Features

मुश्किल लेकिन मीठी पहेली, जुरेल को प्लेइंग XI में रखने या न रखने के मायने

जुरेल ने हालिया समय में जिस तरह की निरंतरता और लय दिखा है कि उन्हें टीम से बाहर रखना मुश्किल हो गया है। क्या भारत उन्हें सिर्फ़ एक मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज़ के तौर पर आंकने का प्रयास कर रहा है ?

ध्रुव जुरेल ने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ अपना पहला टेस्ट शतक बनाया था  Associated Press

जनवरी 2020 में ही यह पता चल चुका था कि ध्रुव जुरेल के सपने बहुत बड़े हैं।

Loading ...

साउथ अफ़्रीका में आयोजित अंडर 19 विश्व कप के दौरान बनाया गया यह वीडियो देखिए। जुरेल कहते हैं, "मैं बस एक सफल क्रिकेटर बनना चाहता हूं। मैं भारत के लिए 200 टेस्ट खेलना चाहता हूं।"

जब जुरेल यह बात कर रहे होते हैं तो उनके मन में किसी भी तरह की झिझक नहीं है। ऐसा लगता है कि भारत के लिए 200 टेस्ट खेलने का सपना उनके एक अंसभव नहीं, बल्कि एक संभव सपना हो। यह कहते हुए उन्होंने कभी यह नहीं सोचा होगा कि उन्होंने तब तक सीनियर लेवल पर कोई भी मैच नहीं खेला था। शायद उन्होंने यह भी नहीं सोचा होगा कि उनके आगे ऋषभ पंत नाम का एक खिलाड़ी है, जो उनसे उम्र में सिर्फ़ तीन साल बड़े हैं लेकिन अपने करियर की शानदार आगाज़ कर चुके हैं।

जुरेल अब तक अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में सात टेस्ट खेल चुके हैं। डेढ़ साल पहले उन्होंने अपना पहला मैच खेला था। इन सात मैचों में से सिर्फ़ एक ही मैच ऐसा था जब पंत और जुरेल दोनों टीम में शामिल थे। किसी भी विकेटकीपर के लिए आमतौर पर टीम में एक विशेषज्ञ बल्लेबाज़ के तौर पर टीम में जगह बनाना काफ़ी मुश्किल होता है। आप इसे किसी भी विकेटकीपर के करियर का पारंपरिक सफर कह सकते हैं। लेकिन जुरेल एक दुर्लभ सपने के साथ आगे बढ़े हैं, जिसमें उन्हें एक बल्लेबाज़ के तौर पर भी टीम में जगह पक्की करनी है।

यह चलन हाल के सालों में बदल गया है। अब कई टीमों में एक मुख्य विकेटकीपर के अलावा, एक या दो वैकल्पिक कीपर भी मौजूद होते हैं। शुक्रवार को ईडन गार्डन्स में साउथ अफ़्रीका की टीम संभवतः काइल वेर्रेन को कीपर के रूप में और रयान रिकलटन को सिर्फ़ बल्लेबाज़ के तौर पर मैदान में उतारेगी।

हालांकि इस मामले में भारत का इतिहास थोड़ा सा अलग रहा है। टेस्ट टीम में नॉन-कीपिंग विकेटकीपर का चनय काफ़ी कम हुआ है। ऐसे 13 भारतीय खिलाड़ी जिन्होंने 10 या उससे ज़्यादा टेस्ट में विकेटकीपिंग की है, उनमें से सिर्फ़ दो ही ऐसे हैं जिन्होंने सामान्य परिस्थितियों में बल्लेबाज़ के रूप में खेला। बुढी कुंदरन ने तीन मैचों में ऐसा किया, जब फारुख इंजीनियर कीपिंग कर रहे थे। और दिनेश कार्तिक ने सात मैचों में ऐसा किया जब एमएस धोनी कीपिंग कर रहे थे।

कुंदरन और कार्तिक दोनों ही उस वक्त ओपनिंग करते थे। विकेटकीपर के रूप में ओपन करना भारतीय क्रिकेट की अपनी एक परंपरा रही है।

जुरेल के लिए अब एक अवसर है कि वह साउथ अफ़्रीका के विरुद्ध शुक्रवार से शुरू होने वाली सीरीज़ में एक अद्वितीय उदाहरण पेश करें। यानी, मिडल-ऑर्डर में खेलने वाले पहले भारतीय टेस्ट विकेटकीपर के रूप में अपना सफ़र शुरू करें। उन्होंने अपने प्रदर्शन के बूते चयनकर्ताओं के लिए उन्हें टीम से बाहर बिठाना लगभग असंभव बना दिया है, इसीलिए यह संभव हो पाया है।

15 सितंबर को ऑस्ट्रेलिया 'ए' के ख़िलाफ़ भारत 'ए' के पहले अनौपचारिक टेस्ट से पहले, जुरेल का रिकॉर्ड 25 प्रथम श्रेणी मैचों में मात्र एक शतक और 47.34 के औसत तक सीमित था। यह आंकड़े एक बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाज़ के लिए तो शोभनीय थे, लेकिन साई सुदर्शन, देवदत्त पडिक्कल या सरफ़राज़ ख़ान जैसे मध्य क्रम के पारंगत खिलाड़ियों से आगे निकलने के लिए यह अपर्याप्त था।

इसके बाद उन्होंने पांच प्रथम श्रेणी मैचों में 140, 1, 56, 125, 44, 6*, 132* और 127* का स्कोर बनाया। इसमें वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ दो टेस्ट और ऑस्ट्रेलिया ए व साउथ अफ़्रीका ए के ख़िलाफ़ मैच शामिल हैं। इस निरंतरता के कारण अब उनकी प्रथम श्रेणी औसत बढ़कर 58.00 हो गई है।

ध्रुव जुरेल ने फ़ील्डिंग में भी खु़द को बेहद उपयोगी साबित किया है  PTI

क्या ऐसे किसी खिलाड़ी को टीम से बाहर रखना संभव है जिसने टेस्ट क्रिकेट में सहजता और आत्मविश्वास को काफ़ी बेहतरीन तरीक़े से प्रदर्शित किया है। उन्होंने अपने दूसरे ही टेस्ट में मुश्किल पिच पर मैच जिताने वाली पारी खेली थी। हाल ही में साउथ अफ़्रीका ए के ख़िलाफ़ उन्होंने एक ऐसी पिच पर शतक जड़ा, जो बल्लेबाज़ के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं थी। एक हरे विकेट पर जुरेल ने उस समय यह पारी खेली थी, जब भारत का कोई और बल्लेबाज़ 24 के स्कोर तक भी नहीं पहुंच पाया था। उन्होंने पिछले साल मेलबर्न में भी ऐसा ही कारनाम किया था। तब उन्होंने दोनों पारियों में अर्धशतक जड़ा था। तब भारतीय टीम के किसी भी भी बल्लेबाज़ ने अर्धशतक नहीं बनाया था।

भारतीय टीम ने लगभग यह तय कर लिया है कि यह खिलाड़ी इतना अच्छा है कि इसे बाहर नहीं बिठाया जा सकता। अच्छी बात यह है कि टीम के पास उन्हें शामिल करने का एक आसान तरीका भी है। बस उन्हें अपनी टीम में एक छोटा-सा बदलाव करना होगा।

वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ नीतीश कुमार रेड्डी एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में दिखे जिन्हें भारत ने प्रयोग के तौर पर टीम में शामिल किया गया था। वे इस समय एक छठे गेंदबाज़ के तौर पर या आठवें बल्लेबाज़ के तौर पर टीम में फ़िट बैठते हैं। हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि रवींद्र जाडेजा और वॉशिंगटन सुंदर दोनों ही उनसे बेहतर बल्लेबाज़ हैं।

वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध खेली गई पिछली सीरीज़ में, जुरेल ने लगभग हर मौक़े पर उन तीनों ऑलराउंडरों से पहले बल्लेबाज़ी की और वह उस क्रम में पूरी तरह से सहज दिखाई दिए। ऋषभ पंत की वापसी के बावजूद, इस बात की पूरी संभावना है कि भारत अब भी जुरेल को रेड्डी से ऊपर बल्लेबाज़ी करवाए, क्योंकि साउथ अफ़्रीका का गेंदबाज़ी अटैक वेस्टइंडीज़ के मुक़ाबले कहीं अधिक मज़बूत है।

कगिसो रबाडा के पास भारत में टेस्ट क्रिकेट खेलने का पुराना अनुभव है। वहीं, केशव महाराज और साइमन हार्मर विश्व के बेहतरीन स्पिनरों में गिने जाते हैं और अब उपमहाद्वीप की परिस्थितियों को पहले से बेहतर समझते हैं। सेनुरन मुथुसामी ने पिछली बार जब भारत का दौरा किया था, तब वह मुख्य रूप से बल्लेबाज़ थे, लेकिन अब वह पाकिस्तान से 'प्लेयर ऑफ़ द सीरीज़' बनकर आए हैं।

जुरेल साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ मध्य क्रम बल्लेबाज़ के तौर खेल सकते हैं  Getty Images

अब सवालों का कांटा एक ही जगह आकर रूकता है। जुरेल और रेड्डी में से किसे टीम में शामिल करें, जब टीम में पहले से पांच गेंदबाज़ मौजूद हैं?

क्या इस सवाल का जवाब आसान है ? तो जबाव है कि बिल्कुल भी नहीं। टीम में एक भरोसेमंद बल्लेबाज़ देवदत्त पड़िक्कल भी शामिल हैं, जिन्होंने हाल में बेहतरीन फ़ॉर्म दिखाई है। IPL में हैमस्ट्रिंग की चोट से उबरने के बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया ए के ख़िलाफ़ 150 रन बनाए और रणजी ट्रॉफ़ी में सौराष्ट्र के विरुद्ध 96 रनों की पारी खेली। भले ही उनके छह प्रथम श्रेणी मैचों में औसत 38.40 रही हो, लेकिन वे ज़्यादातर तीसरे या चौथे नंबर पर खेलते हैं, जहां उन्हें नई गेंद का सामना करना पड़ता है।

अगर हालिया फ़ॉर्म को नज़रअंदाज़ करें, तो चयनकर्ताओं की नज़र में पड़िक्कल काफ़ी समय से अगला मिडल ऑर्डर विकल्प रहे हैं। लेकिन क्या जुरेल का लगातार शानदार प्रदर्शन इस सोच को बदल सकता है? और क्या यह दुविधा इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि जुरेल टीम के रिज़र्व विकेटकीपर भी हैं?

सामान्य हालात में यह चयन थोड़ा जटिल होता, लेकिन अभी मामला सामान्य नहीं है। जुरेल की मौजूदा फ़ॉर्म किसी संयोग का नतीजा नहीं, बल्कि वही स्तर है जिसकी उम्मीद उनसे जूनियर क्रिकेट के दिनों से की जाती रही है।

खेल को गहराई से समझने वाले हमेशा मानते रहे हैं कि जुरेल में ऐसी क्षमता है जिसे जल्द से जल्द आगे लाना चाहिए। राजस्थान रॉयल्स ने भी उन पर भरोसा दिखाया, जबकि उनके पास पहले से संजू सैमसन और जोस बटलर जैसे दो स्थापित विकेटकीपर-बल्लेबाज़ मौजूद थे।

भारत ए के लिए चुने जाने के समय जुरेल ने सिर्फ 12 फ़र्स्ट-क्लास मैच खेले थे और एक शतक लगाया था। कुछ ही समय बाद वे भारत की टेस्ट टीम में जगह बना चुके थे। पहले दो मैचों में रिज़र्व रहे, लेकिन फिर उन्हें डेब्यू का मौक़ा मिला जब भारत ने केएस भरत को बाहर किया, जो पांच साल से स्क्वॉड के आसपास थे। हर मौके पर टीम प्रबंधन ने उन पर विश्वास जताया और जुरेल ने हर बार उस भरोसे को सही साबित किया। अब अगर उन्हें पंत के साथ एक विशेषज्ञ बल्लेबाज़ के रूप में टेस्ट टीम में चुना जाता है, तो यह भरोसे की एक और कड़ी होगी, कोई कठिन फ़ैसला नहीं।

Dhruv JurelIndiaSouth AfricaSouth Africa tour of India