मिलिए रणजी क्वार्टर-फ़ाइनल में जलवा बिखेरने वाले कर्नाटका के एम वेंकटेश से
तेज़ गेंदबाज़ ने अपने बचपन के हीरो अभिमन्यु मिथुन की बराबरी करते हुए प्रथम श्रेणी में पदार्पण पर पांच विकेट लिए

एम वेंकटेश एक म्यूजिक घराने से आते हैं। उनकी दादी और बड़े भाई क्लासिकल सिंगर हैं। बड़े होते हुए वेंकटेश उनसे अलग थे। उनको क्रिकेट खेलना पसंद था और बल्लेबाज़ों को आउट करने से उनको रोमांच मिलता था।
शुक्रवार को उन्होंने चिन्नास्वामी की हरी घास की पिच पर उत्तराखंड को रौंद दिया और 2006 के बाद से एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में उत्तराखंड के ख़िलाफ़ रणजी ट्रॉफी क्वार्टर फ़ाइनल में पदार्पण पर पांच विकेट लेने वाले कर्नाटक के केवल पांचवें गेंदबाज बन गए। इनमें से एक इस सूची में मिथुन अन्ना [अभिमन्यु मिथुन] थे, जो ऐज़ ग्रुप क्रिकेट में उनके हीरो भी रहे।
वेंकटेश हर बार की तरह इसी तरह से बिस्तर से उठे थे कि उन्हें पूरे सीज़न ड्रिंक्स देनी है, लेकिन जब कप्तान मयंक अग्रवाल ने उनके कंधे पर थपकी गी और बताया कि वह डेब्यू करने जा रहे हैं तो वह जम गए। वी कौशिक ने पीठ की ऐंठन की वजह से मैच से हाथ खींचा और वेंकटेश के लिए चीज़ें आसान हो गई जब कर्नाटका ने पहले गेंदबाज़ी को चुना।
उत्तराखंड के ख़िलाफ़ रणजी ट्रॉफ़ी क्वार्टर फ़ाइनल में चिन्नास्वामी में डेब्यू पर पांच विकेट लेने वाले वेंकटेश ने कहा, "मेरे पास इतना भी समय नहीं था कि मैं उनको बता सकूं कि मैं खेलने जा रहा हूं। सच में अच्छा महसूस हुआ कि मुझे आख़िरकार मौक़ा मिला। मुझे इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी और जब मुझे यह ख़बर मिली तो मैं पूरी तरह से अचंभित था।"
22 वर्षीय वेंकटेश मैसूर में क्रिकेट खेलते हुए बड़े हुए हैं। उनके पिता लोकल क्रिकेट खेलते थे और आशा की थी कि उनका बेटा उनके क्रिकेट से प्यार को एक नया आयाम देगा। जब युवा वेंकटेश ने यह करके दिखाया था तो उनके पिता बहुत ख़ुश हुए थे। वेंकटेश ने कहा, "मेरे पिता मुझे कपिल देव की वीडिया दिखाते थे। वह मेरे पिता के हीरो थे। मैंने भी उनकी कई वीडियो देखी थी।"
वेंकटेश शर्माते हैं और बहुत आराम से बोलते हैं। खेल के बाद मीडिया से बातचीत में निश्चित रूप से ऐसा ही महसूस हुआ जब वेंकटेश से ढे़रों सवाल उनके क्रिकेट और कर्नाटका टीम के तक के सफ़र तक के सवाल दागे गए।
यहां तक कि एक स्थानीय कैमरापर्सन भी उस परफे़क्ट क्लिक की तलाश में था जब वेंकटेश फ़ील्डिंग कर रहे थे और उन्होंने कुछ जोश दिखाने के लिए उन्हें फुसलाने की कोशिश की। वेंकटेश के साथी जब रस्सियों के पीछे चल रहे थे, उन्होंने मजाक में कहा कि मैदान पर जाने से पहले वह ड्रेसिंग रूम में कांप रहे थे।
पहला विकेट लेते ही वेंकटेश काफ़ी शांत नज़र आए। वह कड़ी मेहनत से दौड़े, अपने पहले स्पेल के अधिकांश समय के लिए तेज़ और सटीक गेंदबाज़ी की, आठ ओवर की लंबी मेहनत के बाद उन्हें दो विकेट मिले।
वेंकटेश ने बताया कि किस तरह उन्हें धैर्य रखने और प्रतिभा से भरी टीम में अपने मौके़ का इंतज़ार करने की ज़रूरत है। यदि आप 2012-18 के बीच कर्नाटक के सीम गेंदबाज थे, तो संभावना है कि आपको बहुत अधिक धैर्य रखना होगा, क्योंकि प्रसिद्ध गति तिकड़ी आर विनय कुमार, मिथुन और एस अरविंद अपने चरम पर थे। यहां तक कि प्रसिद्ध कृष्णा जैसे प्रतिभाशाली और कुशल खिलाड़ी को भी मैदान में उतरने से पहले पूरे तीन सीज़न तक ड्रिंक्स ढोना पड़ा।
कई गेंदबाज़ों को चूकने की हताशा से संतोष करना पड़ा है। एचएस शरथ से पूछिए। एक बार एक चौथे सीमर को परिस्थितियों के आधार पर चुनिंदा रूप से चुना गया था, लेकिन वह भी लुप्त हो गए क्योंकि सात साल में केवल एक प्रथम श्रेणी मैच। फिर रोनित मोरे आए और चले गए। यह एक साइकिल है जो लगातार बदल रही है। वह हिमाचल के भी खेलने के लिए तैयार थे जिससे वापसी हो सके लेकिन यह कहना सही होगा कि चीज़ें प्लान मुताबिक नहीं गई।
2019 से चीज़ें बदलने लगी। प्रसिद्ध तिकड़ी अब एक साथ नहीं थी क्योंकि विनय पहले पुडुचेरी के लिए खेले और रिटायर हुए। मिथुन और अरविंद ने भी ऐसा किया। इससे कर्नाटका को अब एक नए तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण की दरकार थी और कई दावेदार आए, कई ने जगह भी बनाई। वेंकटेश इस सूची में नए हैं, जो लगातार कर्नाटका टीम का हिस्सा होना चाहते हैं।
वेंकटेश ने कहा, "इन दिग्गज़ों में से कुछ के साथ एक ही टीम में खेलना आश्चर्यजनक लगता है। अरविंद अन्ना मुझे बहुत समर्थन दे रहे हैं, हमेशा मुझे इनपुट और सुझाव देने के लिए तैयार रहते हैं कि मैं कैसे सुधार कर सकता हूं। जिस टीम में विनय अन्ना और मिथुन जैसे दिग्गज़ खेले, उसी टीम के लिए खेलना अद्भुत लगता है। मुझे तेज़ गेंदबाज़ी करना पसंद है और मुझे उम्मीद है कि मैं सुधार करता रहूंगा।"
इससे वेंकटेश को मदद मिली कि वे जो दबाव डालने में सक्षम थे, उसे दूसरे छोर पर विधवत कावेरप्पा और विजयकुमार वैशाख ने भी बनाए रखा। तेज़ गेंदबाज़ी समूह में सबसे युवा वेंकटेश जो दिन के शुरू में काफ़ी हद तक खु़द को दूर रखते थे, उत्तराखंड की पारी के अंत तक अपने वरिष्ठ सहयोगियों के साथ बात करने के लिए पर्याप्त साहस जुटा चुके थे।
जब उन्होंने अभय नेगी के मिडिल स्टंप को उखाड़ा तो वेंकटेश अजेय थे। पांचवां और अंतिम विकेट तब आया जब उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ कुणाल चंदेला ने गेंद को मिस जज किया और गेंद स्लिप में मनीष पांडे के हाथ में गई।
जब वह मैदान से बाहर टीम के साथ मिले तो एक-दो आंसू थे जिन्हें उन्होंने पोंछा था। ड्रेसिंग रूम और उनके साथियों ने उन्हें गेंद को ऊपर उठाने के लिए मनाया। वहीं रवींद्र जाडेजा और नवदीप सैनी ने भी मैदान की पड़ोसी एनसीए की छत से उनके लिए तालियां बजाईं।
शशांक किशोर ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।
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