कैसे अभिषेक नायर ने केएल राहुल को फिर से क्रिकेट की धुन से जोड़ दिया
सालों तक हर किसी की उम्मीदों पर खरे उतरने की कोशिश में जूझने के बाद, राहुल ने अब उन आवाज़ों को पीछे छोड़ दिया है और दोबारा अपनी सहजता और अपनी लय पर भरोसा करना शुरू किया है

केएल राहुल ने न सिर्फ बाहर के दर्शकों को बल्कि भारतीय टीम के भीतर के लोगों को भी चौंकाया है। पूर्व कप्तान रोहित शर्मा राहुल से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कराना चाहते थे, और उन्होंने यह जिम्मेदारी अभिषेक नायर को सौंपी, जो उस वक्त गौतम गंभीर के हेड कोच बनने के साथ भारतीय टीम के सहायक कोचों में से एक थे।
नायर ने ESPNcricinfo से कहा, "जब मैंने वह भूमिका संभाली, मुझे याद है कि मेरी रोहित से बातचीत हुई थी, और उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि मैं केएल के साथ काम करूं और उनके खेल के दृष्टिकोण को थोड़ा अधिक आक्रामक बनाऊं, ताकि वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें। रोहित को पूरा यकीन था कि केएल चैंपियंस ट्रॉफ़ी, वर्ल्ड कप और आगे चलकर BGT [बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी] और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ में बड़ी भूमिका निभाएंगे।"
किस्मत से राहुल ने BGT की शुरुआत लगभग एक चेतावनी के साथ की। न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ घरेलू सीरीज़ के पहले मैच की पहली पारी में, जो बेंगलुरु की दुर्लभ हरी पिच पर खेला गया, राहुल लेग स्टंप की गेंद को छेड़कर आउट हो गए। फिर उन्होंने दूसरी पारी में सरफराज़ खान और ऋषभ पंत को आक्रामक बल्लेबाज़ी करते देखा, लेकिन खु़द दूसरी नई गेंद पर एक बेहतरीन गेंद का शिकार बने और भारत की पारी ढह गई। इसके बाद वे अगले दो टेस्ट नहीं खेल सके।
नायर कहते हैं, "मुझे लगता है कि वहीं से हमारे रिश्ते की शुरुआत हुई। ऑस्ट्रेलिया दौरा उनके लिए निर्णायक था क्योंकि अगर वहां रन नहीं आते तो उनके करियर पर ही सवाल उठने वाले थे। वे पहले ही T20 टीम से बाहर हो चुके थे। यह उनकी आख़िरी सीरीज़ भी हो सकती थी।
"मैंने उनसे कहा, सुनो हमारे पास ऑस्ट्रेलिया रवाना होने से पहले 15 दिन हैं। और वहां पहुंचकर 10 और दिन मिलेंगे, तो कुल मिलाकर हमारे पास लगभग एक महीना है। तुम क्या करना चाहते हो? कैसे इस सीरीज़ से निपटना चाहते हो? तुम्हारा माइंडसेट क्या है?
"उन्होंने बताया कि वे अब तक क्या करते रहे हैं और पहले क्या काम आया है। फिर मैंने उन्हें अपना सोचने का तरीका समझाने की कोशिश की, जो उनके से बिल्कुल अलग था। घंटों बातचीत और समझाने के बाद, आख़िरकार वे मुझ पर भरोसा करने लगे कि मैं उनकी प्रैक्टिस, रणनीति, स्टांस, क्रीज़ में खड़े होने की जगह और गार्ड लेने जैसे पहलुओं में कुछ बदलाव ला सकता हूं।"
न्यूज़ीलैंड सीरीज़ के दौरान ही राहुल और नायर ने ऑस्ट्रेलिया की तैयारी शुरू कर दी थी। वे मैच शुरू होने से पहले नेट्स में जाते और दिन ख़त्म होने के बाद भी वहीं रुकते। जब ऑस्ट्रेलिया दौरे की शुरुआत में रोहित पितृत्व अवकाश पर थे, तब राहुल को पर्थ में एक बार फिर ओपनिंग का मौक़ा मिला।
नायर कहते हैं, "कोच को क़िस्मत वाला होना चाहिए। कितनी क़िस्मत की बात थी कि ऑस्ट्रेलिया में उनके पहले ही मैच में उन्होंने दूसरी पारी में रन बनाए, और पहली पारी में भी शुरुआत अच्छी रही। इससे उन्हें आत्मविश्वास मिला। कुछ पल होते हैं जब चीज़ें जुड़ जाती हैं। वह ऐसा ही पल था। उन्होंने उस पारी का पूरा आनंद लिया। उन्होंने मुझसे कहा, 'मुझे लग रहा है जैसे मैं बस देख रहा हूं और खेल रहा हूं। अब ये खेल मेरे लिए संगीत के जैसा है।'"
लेकिन असली पहेली क्या थी? भारत राहुल से लगातार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन क्यों नहीं ले पाया? टेस्ट में वे महान खिलाड़ी बनने के बजाय कुछ महान पारियों तक ही क्यों सीमित रह गए?
नायर कहते हैं, "बाहर कई बातें होती हैं, खुद से उम्मीदें होती हैं, और साल दर साल आप इन अपेक्षाओं को अपने दिमाग़ में बैठा लेते हो। आप सोचने लगते हो कि ये करना है, ये हासिल करना है। लोग आपकी प्रतिभा और संभावनाओं की बातें करते हैं, और आप सोचते हो कि अब जब सबको लगता है कि मैं टैलेंटेड हूं तो मुझे उस पर खरा उतरना होगा। यही दबाव आपको पीछे खींचता है।"
"ये खेल का मज़ा छीन लेता है। आप वो क्रिकेट नहीं खेल पाते जो आप खेलना चाहते हो। सबसे बड़ी बात ये कि आपकी प्राकृतिक प्रवृत्ति मर जाती है। आप पूर्वनिर्धारित खिलाड़ी बन जाते हो, जिसमें कोई सहजता नहीं होती।"
नायर उन "राज़" की बातों को साझा नहीं करना चाहते जो उन्होंने और राहुल ने ट्रेनिंग में बदलीं। नायर ने कहा, "मैं बस इतना कह सकता हूं कि मैंने हमेशा पहले स्किल पर काम करने की कोशिश की है, और फिर स्किल के ज़रिए मानसिक पहलुओं पर। हमारी अभ्यास की योजना दिमाग़ को भरोसा देती है, और साथ ही हम उसमें रणनीतिक पहलुओं को जोड़ते हैं ताकि बल्लेबाज़ी करते समय उनका ध्यान सिर्फ़ निष्पादन पर रहे, नतीजे पर नहीं।"
हालांकि राहुल अपने बल्लेबाज़ी के तरीक़े से संतुष्ट थे, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में वे तब भी सफ़ल सीरीज़ नहीं खेल पाए। उनका टेस्ट में अब तक का सर्वश्रेष्ठ सीरीज़ स्कोर 393 रन है, जो उन्होंने 2016-17 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ घर में बनाया था। पर्थ की पारी के बाद उन्होंने गाबा में 84 रन बनाए, लेकिन शतक नहीं आया।
नायर हंसते हुए कहते हैं, "मुझे याद है किसी ने मुझे मज़ाक में कहा, 'कोच, शतक कैसे बनाते हैं, सिखाओ',मैंने कहा, दोस्त, कभी-कभी शतक बस क़िस्मत से बनते हैं।"
"मेरा मानना है कि जो होना है, वो होगा। अगर नहीं हो रहा, तो उसका वक़्त नहीं आया। मैंने हमेशा विश्वास रखा कि राहुल सही दिशा में काम कर रहे हैं। उस सीरीज़ में लगभग हर पिच पर घास थी, सिवाय MCG के। मैंने कहा, तुम्हें ये भी समझना होगा कि कभी-कभी 270 रन भी बहुत होते हैं। जरूरी नहीं कि हर बार 400 रन चाहिए।"
"मैं ये नहीं कह रहा कि संतुष्ट हो जाओ, लेकिन तुम्हें ये भी मानना होगा कि तुम अभी हाल ही में टेस्ट टीम से बाहर थे। और अब तुम वापस आए हो, एक नई स्थिति में बैटिंग कर रहे हो और फिर भी अपनी जगह बनाए हुए हो। इसका मतलब कुछ तो हासिल किया है। कभी-कभी बस थोड़ा और सब्र चाहिए। थोड़ा और कृतज्ञ रहो, अच्छे पल आने ही वाले हैं। बस थोड़ी देर और रुको।"
जब राहुल T20I सेटअप से बाहर थे और टेस्ट करियर को फिर से संवारने में लगे थे, तब एकमात्र स्थिर चीज़ ODI थी, जहां उन्होंने विकेटकीपिंग और मिडल ऑर्डर में ठहराव के साथ टीम को संतुलन दिया। लेकिन नायर को वहां भी सुधार दिखा। वे चैंपियंस ट्रॉफी फ़ाइनल की बात करते हैं, जहां राहुल ने मिचेल सैंटनर की गेंद पर, अपनी पारी की आठवीं गेंद पर, छक्का जड़ा - जो सामान्यतः वे 35-40 रन पर जाकर खेलते।
नायर कहते हैं, "सपोर्ट स्टाफ़ के रूप में जब मैं मैच देख रहा था, तब मैंने सोचा… वाह, ये सच में काम कर रहा है। ये शुरुआत राहुल की आदत से बिल्कुल अलग थी। उस वक्त मुझे लगा कि हम सही सोच रहे हैं, वो सही दिशा में बढ़ रहे हैं।"
राहुल उस वक्त वो शॉट कैसे खेल पाए?
"अगर कोई रिवर्स स्वीप खेलकर आउट होता है, तो लोग कहते हैं बुरा शॉट था। अगर कोई डिफेंस करके आउट होता है, तो लोग कहते हैं शानदार गेंद थी। लेकिन स्कोरबोर्ड पर सिर्फ़ आउट लिखा होता है। इसलिए मेरे लिए यह मायने नहीं रखता कि बल्लेबाज़ किस शॉट से आउट हुआ।"
"अगर हम पहले से प्रैक्टिस कर चुके हैं कि हार्ड लेंथ गेंद पर फ्रंट लेग हटाकर कवर के ऊपर से मारना है, तो आप वो करो। दुनिया जो भी सोचे। उन्हें हमारी मेहनत, हमारी योजना नहीं पता। जब तक हमें अपनी तैयारी पर भरोसा है, हम ठीक हैं।"
"शॉट खेलने का कोई 'सही वक्त' नहीं होता । बस शॉट खेलने का मौक़ा और मन है, तो खेलो। उस शॉट की पृष्ठभूमि कोई नहीं जानता। वह सिर्फ़ तुम और मैं जानते हैं।"
"लोग आलोचना करेंगे, सवाल पूछेंगे, ऊंगली उठाएंगे। दुनिया ऐसी ही है। हमें उस आज़ादी को अपनाना है। मैं कभी यह नहीं कहता कि 'दबाव मत लो, सिर्फ मज़े से खेलो'। मेरे लिए क्रिकेट मज़े से खेलने से ज़्यादा एक समस्या को हल करने की प्रक्रिया है। कैसे बिना ज़्यादा सोचे गेंद को देखना है, कैसे दबाव के माहौल में जाकर भी ऐसा दिखाना है जैसे कोई दबाव नहीं, और कैसे ज़िम्मेदारी को स्वीकार करके भी उस पर काबू पाया जाए।"
हालांकि BCCI ने IPL से पहले नायर का अनुबंध समाप्त कर दिया था, लेकिन राहुल ने निजी तौर पर उनके साथ काम जारी रखा। IPL के दौरान राहुल ने यह दिखाया कि अब वे वो खिलाड़ी नहीं रहे जो स्ट्राइक रेट को कम अहमियत देते थे। उन्होंने "अभिषेक नायर को बड़ा श्रेय" दिया, जिनके साथ उन्होंने "मुंबई में घंटों काम किया।"
राहुल अब क्रिकेट का भरपूर आनंद ले रहे हैं। इंग्लैंड दौरे की शुरुआत उन्होंने शानदार की है, भले ही भारत पहला टेस्ट हार गया हो। बतौर सीनियर बल्लेबाज़, राहुल को अब टीम के बाक़ी बल्लेबाज़ों को भी प्रेरित करना होगा ताकि भारत एक बार फिर से ऐसे मुकाम पर पहुंचे जहां से वो मैच पर दबदबा बना सके। अगर इस प्रक्रिया में वे खुद 400 या 500 से अधिक रन बना पाएं, तो ये उनकी ओर से टीम के लिए बड़ा योगदान होगा।
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