श्रीलंका के ख़िलाफ़ मिली हार से भारत क्या सबक सीख सकता है
क्या यह हार भारत की दूरगामी लक्ष्य को हासिल करने के लिए क़ीमत चुकाने जैसा परिणाम है?

भारत और श्रीलंका के बीच हुई हालिया श्रृंखला में स्पिनर्स ने किसी भी तीन या इससे कम मैचों की द्विपक्षीय श्रृंखला में इतने विकेट नहीं चटकाए थे। 54 विकेटों में से 43 विकेट स्पिनर्स ने चटकाए जबकि शेष 11 विकेटों में तीन रन आउट भी शामिल थे। इसका मतलब है कि तेज़ गेंदबाज़ों ने सिर्फ़ आठ ही विकेट लिए थे।
श्रीलंका ने 1997 के बाद से भारत के ख़िलाफ़ कोई भी वनडे श्रृंखला नहीं जीती थी। हाल ही में उन्हें भारत के हाथों ही 0-3 से T20 श्रृंखला गंवानी पड़ी थी। चोट के चलते उनके कुठ प्रमुख तेज़ गेंदबाज़ उपलब्ध नहीं थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कुछ ऐसा किया, जिससे यह श्रृंखला रोचक बन गई। श्रीलंका ने जोखिम उठाया और उन्होंने ऐसी पिच तैयार की जो स्पिन को मदद पहुंचा सके। उन्हें भाग्य का भी साथ मिला और लगातार तीन टॉस जीतकर उन्होंने पहले बल्लेबाज़ी का फ़ैसला किया, जिससे उन्हें सबसे अनुकूल परिस्थिति में बल्लेबाज़ी का अवसर भी मिल गया।
किसी भी अन्य वेन्यू पर ओस को ध्यान में रखते हुए, डे नाइट मैच में दूसरी पारी में गेंदबाज़ी करना ख़तरे से खाली नहीं होता। हालांकि आर प्रेमदासा स्टेडियम का इतिहास भी कुछ और ही कहानी बयां करता है। ज़्यादा समय नहीं बीता है, जब इस वेन्यू पर ओस के पड़ने या ना पड़ने पर भी डे नाइट मैच में चेज़ करना लगभग असंभव सी बात हुआ करती थी। शाम के समय सतह पर नमी आ जाया करती थी, जिससे तेज़ गेंदबाज़ों को काफ़ी मदद मिलती थी।
2011 वर्ल्ड कप से एक दशक पहले तक इस वेन्यू पर खेले गए 45 डे नाइट मैचों में से 32 टॉस जीतने वाली टीम ने जीते थे। हालांकि वर्ल्ड कप से पहले वेन्यू के प्लेइंग सर्फ़ेस को साढ़े तीन फ़ीट ऊंचा किया गया था और नतीजतन श्रीलंका ने वर्ल्ड कप में अपना क्वार्टर फ़ाइनल और सेमीफ़ाइनल का मुक़ाबला चेज़ करते हुए जीता था। इतिहास की इस घटना का सबसे बड़ा सबक यही है कि आपको इस बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है कि अगर आप एक ड्राई पिच भी तैयार करते हैं तब भी शाम के समय ओस पड़ने पर बल्लेबाज़ी के लिए आसान हो जाएगी।
श्रीलंका ने अपनी रणनीति के अनुसार ही गेंदबाज़ी की और भारत को तीनों मैचों में तेज़ शुरुआत मिलने के बाद भी मेज़बान टीम उसे रोकने में सफल हो गई। हमारे पास इस तथ्य को स्थापित करने के लिए डेटा नहीं है लेकिन मैच के दौरान कॉमेंटेटर लगातार यह कह रहे थे कि खेल बढ़ने के साथ-साथ पिच से टर्न भी काफ़ी मिल रही थी। हालांकि स्पिन को खेलने के तरीक़े में भी दोनों टीमों के बीच बड़ा फ़र्क था। एक तरफ़ श्रीलंका के बल्लेबाज़ स्पिन के ख़िलाफ़ जहां धीरज के साथ खेल रहे थे तो वहीं भारतीय बल्लेबाज़ स्पिन के ख़िलाफ़ लगातार आक्रमण कर रहे थे। भारत के इस अप्रोच के चलते स्पिन के ख़िलाफ़ उनका स्कोरिंग रेट श्रीलंका के मुक़ाबले बेहतर तो था लेकिन इसकी क़ीमत मेहमान टीम को विकेट गंवाकर भी चुकानी पड़ी थी।
टीम के प्रदर्शन की समीक्षा करते समय रोहित शर्मा ने एक दिलचस्प तथ्य सामने रखा। उन्होंने कहा कि श्रीलंकाई बल्लेबाज़ों की तुलना में भारतीय बल्लेबाज़ों ने नियमित तौर पर स्वीप शॉट नहीं खेले। श्रीलंका ने ना सिर्फ़ नियमित तौर पर स्वीप शॉट खेले थे बल्कि इस खेलने के परिणाम भी उनके पक्ष में थे। जबकि भारत के परिपेक्ष्य में इस शॉट को खेलने के हर पांचवें प्रयास में भारतीय टीम का विकेट गिर रहा था।
स्वीप शॉट खेलने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इससे विपक्षी टीम का कप्तान मैदान के अधिक से अधिक हिस्सों को कवर करने पर मजबूर हो जाता है। अगर आप रिवर्स स्वीप बेहतर ढंग से खेलते हैं तो यह विपक्षी टीम के कप्तान को डीप प्वाइंट पर फ़ील्डर रखने पर मजबूर करता है और इससे उसे एक्स्ट्रा कवर का क्षेत्र खोलना पड़ता है। इसका असर स्पिनर की लेंथ पर भी पड़ता है।
भारत के पास अच्छा स्वीप शॉट खेलने वाले अधिक बल्लेबाज़ नहीं रहे हैं। भारत को इस श्रृंखला में सबसे ज़्यादा चीज़ जो परेशान करेगी वो है कोहली का दो बार फ़्रंटफ़ुट पर स्टंप्स के सामने धरा जाना, जब वह गेंद के पास तक नहीं पहुंच पाए।
हालांकि यह आंकड़े भारत को स्पिन के ख़िलाफ़ कमज़ोर टीम नहीं बना देते। 2019 के बाद से अब तक वनडे में भारत का स्पिन के ख़िलाफ़ औसत सबसे बेहतर है और सिर्फ़ इंग्लैंड और साउथ अफ़्रीका वो दो टीम हैं, जिन्होंने स्पिन के ख़िलाफ़ भारत से अधिक तेज़ी से रन बनाए हैं। हालांकि यह आंकड़े भारतीय टीम को स्पिन के ख़िलाफ़ सबसे बेहतर बल्लेबाज़ी इकाई भी नहीं बना देते। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि भारत विपक्षी गेंदबाज़ों पर अपने कम्फ़र्ट ज़ोन से निकल कर दबाव नहीं बना पाता। ख़ुद रोहित ने भी यही कहा है कि यह एक ऐसा पहलू है जिसमें भारतीय टीम सुधार करना जारी रखेगी।
भारत की श्रृंखला हार का बड़ा कारण यह भी रहा कि उसने अपने गेंदबाज़ों को सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया। संभवतः ऐसा इसलिए भी हुआ होगा क्योंकि वह हार्दिक पंड्या की अनुपस्थिति में शिवम दुबे के रूप में एक अन्य तेज़ गेंदबाज़ी ऑलराउंडर तैयार रखना चाहते रहे हों। इसीलिए उन्होंने श्रृंखला में रियान पराग के रूप में एक स्पिन गेंदबाज़ी ऑलराउंडर के बजाय दुबे को तरजीह देने का फ़ैसला किया होगा। श्रीलंका ने ना सिर्फ़ स्पिन गेंदबाज़ी में भारत से बेहतर किया बल्कि भारत द्वारा स्पिनर्स से करवाए गए 65.1 फ़ीसदी ओवरों की तुलना में श्रीलंका ने 81.1 फ़ीसदी ओवर स्पिनर्स से करवाए। हो सकता है कि ऐसा इसलिए हुआ हो क्योंकि दूसरी पारी में परिस्थितियां स्पिन के लिए अधिक अनुकूल थीं या फिर यह भी हो सकता है कि भारत ने दूरगामी सोच को पूरा करने के लिए छोटी क़ीमत चुकाने का फ़ैसला किया हो।
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