कभी मिताली राज को आउट करने का सपना देखने वाली तितास साधु अब भारतीय तेज़ गेंदबाज़ी की कमान संभालने को तैयार
इससे पहले इस 18-वर्षीय खिलाड़ी ने भारत के लिए अंडर-19 विश्व कप जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी
Titas Sadhu: Didn't expect India call-up so early
The young seamer talks about choosing cricket over swimming, learnings from the WPL, her father's role, and moreफ़र्ज़ करिए आप अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी शहर में, महिला क्रिकेट की सीनियर वनडे ट्रॉफ़ी खेल रहीं हैं। आप का मुक़ाबला अगली सुबह इस प्रतियोगिता की सबसे मज़बूत टीम के साथ होगा। ऐसे में अगर आप सपना देखतीं हैं, तो आपके मन में क्या ख़्याल चल सकते हैं?
एशियाई खेलों में भारतीय टीम की सदस्य, 18-वर्षीय तितास साधु के साथ राजकोट में कुछ ऐसा ही हुआ था, जहां उन्होंने भारतीय क्रिकेट की एक दिग्गज खिलाड़ी के साथ भिड़ंत का सपना देखा। तितास कहतीं हैं, "हम राजकोट में (सीनियर महिला) एकदिवसीय ट्रॉफ़ी खेल रहे थे और सेम़ीफ़ाइनल में हम (बंगाल) रेलवे से भिड़ने वाले थे। मैच के एक दिन पहले मैंने (नींद में) सपना देखा कि मैंने मिताली राज को एक इनस्विंग गेंद पर आउट कर दिया है और उस सपने से मैं इतनी ख़ुश हो गई कि मेरी नींद टूट गई।"
झूलन गोस्वामी के संन्यास लेने के बाद से भारतीय महिला टीम की तेज़ गेंदबाज़ी में एक कसक सी नज़र आ रही है। रेणुका सिंह ज़रूर अच्छी गेंदाबज़ी कर रही हैं लेकिन उनका जोड़ीदार नहीं मिल पा रहा है। फ़्रैंचाइज़ क्रिकेट की तरफ़ तेज़ी से अग्रसित हो रही महिला क्रिकेट में अब पहले की अपेक्षा कहीं ज़्यादा प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। परिणामस्वरूप तेज़ गेंदबाज़ों की भूमिका और उनकी मांग भी बढ़ने लगी है।
ऐसे में तितास ने इस जनवरी महिला क्रिकेट के पहले अंडर-19 विश्व कप में भारत की ख़िताबी जीत में अपने प्रदर्शन के चलते प्रभावित किया था। फ़ाइनल में उन्होंने इंग्लैंड जैसी मज़बूत टीम को भी अपनी नई गेंद की गेंदबाज़ी से घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। एशियाई खेलों पर अपने चयन को लेकर तितास कहतीं हैं, "भारत के लिए खेलना हमेशा मेरा सपना था, हालांकि मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मुझे इतनी जल्दी मौका मिलेगा और यह आश्चर्यजनक था।"
रुमी दी (रुमेली धर) एक ऐसी खिलाड़ी हैं जिनका मेरे क्रिकेट पर बहुत प्रभाव पड़ा । मैंने उनके कप्तानी के नीचे बंगाल के लिए अपने पहले दो सत्र खेले । मैं उनके जुनून से प्रेरित हूं जो अभी भी इतने साल क्रिकेट खेलने के बावजूद भी है । इसके अलावा उनका कभी हार न मानने वाला रवैया मुझे पसंद है । उनके साथ खेलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि अगर मुझे खेलना है तो बस उनकी तरह।तितास साधु
झूलन की ही तरह तितास भी बंगाल से हैं। राज्य की राजधानी कोलकाता से कुछ दूर हुगली ज़िले में चूचूड़ा नामक क़स्बे में जन्मीं तितास बचपन में तैराक और धावक थीं। हालांकि पिता रणदीप एक क्रिकेट अकादमी चलाते थे और समय मिलने पर तितास भी वहां चली जातीं थीं। यहां वह स्कोरिंग करतीं, थोड़ी रनिंग कर लेती थीं और वहां आने वाले बच्चे के साथ समय बितातीं। क्रमशः उनके पिता, रुमेली धर और झूलन जैसे अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों ने उन्हें क्रिकेट के प्रति प्रोत्साहित किया। तितास इन दिनों को याद करतीं हुईं कहतीं हैं, "शुरू में मुझे क्रिकेट में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और क्रिकेट अकादमी भी जो मेरे पिता चलाते है, काफी देर से स्थापित की गई थी। तब मैं लगभग 12 साल की थी । शुरुआती दिनों में मैं नहीं खेला करती थी। मैं तब सिर्फ़ खेल देखने और ज़रूरत पड़ने पर अकादमी की टीम की मदद करती थी। धीरे-धीरे मैंने वहां प्रेक्टिस करना शुरू कर दिया क्योंकि मेरे सभी दोस्त भी वहीं थे। बाद में जब मैंने अच्छा प्रदर्शन करना शुरू किया तो मुझे खेल से प्यार होने लगा।"
साउथ अफ़्रीका में अंडर-19 विश्व कप के प्रदर्शन के बाद ज़ाहिर सी बात थी कि शुरुआती विमेंस प्रीमियर लीग (डब्ल्यूपीएल) में सबकी निगाहें तितास पर टिकी थीं। हालांकि ऑक्शन के दिन जब तितास से पहले आने वाली 40 से 60 क्रमांक के खिलाड़ियों को पिक नहीं किया गया, तो उन्होंने हौसले छोड़ दिए थे। वह नेट्स में बल्लेबाज़ी कर रहीं थीं, जब वहां मौजूद एक लड़का उनके पास आया और उन्हें बताया कि दिल्ली कैपिटल्स ने उन्हें चुना है।
तितास कहती हैं, "डब्ल्यूपीएल हमारे लिए एक नई बात थी। हमने इससे पहले कभी फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट नहीं खेला था। मुझे कोई मैच खेलने के लिए नहीं मिला और यह निराशाजनक था लेकिन मैंने बहुत सी चीजें सीखीं।
"मुझे लगता है कि अगर आप इस बात को स्वीकार कर लें कि हमेशा आपको टीम में खेलने का मौका नहीं मिलेगा, तो ये बात आपको आने वाले समय में एक बेहतर खिलाड़ी बनाती है। ऐसे वक्त में आप खुले दिमाग़ के साथ मैदान पर उतरते है और अपने खेल के बारे में अधिक जानने के लिए तैयार होते हैं। इसके अलावा, यह देखना रोचक था कि विभिन्न देशों के अलग-अलग खिलाड़ी कैसे खेल को खेलते हैं, रणनीति बनाते हैं और खेल और जीवन के प्रति एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं।"
तितास ख़ुद को एक ऑल-राउंडर मानतीं हैं और ऐसे में अपनी बल्लेबाज़ी पर काफ़ी मेहनत करतीं हैं। बंगाल के मौसम में किसी खिलाड़ी के लिए इन दो प्रतिभाओं को तराशने पर मेहनत करना शारीरिक तौर पर आसान नहीं है। लेकिन यहां पर रणदीप - जो ख़ुद को तितास के पिता, कोच, दोस्त और ट्रेनर बताते हैं - की भूमिका अहम है। तितास कहतीं हैं, "मुझे लगता है कि हर रिश्ता समय के साथ बदलता है। मेरे पिता मेरे सफ़र में 'पुश फ़ैक्टर' रहे हैं। उन्होंने मुझे हमेशा कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया । हालांकि उन्होंने हमेशा मुझे पर्याप्त शारीरिक प्रशिक्षण करने के लिए प्रोत्साहित किया है। वह मुझे सुबह पांच या छह बजे उठाते थे और एक लंबी दौड़ लगाने के लिए कहते थे। आख़िरकार जब आप प्रशिक्षण के कारण अपने खेल में बदलाव देखना शुरू करते हैं तो आप इसके महत्व को समझते हैं।"
इसके अलावा एशियाई खेलों में भारत की इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने एक और बड़े खिलाड़ी से मिली प्रेरणा को स्वीकारा। उन्होंने कहा, "रुमी दी (रुमेली धर) एक ऐसी खिलाड़ी हैं जिनका मेरे क्रिकेट पर बहुत प्रभाव पड़ा । मैंने उनके कप्तानी के नीचे बंगाल के लिए अपने पहले दो सत्र खेले । मैं उनके जुनून से प्रेरित हूं जो अभी भी इतने साल क्रिकेट खेलने के बावजूद भी है । इसके अलावा उनका कभी हार न मानने वाला रवैया मुझे पसंद है । उनके साथ खेलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि अगर मुझे खेलना है तो बस उनकी तरह।"
राजन राज Espncricinfo के सब एडिटर हैं और जुईली जुईली बल्लाल मुंबई की पूर्व क्रिकेटर हैं
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