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नया दौर, लेकिन वही पुराना टेस्ट क्रिकेट

राहुल द्रविड़ पर ध्यान भले ही हास्यपूर्ण स्तर तक पहुंचा, मैदान पर ज़्यादा बदलाव नहीं हुआ

राहुल द्रविड़ के कोच बनने को नया दौर कहा गया  BCCI

विराट कोहली के विश्व कप के बाद आराम करने के साथ, आम प्रशंसक के लिए भारतीय क्रिकेट की मार्केटिंग नए कोच राहुल द्रविड़ के संदर्भ में #newera पर केंद्रित हो गई है, जो क्रिकेट के लिए और ख़ुद द्रविड़ के लिए भी एक प्रतिकूल है, जिन्हें चर्चा में रहना पसंद नहीं है। कोई प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं, कोई इंटरव्यू नहीं, कोई विशेष कार्यक्रम नहीं हुआ, यहां तक ​​कि छोटी-छोटी चीज़ों में भी द्रविड़ के प्रभाव को देखने की कोशिश नहीं की गई।

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जो लोग द्रविड़ को इसलिए नीचे लाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने टी20 सीरीज़ में अंतिम एकादश में ज़्यादा प्रयोग नहीं किए, उन्हें समझना चाहिए कि सीरीज़ दांव पर लगी हुई थी। साथ ही वह सवाल उठा रहे हैं कि टीम ने पहले बल्लेबाज़ी क्यों नहीं की। उनके लिए यह जानना ज़रूरी है कि कप्तान के तौर पर वनडे क्रिकेट में दूसरी पारी में वह लक्ष्य का पीछा करना पसंद करते थे और अपनी टीम को एक बेहतरीन चेज़ टीम बनाना चाहते थे। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि कैमरा हमेशा उनकी ओर जा रहा है। अगर देखा जाए तो उनकी विनम्रता सामने आई है क्योंकि उन्होंने खेल के दिग्गजों को नवोदित खिलाड़ियों को कैप सौंपने का निमंत्रण दिया है। नेट्स में उनकी ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी का वीडियो भी बार-बार चलाया जा रहा है।

यह सही है कि टेस्ट क्रिकेट में कोच के रूप में द्रविड़ के पहले दिन, हमने टेस्ट क्रिकेट के बारे में कुछ भी नया नहीं सीखा। एशिया में टेस्ट क्रिकेट के अपने पहले दिन, काइल जेमीसन ने फिर एक बार साबित किया कि वह एक असाधारण टेस्ट गेंदबाज़ है। टिम साउदी ने कोणों और विभिन्न ग्रिप का चतुर उपयोग किया। श्रेयस अय्यर ने भारतीय क्रिकेट में बल्लेबाज़ी प्रतिभा की जानी-मानी गहराई का परिचय दिया। रवींद्र जाडेजा ने दिखाया कि ऑलराउंडर के रूप में वापसी के बाद से वह भारत की टेस्ट टीम के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य क्यों हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले दिन ने दोहराया कि आपको देश से बाहर टेस्ट मैचों में प्रतिस्पर्धा दिखाने के लिए गहरे आक्रमण की ज़रूरत है। किसी टेस्ट टीम के लिए आज भारत का दौरा करने और टॉस हारने से बड़ी कोई चुनौती नहीं है। भारत ने पिछली बार नौ साल पहले टॉस जीतकर घरेलू टेस्ट गंवाया था। इंग्लैंड से उस टेस्ट में मिली हार के बाद भारत ने 18 मैचों में टॉस जीता है, जिसमें से दो मौसम के कारण ड्रॉ रहे हैं और 16 में से केवल एक जीत 100 रन से कम के अंतर से हुई है।

काइल जेमीसन ने अपनी गेंदबाजी से प्रभावित किया  BCCI

पहले दो सत्रों में गेंदबाज़ी करते हुए जेमीसन और साउदी ने कानपुर की धीमी और कम उछाल वाली पिच का भरपूर लाभ उठाया। जेमीसन ने विशेष रूप से टेस्ट क्रिकेट के बारे में अपनी समझ को दिखाया। वह बल्लेबाज़ों को ड्राइव करने के लिए मजबूर कर रहे थे, लेकिन लेंथ ड्राइव वाली नहीं थी। याद रखें कि इस तरह वह मददगार परिस्थितियों में गेंदबाज़ी नहीं करते हैं, जहां वह साउदी और ट्रेंट बोल्ट के बाद आते हैं और बल्ले का किनारा लेने के लिए एक अच्छी लेंथ पर गेंदबाज़ी करते हैं। जेमीसन ने यह जानते हुए जल्दी से सामंजस्य बैठा लिया कि यह तरीक़ा काम नहीं करेगा। मयंक अग्रवाल को आउट करने के लिए वह बाहरी किनारा बस उसी प्लान का हिस्सा था।

"उन्हें आउट करने में एक गेंद लगती है" - जेमीसन ने इस पुरानी कहावत पर चलते हुए अच्छी गेंदें फ़ेंकी। यह शुभमन गिल और अजिंक्य रहाणे के संदर्भ में था। गिल ने इंग्लैंड की ही तरह गेंद की लाइन पर आए बिना ड्राइव लगाई लेकिन गेंद जल्द ही रिवर्स स्विंग होकर अंदर की ओर आ गई। अक्सर, पहली ही गेंद निशाने पर रिवर्स नहीं होती। जब कोई गेंद पहली बार रिवर्स स्विंग होती है तो आपके दिमाग में एक छवि बनती है और आप अपने खेल को मज़बूत करते हैं, लेकिन गुरुवार को उनके स्टंप्स बिखर गए थे।

रहाणे ने अपनी पारी की शुरुआत अच्‍छी लय में की  BCCI

रहाणे के साथ भी ऐसा ही हुआ। हर कोई जानता है कि उनके पास रन नहीं हैं और पिछले 25 टेस्ट में उनकी औसत 25 की रही है। आप आंकड़ों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं लेकिन यह भी जानने योग्य है कि इस दौरान उन्होंने अच्छी बल्लेबाज़ी की है।

रहाणे का खेल किस स्थिति में है, इसका एक बड़ा संकेत यह है कि वह पारी की शुरुआत में किना जल्दी बाउंड्री लगाना चाहते हैं। वह आकर्षक शुरुआत में विश्वास रखते हैं : ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले के तीन वर्षों में भारत के किसी भी बल्लेबाज़ ने रहाणे की तुलना में पारी की पहली 30 गेंदों में अधिक बाउंड्री नहीं लगाई थी, भले ही उस अवधि में रहाणे का स्ट्राइक रेट काफ़ी कम था। ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद से, इंग्लैंड दौरे के दूसरे भाग में संघर्ष करने से पहले रहाणे अच्छी लय में थे। कानपुर में एक बार फिर वह शांत दिखे, उनके द्वारा खेली गई अधिकांश गेंदें बल्ले के बीच से खेली गई, उनका नियंत्रण प्रतिशत 90 के क़रीब था, लेकिन वह उस गेंद पर आउट हो गए जो उसी सटीक लंबाई से नीचे रही थी जिस पर उन्होंने पहले चौका लगाया था।

रहाणे का दिन जब हो तो बल्ले का निचला किनारा लेकर गेंद कीपर के दायीं ओर से चौके के लिए चली जाती है। ऐसा उन्होंने कई बार किया है, लेकिन यह जेमीसन का दिन था। साउदी के पास गति और उछाल तो नहीं बल्कि एक बढ़िया आउट स्विंग गेंद हैं। शुरुआत में उन्होंने स्क्रैंबल-सीम ​​गेंदों के साथ पगबाधा का प्लान बनाया और जब रिवर्स स्विंग होना शुरू हुई तो वह क्रीज़ के कोने में चले गए। चमकदार हिस्से को बाहर रखा और पुजारा को इस कोण पर खेलने पर मजबूर किया, गेंद आउट स्विंग के साथ बल्ले का किनारा लेती हुई पीछे कीपर के पास पहुंच गई।

दूसरे छोर पर हालांकि, गेंदों के ​नीचे रहने और कम स्पिन हाने की वजह से न्यूज़ीलैंड के खेमे में चिंताजनक संकेत दिखे होंगे। 2001 के बाद से यह केवल दूसरा मौक़ा था जब स्पिनरों ने भारत में एक दिन में बिना विकेट के 50 ओवर फेंके। इसने वही पुराना सवाल उठाया जो मेहमान टीमों से पूछा जाता है : क्या आपको दो स्पिनरों के बजाय सिर्फ़ अपना सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ चुनना चाहिए?

हालांकि, न्यूज़ीलैंड के चयन में ग़लती नहीं थी। अगर उन्हें पहले बल्लेबाज़ी करनी होती तो उनके स्पिनरों को अधिक मददगार परिस्थितियां मिलतीं। और अगर वे सिर्फ़ एक स्पिनर के साथ जाते तो वह एजाज़ पटेल होते, लेकिन उनके लिए यह एक सामान्य दिन रहा, जहां वह अच्छी लाइन पर गेंद को लगातार नहीं रख पा रहे थे। उन्होंने 21 ओवर में 78 रन दिए और श्रेयस को ओवर द विकेट से लेग स्टंप के बाहर गेंदबाज़ी की।

अय्यर इस सीरीज़ में खेलने ही नहीं वाले थे। अंतिम 11 का क़रीबी दावेदार इंडिया ए के साउथ अफ़्रीका दौरे पर भेज दिया गया और श्रेयस बस एक बैकअप थे। बस यही कि केएल राहुल के चोटिल होने पर कवर के तौर पर उनका टीम में स्थान बनता है। एक मुश्किल स्थिति में पदार्पण पर नाबाद 75 रन बनाना बताता है कि भारत के पास कितनी गहराई है। उन्होंने न्यूज़ीलैंड के आक्रमण की कम गहराई का अच्छे से फ़ायदा उठाया।

दो स्पिनरों को एक साथ गेंदबाज़ी करवाने का श्रेय तो साउदी की चोट को जाता है, जहां उन्हें बीच मैच में पवेलियन लौटना पड़ा था। श्रेयस ने इस मौक़े का भरपूर फ़ायदा उठाया। जाडेजा ने एक बार दोबारा हनुमा विहारी का दुर्भाग्य उजागर किया कि भारत के पास नंबर छह पर बल्लेबाज़ी करने के लिए अच्छा गेंदबाज़ मौजूद है।

बल्लेबाज़ी इतनी आसान नहीं हो जाएगी जितनी श्रेयस और जाडेजा के लिए हुई लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं कि उन्होंने इस मौक़े का फ़ायदा उठाया। अगर भारत को जीत से रोकना है तो न्यूज़ीलैंड को ज़्यादा कोशिश और मौसम पर निर्भर रहना होगा। जहां तक ​​#newera का सवाल है, तो निर्णय लेने से पहले उन्हें कुछ समय दें। वे यहां केवल बयान देने के लिए नहीं हैं।

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सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में असिस्‍टेंट एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।