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गिल ने मैच के पहले जो कहा था, वह कर दिखाया

गिल ने अपनी शतकीय पारी के दौरान केवल 12 फ़ाल्स शॉट खेलें, जो कि 2006 के बाद से इंग्लैंड में एक रिकॉर्ड है

एक कप्तान के रूप में एजबेस्टन टेस्ट में शुभमन गिल को उदाहरण पेश करना था। हाल के समय में इन युवा बल्लेबाज़ों के बीच एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखने को मिल रही थी। वे बिना किसी दबाव वाली परिस्थितियों में भी असामान्य ढंग से आउट हो रहे थे और अपना विकेट फेंक के चले जा रहे थे।

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इंग्लैंड में भारत की अब तक की तीन पारियों ने हैदराबाद टेस्ट की यादें ताज़ा कर दी हैं। ऑली पोप को उस दिन भाग्य का बहुत साथ मिला था, लेकिन भारत ने ख़ुद भी अपने आप पर बहुत दबाव डाला था। पहली पारी में उनके बल्लेबाज़ ग़ैर-परंपरागत तरीक़ों से आउट होकर पवेलियन में थे।

यशस्वी जायसवाल 80 रन के स्कोर पर चौका मारने की कोशिश में कॉट एंड बोल्ड हो गए, वहीं रोहित शर्मा और गिल छक्का मारने की कोशिश में आउट हुए। केएल राहुल और श्रेयस अय्यर क्रमशः 86 और 35 पर डीप मिडविकेट पर कैच हुए।

अब हेडिंग्ली की ओर लौटते हैं। वहां लगी पांच शतकों में से तीन पारियां असावधानी भरी ग़लतियों से समाप्त हुईं। भारत फिर इंग्लैंड को पूरी तरह दबाव में नहीं ला सका। कहानी फिर से वही थी। युवा बल्लेबाज़ मज़बूत स्थिति में पहुंचते हैं, लेकिन बिना दबाव वाली परिस्थितियों में भी असामान्य ढंग से शॉट खेल आउट हो जाते हैं।

हर टेस्ट शतक सिर्फ़ पिच की स्थिति पर निर्भर नहीं होता। कभी-कभी आपको मैच की परिस्थिति, विरोधी की योजना, अपने करियर की स्थिति और कप्तानी की ज़िम्मेदारियों व आलोचनाओं से भी निपटना होता है।

एजबेस्टन में इंग्लैंड की योजना साफ़ थी। उन्होंने गिल को सीधी गेंदों से निशाना बनाया, जो अंदर आती हैं और गिल को परेशान करती हैं। इस सीरीज़ में विशेषज्ञ बल्लेबाज़ों में केवल ज़ैक क्रॉली और ऑली पोप ने ही गिल से ज़्यादा प्रतिशत में स्टंप लाइन पर गेंदों का सामना किया है।

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गिल ने इसका सामना करते हुए फ़्लिक पर 33 और ऑन ड्राइव पर 9 रन बनाए। कुल मिलाकर उन्होंने ऑन साइड पर 61 रन बनाए। इसके लिए उन्होंने 84 गेंदें लीं और केवल चार फ़ाल्स शॉट खेले।

हालांकि जब गिल आए तब तक भारत ख़ुद को मुश्किल में डाल चुका था। उनके पांच में से दो विकेट असावधानी से गिरे थे। स्कोरकार्ड देखकर एक बार फिर "फिर वही हुआ" जैसा अहसास हो रहा था।

इसके अलावा सीरीज़ में भारत की स्थिति को लेकर भी भ्रम की स्थिति थी। लीड्स में हारने के बाद चयन को लेकर असमंजस की स्थिति थी। साथ ही इस पर भी असमर्थता थी कि जसप्रीत बुमराह को तीन टेस्ट में से किसमें खेलना चाहिए। सिर्फ़ सातवें प्रथम श्रेणी मैच में कप्तानी कर रहे एक युवा कप्तान के लिए यह आदर्श शुरूआत नहीं थी।

इन सबके बीच गिल ने डटे रहकर वही किया जो उन्होंने मैच से पहले कहा था। उन्होंने धीरे-धीरे गियर बदले। पहली 26 गेंदों में उन्होंने केवल चार रन बनाए, 125 गेंदों में अर्धशतक पूरा किया और जब नया गेंद आने वाला था, उन्होंने एक ही ओवर में दो स्वीप मारकर अपना शतक पूरा किया। जब वे शतक पर पहुंचे, तब ESPNcricinfo के अनुसार उन्होंने 199 गेंदों में केवल 12 फ़ाल्स शॉट खेले थे। Cricviz के अनुसार यह संख्या केवल आठ ही थी। कहा जा सकता है कि यह 2006 से इंग्लैंड में किसी भी शतक में सबसे कम फ़ाल्स शॉट की दर है।

शतक के बाद प्रतिक्रिया देते गिल  PA Images/Getty

गिल का अपने करियर में नियंत्रण प्रतिशत असाधारण रूप से ऊंचा है। यह साफ़ है कि वह एक दुर्लभ प्रतिभा वाले बल्लेबाज़ हैं। लेकिन जो चीज़ उन्हें भारतीय क्रिकेट के निर्णायकों से स्वीकृति दिलाने में मददगार रही, वह यह थी कि वे अलग-अलग तरीक़ों और गति से बल्लेबाज़ी कर सकते हैं।

उनके पास कोई "नेचुरल गेम" का बहाना नहीं है। वह एक पुराने ज़माने के शांत स्वभाव वाले बल्लेबाज़ हैं। विशाखापत्तनम में उनकी दूसरी पारी की जुझारू शतकीय पारी और रांची में नाबाद अर्धशतक इसका प्रमाण हैं।

दिन के अंत में यशस्वी जायसवाल ने गिल के बारे में कहा, "उन्होंने जिस तरह से बल्लेबाज़ी की, वह अद्भुत है। उन्हें बल्लेबाज़ी करते देखना एक बेहतरीन अनुभव है। बतौर कप्तान भी वह ज़बरदस्त रहे हैं। उन्हें पता है कि उन्हें क्या करना है।"

गिल जानते हैं कि उनका काम अभी अधूरा है। मैच में भारत की स्थिति अभी थोड़ी ही बेहतर हुई है। उन्हें अब दो ऑलराउंडरों के साथ बल्लेबाज़ी करनी है ताकि भारत मैच में आगे हो सके। मैच के दूसरे दिन भी गिल से वही उम्मीद होगी, जितनी पहले दिन थी।

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सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में सीनियर राइटर हैं