वानखेड़े में सिक्स, लॉर्ड्स में हार और जीत का आभास : विश्व कप फ़ाइनल में भारत की कहानी
रविवार को भारत वनडे विश्व कप में अपना छठा फ़ाइनल खेलेगा, जानिए अब तक की दास्तां

भारत अपने छठे 50-ओवर विश्व कप फ़ाइनल में पहुंच चुका है, जहां उनका सामना ऑस्ट्रेलिया के साथ रविवार को अहमदाबाद में होगा।
यक़ीन कीजिए, हमने गिनने में कोई ग़लती नहीं की है। वैसे पुरुष टीम के तीन फ़ाइनल याद हैं हमें, लेकिन ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो हिंदी में आपने देखा ही होगा कि हम टीम के नाम में भी पुरुष और महिला क्रिकेट में भेदभाव नहीं करते।
तो आईए इस रविवार के महामुक़ाबले से पहले हुई पांच वनडे फ़ाइनल्स को रैंक करके देखते हैं।
5. जब मिताली की टीम पहुंची ख़िताब के क़रीब (2005)
2003 में पुरुष विश्व कप के दो साल बाद महिला विश्व कप भी वहीं खेला गया। मैच राउंड रॉबिन फ़ॉर्मैट में थे और भारत ने आठ टीमों की प्रतियोगिता में आयरलैंड, साउथ अफ़्रीका, इंग्लैंड और वेस्टइंडीज़ को आसानी से हराया।श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मैच बारिश के चलते रद्द हो गए और भारत केवल न्यूज़ीलैंड से एक क़रीबी मैच में कप्तान मिताली राज की 52 रनों की पारी के बावजूद से हारा।
सेमीफ़ाइनल में पॉचेफ्सट्रूम में न्यूज़ीलैंड से ही मुक़ाबला हुआ और इस बार मितली के अविजित 91 रनों की पारी के बदौलत भारत ने गत विजेता को 40 रनो से हराया।
हालांकि सेंचूरियन में खेले गए फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने कैरन रॉलटन के शतक की बदौलत भारत को 98 रनों से हराया। भारत के लिए नीतू डेविड (20), अमीता शर्मा (14) और झूलन गोस्वामी (13) विकेट लेने के मामले में शीर्ष की तीन गेंदबाज़ रहीं।
4. वॉन्डरर्स की वह भुलाने लायक शाम (2003)
इससे दो साल पूर्व भारत की पुरुष टीम फ़ाइनल में आठ लगातार जीत के बाद पहुंची थी। जोहैनेसबर्ग में सौरव गांगुली ने टॉस जीतकर गेंदबाज़ी करने का फ़ैसला लिया और भारतीय टीम में तनाव का अंदाज़ा ज़हीर ख़ान की दिशाहीन पहली ओवर से पता लग गया।
रिकी पोंटिंग और डेमियन मार्टिन ने हर गेंदबाज़ की अच्छी ख़बर ली और स्कोर को 359 तक पहुंचाया। जवाब में प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट सचिन तेंदुलकर जल्दी आउट हुए और वीरेंद्र सहवाग के 82 रनों के बावजूद भारत 125 रन से हारा। यह मार्जिन ठीक उतने ही रन थे जो भारत ने लीग स्टेज में अपने इकलौती हार में ऑस्ट्रेलिया ही के ख़िलाफ़ बनाए थे।
3. 'धोनी फ़िनिशेज़ ऑफ़ इन स्टाइल...' (2011)
भारत की पिछली जीत को आप कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के जिताऊ छक्के द्वारा याद रख सकते हैं। या उससे पहले गौतम गंभीर की दिलेर 97 रनों की पारी के तौर पर भी, जहां फ़ाइनल में शतक लगाने की कगार पर उन्होंने जोखिम उठाते हुए अपना विकेट गंवाया।
दरअसल वह विश्व कप पूरी तरह भारतीय टीम की एक अच्छी परफ़ॉर्मेंस रही थी। अगर तेंदुलकर, सहवाग और विराट कोहली बड़ी पारियां नहीं खेलते तो प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट रहे युवराज सिंह और बाद में सुरेश रैना मिडिल ऑर्डर में रन जोड़ने में असमर्थ रहते। ज़हीर की गेंदबाज़ी पैनी थी तो मुनाफ़ पटेल और हरभजन सिंह ने भी अपना रोल बढ़िया निभाया।
आख़िरकार फ़ाइनल में भारत महिला जयवर्दना की एक उच्च कोटी की शतकीय पारी पर भी भारी रही।
2. जब मिताली का दिल दोबारा टूटा (2017)
यह शायद क्रिकेट इतिहास में सबसे नाटकीय विश्व कप फ़ाइनल कहलाएगा। भारत ने मेज़बान इंग्लैंड को लीग मैच में भी हराया था और लॉर्ड्स में मितली की टीम को झूलन ने गेंद के साथ आदर्श शुरुआत दिलाई। उन्होंने कुल तीन विकेट केवल 23 रन देकर दिए और भारत ने इंग्लैंड को 228 के स्कोर पर रोका।
जवाब में पूनम राउत (86) और हरमनप्रीत कौर (51) ने चेज़ को नियंत्रित रखा और सात ओवर रहते भारत के पास सात विकेट बचे थे और केवल 38 रनों की ज़रूरत थी।
ऐसे में स्मृति मांधना का विकेट ले चुकीं मध्यम तेज़ गेंदबाज़ आन्या श्रबसोल को गेंद थमाई गई। उन्होंने पूनम और वेद कृष्णामूर्ती के विकेट निकाले। भारतीय टीम पैनिक मोड में आई और आख़िर के तीन विकेट केवल एक रन जोड़ते हुए निकल गए। श्रबसोल ने 6/46 के विश्लेषण के साथ अहम भूमिका निभाई और भारत अब तक विश्व ख़िताब से वंचित रहा है।
1. लॉर्ड्स में दूसरे प्रकार का चमत्कार (1983)
'83' फ़िल्म के चलते इस मैच से जुड़े जो भी क़िस्से आपको पता नहीं थे, शायद उनका ज्ञान भी हो चुका होगा। संक्षेप में जब कृष्णमाचारी श्रीकांत ने 38 रनों की पारी खेली तब शायद ही किसी ने अंदाज़ा लगाया होगा कि उस फ़ाइनल का सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर इतने का ही होगा। जब भारत ने कैसे-वैसे 183 का टोटल बनाया (उन दिनों इंग्लैंड में वनडे क्रिकेट में हर पारी में 60 ओवर होते थे), तब शायद ही किसी ने वेस्टइंडीज़ को तीसरा लगातार विश्व कप जीतने के बाहर कोई कल्पना की हो।
हालांकि कपिल देव ने अपने खिलाड़ियों का प्रोत्साहन किया और चेज़ में तेज़ी से रन बना रहे विव रिचर्ड्स का ग़ज़ब का रनिंग कैच पकड़ा। इससे प्रेरित होकर रॉजर बिन्नी, मदन लाल, बलविंदर संधू और मोहिंदर अमरनाथ कसी गेंदबाज़ी करने लगे और आख़िर में भारत ने 43 रनों से मैच जीता।
यह केवल एक विश्व कप फ़ाइनल ही नहीं, बल्कि क्रिकेट के खेल में नए एशियाई दौर का पूर्वावलोकन साबित हुआ। जिसमें पाकिस्तान और श्रीलंका ने भी अगले दो दशकों में ख़ुद को व्यापक दावेदार के रूप में खड़ा कर दिखाया।
देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर सहायक एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख हैं @debayansen
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