अपनी जगह पक्की करने के बहुत क़रीब पहुंच गए थे, लेकिन अंत में ऐसा नहीं हो सका

रवींद्र जाडेजा क्रिकेटरों के क्रिकेटर हैं। कुछ अनोखे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को छोड़कर, वह पहला नाम हैं जिन्हें कई लोग अपनी टीम में देखना चाहते हैं। वह एक मज़बूत और भरोसेमंद खिलाड़ी हैं जो कई अलग-अलग तरीक़ों से योगदान देते हैं।
वह सब कुछ करते हैं, वह तलवार की तरह बल्ले को काे घुमाते हैं, कोई कमजोर हो तो उसकी कलाई टूट जाए, लेकिन वह बिना तक़लीफ़ के बार-बार ऐसा करते हैं। गेंदबाज़ के तौर पर वह सीधा बैड से उठकर गुड लेंथ गेंद कर सकते हैं और लगातार ऐसा कर सकते हैं जब तक कि पानी के लिए ड्रिंक्स ना हो। वह मैदान पर शानदार फ़ील्डर हैं।
एक बल्लेबाज़ के तौर पर, जाडेजा को पहले से सोचने या कोई ट्रिगर मूवमेंट की ज़रूरत नहीं है। इसमें बहुत कुछ उनकी शारीरिक क्षमता का कमाल है जिसे उन्होंने निखारा और प्रशिक्षित किया है। वह शायद ही कभी जल्दबाज़ी में दिखते हैं। उनकी बल्लेबाज़ी शुद्ध है। वह बस गेंद पर प्रतिक्रिया देते हैं, जैसा कि कोच आपको शुरुआती स्तर पर सिखाते हैं। अगर गेंद छोटी है, तो पीछे हट जाएं। अगर गेंद फुलर है तो आगे आओ, अगर गेंद वाइड है, तो उसे छोड़ दें। ख़राब गेंदों पर रन बनाएं, अच्छी गेंदों पर नियंत्रण से खेलें।
जाडेजा सालों से खेल के सबसे चुनौतीपूर्ण प्रारूप में शीर्ष ऑलराउंडर रहे हैं। वह शायद पारंपरिक अर्थों में ऑलराउंडर होने के सबसे क़रीब भी हैं। उन्हें लगभग सभी परिस्थितियों में विशेषज्ञ शीर्ष छह बल्लेबाज़ के रूप में चुना जा सकता है। उन्हें ज़्यादातर परिस्थितियों में अकेले गेंदबाज़ के रूप में चुना जा सकता है, सिवाय उन परिस्थितियों के जिनमें स्पिनरों के लिए गेंदबाज़ी करना असंभव हो।
जाडेजा के डेब्यू के बाद से, टेस्ट क्रिकेट में उनसे ज़्यादा गेंदें सिर्फ़ पांच खिलाड़ियों ने फ़ेंकी हैं। उनकी बल्लेबाज़ी में निखार आने में समय लगा, लेकिन 2018 में अपना पहला शतक लगाने के बाद से उनकी औसत 42.01 की है। इस अंतराल में कम से कम 2000 रन बनाने वालों में वह शीर्ष 20 में शामिल हैं।
फिर भी, एक सामान्य दर्शक के लिए जाडेजा ने ऐसा कोई यादगार प्रदर्शन नहीं किया है जिससे उन्हें याद रखा जा सके। यह इतना अच्छा होने का अभिशाप है। जब आप जीतते हैं, तो आप बड़ी जीत हासिल करते हैं। घरेलू मैदान पर उनके अनगिनत पांच विकेट और रन आम लोगों की स्मृति में पूरी तरह से सामान्य माने जाते हैं, क्योंकि ये उन बड़ें मैचों में नहीं किए जाते हैं जैसे बेन स्टोक्स करते हैं या उनसे पहले एंड्रयू फ्लिंटॉफ़ करते थे।
लॉर्ड्स का यह टेस्ट मैच वही मैदान जहां जाडेजा ने 11 साल पहले 68 बेशकीमती लेकिन जोखिम भरे रन बनाए थे और मैच जिताऊ रन आउट भी किया था। उनके लिए आख़िरकार अपने आंकड़ों के समर्थन में कहानी सुनाने का एक मौक़ा था। वह बिल्कुल वही हैं जिनकी इस युवा, अनुभवहीन टीम को ज़रूरत है। बस एक पुराने ज़माने का खिलाड़ी जो उन्हें उनकी क्षमता का एहसास दिला सके।
यह जाडेजा का चार पारियों में लगातार चौथा अर्धशतक था। ऐसे समय में जब ठीक से सोचना भी मुश्किल था, उन्होंने अपनी ठोस बल्लेबाज़ी से भारत को भरोसा दिलाया। जब वह मैदान पर उतरे, तो भारत लगभग मैच हार ही चुका था। फिर से, एक ऐसा टेस्ट जिसमें वे लंबे समय से बेहतर टीम रहे थे। जब जाडेजा लंच पर गए, तब तक उन्होंने नीतीश कुमार रेड्डी का विकेट गंवा दिया था, जो उनके आखिरी विशुद्ध बल्लेबाज़ थे। भारत को जीत के लिए अभी भी 81 रनों की ज़रूरत थी। उन्होंने विकेट पर रहते हुए बनाए गए 99 रनों में से 61 रन बनाए। उन्होंने उस दौरान फ़ेंके गए 55 ओवरों में से 30 से ज़्यादा ओवरों का सामना किया।
जाडेजा इतने पुराने ज़माने के और इतने स्वाभाविक रूप से प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें लगातार खुद को अपग्रेड करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। कभी-कभी उन्हें देखने वालों को निराशा होती है। वह अभी भी स्पिन का बचाव अपने बल्ले से पैड के पीछे से करते हैं, जो डीआरएस के चलन के साथ खेल से गायब हो गया है। फिर भी, उनकी बुनियादी बातें इतनी अच्छी हैं कि वह वर्तमान में सर्वश्रेष्ठ टेस्ट खिलाड़ियों में से एक हैं।
यही वह ताक़त है जो कभी-कभी थोड़ी कमज़ोरी भी बन सकती है। सबसे पहले यह स्पष्ट कर दें कि लॉर्ड्स में दो रन बनाने के लिए जगह नहीं है। चौकोर मैदान हरा-भरा है, और गेंदबाज़ की जगह का इस्तेमाल करके स्क्वायर के पीछे रन दौड़ना आसान नहीं है। गेंदें नरम हैं, यहां तक कि ऋषभ पंत भी पुरानी गेंदों पर ज़्यादा ज़ोर नहीं देते क्योंकि उनके हवा में बाउंड्री से बाहर जाने की कोई गारंटी नहीं होती।
इसलिए जैसे ही इंग्लैंड ने जाडेजा के लिए रक्षात्मक क्षेत्ररक्षण लगाया, उन्हें बांध दिया गया। वह रिवर्स स्वीप और रैंप वगैरह नहीं खेलते। पारंपरिक शॉट्स के साथ, फैले हुए क्षेत्र में दो रन और गैप ढूंढ़ना मुश्किल था जिससे दबाव इंग्लैंड पर वापस आ सके। यह लगभग एक रन प्रति ओवर वाली स्थिति थी, बशर्ते कि नंबर 10 और 11 के बल्लेबाज़ हर ओवर में एक या दो गेंदें खेलते रहें।
हालांकि, जाडेजा सिंगल्स में ऐसा करने के लिए तैयार थे। उन्होंने साफ़ अंदाज़ा लगा लिया था कि ये ऐसे हालात नहीं हैं जहां वह जोखिम उठा सकें। उनके पास लगातार ओवरों में रन बनाने और आखिरी बल्लेबाज़ के रूप में खुद को बचाने के लिए अनुशासन और शारीरिक शक्ति थी। पचास रन पूरे होने पर उन्होंने तलवारबाज़ी का जश्न मनाने से परहेज़ किया।
जो शुरुआत बस "देखते हैं हम कितना आगे बढ़ पाते हैं" से हुई थी, वो एक बेहद क़रीबी हार में बदल गई। जाडेजा लोकप्रिय लैंजेंड में अपनी जगह पक्की करने के इतने क़रीब पहुंच गए थे। एक ऐसी कहानी जो मां अपने बच्चों को गोद में लेकर सुनाती हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनकी खूबियों ने उन्हें क़रीब ला दिया। शायद इन्हीं खूबियों ने उन्हें अंतिम जीत हासिल करने से रोक दिया। लोग बहस करेंगे कि क्या उन्हें जोखिम उठाना चाहिए था। इसका कोई सीधा जवाब नहीं है।
मोहम्मद सिराज के एक मज़बूत रक्षात्मक शॉट पर जब गेंद लेग स्टंप पर लगी, तो जाडेजा ने ज़्यादा भावुकता नहीं दिखाई। सिराज झुके हुए थे और बल्ले पर मुक्का मारते-मारते लगभग घायल हो गए थे। मानो गेंद से पूछ रहे हों, "मैंने ऐसा क्या ग़लत किया था कि मुझे ये सब झेलना पड़ा?"
ज़िंदगी में बहुत कुछ मैदान पर उतरना ही होता है। वहां मौजूद रहना ही होता है वह भी पूरे धैर्य के साथ। जाडेजा ने अपनी ज़िंदगी में कई बार दिल टूटने का सामना किया है, जिसमें छह साल पहले इसी देश में हुआ विश्व कप सेमीफ़ाइनल भी शामिल है, जब उन्होंने भारत को एक बार फिर लगभग हारा हुआ मैच जिता ही दिया था। जाडेजा मैदान पर उतरने की अहमियत को सबसे ज़्यादा समझते हैं। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सीरीज़ में उनकी टीम अपने विरोधियों से कहीं ज़्यादा समय तक बेहतर रही है। फिर भी, वे 2-1 से पीछे हैं। अगर भारत को मैदान पर उतरकर मैनचेस्टर में किए गए अच्छे प्रदर्शन को दोहराने के लिए किसी प्रेरणा की ज़रूरत है, तो वो जाडेजा ही हैं।
सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में वरिष्ठ लेखक हैं।
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