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जेमिमाह रोड्रिग्स अभी 80% पर हैं, आखिरी 20 लगभग आ गया है

23 साल की उम्र में एक युवा लेकिन अनुभवी खिलाड़ी और अपने पहले वनडे विश्व कप की दहलीज पर खड़ी भारतीय बल्लेबाज़ ने हमें अपनी कहानी सुनाई

Rodrigues' memories of the 2017 World Cup as a 16-year-old

Rodrigues' memories of the 2017 World Cup as a 16-year-old

Jemimah Rodrigues looks back on the 'turning point' of women's cricket in India

जेमिमाह रॉड्रिग्स अपना पहला वनडे विश्व कप खेलने जा रही है। 2021 में जब पिछली बार वनडे विश्व कप हुआ था, तो वह टीम में जगह बनाने से चूक गई थीं। हालांकि इसके बाद उन्होंने लगातार बेहतर प्रदर्शन किया और अब वह भारतीय मध्य क्रम की एक अहम कड़ी हैं। उन्होंने ESPNcricinfo से अपनी यात्रा के उतार-चढ़ाव पर बात की, जिसके कारण वह भारत की अब सभी फ़ॉर्मैट्स की क्रिकेटर हैं।

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आप इस समय कैसा महसूस कर रही हैं?

सच कहूं तो बहुत ज़्यादा रिलैक्स महसूस कर रही हूं। यह बहुत लंबा और व्यस्त सीज़न रहा। कुल मिलाकर मैं इंग्लैंड में हमारे खेल के तरीके से बहुत ख़ुश हूं। वहां T20I सीरीज़ जीतना हमारे लिए बड़ी बात थी और इस टीम में लगातार बेहतर होने की क्षमता भी है। तो मुझे लगता है कि यही सबसे बड़ा लक्ष्य है और हमें लगातार बेहतर होते रहना है। व्यक्तिगत रूप से भी मैं अब चीज़ों के चलने के तरीके से खुश हूं। मैं न तो आगे के बारे में ज़्यादा सोचना चाहती हूं और न ही ज़्यादा अतीत में रहना चाहती हूं। हर दिन मेरा लक्ष्य यही है कि मैं कैसे बेहतर होती रहूं और जिस भी स्थिति में हूं, टीम के लिए कैसे योगदान करूं। तो मैं इसे बस इतना ही सिंपल रखना चाहती हूं।

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अगर हम 2025 की तुलना 2024 से करें तो पिछले साल आपके नाम 12 वनडे पारियों में सिर्फ़ एक अर्धशतक था। लेकिन इस साल आपने अब तक सात अर्धशतक लगाई हैं। क्या आपको इसके लिए मानसिक या तकनीकी बदलाव करने पड़े या बस समय के साथ फ़ॉर्म मिल गई?

सबसे पहली बात यह थी कि 2024 तक हम काफी T20 खेल रहे थे। मैंने ख़ुद भी तब बहुत वनडे नहीं खेला था। मुझे ख़ुद को उस फ़ॉर्मैट का आदी बनने के लिए समय देना पड़ा। अगर आप मेरा T20 करियर देखें, तो मैंने 108 [112] से ज़्यादा मैच खेले हैं। कभी-कभी आपको 50-ओवर फ़ॉर्मैट के लिए ख़ुद को समय देना पड़ता है और दूसरी बात यह थी कि मेरा बैटिंग पोज़िशन भी बदला गया था। [वह नंबर 5 पर आ गई थीं]। तो हो सकता है कि मैंने उतने अर्धशतक न बनाई हों, लेकिन मैंने कई प्रभावशाली पारियां खेलीं क्योंकि कभी-कभी मैं आख़िरी दस ओवरों या आखिरी 15 ओवरों में बल्लेबाज़ी करने आती थी। इसलिए मैं ख़ुद को आंकड़ों या माइलस्टोन से ज्यादा नहीं आंकूंगी। मैं अपने इम्पैक्ट को देखती हूं।

लेकिन हां, साथ ही मैंने यह भी सोचा कि मैं अपनी पारी को कैसे लंबा खींच सकती हूं। मुझे समझ आया कि अगर मैं क्रीज़ पर हूं तो टीम अच्छा स्कोर कर सकती है क्योंकि मैं विकेटों के बीच अच्छी रनिंग करती हूं, मुझे खेल की समझ है और मुझे पता है कि जिसके साथ मैं खेलती हूं, हम अच्छी साझेदारी कर सकते हैं। एक बार जब आप सेट हो जाते हैं, तो बेहतर यही होता है कि सेट बल्लेबाज़ अंत तक रहे। तो मैंने यह सोचकर खेला कि टीम के लिए मैच कैसे ख़त्म करूं और जीत दिलाऊं।

इस साल की शुरुआत में आप जिस तरह से साल के पहले वनडे में आयरलैंड के ख़िलाफ़ स्टंप आउट हुईं, उसने आपको झकझोर दिया। आप ख़ुद पर ग़ुस्सा हुईं और फिर अगले मैच में अपना पहला वनडे शतक लगाया। वहां क्या हुआ था?

हां, मैं बहुत निराश थी क्योंकि लंबे समय बाद मुझे इतने ओवर खेलने का मौक़ा मिला था और मुझे लगा मैंने अपनी विकेट फेंक दी। अगले मैच में मैंने शतक के बारे में नहीं सोचा। मैंने बस सोचा कि मैं अंत तक कैसे रहूं और टीम के लिए रन पूरे करूं। कैसे कम से कम 43वें ओवर तक टीम को पहुंचाऊं। मुझे याद है, मैं और हरलीन [देओल] खेल रहे थे, और हमने यही बात की थी कि चलो साझेदारी बनाते हैं। हमने अच्छी शुरुआत की थी, लेकिन फिर लगातार विकेट गिरे। पहला शतक बनाना अच्छा लगा क्योंकि यह एक राहत भरी बात थी। जब तक पहला शतक नहीं बनता, तब तक दबाव रहता है। लेकिन पहला शतक लगाने के बाद मुझे पता था कि अब और भी आएंगे। यह बस पहला बनाने का सवाल था।

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आपने बैटिंग पोजीशन का ज़िक्र किया। आप अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ओपनिंग से लेकर नंबर 6 तक बल्लेबाजी कर चुकी हैं। हाल ही में आप नंबर 4 और 5 पर आईं। पुराने गेंद से खेलने के लिए और डेथ ओवरों में गेंदबाज़ों के वैरिएशन को संभालने के लिए आपने क्या बदलाव किए?

मैं T20 से शुरू करूंगी। [शुरुआती मैचों में से एक] जहां मैं नंबर 5 पर खेली थी, वह साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ मैच [जुलाई 2024] था। पहले तो मुझे ख़ुद भरोसा नहीं था कि मैं यह भूमिका निभा पाऊंगी। टीम ने कहा कि हमें चाहिए कि आप वहां खेलो, मिडिल ओवर संभालो और अंत तक टीम को ले जाओ, क्योंकि हम 11वें से 20वें ओवर में बहुत विकेट खो रहे थे, जिससे रन रेट गिर रहा था। मैंने कहा, ठीक है, लेकिन मुझे खु़द यकीन नहीं था कि मैं कर पाऊंगी या नहीं… क्योंकि मैंने कभी जिंदगी में नंबर 5 पर नहीं खेला था। नंबर 3 पर मुझे पता है कि मैं टेम्पो कंट्रोल कर सकती हूं, विकेटों के बीच रन ले सकती हूं और रन रेट बनाए रख सकती हूं। लेकिन नंबर 5 पर कभी-कभी आपको फ़िनिशर बनना पड़ता है। यह एक चीज़ थी, जिस पर मुझे मेहनत करनी पड़ी।

नंबर 5 पर खेलना मेरे लिए वरदान साबित हुआ क्योंकि मुझे पता ही नहीं था कि मेरे अंदर यह खेल है। तो एक चीज़ जो मैंने बहुत ध्यान से बदली, वह तकनीक नहीं बल्कि मानसिकता थी। मैंने नेट्स में पहली गेंद से गेंदबाज़ पर आक्रमण करना शुरू किया। मैंने सोचा, क्या होगा अगर मैं क्रीज़ पर आती हूं और पांच ओवर बचे हैं और हमें प्रति ओवर दस रन चाहिए? तो बहुत ध्यान से हर नेट सेशन में मैं इसी सोच के साथ उतरती थी: "पहली गेंद से ही अटैक करना है" और मैं फेल होने के लिए भी तैयार थी। मैंने खुद को कोशिश करने की आज़ादी दी क्योंकि अगर कोशिश नहीं करूंगी तो कभी जान नहीं पाऊंगी। फिर मैं एनालाइज करती थी कि गलती कहां हुई और अगली बार कैसे ठीक करूं।

फिर अगली बार, अगर गेंद उसी पोजिशन में होती, तो मैं उसे फिर से मारने की कोशिश करती, लेकिन सुधरी हुई तकनीक, बॉडी पोजीशन या जो भी ज़रूरी हो उसके साथ। यह एक बड़ा बदलाव था, जिसमें समय लगा। लेकिन जब मैं मैच में बल्लेबाज़ी करने उतरी, तब मैं पूरी तरह तैयार रहती थी आक्रमण करने के लिए। इंग्लैंड में मुझे याद है एक इंटरव्यूअर ने कहा, "आपका स्ट्राइक रेट अचानक 110 से 145-50 पर चला गया।" और मैं भी हैरान थी। "वाह, ये कब हुआ?" लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि इस भूमिका ने मुझे मेरे अंदर का एक नया गेम खोजने में मदद की, जो मुझे खुद भी नहीं पता था।

वन-डे में यह ज्यादा स्थिति को समझने के बारे में था। नंबर-5 पर खेलना कभी-कभी मुश्किल पोजिशन होता है क्योंकि कभी मैं सातवें ओवर में पावरप्ले के दौरान बल्लेबाज़ी करने आती थी, कभी मैं 35वें ओवर में आती थी। यह बस फ़ॉर्मैट और अलग-अलग भूमिका के आदी बनने के लिए खुद को समय देने का मामला था। मुझे याद है कि मैं बहुत ज्यादा सोच रही थी क्योंकि हर मैच में मुझे अलग स्थिति में बल्लेबाज़ी करनी पड़ती थी और मैंने कभी ऐसी स्थिति में नहीं खेला था। अगर मैं शुरुआत में आती हूं, तो मुझे पता है कैसे खेलना है। लेकिन खु़द को समय देने के बाद अब यह सब नेचुरल सा हो गया है। मैं बस स्थिति के हिसाब से खेलती हूं, जो भी टीम को चाहिए।

क्या यह कहना सही होगा कि पोजिशन बदलने से आप अपनी कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर आ गईं?

हां, यह कहना सही होगा। और जैसा मैंने कहा, अगर ऐसा नहीं होता तो शायद मैं कुछ शॉट्स ट्राई नहीं करती, जो अब मैं खेल रही हूं। मैं मैदान के अलग-अलग हिस्सों में शॉट्स नहीं खेलती क्योंकि मेरे लिए यह सिर्फ ताक़त का मामला नहीं है। हां, जरूरत पड़ने पर मैं बाउंड्री पार कर सकती हूं, लेकिन यह इस बारे में भी है कि मैं स्मार्ट तरीके से रन कैसे बना सकती हूं। कैसे ऐसे हिस्सों में शॉट खेलूं, जहां कोई और नहीं खेलता और साथ ही गैप में शॉट मारना, रन लेना, उतना ही प्रभावी होना, जितना कोई ताक़त का इस्तेमाल करके बनता है।

जब आप इस बल्लेबाज़ी शैली की बात कर रही थीं, तो आपने पिछले साल WPL के दौरान कहा था कि आपने विराट कोहली से भी प्रेरणा ली। आपके तरीके में कई समानताएं थीं, खासकर T20 फ़ॉर्मैट में। क्या आपने उनसे मुलाक़ात की और इन सब पर बात करने का मौका मिला?

हां, मैंने उनसे मुलाक़ात की है। मुझे लगता है कि मैंने उनसे दो बार बल्लेबाज़ी के बारे में लंबी बातचीत की है। दरअसल, पहली गेंद से आक्रमण करने का जो माइंडसेट है, वह मैंने उनसे ही लिया है। यह IPL [2024] के दौरान था, जब मुझे पीठ में चोट लगी थी और RCB चिन्नास्वामी में खेल रही थी। मैं वहां नेशनल क्रिकेट एकेडमी में रिहैब कर रही थी। तो मैंने उनसे बात करने के लिए पूछा और वह तैयार हो गए। हमने डेढ़ घंटे लंबी बातचीत की, जो मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। यह दिखाता है कि वह अगली पीढ़ी की मदद करने और एक छाप छोड़ने के लिए कितने उत्सुक हैं।

पहला सवाल जो मैंने उनसे पूछा वह यह था कि जब वह दो साल के ख़राब दौर से गुजर रहे थे, तब उनके मन में क्या चल रहा था? मतलब, वह रन बना रहे थे लेकिन उन्होंने अपने लिए इतने ऊंचे स्टैंडर्ड सेट कर लिए हैं कि लोग कह रहे थे, "वह अंडरपरफ़ॉर्म कर रहे हैं।" लेकिन फिर वह भारत-पाकिस्तान का मैच आया, [2022 T20 विश्व कप, MCG]। मैंने उनसे पूछा, "जब आप वहां बल्लेबाज़ी करने उतरे तो आपके दिमाग़ में क्या चल रहा था? इतना दबाव था, आपने इसे कैसे संभाला?" और सबसे पहले उन्होंने मुझसे पूछा: "जब तुमने भारत-पाकिस्तान का मैच खेला था [2023 T20 विश्व कप, साउथ अफ़्रीका], तब तुम्हारे मन में क्या चल रहा था?" मेरे मन में था, "वह सब कुछ फ़ॉलो करते हैं।" (हंसते हुए)। यह उनकी विनम्रता को दिखाता है कि वह मेरे उस मैच के बारे में भी जानना चाहते थे। उस बातचीत ने मेरे गेम में बहुत मदद दी। हमने तकनीक पर ज्यादा बात नहीं की, हमने मानसिक पहलू और खेल में कैसे आक्रमण करें, इस पर बात की।

रॉड्रिग्स टीम में अपने जॉली स्वभाव के लिए जानी जाती हैं  Getty Images

आपने कई खेल खेले हैं- बास्केटबॉल, फ़ुटबॉल और राज्य स्तर पर हॉकी भी। कम उम्र से यह करने से आपको एक खिलाड़ी के रूप में, मानसिक रूप से भी, कैसे मदद मिली?

कई खेल खेलने से मुझे बहुत फ़ायदा हुआ। हां, इसमें फ़िटनेस का हिस्सा आता है। हॉकी में बहुत दौड़ना पड़ता है, बहुत कलाई का काम होता है, जो मेरे [क्रिकेट] खेल में मदद करता है। लेकिन मानसिक रूप से भी आप अलग-अलग स्थितियों और हालात के आदी हो जाते हैं। भले ही वे क्रिकेट जैसे न हों, लेकिन आप अपने दिमाग़ को ट्रेन करते हैं। स्थितियां अलग है लेकिन दबाव वैसा ही होता है, जैसा क्रिकेट में होता है।

मुझे लगता है कि मानसिक रूप से इसने मुझे बहुत मदद की। जब मैंने महाराष्ट्र के लिए हॉकी खेली, मुझे याद है कि मैं सबसे छोटी थी। और जब क्रिकेट में आई, तब भी मैं सबसे छोटी थी। लेकिन मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि मैं सबसे छोटी हूं। मेरे लिए बस यह मायने रखता था कि गेंद को मारना है और रन बनाना है। हॉकी ने भी मुझे ऐसी स्थिति में डाला जहां सीनियर्स थे, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा कि वे सीनियर हैं और मैं जूनियर। जब हम मैदान पर थे, तो मुझे किसी भी तरह टीम को जिताना था। इसने मेरी बहुत मदद की। लगातार दबाव की स्थिति में रहना आपको दबाव जल्दी झेलने की आदत डाल देता है।

एक समय ऐसा था जब आपको कम उम्र में क्रिकेट को हॉकी पर चुनना पड़ा। आपने यह फैसला कैसे लिया?

यह मेरे जीवन के सबसे कठिन फै़सलों में से एक था। मुझे याद है एक दिन पापा बोले, "ठीक है, बैठो, मुझे तुमसे बात करनी है।" उन्होंने कहा, "देखो, मुझे पता है कि तुम्हें दोनों खेल पसंद हैं, लेकिन हमें एक फैसला करना होगा क्योंकि दोनों आपस में टकरा रहे हैं और दोनों को बैलेंस करना मुश्किल है क्योंकि क्रिकेट पूरे साल चलता है।" तब मैं हॉकी प्रैक्टिस के लिए नहीं जा पा रही थी क्योंकि मैं टूर पर थी या उस समय [क्रिकेट] अंडर-19 चल रहा था। मैंने कहा, "डैडा, लेकिन मुझे दोनों पसंद हैं। मैं हॉकी छोड़ना नहीं चाहती।" वह बोले, "मुझे पता है, लेकिन हमें [फ़ैसला करना होगा]। फिलहाल के लिए एक फ़ैसला करो।"

तो इस 11 साल की लड़की को अपने भविष्य का फैसला करना था और उसे पता नहीं था आगे क्या होगा। (हंसते हुए) और फिर मैंने सोचा, "मैं क्रिकेट में हॉकी से ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी हूं," क्योंकि मैंने क्रिकेट में ज़ोन खेला था और हॉकी में स्टेट। तो मैंने कहा हम क्रिकेट के साथ आगे बढ़ेंगे। ऐसे ही यह हुआ, लेकिन यह सपना अब भी है कि एक दिन हॉकी और क्रिकेट दोनों में भारत के लिए खेलूं। मुझे नहीं पता कैसे, लेकिन यह सपना अब भी है। देखते हैं।

तो फिर आप बहुत खुश होंगी कि 2028 के ओलंपिक्स में क्रिकेट होने वाला है?

हां, मैं बहुत ही उत्साहित हूं। सच कहूं तो जब मैंने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 खेला था, तब मैं बहुत ख़ुश थी। बचपन में मैंने सोचा था कि मैं कॉमनवेल्थ और ओलंपिक हॉकी टीम में खेलूंगी। लेकिन भगवान की योजना कुछ और थी और हमें क्रिकेट में कॉमनवेल्थ का सिल्वर मेडल मिला। अब मैं 2028 के ओलंपिक्स का बेसब्री से इंतजार कर रही हूं। यह बहुत शानदार होने वाला है।

क्या सचिन तेंदुलकर के मुंबई के बांद्रा वाले घर के पास रहने से आपके हॉकी छोड़कर क्रिकेट चुनने के फ़ैसले पर असर पड़ा?

मैं आपको एक मज़ेदार कहानी बताऊँगी। जब भारत ने 2011 का विश्व कप जीता, उस समय मेरे बालकनी से उनके घर का गेट दिखाई देता था। मुझे याद है कि मैं 11 साल की थी। मुझे विश्व कप का महत्व नहीं पता था। मुझे नहीं पता था कि यह कितना बड़ा है। पता था कि बड़ा है, लेकिन जैसे अब पता है, वैसे तब नहीं था। मुझे याद है किसी तरह लोगों को पता चल गया कि वह घर कब लौट रहे हैं [टूर्नामेंट से]। मुझे याद है पूरी गली भरी हुई थी। हम घर से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। मुझे याद है पापा उन्हें देखने के लिए छत पर भागे थे क्योंकि पापा के लिए सचिन तेंदुलकर का मतलब... आप जानते हैं कि [भारत में] कैसा होता है। मैं बस देख रही थी। उनकी ऑडी आती दिख रही थी, फिर उन्होंने दरवाज़ा खोला और अंदर चले गए।

तो अगर आप कहें कि उनके पास रहने से मदद मिली, तो मेरा मानना है कि वही पल था जब सपना शुरू हुआ। ठीक है, एक दिन मैं विश्व कप उठाऊंगी और वह अहसास कैसा होगा क्योंकि मैंने भारत में, ख़ासकर मुंबई में वह दीवानगी देखी है। लोग सड़कों पर पागल हो रहे थे। तो मुझे लगता है कि तभी सपना शुरू हुआ। एक दिन मैं भारत के लिए वही करना चाहती हूं और विश्व कप जीतना चाहती हूं।

Jemimah Rodrigues: 'The dream is there to one day lead the Indian team'

The India batter talks about her career so far, working through a slump in form and how playing multiple sports helped her build a stronger foundation in cricket

ये तो उनकी कहानी से काफ़ी मिलती-जुलती है। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने क्रिकेट कैसे शुरू किया, तो उन्होंने हमेशा कहा है कि 1983 विश्व कप जीत उनके लिए टर्निंग प्वॉइंट था। और वह तब दस साल के थे

ओह, वाह। मुझे ये कहानी नहीं पता थी। तो फिर काफ़ी समानताएं हैं। जैसे, उन्होंने एमआईजी [क्रिकेट क्लब, मुंबई] में प्रैक्टिस शुरू की थी, मैंने भी एमआईजी में प्रैक्टिस की। उन्होंने पहली बार यॉर्कशायर के लिए काउंटी में खेला, मैंने यॉर्कशायर डायमंड्स [किया सुपर लीग में] के लिए खेला है। उम्मीद है कि विश्व कप... (हंसते हुए)

आपके खेल का एक बड़ा पहलू फ़ील्डिंग है और ये नेचुरल लगता है। बहुत से खिलाड़ी इसे पसंद नहीं करते। वो या तो गेंदबाज़ी या बल्लेबाज़ी पर ध्यान देते हैं। आप अपनी फ़ील्डिंग के प्यार को कैसे समझाएंगी?

बात ये है कि जैसा आपने कहा कि मेरे लिए सबसे बड़ा प्लस यही है कि मुझे फ़ील्डिंग पसंद है। मुझे हमेशा फ़ील्डिंग का मज़ा आया है। कुछ हद तक ये नेचुरल भी है, लेकिन मुझे उस पर काम करना पड़ा और अभी भी करती हूं। जैसे, मैं कैसे और बेहतर हो सकती हूं? और यही बहुत से लोग सोचते हैं। मेरा मानना है कि दुनिया के सबसे अच्छे फ़ील्डर भी बेहतर बनने के लिए अपनी फ़ील्डिंग पर काम करते हैं।

मैं [खु़द से पूछती हूं] कि मैं टीम के लिए और क्या योगदान दे सकती हूं? फ़ील्डिंग इसमें बड़ा पहलू है। मेरा मानना है कि यह सबसे नि:स्वार्थ कामों में से एक है, जो आप साथी खिलाड़ी के लिए कर सकते हैं। अपने गेंदबाज़ के लिए या टीम के लिए फ़ील्डिंग करना। फ़ील्डिंग में बचाए गए रन, बनाए गए रनों के बराबर होते हैं। ऐसे दिन भी आएंगे, जब शायद आप बल्ले से योगदान नहीं दे पाओ, लेकिन मुझे पता है कि मैं टीम के लिए योगदान दे सकती हूं। मुझे लगता है कि वह उत्सुकता और सोच, मुझे रन बचाने, कैच लेने, दौड़ने, डाइव लगाने, सब कुछ कर देने के लिए और भूखा बनाता है। और फिर से, विराट मुझे इसमें भी प्रेरित करते हैं। मैदान में वह बहुत एनर्जेटिक और चार्ज्ड रहते हैं।

आपने पहले ही काफ़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेली है, तीनों फ़ॉर्मैट और दुनिया भर में T20 लीग भी। आपने उतार-चढ़ाव देखे हैं। टीम से बाहर होना या फ़ॉर्म में न होना हर खिलाड़ी के करियर का हिस्सा है। ये आपको क्या सिखाता है और इंसान के तौर पर आपको यह कैसे गढ़ता है, सिर्फ़ खिलाड़ी के तौर पर नहीं?

हां, मैं इसे ऐसे कहूंगी कि अगर आज कोई मुझसे पूछे, "क्या आप अपनी ज़िंदगी में हुई किसी भी चीज़ को बदलना चाहेंगी?" कुछ भी, चाहे सबसे बुरा पल हो। मैं कहूंगी नहीं। और ये इसलिए कहूंगी क्योंकि वे सारे पल मिलकर मुझे आज का खिलाड़ी बनाते हैं।

अक्सर हम सिर्फ़ अच्छे पलों को देखते हैं और सोचते हैं, "वाह, कमाल, मैं वहां पहुंचना चाहती हूं।" लेकिन अगर आप किसी भी खिलाड़ी से पूछें, असल में असफलताएं, टीम से बाहर होना, ये निचले पल ही आपको बहुत कुछ सिखाते हैं, आपको गढ़ते हैं, एक क्रिकेटर के तौर पर और एक इंसान के तौर पर भी।

ऐसा लगता है कि ये सब पहेली के टुकड़े हैं, जो भगवान ने आपको उस खिलाड़ी या इंसान बनाने के लिए रखे हैं, जो वो चाहते हैं। तो मैं कहूंगी कि कभी-कभी नाकामी अच्छी होती है क्योंकि वो जीत से कहीं ज़्यादा सिखाती है। हारोगे नहीं तो कैसे जानोगे जीत का अहसास कैसा होता है? जीतने की भूख कैसे पैदा होगी? तो मेरे लिए ये बड़ा हिस्सा रहा है, ख़ासकर [2022] ODI विश्व कप से बाहर होना।

मेरे लिए वह मेरी ज़िंदगी के सबसे बड़े निचले पलों में से एक था। मैं [कभी] किसी भी टीम से बाहर नहीं हुई थी, जिसका मैं हिस्सा रही हूं। यह पहली बार हो रहा था। मुझे नहीं पता था कि ख़ुद को कैसे संभालना है, क्या करना है। मुझे याद है, मैं बस अपने कमरे में रोती रहती थी। सिर पर तकिया रखकर रोने लगती थी क्योंकि मुझे नहीं पता था, कैसे। और ऐसा लगभग हर रात होता था। मेरे पास घरेलू सीज़न शुरू होने से पहले दो महीने थे। यह मेरे लिए बहुत मुश्किल दौर था।

लेकिन उन दो महीनों ने मुझे मेरी कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर निकाला। मुझे वो चीज़ें करने को मजबूर किया, जो शायद अगर मैं टीम से बाहर नहीं होती तो कभी नहीं करती। उन दो महीनों में मैंने अपने पापा और प्रशांत शेट्टी सर (कोच) के साथ काम किया। हमने प्लान बनाया कि हम उस समय हर हफ़्ते दो मैच खेलेंगे। मैं आज़ाद मैदान जाती थी और खेलती थी।

मैंने अंडर-14 एमआईजी क्लब के लड़कों के साथ खेला। मुझे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का उतना दबाव महसूस नहीं हुआ, जितना अंडर-14 लड़कों के साथ खेलते हुए हुआ क्योंकि सबसे पहले वहां सबको पता था कि मैं इंडिया प्लेयर हूँ। मुंबई में अगर आप इंडिया प्लेयर या मुंबई प्लेयर हैं, तो लोग आपको बहुत मानते हैं। जब मैंने वहां खेला, तो सभी पैरेंट्स देखने आते थे। बहुत दबाव था। अगर मैं किसी बच्चे के हाथ आउट हो गई, तो कैसा लगेगा? कैसा दिखेगा? लेकिन मुझे लगता है वह भी एक चीज़ थी, जिसने मुझे दबाव झेलना ज़्यादा सिखाया। बाहर क्या हो रहा है उसे ध्यान ना देकर बस अपने काम पर ध्यान देना सिखाया।

आज़ाद मैदान में सुबह के समय हालात इतने ख़राब थे कि आप पिच में उंगली डालें तो अंदर चली जाएगी। ये इतनी गीली होती थीं, ओस की वजह से। कोई पिच नहीं ढकता था। दूसरी पारी में बिलकुल उल्टा होता था- एकदम तेज़ टर्न।

मुझे याद है मैंने पहला मैच मुंबई के अंडर-16 और अंडर-19 लड़कों के ख़िलाफ़ खेला था। उस टीम में कुछ अच्छे बाएं हाथ के स्पिनर थे, जो गेंद को तेज़ी से टर्न करा रहे थे। हमारी टीम 0 पर 3 थी। (हंसते हुए)। मैंने 45 गेंदों में 45 रन बनाए। उस पारी ने मुझे इतने चुनौतीपूर्ण हालात में बहुत आत्मविश्वास दिया।

मैंने बहुत ही कम पाटा [सपाट] पिच पर खेला। यह एक ऐसी चीज़ थी जिसने बहुत मदद की, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हमें इससे बेहतर पिच मिलती हैं। जब आप यहां खेलते हैं और फिर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जाते हैं, तब वहां की चुनौतीपूर्ण पिच भी जन्नत [स्वर्ग] जैसी लगती है। उन दो महीनों ने मुझे इंसान के तौर पर, खिलाड़ी के तौर पर पूरी तरह बदल दिया। मैं कह सकती हूं कि मैं और मज़बूत और परिपक्व हुई। मैंने अपने खेल को बेहतर समझा कि क्या मेरे लिए काम करता है और क्या नहीं। मेरा मानना है कि वह समझ पाना मुझे दबाव में शांत रहने और हर बार खेलते हुए स्थिर रहने में मदद करता है।

पिछले 12 महीनों में, आप कुछ फ़ाइनल भी हारे हैं, इसमें WPL, WCPL और WBBL शामिल है। इन्हें ज़्यादातर अकेले ही सहना पड़ता है क्योंकि फ़ाइनल हारने के बाद आप घर लौटते हैं और टीम के साथ नहीं होते। आप इससे कैसे निपटती हैं?

इसमें मेरे आस-पास के लोग बहुत मदद करते हैं। मुझे सब कुछ कहने की ज़रूरत होती है। मैं सब अंदर नहीं रख सकती। फिर वह मेरे लिए बुरा, बहुत बुरा हो जाता है। लेकिन मुझे यह भी एहसास हुआ कि ख़ासकर विश्व कप फ़ाइनल जैसी चीज़ों में यह धीमा ज़हर है, जो धीरे-धीरे आपको खाता है और आपको पता भी नहीं चलता। आप घर लौटते हैं, सब कुछ ठीक लगता है और फिर धीरे-धीरे वह आपको प्रभावित करता है। मेरे लिए मेरा तरीका यह है कि मैं खु़द को समय दूं। जो महसूस कर रही हूं, उसे महसूस करूं और उन भावनाओं को अंदर उतरने दूं। क्योंकि आख़िरकार वे असल भावनाएं हैं। हम हारे, मैं दुखी हूँ। मैं उसे महसूस कर रही हूं। मैं उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती और नकली मुस्कान नहीं दे सकती।

मुझे जो महसूस हो रहा है, उसे महसूस करना है। उसे प्रोसेस होने देना है। और जब यह हो जाता है, मैं फिर से खु़द जैसी हो जाती हूं। लेकिन मेरे लिए खु़द को वह समय देना बहुत ज़रूरी है। मैं बहुत भावुक इंसान हूं। मुझे सब कुछ महसूस करना चाहिए। ख़ुशी, दुख, सब कुछ। मुझे खु़द को महसूस करने देना चाहिए।

ऐसे नुक़सान और अन्य मसलों से निपटने के लिए भारतीय टीम ने कई बार स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट मुग्धा बावरे को टीम के साथ रखा। इसने आपके लिए या अन्य खिलाड़ियों के लिए चीज़ें कैसे बदलीं?

जब आप इतने ऊंचे स्तर पर खेल रहे होते हैं, दबाव बहुत ज़्यादा होता है। कई लोग समझ भी नहीं सकते कि हम क्या झेलते हैं। कभी-कभी हमें खु़द नहीं समझ आता कि हम ऐसा क्यों महसूस कर रहे हैं या असफलताओं से कैसे निपटें। लेकिन यह बहुत अच्छा है कि हमें प्रोफ़ेशनल मदद मिलती है, जहां हम इन सब बातों को कह सकते हैं।

और सिर्फ़ इतना ही नहीं, आप अपने दिमाग़ को ट्रेन कर सकते हैं। अगर आप अपने दिमाग़ को सही दिशा में सोचने के लिए फिर से ट्रेन कर सकते हैं, तो शायद वह आपके खेल, आपके स्वभाव, [आपकी] सफलता को बदल सकता है। सिर्फ़ आपकी सोच की वजह से यह बदल सकता है। मुझे लगता है कि यह बहुत ज़रूरी है। मैं बस यह कहूंगी कि हर कोई कुछ न कुछ झेलता है, बस कोई दिखाता नहीं। जैसे मैं जिम जाकर मसल्स को तैयार करती हूं, वैसे ही मैं आने वाले दबाव के लिए अपने दिमाग़ को भी तैयार कर सकती हूं।

आपने अंडर-19 स्तर पर और घरेलू क्रिकेट में कप्तानी की है। आप WPL में दिल्ली कैपिटल्स की उप-कप्तान भी रही हैं। क्या भारत की कप्तानी आपके मन में रहती है?

सच कहूं तो, मुझे कप्तानी पसंद है। मुझे लीडरशिप रोल पसंद है। मैंने हमेशा महसूस किया है कि जब भी मुझे ये ज़िम्मेदारी मिली, मैंने कप्तान के तौर पर खिलाड़ी से बेहतर प्रदर्शन किया है। तो मुझे सच में यह बहुत अच्छा लगता है। मैं उस मौक़े का इंतज़ार कर रही हूं, जब भी मिले। सच कहूं तो, मैं बैठकर नहीं सोचती, "अरे, एक दिन मैं कप्तान बनूंगी।"

Jemimah RodriguesIndia Women

विशाल दीक्षित ESPNcricinfo में असिस्टेंट एडिटर हैं