2017 फ़ाइनल की यादों को ध्वस्त करना चाहतीं हैं यास्तिका भाटिया
बड़ौदा की विकेटकीपर बल्लेबाज़ ने बताया कैसे किरण मोरे और पंड्या बंधुओं ने किया उनका मार्गदर्शन

पिछले वर्ष जून और जुलाई के महीनों में यास्तिका भाटिया ने शायद ही सोचा होगा कि उनकी दिनचर्या का एक भाग होगा हार्दिक पंड्या को अपने फ़ुल रनअप से गेंदबाज़ी करते हुए कवर की दिशा में ड्राइव करना। भारतीय महिला टीम उस वक़्त इंग्लैंड के दौरे पर थी और घर पर साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ मौक़ा ना पाते हुए भी यास्तिका को टीम से बाहर रखा गया था। फलस्वरूप वह बड़ौदा के रिलायंस अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम के नेट्स में पसीना बहा रहीं थीं।
पूर्व भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे की देखरेख में यास्तिका ने लगातार 45 दिन का अभ्यास किया। उनका कहना है, "मैं ज़रूर मायूस थी क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि मुझे एक मौक़ा मिलेगा ख़ुद को अच्छा खिलाड़ी साबित करने का।"
इन अभ्यास सत्रों में उन्हें बड़ौदा के पुरुष टीम के सीनियर खिलाड़ियों के सामने बल्लेबाज़ी और कीपिंग करने का अवसर मिला। उनमें पंड्या बंधू हार्दिक और क्रुणाल दोनों शामिल थे।
वह कहती हैं, "हार्दिक भैया को कवर ड्राइव करने से मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। मैं उनकी गेंद पर आउट भी होती थी लेकिन उनके ख़िलाफ़ अच्छे शॉट मारने पर मुझे आश्वासन मिलता था कि मैं अच्छी बल्लेबाज़ी करती हूं। क्रुणाल भैया ने भी आख़िरी ओवर में बल्लेबाज़ी करने के अच्छे तरीक़े समझाए।" साथ ही हार्दिक ने उन्हें इंग्लैंड दौरे पर ना चुने जाने के निराशा को भुलाने को कहा। उन्होंने यास्तिका को दिलासा दिया कि उनकी जैसी प्रतिभावान खिलाड़ी को वापसी करने में देर नहीं होगी।
उस बातचीत के लगभग आठ महीने बाद यास्तिका लंबे समय तक भारतीय बल्लेबाज़ी क्रम का हिस्सा बनने की राह पर चल पड़ीं हैं। सितंबर और अक्तूबर में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्होंने सभी प्रारूप खेलते हुए प्रभावित किया। उसके बाद महिला चैलेंजर ट्रॉफ़ी में वह इंडिया ए के लिए सर्वाधिक स्कोरर रहीं। नतीजतन उन्होंने न्यूज़ीलैंड दौरे और विश्व कप की टीम में अपना स्थान कई अनुभवी खिलाड़ियों को पछाड़ते हुए बना लिया।
वह कहती हैं, "इंग्लैंड ना जाना एक तरह से मेरे फ़ायदे में रहा क्योंकि मुझे किरण सर के साथ ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए तैयारी करने का अधिक समय मिला। उन 45 दिनों में उनके साथ लगभग 20 सेशन मिले जिन्होंने मेरे क्रिकेट के दृष्टिकोण को ही पूरी तरह बदल दिया। मैंने ज़्यादा विश्वासपूर्ण और सकारात्मक क्रिकेट सीखा और पावर हिटिंग में भी बेहतर हुई।"
भारत के सफल कीपर और पुरुष क्रिकेट के मुख्य चयनकर्ता रह चुके मोरे की मदद लेने का सुझाव पूर्व महिला टीम कोच डब्ल्यू वी रमन का था। यास्तिका की तरह मोरे भी बड़ौदा के निवासी हैं और कई सालों से इस युवा प्रतिभा के बारे में सुनते आए हैं। मोरे का कहना है, "मैंने उनके कुछ वीडियो देखे थे और मुझे पता था कि घरेलू क्रिकेट में वह अच्छा खेल रहीं थीं। जब उन्होंने मेरे साथ संपर्क किया और मेरे अकादमी आईं तो हमने खुले नेट्स में उनकी गेम के कुछ पहलुओं पर ध्यान दिया। जैसे तेज़ी से रन चुराना और नज़रिए को और आक्रामक बनाना।"
यास्तिका ने ऑस्ट्रेलिया में तीसरे वनडे में अपने पहली अंतर्राष्ट्रीय अर्धशतक के दौरान यथोचित आक्रमण और सुरक्षा के बीच संतुलन का प्रदर्शन किया। उन्होंने 69 गेंदों पर 64 बनाए और शेफ़ाली वर्मा के साथ शतकीय साझेदारी का हिस्सा रहीं। 20-वर्षीय यास्तिका भारत के लिए अपना तीसरा मैच खेल रहीं थीं और उन्होंने बल्लेबाज़ी क्रम में तीसरे नंबर पर कप्तान मिताली राज की जगह ली थीं। इसी मैच में ऑस्ट्रेलिया के लगातार 26 वनडे जीत का विश्व रिकॉर्ड भी टूटा।
मोरे का कहना है, "वह एक बढ़िया क्रिकेटर हैं और साथ ही मानसिक और शारीरिक तौर पर बहुत मज़बूत हैं। उनमें सीखने की क्षमता है और वह बहुत सवाल भी पूछतीं हैं। जब वह अभ्यास करती हैं तो उन्हें आराम करने को कहना पड़ता है।"
यास्तिका मानती हैं कि ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले बेंगलुरु में हुए कैंप में मुख्य कोच रमेश पवार और बल्लेबाज़ी कोच शिव सुंदर दास ने उन्हें ऐसे तैयार किया था कि विश्व स्तरीय विपक्ष के ख़िलाफ़ भी वह निडर होकर मैदान पर उतरीं। दरअसल बेंगलुरु में ही एक 50-ओवर के डे-नाइट अभ्यास मैच में उन्होंने अपनी पारी के दौरान पांच छक्के लगाए। वहां मौजूद सपोर्ट स्टाफ़ और चयनकर्ता देखते ही रह गए। ऑस्ट्रेलिया जाते हुए यास्तिका इस पारी को याद करतीं रहीं। वैसे आत्मविश्वास की कमी यास्तिका में वैसे भी नहीं है।
बचपन से उनमें कई खेलों में रुचि और महारत हासिल है। वह कराटे में ब्लैक बेल्ट हैं और साथ ही ज़िला स्तर पर बैडमिंटन खेल चुकी हैं और तैराक भी हैं। वह कहती हैं, "मैं जब क्रिकेट के मैदान पर उतरती हूं तो मुझे लगता है मैं कुछ भी कर सकती हूं। मुझे चुनौती का माहौल पसंद है।"
यास्तिका के लिए क्रिकेट से लगाव भी तब बढ़ा जब उनके बैडमिंटन कोच बड़ौदा में उनके घर के पास से दूर कहीं जा कर रहने लगे। तब यास्तिका के पिता हरीश उन्हें किसी और खेल में डालना चाहते थे। संयोग से उनके पड़ोसी थे बड़ौदा के रणजी खिलाड़ी पीनल शाह, जिनके सुझाव पर हरीश ने यास्तिका और उनकी बड़ी बहन जोसिता ने यूथ सर्विस सेंटर (वाई एस सी) क्लब को ज्वाइन किया। वाई एस सी के राजू परब यास्तिका के पहले कोच बने। यास्तिका तब दाएं हाथ की खिलाड़ी थीं लेकिन उन्हें बाएं हाथ की बल्लेबाज़ बनने को कहा गया।
ऑलराउंडर बनने के इरादे से उन्होंने मध्यम तेज़ गति की गेंदबाज़ी भी आज़माया। लेकिन जब बड़ौदा के चयनकर्ता उनकी क्लब में विकेटकीपर ढूंढने आए तो उन्हें कीपिंग करने को कहा गया। अगले दिन उनके पिता ने उन्हें कीपिंग के ग्लव और पैड ख़रीद दिए। बड़ी बहन सीमर ही रहीं क्योंकि सबको लगा यह परिवर्तन छोटी बहन के लिए आसान होगा।
यास्तिका 11 साल की उम्र में बड़ौदा अंडर-19 के लिए बतौर बल्लेबाज़ पहली बार खेलीं। उस समय उनके कोच संतोष चौगुले ने उनके बुनियादी खेल को और मज़बूत बनाया। 2013 में पूर्व भारतीय कप्तान पूर्णिमा राउ बड़ौदा की महिला कोच बनीं और उन्होंने पहली बार यास्तिका को एहसास दिलाया कि वह एक दिन भारत के लिए खेल सकती हैं।
उसी साल उन्होंने बड़ौदा के सीनियर टी20 साइड में प्रवेश किया। अगले तीन सीज़न तक उन्होंने सीनियर वनडे टीम, अंडर-23 टीम और ज़ोनल सीनियर टीम में भी जगह बना ली। इंटर-ज़ोनल तीन-दिवसीय टूर्नामेंट में खेलते हुए 2017 में उन्होंने दो पचासे भी ठोके। उसी साल के बारे में वह कहती हैं, "मैंने 12वीं के बोर्ड परीक्षाओं में विज्ञान में अच्छा किया और 89% स्कोर किया। लेकिन मेरा मन क्रिकेट पर ही था और मैंने घर में यही कहा कि मैं डॉक्टर नहीं क्रिकेटर ही बनूंगी।"
वैसे खेल भाटिया परिवार का अभिन्न हिस्सा है। यास्तिका की तरह उनके पिता और बड़ी बहन, जो ख़ुद बड़ौदा अंडर-19 टीम में चुनी गई थी, दोनों कराटे में ब्लैक बेल्ट हैं। माता गरिमा एक वरिष्ठ बैंक प्रबंधक रह चुकीं हैं।
क्रिकेट के लिए यास्तिका ने विज्ञान त्याग दिया और बी ए जनरल में भर्ती हो गईं जिससे उन्हें क्रिकेट के लिए ज़्यादा समय मिलता गया। दिन में दो बार अभ्यास के अलावा वह सुबह का समय दौड़ने और जिम जाने में भी लगा देतीं थीं। ऐसे में उन्हें रिश्तेदारों के कटाक्ष भी याद हैं, "वह कहते थे कि यह क्या कर रहीं हूं मैं? मैं पढ़ाई में भी अच्छी थी और उनका कहना था कि महिला क्रिकेट में भविष्य भी नहीं है।"
"ऐसे में 2017 में महिला विश्व कप हुआ और भारत ने अच्छा खेल दिखाया। लोग भारत में महिला क्रिकेट को अलग तरह से देखने लगे।"
उस फ़ाइनल में भारत की हार अब भी चुबती है। यास्तिका कहती हैं, "दिल भारी हो गया था। भारत विश्व कप जीत गया होता तो काफ़ी कुछ बेहतर होता। शायद महिला आईपीएल की शुरुआत हो चुकी होती, शायद घरेलू क्रिकेट में आमदनी बेहतर रहती।"
"उस हार के बाद मैं काफ़ी भावुक हुई। मुझे लगा अगली बार ऐसा हो तो मैं ज़रूर मैदान पर रहूं और भारत को विश्व कप जिता सकूं। और आज यह सब एक सपने जैसा लगता है। एक साल में कितना कुछ बदल गया है।"
मोरे के अनुसार यास्तिका अपने कर्मठता के चलते 10-12 साल और खेल सकती हैं। उनका कहना है, "वह बल्लेबाज़ी और कीपिंग दोनों में अच्छा करेंगी। हार्दिक और क्रुणाल के ख़िलाफ़ उनकी कीपिंग काफ़ी सटीक थी। साथ ही तेज़ गेंदबाज़ी के विरुद्ध उन्हें शरीर पर भी काफ़ी गेंदें लगी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।"
यास्तिका को यक़ीन है पिछले एक साल के उतार-चढ़ाव के चलते दबाव में वह निखर आएंगी। उन्होंने कहा, "विश्व कप सबसे बड़ा मंच है। जब मैं अपने यात्रा को याद करती हूं तो मुझे लगता है मैंने काफ़ी मेहनत की है। जब निराशा हाथ लगी है तब मैंने और ज़्यादा पसीना बहाया है। और यह तो बस शुरुआत है। आगे बहुत कुछ है करने के लिए।"
ऑन्नेशा घोष ESPNcricinfo में सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo स्थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है।
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