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घरेलू टेस्ट में 53 साल के न्यूनतम स्तर पर भारत

आंकड़ों में जानें कैसे न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ़्रीका ने भारत में टेस्ट में बनाया दबदबा और क्यों भारत अपनी ताक़त के अनुसार नहीं कर पाया प्रदर्शन

पिछले एक साल में भारत का घरेलू दबदबा ग़ायब हो गया है  AFP/Getty Images

भारत को साउथ अफ़्रीका से कोलकाता में 30 रन से मिली हार ने घरेलू प्रशंसकों और विशेषज्ञों से कड़ी प्रतिक्रियाएं बटोरी हैं और ये वाजिब भी है। इसका कारण है कि यह भारत की पिछले छह घरेलू टेस्टों में चौथी हार है। अक्टूबर-नवंबर 2024 में वे न्यूज़ीलैंड से 3-0 से हारे थे। इन हारों के बीच सिर्फ़ एक कमज़ोर वेस्टइंडीज़ टीम के ख़िलाफ़ 2-0 की सीरीज़ जीत ही फ़र्क पैदा करती है।

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जाहिर तौर पर यह भारत के लिए यह एक असामान्य स्थिति है, क्योंकि वे पिछले कई वर्षों में घर में हारने के आदी नहीं रहे हैं। पिछले 13 महीनों की इस ख़राब अवधि से पहले, घर में उनकी पिछली चार हारें 28 टेस्ट मैचों यानी फ़रवरी 2017 से जनवरी 2024 तक सात वर्षों में आई थीं।

उन चार हारों में से आख़िरी, हैदराबाद में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ आई हार के बाद भारत ने न्यूज़ीलैंड वाली भयानक सीरीज़ से पहले लगातार छह टेस्ट जीते थे। इसका मतलब, न्यूज़ीलैंड की मेज़बानी से पहले खेले गए उनके पिछले 34 घरेलू टेस्टों में भारत का जीत-हार रिकॉर्ड 25-4 था, जो उस अवधि में घर पर सभी टीमों में सर्वश्रेष्ठ था।

इसके बाद, पिछले 13 महीनों में उनका घरेलू रिकॉर्ड 2-4 का हो गया है। घर में पिछले 53 वर्षों का यह सबसे ख़राब दौर है। आख़िरी बार उन्होंने छह में से चार मैचों में हार 1969-72 के दौरान झेली थीं। ये हार उन्हें ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मिली थी।

हालांकि, तब यह स्थिति इतनी भयावह नहीं लगती, क्योंकि भारत तब इतना मज़बूत भी नहीं था। घर में खेले गए अपने पिछले 25 घरेलू टेस्ट में उनका जीत-हार रिकॉर्ड सिर्फ़ 5-4 था। इसके अलावा, उन छह मैचों में आई चार हारों में से आख़िरी हार पांचवीं हार के तीन साल बाद आई। जनवरी 1970 से नवंबर 1972 के बीच भारत ने एक भी टेस्ट की मेज़बानी ही नहीं की थी।

तो पिछले साल से भारत के घरेलू प्रदर्शन में गड़बड़ी कहां हुई?

टॉस की बदक़िस्मती

सबसे पहले, सिक्का भारत के पक्ष में नहीं गिरा। इन चार हारों में से तीन में भारत टॉस हारा और उसे पुणे व मुंबई (न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़) और ईडन गार्डन्स (साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़) में मुश्किल होती जाती परिस्थितियों में चौथी पारी में बल्लेबाज़ी करनी पड़ी। एक हार बेंगलुरू में तब भी आई जब भारत टॉस जीता था। हालांकि, वहां उन्होंने हालात को बुरी तरह पढ़ा, पहले बल्लेबाज़ी कर ली और पहली पारी में केवल 46 पर ढेर हो गए। दूसरी पारी में 462 रन के बावजूद वहां से वापसी असंभव थी।

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टॉस हारकर पहले गेंदबाज़ी करने का मतलब था कि भारतीय बल्लेबाज़ों को उन परिस्थितियों का फ़ायदा नहीं मिला जहां रन बनाना आमतौर पर आसान होता है। पर यह वजह भी हालिया गिरावट को पूरी तरह नहीं समझाती। फ़रवरी 2017 से सितंबर 2024 के बीच, भारत टॉस हारकर पहले फ़ील्डिंग करने 16 बार उतरा, लेकिन फिर भी 11-3 का शानदार रिकॉर्ड बनाए रखा। इसमें ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 12 मैचों में 7-3 का रिकॉर्ड भी शामिल है। छोटे मैचों में भी, जैसे कि ईडन गार्डन्स वाला, टॉस हारना नुकसानदेह नहीं था। 270 ओवर से कम चलने वाले घरेलू मैचों में उनका रिकॉर्ड 8-1 था।

बार-बार ढहती बल्लेबाज़ी

ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ खेले गए उन 12 टेस्टों में, जब विपक्षी टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी की, भारत ने अपनी पहली पारी (मैच की दूसरी पारी) में औसतन 368 रन बनाए और आठ बार बढ़त हासिल की। इनमें से छह बार 90 से ज़्यादा की बढ़त थी। इससे वे टॉस हारने की भरपाई कर लेते थे। हालांकि, 2024 में हैदराबाद में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ एक मैच वे 190 रन की बढ़त लेने के बावजूद हार गए थे।

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लेकिन अब इन हालिया तीन हारों में भारत पहली पारी में बड़ा स्कोर नहीं बना पाया है। उनका औसत स्कोर घटकर 203 रह गया है और दो बार मिली बढ़त भी बहुत छोटी रही। मुंबई में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ 28 रन की और कोलकाता में साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ 30 रन की। छोटी बढ़त या पिछड़ने का मतलब था चौथी पारी में मुश्किल लक्ष्य और भारत वहां भी चूक गया। 2024 से अब तक भारत पांच में से तीन बार 100 से 249 के बीच के घरेलू लक्ष्यों का पीछा करते हुए हार चुका है। जबकि 1995 से 2023 के बीच ऐसी स्थितियां 16 बार आई थीं। भारत 14 बार जीता और दो बार मैच ड्रॉ रहे।

स्पिन और पेस दोनों के ख़िलाफ़ दिक़्क़तें

ईडन गार्डन्स में भारत के बल्लेबाज़ स्पिन और पेस दोनों के सामने जूझते नज़र आए। स्पिन के ख़िलाफ़ उन्होंने 12 विकेट 13.25 की औसत से गंवाए, जबकि पेस के ख़िलाफ़ छह विकेट 17.33 की औसत से गए। न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ पिछले साल भी तस्वीर ज़्यादा अलग नहीं थी, जब भारत की स्पिन के ख़िलाफ़ औसत 23.43 (37 विकेट) और पेस के ख़िलाफ़ 18.50 (20 विकेट) थी।

इन चार टेस्ट में पेस और स्पिन दोनों के ही मुक़ाबले में भारत और उनके विपक्षियों की बल्लेबाज़ी के आंकड़े बताते हैं कि विरोधी टीमों के बल्लेबाज़ दोनों ही तरह की गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ बेहतर रहे हैं।

न्यूज़ीलैंड सीरीज़ में स्पिन के सामने दोनों टीमों में ज़्यादा फ़र्क नहीं था। भारत की स्पिन के ख़िलाफ़ औसत 23.43 थी, जबकि न्यूज़ीलैंड की 23.86। लेकिन पेस के मामले में फ़र्क बहुत बड़ा था। भारत की औसत 18.50 रही, जबकि न्यूज़ीलैंड की 44.71 रही। हालांकि, यह अंतर बेंगलुरु टेस्ट की वजह से बढ़ गया, जहां न्यूज़ीलैंड के तेज़ गेंदबाज़ों ने 20 में से 17 विकेट लिए थे।

इन हालिया घरेलू हारों में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि विपक्षी स्पिनरों ने भारत के स्पिनरों को टक्कर ही नहीं दी, बल्कि कुछ मौक़ों पर उनसे बेहतर भी साबित हुए। पिछले पांच सालों में न्यूज़ीलैंड सीरीज़ से पहले तक, भारत के स्पिनरों की घरेलू औसत 19.53 थी, जबकि भारत में विपक्षी स्पिनरों की औसत 34 थी।

लेकिन पिछले एक साल में यह बढ़त लगभग ख़त्म हो गई है, जिसका बड़ा कारण हैं अजाज़ पटेल, मिचेल सैंटनर और साइमन हार्मर। इन तीनों ने मिलकर 36 विकेट 15.69 की शानदार औसत से लिए हैं। नतीजा यह हुआ कि जो टीम घर में लगभग अजेय थी, वह अचानक से बेहद कमज़ोर नज़र आने लगी है। क्या भारत गुवाहाटी में इस गिरावट को रोक पाएगा?

इनपुट: शिवा जयरामन और संपत बंडारुपल्ली

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S Rajesh is stats editor of ESPNcricinfo. @rajeshstats