मनिंदर सिंह- 'उनके साथ कॉमेंट्री करते हुए मैं क्रिकेट को एक बार फिर सीखने लगा था'
मनिंदर सिंह ने यशपाल शर्मा को किया याद - एक जुझारू क्रिकेटर और दिलीप कुमार के बड़े फ़ैन

पहली बार मैं यशपाल जी से 1981-82 के रणजी ट्रॉफ़ी मैच के दौरान मिला था। उस मैच में मैंने 14 विकेट लिए थे, जिसमें दोनों पारियों में उनकी विकेट शामिल थी।
पिच बल्लेबाज़ी के लिए अच्छी नहीं थी लेकिन जिस दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने बल्लेबाज़ी की वह शानदार थी। (शर्मा ने पहली पारी में पंजाब के कुल स्कोर 156 में से 74 रन बनाए थे) उस समय ही वह भारत के लिए खेल चुके थे लिहाज़ा दोनों पारियों में उन्हें आउट करना मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
अगले सत्र में नॉर्थ ज़ोन की ओर से दुलीप ट्रॉफ़ी में खेलते हुए हम साथी हो गए थे। और तब मैंने महसूस किया था कि क्रिकेट को लेकर वह कितने गंभीर हैं। यहां तक कि नेट्स में भी वह उसी शिद्दत के साथ बल्लेबाज़ी करते थे जैसे मैच में कर रहे हों। वह इस क़दर ख़ुद को मैच में शामिल रखते थे कि बल्लेबाज़ी करने के बाद भी उनकी उपस्तिथि ख़त्म नहीं हो जाती थी। वह ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी भी कर लेते थे और अपनी फ़ील्डिंग में पूरा दम लगाते थे।
मैंने पहले अपनी फ़ील्डिंग को दुरुस्त करने के लिए मद्दी पा (मदन लाल) से सीखा और फिर जब यशपाल शर्मा को फ़ील्डिंग पर मेहनत करते हुए देखा तो, मैंने अपने आप से ही कहा कि मैं भी कर सकता हूं। मैं भी एक अच्छा फ़ील्डर बन सकता हूं, इसलिए मैं मानता हूं कि मैंने उनसे मेहनत करना और अनुशासन सीखा।
वह बेहद ही अनुशासनात्मक क्रिकेटर थे, वह खाने के भी शौक़ीन थे लेकिन साथ ही साथ वह ये अच्छे से समझते थे कि क्या खा रहे हैं। वह कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहते थे जिसका असर उनकी क्रिकेट पर पड़े। अगर अगले दिन वह खेल रहे होते थे तो फिर उस रात हल्का डिनर करते थे, इसी तरह मैच के दौरान वह हल्का लंच लेते थे।
"मैंने महसूस किया था कि वह क्रिकेट को लेकर कितने गंभीर हैं। यहां तक कि नेट्स में भी वह उसी शिद्दत के साथ बल्लेबाज़ी करते थे जैसे मैच में कर रहे हों। वह इस क़दर ख़ुद को मैच में शामिल रखते थे कि बल्लेबाज़ी करने के बाद भी उनकी उपस्तिथि ख़त्म नहीं हो जाती थी। वह ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी भी कर लेते थे और अपनी फ़ील्डिंग में पूरा दम लगाते थे।"
मैंने हमेशा माना है कि अगर आपको सफल क्रिकेटर बनना है तो मानसिक तौर पर भी आपको मज़बूत होना ज़रूरी है। और वह ऐसे ही थे, वह एक जुझारू क्रिकेटर थे। भले ही उनकी तकनीक 100% अच्छी न हो लेकिन अगर उस स्तर पर आप मानसिक तौर पर मज़बूत हों तो फिर आप अच्छा कर सकते हैं।
वह भारतीय अदाकार दिलीप कुमार के बहुत बड़े फ़ैन थे। मुझे अच्छे से याद है मैं 1982-83 में अपने पहले पाकिस्तानी दौरे पर था। हम लोग एक गेस्ट हाउस में ठहरे हुए थे, जहां वीसीआर मौजूद था और यशपाल जी दिलीप कुमार की फ़िल्म देखा करते थे। उस समय उन्हें चिढ़ाने के लिए कुछ खिलाड़ी तब कैसेट बदल दिया करते थे जब वह टॉयलेट के लिए उठते थे। और तभी मैंने पहली बार उन्हें ग़ुस्सा होते हुए देखा था।
मैदान से संन्यास लेने के बाद हमने अंपायरिंग और कॉमेंट्री भी साथ में की है। कुछ मैचों में हम साथ में अंपायरिंग के लिए भी खड़े हुए और उनकी एकाग्रता कमाल की हुआ करती थी, ठीक उसी तरह जैसे जब वह खेला करते थे।
जब उनके साथ कॉमेंट्री कर रहा होता था तो लगता था कि एक बार फिर मैं उनसे क्रिकेट की कई बारीकियां सीख रहा हूं। जब मैं खेलता था तो मैं उनसे जूनियर था, तो उस समय हमारी एक दूसरे बात बहुत कम हुआ करती थी। लेकिन कॉमेंट्री के दौरान वह जो बोला करते थे मैं उसे महसूस करता था और लगता था कि मैं एक बार फिर क्रिकेट सीख रहा हूं।
कभी कभी मुझे लगता था कि वह बहुत गंभीर क़िस्म के इंसान हैं, लेकिन वह वैसे ही थे और सभी लोग उनकी तरह हो भी नहीं सकते।
हाल ही में हम भारत और इंग्लैंड के बीच हुई घरेलू सीरीज़ में मिले थे और वह बिल्कुल फ़िट थे। हमेशा की तरह वह अपने स्वास्थ्य को लेकर फ़िक्रमंद थे, वह नियमित तौर पर पैदल चलते थे। मुझे जैसे ही उनके देहांत की ख़बर मिली मैं हैरान रह गया, मुझे अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा कि उनके साथ ऐसा हो गया। ख़ास तौर से वह इंसान जो अपनी ज़िंदगी में बेहद अनुशासनात्मक हो और अपने स्वास्थ्य को लेकर फ़िक्रमंद हो वह इतना जल्दी हमें कैसे अलविदा कह सकता है।
शायद वह अपने हीरो दिलीप कुमार का सदमा अपने दिल में बसा गए थे जिनकी मृत्यु भी हाल ही में 7 जुलाई को हुई थी।
हेमंत बराड़ ESPNcricinfo में सब-एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo के मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट सैयद हुसैन (@imsyedhussain) ने किया है।
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