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क्या भारतीय टीम के नंबर एक ऑलराउंडर बनेंगे वॉशिंगटन सुंदर ?

फ़िलहाल टीम में उनकी भूमिका को लेकर पूरी स्पष्टता नहीं है, लेकिन उनमें एक बेहतरीन ऑलराउंडर बनने की क्षमता ज़रूर है

Has Washington nailed his spot in India's Test XI?

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Sanjay Manjrekar on the allrounder's century and his bowling in the series

वॉशिंगटन सुंदर ने ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट ड्रॉ कराने के लिए जब अपना पहला टेस्ट शतक लगाया, उससे पहले इस सीरीज़ में उनका प्रदर्शन रहा था: 27 (90 गेंद), 0 (4), 23 (76), 12* (7) और 42 (103)। गेंद से उनके आंकड़े 2/107, 4/22, 0/21, 1/28 और 0/73 का था।

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लॉर्ड्स में उनके द्वारा लिया गया चार विकेट छोड़ दें तो कुछ भी असाधारण नहीं था, लेकिन अगर इस सीरीज़ की यादगार गेंदों और शॉट्स की झलकियां बनाई जायें, तो वॉशिंगटन उनमें ज़रूर नज़र आयेंगे।

यहां तक कि बेन स्टोक्स को एजबस्टन में एलबीडब्ल्यू आउट करने वाली शानदार ड्रिफ़्ट करती ऑफ़ब्रेक से पहले भी उन्होंने गाबा वाला पुराना पुल शॉट जोश टंग के ख़िलाफ़ और भी दमदार अंदाज़ में दोहराया। वहीं, जो रूट की एक बेहतरीन ऑफ़ब्रेक ने उन्हें बोल्ड किया। लॉर्ड्स में रूट पर मारा गया इनसाइड-आउट छक्का बस एक चिप की तरह था, जो लगातार उड़ता चला गया।

अपने बेटे के लिए ऊंचे मानक तय करते हुए वॉशिंगटन के पिता की तुलना कुमार संगकारा के पिता से की गई है। शायद उन्हें लगता हो कि चयनकर्ताओं ने उनके बेटे के साथ न्याय नहीं किया, लेकिन भारतीय क्रिकेट के निर्णयकर्ताओं ने वॉशिंगटन को जितना संभव हो उतना खिलाने की कोशिश की है। यह कोई एहसान नहीं है| वे उनकी प्रतिभा की ऊंचाई को पूरी तरह भुनाना चाहते हैं।

IPL में इम्पैक्ट प्लेयर नियम वॉशिंगटन के लिए रुकावट बना क्योंकि इस नियम में टीमों को ऑलराउंडर तैयार करने का कोई फ़ायदा नहीं दिखता। इम्पैक्ट प्लेयर युग में वे सिर्फ़ 15 मैच ही खेल सके, जबकि इससे पहले तीन सालों में उन्होंने 30 मैच खेले थे।

लंबे समय तक नज़र से ओझल रहना किसी खिलाड़ी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन शुक्र है कि चयनकर्ताओं की नज़रों में ऐसा नहीं हुआ। शायद इसी अंतराल ने उनकी गेंदबाज़ी को और निखार दिया। इस सीरीज़ में किसी भी स्पिनर ने गेंद में उतना ड्रिफ़्ट नहीं पैदा किया जितना उन्होंने किया| उनकी गेंद औसतन 2.543 डिग्री ड्रिफ़्ट हुई, जबकि लियाम डॉसन, रवींद्र जाडेजा और शोएब बशीर लगभग 1.5 डिग्री पर रहे। डॉसन को छोड़कर वॉशिंगटन ने सबसे ज़्यादा बार स्टंप्स को निशाना बनाया। जिस पिच पर स्पिनरों को मदद नहीं मिल रही थी, वहां ड्रिफ़्ट और लाइन से ही उन्होंने सात विकेट निकाले, जिनमें स्टोक्स का एजबस्टन वाला विकेट भी शामिल है जो हवा के उलट देर से ड्रिफ़्ट करता हुआ आया।

यह आंकड़े 2021 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ घर में किए गए उनके प्रदर्शन से भी बेहतर हैं, जहां उनका औसतन ड्रिफ़्ट 2.233 डिग्री था। इस बार उन्होंने तेज़ गेंदबाज़ी भी की और औसतन स्पीड 91.71 किमी/घंटा से गेंदबाज़ी की , जबकि 2021 में यह 87.61 थी, शायद इसलिए कि इन पिचों पर धीमी गेंदबाज़ी से कुछ हासिल नहीं हो रहा। हालांकि हवा में ज़्यादामूवमेंट मिला, लेकिन डिप उतना नहीं था, जितना जडेजा को मिलता है और शायद सटीकता भी थोड़ी कम रही।

अगर बल्लेबाज़ गेंद को पिच के दो मीटर के भीतर ही खेल लें या फिर पीछे हटकर तीन मीटर का समय ख़ुद को दे दें, तो स्पिनर के लिए उन्हें फंसाना मुश्किल हो जाता है। स्पिनर की कोशिश होती है कि बल्लेबाज़ इन दोनों के बीच में फंसे। इस सीरीज़ में वॉशिंगटन ने ऐसा सिर्फ़ 19.7% मौकों पर किया है। तुलना करें तो जाडेजा ने हर तीसरी गेंद पर ऐसा किया है। यही वजह है कि वह हर स्थिति में मुकाबले में रहते हैं। वॉशिंगटन के ये आंकड़े घरेलू प्रदर्शन से मेल खाते हैं।

अब वॉशिंगटन की बल्लेबाज़ी को भी इस पैकेज में जोड़ दीजिए तो समझ में आता है कि चयनकर्ता उन्हें लेकर इतने उत्सुक क्यों हैं। चौथे टेस्ट को ड्रॉ कराने की उनकी कोशिश में एक बार भी नहीं लगा कि वे इंग्लैंड को वापसी का मौक़ा देंगे। उनके पहले ही टेस्ट, गाबा में ऐतिहासिक जीतमें ही उन्होंने दिखा दिया था कि वे दबाव में धीमी बल्लेबाज़ी कर सकते हैं और लक्ष्य का पीछा करते हुए आक्रामक भी हो सकते हैं।

वॉशिंगटन इस समय करियर के उस मोड़ पर हैं जहां टीम को अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि उनकी सबसे मुफ़ीद भूमिका क्या है। वे एशिया के बाहर एक बल्लेबाज़ हो सकते हैं जो थोड़ा गेंदबाज़ी करता हो, या एशिया में एक फ्रंटलाइन स्पिनर जो निचले क्रम में बैटिंग करता हो। इस अस्थिरता के बावजूद उनके आंकड़े किसी एलिट ऑलराउंडर जैसे हैं। उनकी बल्लेबाज़ी औसत 44.86 और गेंदबाज़ी औसत 27.87 की है।

अब तक उन्हें वही हालात मिले हैं जो उनके लिए मुफ़ीद रहे। भारत में वे तीसरे स्पिनर के तौर पर तभी खेले जब पिचें स्पिन के लिए काफ़ी मददगार थीं। लेकिन अब वे आर अश्विन की जगह लेने के प्रबल दावेदार हैं। जडेजा अब युवा नहीं हैं। जब भी वे संन्यास लें, वॉशिंगटन भारत के नंबर 1 ऑल कंडीशन ऑलराउंडर बनने की रेस में सबसे आगे होंगे।

चोटिल ऋषभ पंत की जगह नंबर 5 पर खेलते हुए जब उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक लगाया और मैच ड्रॉ कराया, तो उन्होंने इतना ज़रूर दिखा दिया कि उन पर भरोसा किया जा सकता है। अब उनसे उम्मीदें सिर्फ़ उनके पिता की नहीं, पूरी टीम की हैं।

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