क्या बदलाव के दौर में भारतीय टेस्ट टीम से उम्मीदें बदलने की ज़रूरत है?
यह हर टीम के लिए एक स्वाभाविक दौर है, लेकिन कई खिलाड़ियों को मिली चोटों से भारत के लिए यह कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है

वेस्टइंडीज़ के टेस्ट दौरे पर उतरने वाले भारतीय तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण के पास कुल 86 टेस्ट विकेट का अनुभव है, जिसमें नेतृत्वकर्ता मोहम्मद सिराज के पास सबसे अधिक 52 टेस्ट विकेट हैं। इससे पहले जब भारत बिना किसी 100 विकेट लेने वाले तेज़ गेंदबाज़ के बिना उतरा था तो वह समय 2013-14 में घर में वेस्टइंडीज़ के ही ख़िलाफ़ था, जहां तेज़ गेंदबाज़ी उतनी मायने नहीं रखती थी।
इन परिस्थितियों में एक श्रृंखला के लिए, जहां आपको कम से कम तीन तेज़ गेंदबाज़ों की आवश्यकता है, मोहम्मद शमी को आराम दिया गया है। भारत इशांत शर्मा से आगे निकल चुका है। हम नहीं जानते कि जसप्रीत बुमराह कब वापसी करेंगे और कितने धारदार होंगे। उमेश यादव चोटिल हैं या बाहर किए गए हैं, लेकिन वह भी 35 के हो गए हैं।
यह सबकुछ तुरंत नहीं हुआ है लेकिन यही वह समय है जब पता चलता है कि भारतीय टेस्ट टीम बदलाव के दौर से गुज़र रही है। टीम के पास अच्छे स्पिनर हैं जो सालों से बल्ले से भी योगदान देते आए हैं। जो बात वास्तव में इस टीम को अन्य भारतीय टीमों से अलग करती थी, वह थी किसी भी समय कम से कम तीन फ़िट, अनुभवी और तेज़ गति वाले तेज़ गेंदबाज़ों की अभूतपूर्व उपलब्धता।
2020-21 में ऑस्ट्रेलिया में भारत की अविश्वसनीय, अजीब श्रृंखला जीत ने भारतीय प्रशंसक, मीडिया और यहां तक कि बोर्ड को चौका दिया था। शायद इसीलिए विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल में भारत की हार को लापरवाही से एक आपदा या पराजय कहा गया था।
भारत टेस्ट इतिहास में एकमात्र ऐसी टीम के ख़िलाफ़ थी जिसके चार गेंदबाज़ 200 या अधिक विकेट लेने वाले थे, एक ऐसी टीम जो आगामी ऐशेज़ सीरीज़ के कारण उनमें से किसी एक को आसानी से आराम दे सकती थी। परिस्थितियां तेज़ गेंदबाज़ी के इतनी मुफ़ीद थीं कि भारत ने आर अश्विन को नहीं खिलाया।
हो सकता है कि भारत के पास दिखाने के लिए कोई ख़िताब न हो, लेकिन उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में पिछले दशक से अपना दबदबा बनाए रखा है, जहां अधिकांश अंतरराष्ट्रीय टीमें समान रूप से पेशेवर हैं। वे घर में 10 सालों में केवल तीन टेस्ट हारे, ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो टेस्ट सीरीज़ जीते, इंग्लैंड में ड्रॉ खेली और साउथ अफ़्रीका में जीत के क़रीब पहुंचे। 2020-21 में ऑस्ट्रेलिया दौरे से शुरू हुई लगातार चोटग्रस्त खिलाड़ियों के सिलसिले के बाद भी भारत ने लगातार दो डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल में जगह बनाई।
हालांकि, अब उम्मीदों से छेड़छाड़ की ज़रूरत है। 2011 में विश्व कप जीत के उत्साह और क्रिकेट राजनीति और अर्थव्यवस्था में बीसीसीआई के साहसिक दावे के बीच यह लगभग भुला दिया गया था कि 2011 में भारत के पास कितना कमज़ोर तेज़ आक्रमण था, जिसके कारण इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में लगातार आठ टेस्ट में हार हुई। यदि बहुत बड़े उलटफेर नहीं होते, तो हमें बदलाव के वर्तमान के दौर में इस टीम से कम से कम कुछ हद तक गिरावट के लिए तैयार रहना चाहिए।
और वनडे विश्व कप में क्वालिफ़ाई करने से चूकने के बावजूद वेस्टइंडीज़ को घर में हल्के में नहीं लेना होगा। उन्होंने घर में इंग्लैंड को हराया है, श्रीलंका और पाकिस्तान से ड्रॉ खेला लेकिन भारत और साउथ अफ़्रीका से हारे हैं।
2019 में भारत से हार के बाद वेस्टइंडीज़ का तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण बेहतर होता गया है। केमार रोच वेस्टइंडीज़ के शीर्ष पांच गेंदबाज़ों में से एक हैं, शैनन गेब्रिएल शीर्ष 10 की ओर बढ़ रहे हैं, जेसन होल्डर के पास 30 के नीचे का औसत है और अल्ज़ारी जोसेफ़ अपन चरम फ़ॉर्म की ओर बढ़ रहे हैं।
हालांकि ऐतिहासिक रूप से रोसेउ और पोर्ट ऑफ़ स्पेन को तेज़ गेंदबाज़ी के मददगार नहीं माना जाता है, लेकिन तब भी अगर वेस्टइंडीज़ ऐसे विकेट बनाता है, जहां पर भारतीय स्पिनरों को कोई मदद नहीं मिले, तो इससे चौकना नहीं चाहिए कि भारतीय टीम की सीरीज़ में परेशानी बढ़ सकती है।
भारत के लिए गेंदबाज़ी में ही बदलाव का दौर नहीं है, बल्कि भारतीय टीम के नेतृत्व का भविष्य भी इस पर जाएगा कि भारत का विश्व कप कैसा जाता है, जिसका मतलब है कि कप्तान और कोच भी अभी लंबे समय तक के लिए स्थिर नहीं हैं।
चयनकर्ता अभी तक निरंतरता की ओर जाते रहें हैं लेकिन अब उन्होंने बदलाव करने शुरू कर दिए हैं। वे दो या तीन बल्लेबाज़ों को एक ही समय पर नहीं खिलाना चाहते। यही वजह है कि यशस्वी जायसवाल चेतेश्वर पुजारा की जगह नंबर तीन पर उतरने को तैयार हैं। विराट कोहली, रोहित शर्मा और अजिंक्य रहाणे बहुत हद तक अपने करियर के अंत की कगार पर हैं।
यह सभी टीमों के लिए एक स्वाभाविक चक्र है, सिवाय इसके कि अप्रत्याशित रूप से बड़ी संख्या में चोटों ने इसे भारत के लिए और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है। अभी चोटें और उम्र गेंदबाज़ी आक्रमण के आड़े हैं, बल्लेबाज़ों और कप्तानों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, मैच बदल देने वाला विकेटकीपर कार दुर्घटना के कारण बाहर है।
अभी परिस्थतियां उससे अधिक अलग नहीं हैं जब भारत 2011 में वेस्टइंडीज़ के दौरे पर गया था। उन्होंने तब ज़हीर ख़ान को आराम दिया था और इससे उनका आक्रमण कम अनुभवी हो गया। जो बदलाव हुए उसमें या तो गति की कमी थी या फ़िटनेस की कमी थी। भारत को आक्रमण को तैयार करने में चार साल लग गए जब उन्हें बुमराह जैसे अभूतपूर्व गेंदबाज़ मिले जो किसी भी परिस्थति में कारगर थे।
इस साल के अंत में दो और महत्वपूर्ण दौरे हैं और इस पर ही भारत के डब्ल्यूटी फ़ाइनल में पहुंचने का दारोमदार होगा। भारत ने लगातार तीसरी बार ऐसा कर गुज़रा, तो शायद उन्होंने इस चक्र के अंत में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर दिया होगा।
सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में असिस्टेंट एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।
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