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पुजारा और रहाणे के लिए समय अब बहुत ही कम बचा है

दोनों के पास इस जाल से बाहर निकलने का कोई मौजूदा विकल्प नहीं है

दबाव की वजह से रहाणे और पुजारा अपना आत्मविश्वास भी खो रहे हैं - संजय मांजरेकर

दबाव की वजह से रहाणे और पुजारा अपना आत्मविश्वास भी खो रहे हैं - संजय मांजरेकर

'लगातार आउट ऑफ़ फ़ॉर्म रहने का प्रभाव मानसिक तौर पर भी पड़ रहा है'

भारतीय पारी के 59वें ओवर में डुएन ऑलिवियेर ने एक शॉर्ट गेंद की। यह तेज़ी के साथ आई लेकिन ऑफ़ स्टंप के बाहर होने की वजह से नंबर नौ पर बल्लेबाज़ी करने आए मोहम्मद शमी को इस गेंद पर अपने हाथ खोलकर अपर कट मारने का मौक़ा मिला। उन्होंने स्लिप के ऊपर से इस गेंद को चौके के लिए भेज दिया। अगर आप एक निश्चित उम्र के हैं, तो आपको नवंबर 2001 में वापस ले जाया जा सकता है, जब सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग ने अपने टेस्ट डेब्यू पर ब्लूमफ़ॉनटेन में पांचवें विकेट के​ लिए 220 रन की साझेदार की और अपर कट और रैंप शॉट का बेहतरीन नज़ारा पेश किया।

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यह जोहैनेसबर्ग पिच, ब्लूमफ़ॉनटेन की तरह उछाल भरी थी, लेकिन शमी के उस शॉट तक साउथ अफ़्रीका के इस आक्रमण ने इस भारत लाइन-अप को उस तरह के शॉट खेलने का मौक़ा नहीं दिया था। उन्होंने बहुत सारी छोटी गेंदें फेंकी, लेकिन ज़्यादातर शरीर की ओर थी, उनके पास हाथ खोलने का मौक़ा था ही नहीं। और जबकि यहां उछाल अक्सर तेज़ था, यह एक हार्ड लेंथ विकेट थी, यह पर बाउंस टेनिस बॉल की तरह था, गेंद असमान उछाल के साथ एक अनिश्चित हिस्से पर आ रही थी। वहीं ब्लूमफ़ॉनटेन में उछाल कहीं अधिक कठिन था, विशेष रूप से तेंदुलकर को लाइन से दूर जाने और छोटी गेंदों के ख़िलाफ़ शॉट खेलने के लिए एंगल बनाने में आसानी हो रही थी।

भारत की भी यहां पर एक बार दोबारा कठिन पिच पर कठिन तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण के ख़िलाफ़ अग्निपरीक्षा थी। पिछले दो वर्षों में लगभग हर जगह पर ऐसा हुआ है, विदेशी सरज़मीं के साथ अक्सर घर पर भी।

आप शायद जानते हैं कि क्या हो रहा है और आपने हेडलाइन देखी भी होंगी।

आपने स्कोरकार्ड भी देखा है: 3 (33) और 0 (1), उस दिन जब शीर्ष सात में से प्रत्येक अन्य सदस्य दोहरे अंकों तक पहुंच गया। 3 (33) और 0 (1), उस दिन जब मध्य क्रम का एक अन्य वरिष्ठ बल्लेबाज़ अनुपस्थित थे। 3 (33) और 0 (1), ऐसे समय में जब रन बनाना बेहद ही कठिन हो गया। चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे के लिए दूसरे टेस्ट का पहला दिन बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा।

पुजारा क्रीज़ के बीच में जितने भी समय तक रहे वह उस दौरान अच्छे नहीं दिखे। साउथ अफ़्रीका के पास उनके लिए एक स्पष्ट योजना थी। स्पंजी उछाल का उपयोग करें और उनके निचले हाथों को टारगेट करें। गेंद लगातार एक लंबाई पर उछाल ले रही थी और दो अंदरूनी किनारे शॉर्ट लेग के करीब से निकल गए थे। इसी तरह की डिलीवरी के कारण सेंचूरियन में वह पहली पारी में पहली ही गेंद पर आउट हुए थे। ऑलिवियेर की अंतिम विकेट गेंद से पहले भी एक गेंद पुजारा के बल्ले के ऊपरी किनारे से लगकर बैकवर्ड प्वाइंट की ओर गई।

पुजारा इससे पहले 32 गेंदों में बच गए थे, जिसमें उन्होंने केवल तीन रन बनाए। उनमें से दो रन अंदरूनी किनारों पर थे। मार्को यानसन की डाली हुई फुल लेंथ और ऑलिवियेर की डाली हुई शॉर्ट लेंथ पर वह दूसरी पिच पर रन बना सकते थे, लेकिन यहां उनको रोक लिया गया। उन्होंने बड़े स्क्वायर गैप के बजाय वाइड मिड ऑफ़ पर ड्राइविंग का प्रयास किया और गेंद उनके बल्ले का ऊपरी किनारा लेकर गली में जा पहुंची।

लंबे समय से फ़ॉर्म पुजारा और रहाणे के साथ नहीं है  BCB

और रहाणे? उन्होंने केवल एक गेंद का सामना किया और पहली गेंद के बाद किसी को आंकना कठिन है, लेकिन क्या उन्हें वास्तव में उस गेंद को धकेलने की ज़रूरत थी? उसी तेज़ उछाल में से कुछ थी जिन्होंने पुजारा को चौंका कर रख दिया था, लेकिन यह एक ऐसी गेंद नहीं थी जिस पर रहाणे को खेलना ही था। और यह शॉट, यह आधा शॉट, सेंचूरियन में दो एक अच्छी शुरुआत के बाद आया था।

रहाणे के साथ वास्तव में यही समस्या रही है। उनका आउट होना बहुत बातों को जन्म देता है, जिसकी वजह से वह कम या मध्य स्कोर में आउट भी हुए हैं। पुजारा और रहाणे अब कई महीनों से उलझे हुए हैं और उनमें से किसी के पास कोई आसान रास्ता नहीं है। सपाट पिचों और अच्छे स्तर के गेंदबाज़ी आक्रमण के बीच बहुत दूरियां हैं। और जहां अन्य बेहतर फ़ॉर्म में हैं, उदाहरण के लिए रोहित शर्मा और केएल राहुल ने अभी भी रन बनाने के तरीक़े ख़ोजे हैं। पुजारा और रहाणे ने अच्छे या बुरे दिनों को अपने रनों के द्वारा साबित किया है। देखिए तो, क्रीज़ पर बिताया गया समय, गेंदबाजों को थकाया गया समय, बल्लेबाज़ी करके बचाए गए सत्र, लेकिन रन तो रन हैं और शतक तो शतक ही हैं।

2019 के अंत तक पुजारा का औसत 49.48 था और रहाणे का 43.74। लेकिन अब यह 44.05 और 38.90 में तब्दील हो चुका है।

भारतीय टीम प्रबंधन ने इस दौरान पुजारा और रहाणे का भरपूर समर्थन किया है, जब वे युवा थे और कम एक सफ़र से गुज़र रहे थे, बल्कि वह समय तो बहुत ही ज़्यादा मुश्किल था। उन्हें तब भी सपोर्ट मिला। यही तो वजह थी ना कि भारत एमसीजी, एससीजी, गाबा, लॉर्ड्स और द ओवल में चैंपियन साबित हुई।

लेकिन क्या युवा और अधिक फ़ॉर्म में रहने वाले दावेदार इसी तरह का योगदान दे सकते थे? आप तब तक नहीं जानते जब तक आप उन्हें कोशिश करते नहीं देखते। और जब भारतीय टीम के सभी या यहां तक ​​कि अधिकांश बल्लेबाज़ी विकल्प फ़िट और उपलब्ध हों, तो दावदारों की लंंबी सूची देखना और भी बेहतरीन होगा। शायद पुजारा और रहाणे के लिए चीज़ों को बदलने के लिए अब ज़्यादा समय नहीं बचा है। उनके पास इस जाल से निकलने के लिए बहुत विकल्प भी नहीं है। कोई कमज़ोर आक्रमण नहीं, कोई सपाट पिच नहीं। राहुल का भी यही हाल था जब वह 2018 और 2019 में 15 टेस्ट में 22.23 के औसत से लंबे समय तक बेहद ही ख़राब फ़ॉर्म से गुजर रहे थे।

चीज़ें अब उसके लिए बदल गई हैं और वह भी शानदार ढंग से। कुछ ही महीनों में वह चौथी पसंद के सलामी बल्लेबाज़ से स्टैंड-इन टेस्ट कप्तान बन गए हैं। लेकिन वह बुरे वक्त को नहीं भूले होंगे। दूसरे छोर से पुजारा और रहाणे को एक के बाद एक गेंद पर आउट होता देख उन्होंने भी सहानुभूति का एक बेहतरीन नमूना पेश किया।

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कार्तिक कृष्णस्वामी ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।