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चयनकर्ताओं का चयन : काम महत्वपूर्ण लेकिन इसे करेगा कौन?

कड़ी मेहनत और अंत में लगने वाले दोषारोपण के कारण यह पद योग्य उम्मीदवारों की आखिरी पसंद है

मेलबर्न में मीडिया से बातचीत करते पूर्व भारतीय चयनकर्ता एम एस के प्रसाद; प्रसाद ने राहुल द्रविड़ और रवि शास्त्री के साथ सुचारू संचालन किया था  Getty Images

एक क्रिकेट संगठन ने हाल ही में अपने एक पूरे विभाग को बाहर निकाल दिया।

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दरअसल, यह एक शिक्षित धारणा है कि विभाग के लोगों को बर्ख़ास्त कर दिया गया क्योंकि उनमें से किसी ने भी अपने कार्यकाल को पूरा नहीं किया। हालांकि संगठन ने उनकी नौकरियों के लिए विज्ञापन दिया है। भ्रष्टाचार घोटाले और हितों के टकराव यह के मामलों के बाद हुई एक स्वतंत्र समीक्षा के कारण विज्ञापन देना अनिवार्य हो गया है और इस मामले में यह एकमात्र जानकारी है, जिसकी पुष्टि हुई है।

अब कौन ही इन नौकरियों के लिए आवेदन करेगा?

जी हां, आपने सही सुना है। यदि यह संगठन इतना निर्दयी हो सकता है तो ध्यान में रखने योग्य है कि वह अब तक इस तरह का बर्ताव करता आया है। क्रिकेट भारत में कानूनी तौर पर मंज़ूर मनोरंजक नशीली दवाओं में से एक है और केवल बीसीसीआई ही इसे बेच रहा है।

न केवल बीसीसीआई एक एकाधिकार बाज़ार में काम करता है, अगर आप भारत में एक पूर्व क्रिकेटर हैं जो क्रिकेट में काम करना चाहते हैं, तो आप इसके शत्रुओं में नहीं हो सकते। कॉमेंटेटरों, कोचों, मीडिया पंडितों, टैलेंट स्काउट्स और चयनकर्ताओं के करियर पर इसका अनियंत्रित प्रभाव है। तो इस निकाय के लिए चयनकर्ताओं के एक समूह को दूसरे के साथ बदलना कितना मुश्किल हो सकता है?

यह ज़्यादा कठिन नहीं होगा लेकिन आप उपयुक्त उम्मीदवारों की कतार की अपेक्षा न करें। कई आवेदन हो सकते हैं लेकिन भारत के प्रमुख कोच की तुलना में यकीनन अधिक महत्वपूर्ण यह नौकरी अब सबसे योग्य लोगों की अंतिम पसंद होगी। कॉमेंट्री में बहुत कम काम होता है जिसमें जवाबदेही कम और बहुत अधिक ग्लैमर होता है। प्रसारण के क्षेत्रीय भाषाओं में फैलने के साथ, वहां पहले से कहीं अधिक कॉमेंट्री नौकरियां हैं। कोचिंग अधिक भुगतान करती है लेकिन यदि आपका अनुबंध बढ़ाया नहीं जाता है या आपको बिना सोचे-समझे बर्खास्त कर दिया जाता है, तो अक्सर सार्वजनिक रूप से हंगामा होता है।

चयनकर्ता खेल को फ़ॉलो करने तथा इसे खेलने वालों के लिए एक पंचिंग बैग है। वह एक अलोकप्रिय लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां तक ​​कि काम का सबसे आसान हिस्सा - टीम प्रबंधन के परामर्श से 15 खिलाड़ियों का चयन करना - लोगों को पसंद नहीं आता है। एक ऐसे देश में जहां बहुत अधिक प्रतिभा उपलब्ध है, आप किसी भी चयन बैठक में 10 या अधिक खिलाड़ियों को निराश कर रहे हैं। आपको चयन के क़रीब रहने वाले खिलाड़ियों को प्रेरित रखने के साथ टीम के लिए सबसे अच्छा संतुलन बनाना होता है।

शीर्ष 25 खिलाड़ियों को चुनने के बाद आपके कौशल और आपकी कड़ी मेहनत की असली पहचान होती है। आपको अगले 25 खिलाड़ियों का समूह तैयार रखना होता है। ऐसा आप उन मैचों को देखकर करते हैं जो टीवी पर नहीं होते हैं और पूरे भारत में यात्रा करते हुए वह मैच देखते हैं जहां आपको हमेशा रिप्ले नहीं मिलते।आप जूनियर चयनकर्ताओं, कोचों, मैच रेफ़री और अंपायरों के अपने अनौपचारिक नेटवर्क से जानकारी प्राप्त करते हो। आप इन खिलाड़ियों की प्रगति को उस स्तर तक प्रबंधित करते हैं जहां वे दावेदार बन जाते हैं और राष्ट्रीय कप्तान और कोच की नज़रें उन पर पड़ती हैं, जो संभवतः घरेलू क्रिकेट में सभी प्रदर्शन करने वालों पर नज़र नहीं रख सकते।

कम से कम यह प्लान कोरोना महामारी के कारण 'ए' टूर कार्यक्रम के स्थगित होने तक उपयोगी साबित हुआ। इससे पहले चयनकर्ता पहली पसंद वाले अधिकांश समूह के लिए रिप्लेसमेंट तैयार रखते थे। वह प्रणाली थोड़ी टूट गई और भारत कोरोना के बाद विकासात्मक क्रिकेट को फिर से शुरू करने में सबसे धीमा रहा।

भारतीय चयनकर्ताओं को टीम प्रबंधन के साथ मिलकर काम करना होगा और बीसीसीआई सचिव उनकी बैठकों में शामिल होंगे  BCCI

बड़ी तस्वीर को देखा जाए तो चयनकर्ता टीम प्रबंधन की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। वे तय करते हैं कि टीम दीर्घकाल में किस दिशा में जाएगी। बेशक़ यह फ़ैसला टीम प्रबंधन के साथ मिलकर किया जाता है लेकिन कम से कम काग़ज़ पर अंतिम फ़ैसला चयनकर्ताओं का है।

हाल ही में बर्ख़ास्त किए गए चयनकर्ताओं के अध्यक्ष चेतन शर्मा और उनकी टीम इस बात से सहमत होगी कि - 'काग़ज़ पर' -यह दो शब्द यहां महत्वपूर्ण है। यदि उन्हें इतनी आसानी से बर्ख़ास्त किया जा सकता है, संभवतः बोर्ड अध्यक्ष या सचिव द्वारा, तो क्या यह बुद्धिमानी होगी कि उनमें से एक अधिकारी (आमतौर पर सचिव) प्रत्येक चयन बैठक में बैठे और दूसरे (आमतौर पर अध्यक्ष) प्रत्येक चयन की पुष्टि करें?

बस इस नौकरी के विवरण की कल्पना करें : निंदा से परे ईमानदारी रखें, बहुत यात्रा करें, अनदेखी रहें, महत्वपूर्ण निर्णय लें, जिस पर टीम और कई खिलाड़ियों का भविष्य टिका हों और अलोकप्रिय हों। साथ ही आपको कोच को मिलने वाले भुगतान की तुलना में केवल एक-दसवां हिस्सा मिलेगा और बहुत कम औपचारिक जवाबदेही वाले लोग अपनी शक्ति का पूरा इस्तेमाल कर आपको कभी भी बर्ख़ास्त कर सकते हैं। इतना ही नहीं, आपको कोई सार्वजनिक समर्थन भी नहीं मिलेगा।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कई सेवानिवृत्त क्रिकेटर जहां तक ​​संभव हो अन्य रास्ते चुनते हैं। और घटनाओं के नवीनतम मोड़ ने इस काम को और अधिक आकर्षक बनाने का काम तो नहीं किया है, विशेषकर तब जब भारत को अपनी विकास प्रणाली को पटरी पर लाने की सख़्त ज़रूरत है। सीनियर टीम के साथ राहुल द्रविड़ और राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में वीवीएस लक्ष्मण को तीसरे सहयोगी की ज़रूरत है जिसके साथ वे सही टीम बना सकें और चुन सकें। जिन्हें अदालतों द्वारा भारतीय क्रिकेट की प्रभारी बनाई गई प्रशासकों की समिति के समय, वरिष्ठ कोच रवि शास्त्री, विकासात्मक कोच द्रविड़ और मुख्य चयनकर्ता एम एस के प्रसाद की तीन-तरफ़ा टीम ने लगभग निर्बाध रूप से काम किया था।

जब भारत को प्रगतिशील कदमों पर चर्चा करनी चाहिए, जैसे कि क्या उन्हें इसी तरह के सुचारू संचालन के लिए एक क्रिकेट निदेशक की आवश्यकता है, या क्या उन्हें लाल-गेंद और सफ़ेद-गेंद क्रिकेट के लिए अपनी कोचिंग टीमों को विभाजित करना चाहिए या यदि चयनकर्ताओं को वीडियो और डेटा के रूप में अधिक तकनीकी सहायता की आवश्यकता है, या यदि उन्हें चयन समिति में एक युवा, हाल ही में रिटायर हुए प्रतिनिधि की आवश्यकता है, जो टी20 क्रिकेट का ज्ञान लाने लेकर आए, ऐसे में उनका यह निर्णय पीछे की ओर बढ़ाया हुआ एक क़दम है।

हमें जल्द ही पता चलेगा कि कौन भारतीय टीमों का चयन करने के लिए आगे आया है। उम्मीद है कि वे सिर्फ़ हताश नहीं रहे होंगे। उम्मीद है कि वे जल्द ही टीम प्रबंधन के साथ कामकाजी संबंध बनाने में सक्षम होंगे, क्योंकि हम पहले से ही 2023 विश्व कप की राह पर हैं और टेस्ट क्रिकेट में भी बदलाव के एक महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं।

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सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में असिस्टेंट एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।