मिलर : दस हज़ारी रूट एक अलग ही स्तर की बल्लेबाज़ी कर रहे हैं
उन्होंने पिछले 17 महीनों में कोहली, स्मिथ और विलियमसन की तिकड़ी से नौ अधिक टेस्ट शतक लगाए हैं

लॉर्ड्स टेस्ट की चौथी सुबह लंदन में कोहरा और घने बादल देख कर सामान्य क्रिकेटर को थोड़ी घबराहट तो होती ही। मौसम ऐसा था कि खेल शुरू होने में विलंभ नहीं होता लेकिन न्यूज़ीलैंड के तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मदद रहती। इंग्लैंड को जीत के लिए 61 रन और चाहिए थे लेकिन मेहमान टीम ने भी सोचा होगा कि शायद पांच विकेट निकालना उनके लिए असंभव नहीं।
जो रूट एक सामान्य क्रिकेटर नहीं हैं। इस चुनौती का सामना उन्होंने उस सकारात्मकता से किया जिससे सफ़ेद गेंद के नामी गिनामि खिलाड़ी भी गर्व करते। रूट ने मैदान पर उतरते ही रन गति को बढ़ाने का काम किया और न्यूज़ीलैंड की आशाओं को तितर बितर कर छोड़ा। दिन की अपनी पहली गेंद पर उन्होंने टिम साउदी को स्क्वेयर की दिशा में धकेला और रन चुरा लिया लेकिन रूट बड़े ही अनूठे ऐसे बल्लेबाज़ हैं जो इस शॉट को लगभग सीधे बल्ले से और पूरे आत्मविश्वास से खेलते हैं। इस शॉट पर रूट ने इस पारी में एक बाउंड्री समेत 34 रन इसी दिशा में बनाए और उनके खेलते हुए एक उतार चढ़ाव भरे मैच में एक अनोखे ठहराव का एहसास हुआ।
इस मैच में नाटकीय परिवर्तन एक आदत सी बन गई थी। इंग्लैंड के लिए डेब्यू कर रहे मैथ्यू पॉट्स का मानना था कि "वह दो मुक्के मारेंगे तो हम चार मारेंगे", लेकिन ऐसे मुक़ाबले में रूट और बेन फ़ोक्स की सरल और शीतल साझेदारी ने न्यूज़ीलैंड को सबसे अधिक क्षति पहुंचाई।
केन विलियमसन इंग्लैंड के साथ इस आख़िरी पड़ाव को एक रोमांचक मुक़ाबला बनाने के लिए तैयार थे। उन्हें उम्मीद थी कि दोनों बल्लेबाज़ जोश में आकर वैसी ग़लती कर सकते हैं जैसी तीसरे दिन के खेल में कप्तान बेन स्टोक्स कर चुके थे। इंग्लैंड भी ऐसे आसार के लिए तैयार था और स्टुअर्ट ब्रॉड ने आठवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करने के लिए पैड पहन रखे थे। शायद सोच यह थी कि वह विकेट के गिरने पर आकर ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी करते हुए टीम को लक्ष्य के क़रीब पहुंचा कर आउट भी हो गए तो बुरी बात नहीं होगी।
रूट अपनी गेम में एक अलग प्रकार की आक्रामकता लाते हैं। चौथी पारी के 50वें ओवर में स्टोक्स के आउट होने के बाद रूट ने ठीक 81 गेंदें खेली और 81 ही रन बनाए। यह रन गति ख़ासी प्रभावशाली थी क्योंकि 170 गेंदों तक चली अपनी पारी में वह कभी अत्याधिक जोखिम उठाते नहीं दिखे। इस बात पर स्टोक्स ने भी बात की और अपने पुराने कोच की सोच के बारे में भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा, "ट्रेवर बेलिस का मानना था सकारात्मक बल्लेबाज़ी केवल चौकों और छक्कों की ही बात नहीं है। आप गेंद को छोड़ते और डिफ़ेंड करते हुए भी सकारात्मक रह सकते हैं। जब आपकी सोच सकारात्मक होती है तब आपका निर्णयन भी बेहतर होता है।"
रूट की सकारात्मकता से मैच दिन के पहले 15 ओवर में समाप्त हुआ और इससे दर्शकों को भी अपना पूरा टिकट पर ख़र्च किया हुआ पैसा वापस मिला। मैच के जल्दी ख़त्म होने से बच्चे मैदान पर उतरकर आपस में खेलने लगे और वहीं बड़े स्क्रीन पर रानी के शासन के 70 साल के अवसर पर प्लैटिनम जुबली के दृश्य भी दिखने लगे। रूट की पारी ने इंग्लैंड में एक ख़ुशनुमा सप्ताहांत पर चार चांद लगा दिए।
अभी तो हमने यह भी नहीं याद किया कि रूट ख़ुद इस पारी के दौरान 10,000 रन बनाने वालों की क्लब में 14वें सदस्य भी बन गए। संयोग से रूट को पारी की शुरुआत करते हुए दस हज़ारी बनने के लिए ठीक 100 रन ही चाहिए थे और यह पूरा सिलसिला एक कहानी के भीतर छुपी कहानी जैसा लगा। कप्तानी के साथ एक "असहज रिश्ता" निभाने के बाद बतौर खिलाड़ी अपने पहले टेस्ट में एक ऐसे टीम के लिए मैच जीतना जिसने 10 महीने से जीत का स्वाद नहीं चखा हो, और उस जीत को हासिल करते हुए चौथी पारी में शतक, और उस शतक के साथ एक बड़ा कीर्तिमान - जब आप सारा संदर्भ समझते हैं तो शायद रूट के इस कथन पर विश्वास होता है कि उन्होंने 10,000 के इस पड़ाव पर ज़्यादा नहीं सोचा था।
रूट ने कहा, "मुझे पता था लेकिन पहली पारी में एक ख़राब शॉट पर आउट होने के बाद यह पड़ाव बहुत दूर नज़र आ रहा था। मुझे सिर्फ़ जीतने से मतलब था। इस टीम को जीते हुए काफ़ी समय हो चुका था और इस गेम में असली मज़ा आता है जीत से। शतक जड़ना और 10,000 रन बनाना गर्व की बात है लेकिन क्रिकेट में जीतने से बेहतर कोई अनुभव नहीं। उम्मीद है हम इस अनुभव को अब इस सीज़न कई बार दोहराएंगे।"
1980 के दशक में सुनील गावस्कर जब 10,000 रन पर अकेले विराजमान थे तब के बाद जहां कई औरों ने यह आंकड़ा पार किया है यह फिर भी टेस्ट बल्लेबाज़ी का एक अनोखा शिखर ही है। इंग्लैंड के रिकॉर्ड तोड़ने वाले बल्लेबाज़ अक्सर अपने जीवन में कम टेस्ट मैच खेलते हैं और घरेलू परिस्थितियों में बल्लेबाज़ी करते हुए उनके आंकड़े अपने समकालीन खिलाड़ियों से साधारण होते हैं। रूट का रिकॉर्ड इस मामले में काफ़ी अच्छा है।
यह सच है कि वह बहुत कम ऐसे दस हज़ारियों में हैं जिनकी औसत 50 से नीचे है लेकिन इसे सुधारने के लिए उनके पास पर्याप्त समय है। ऑस्ट्रेलिया में शतक ना मारना ज़रूर उनके लिए खेदजनक आंकड़ा है और बतौर कप्तान उन्होंने दो दौरों पर अपने बल्ले से योगदान की कमी को ज़रूर महसूस किया होगा।
रूट के टेस्ट क्रिकेट में उपलब्धियों का सही आकलन भविष्य में ही संभव होगा। वर्तमान में इतना ही कहेंगे कि एक तरफ़ महामारी से जूझती दुनिया और दूसरी ओर उनके द्वारा संवारे गए इस टेस्ट टीम की निरंतर दुरावस्था के चलते यह प्रक्रिया अभी भी जारी रहेगी। इंग्लैंड और ख़ुद के लिए वह जो कुछ कर रहे हैं उसे हम भविष्य में ही समझ पाएंगे लेकिन यह तो तय है कि दिसंबर 2020 में 30 साल के होने के बाद से उनका खेल उनकी विरासत का एक अहम हिस्सा बनेगा।
केवल 17 महीनों में रूट ने 2192 रन ठोके हैं जिनमें नौ टेस्ट शतक शामिल हैं। यह फ़ॉर्म उन्हें विराट कोहली, स्टीवन स्मिथ और विलियमसन जैसे समसामयिक दिग्गजों के समूह से नौ शतक आगे रखता है। रूट एक अलग ही स्तर पर बल्लेबाज़ी कर रहे हैं और साबित कर रहे हैं कि एक महान खिलाड़ी मौक़े को पहचानकर उसका भरपूर उपयोग करने में माहिर होता है।
सबसे असाधारण बात यह कि रूट ने ऐसा उस टीम में रहते किया है जिन्होंने पिछले 18 में केवल दो टेस्ट जीते हैं। इस अवधि में उनके 30 साथियों ने कुल मिलाकर सिर्फ़ पांच शतक जड़े हैं और किसी ऊपरी क्रम बल्लेबाज़ की औसत 31 से अधिक की नहीं है। 1980 के दशक में ऐलन बॉर्डर या 2000 के दशक में ऐंडी फ़्लावर के पास भी इतनी कमज़ोर बल्लेबाज़ी शायद कभी नहीं दिखी थी।
समय के साथ रूट के बल्लेबाज़ी की महानता को हम और अच्छी तरह से समझ पाएंगे। एक बात तय है - लॉर्ड्स के ड्रेसिंग रूम से उतरकर लॉन्ग रूम में आकर उनका अभिवादन कर रहे उनके साथी जो रूट के बल्ले से निकले रन ही नहीं बल्कि जो रूट नामक चैंपियन का भी जश्न मना रहे थे।
ऐंड्रयू मिलर (@miller_cricket) ESPNcricinfo के यूके एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo में सीनियर असिस्टेंट एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है।
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