यशस्वी जायसवाल: मेरी पीठ में बहुत तकलीफ़ थी लेकिन मैं रिटायर नहीं होना चाहता था
"मैं जानता हूं कि हर पारी मेरे और मेरी टीम के लिए कितनी महत्वपूर्ण है और इसीलिए मैं अभ्यास में कड़ी मेहनत करता हूं।"
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राजकोट टेस्ट में भारत की जीत से जुड़े अहम सवालों पर संजय मांजरेकर का फ़ैसलायशस्वी जयसवाल ने अब तक सात टेस्ट मैचों में तीन शतक लगाए हैं। हालांकि इससे भी बड़ी बात यह है कि जैसे ही वह अपने शतक बनाते हैं तो उनके बल्ले की भूख और ज़्यादा बढ़ जाती है। जायसवाल पहले ऐसे भारतीय बल्लेबाज़ हैं, जिन्होंने अपने पहले तीन शतक को 150 या उससे ज़्यादा के स्कोर में तब्दील किया है।
जायसवाल का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट तक पहुंचने में उन्हें जिस तरह के संघर्षों होकर से गुज़रना पड़ा है, उसी के कारण उनमें रनों की इतनी भूख है।
जायसवाल 13 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश में अपने गृह नगर से मुंबई चले गए थे। उस दौरान उन्हें जिस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, वह काफ़ी मुश्किल थीं। शायद इन्हीं संघर्षों ने जायसवाल के इरादों को मज़बूती प्रदान करने का काम किया है, जिसके कारण वह हर मौक़े का फ़ायदा उठाने का प्रयास करते हैं।
भारत को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ में 2-1 की बढ़त दिलाने में मदद करने के बाद, उन्होंने मेज़बान प्रसारक से कहा, "भारत में जब आप बड़े होते हैं, तो आप हर चीज़ के लिए वास्तव में कड़ी मेहनत करते हैं। आपको ट्रेन, ऑटो या बस पकड़ने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। मैंने बचपन से ऐसा किया है और मैं जानता हूं कि हर पारी कितनी महत्वपूर्ण है और यही कारण है कि मैं वास्तव में अपने [अभ्यास] सत्रों में कड़ी मेहनत करता हूं। मेरे और मेरी टीम के लिए हर एक पारी मायने रखती है। जब मैं अपने देश के लिए खेल रहा होता हूं तो मुझे यही चीज़ सबसे ज़्यादा प्रेरित करती है। मैं बस यह सुनिश्चित करता हूं कि जब भी मैं पिच पर रहूं तो मुझे अपना 100% देना होगा और खेल का आनंद लेना होगा।"
जायसवाल पहली पारी में किसी भी तरह का प्रभाव छोड़ने में नाक़ाम रहे थे। हालांकि अपनी दूसरी पारी में उन्होंने मैच का रुख़ पूरी तरह से भारत की तरफ़ मोड़ दिया।
"जिस तरह से रोहित भाई और जड्डू भाई ने पहली पारी में खेला, उसने मुझे बहुत प्रेरित किया। वे वास्तव में सत्र दर सत्र खेलने प्रयास कर रहे थे। वह जिस तरीक़े से पिच पर बात कर रहे थे और अपने खेल को आगे बढ़ा रहे थे, उससे मैं काफ़ी प्रभावित हुआ। इस दौरान जब मैं ड्रेसिंग रूम में था तो सोच रहा था कि मैं जब पिच पर जाऊंगा तो मुझे अच्छा प्रदर्शन करना होगा।"
एक क्रिकेटर के तौर पर मैं हमेशा भावनाओं के साथ चलता हूं। कभी-कभी मैं अच्छा प्रदर्शन करता हूं और कभी-कभी अच्छा प्रदर्शन नहीं करता। जिस तरह से वे (राहुल द्रविड़ और विक्रम राठौर) क्रिकेट और अन्य सभी चीज़ों के बारे में बात करते हैं, मुझे लगता है कि यह बहुत अद्भुत है और मैं वास्तव में इसका आनंद ले रहा हूं।यशस्वी जायसवाल
जेम्स एंडरसन के नेतृत्व में नई गेंद के आक्रमण के दबाव को झेलते हुए, जायसवाल ने पहली पारी में आउट होने के बाद जो सीख ली, उसका उन्होंने पूरा उपयोग किया। हालांकि चौथी पारी में रोहित जल्दी आउट हो गए थे। इसके बाद यशस्वी ने एक अहम भूमिका निभाते हुए, इंग्लैंड को दबाव नहीं बनाने दिया।
एक समय पर वह 73 गेंदों में 35 रन बना कर खेल रहे थे। इसके बारे में उन्होंने कहा, " उस समय मुझे लग रहा था कि विकेट में गेंदबाज़ों के लिए मदद है। मुझे लग रहा था कि टीम को अच्छी शुरुआत देना मेरे लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जैसा कि आपने पिछले तीन मैचों के दूसरी पारी में देखा है [हैदराबाद में ओली पोप के 196 रन , विशाखापत्तनम में शुभमन गिल की 104 रन की पारी] कि यह मैच पर बहुत बड़ा प्रभाव डालती है। मैं यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा था कि मैं जितनी संभव हो उतनी गेंदें खेल सकूं।"
जायसवाल को परिस्थितियों और गेंदबाज़ी का आदी होने में अधिक समय नहीं लगा। उसके अगली 49 गेंदों में 65 रन बने और यशस्वी शतक के नज़दीक पहुंच गए। हालांकि उस समय भी उन्हें अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।
जायसवाल ने कहा, "अचानक मैं सेट हो गया और मुझे लगा कि मैं रन बना सकता हूं। मेरे पास उसके लिए अपनी योजनाएं थीं। मैंने अपने शॉट्स खेले और रन बनाने का प्रयास किया, हालांकि कुछ देर के बाद ही मेरी पीठ में काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी।। मैं रिटायर नहीं होना चाहता था लेकिन यह काफ़ी बढ़ चुका था। अगले दिन मुझे नहीं पता था कि मैं क्या करूंगा, मेरे मन में बहुत सारे विचार थे। लेकिन फिर जब मैं पिच पर आया, तो मैंने खु़द को समय देने की कोशिश की और उसके बाद मुझे वास्तव में बहुत अच्छा महसूस हुआ।"
जायसवाल ने यह भी बताया कि एक युवा खिलाड़ी के लिए संतुलित रहना काफ़ी कठिन होता है। ख़ास कर के तब, जब सफलता आपको एक नई उड़ान देती है और विफलता आपको काफ़ी नीचे धकेल देती है। उन्होंने उन चीजों से निपटने में मदद करने के लिए भारत के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ और उनके बल्लेबाज़ी कोच विक्रम राठौड़ की काफ़ी तारीफ़ की।
उन्होंने कहा, "एक क्रिकेटर के तौर पर मैं हमेशा भावनाओं के साथ चलता हूं। कभी-कभी मैं अच्छा प्रदर्शन करता हूं और कभी-कभी अच्छा प्रदर्शन नहीं करता। जिस तरह से वे (राहुल द्रविड़ और विक्रम राठौर) क्रिकेट और अन्य सभी चीज़ों के बारे में बात करते हैं, मुझे लगता है कि यह बहुत अदभुत है और मैं वास्तव में इसका आनंद ले रहा हूं।"
"उन्होंने मुझे बताया है कि मैं खेल को लेकर किस तरह की सोच रखूं, मैं विकेट को कैसे अच्छी तरह से पढ़ सकता हूं, मैं अपने खेल को जितना हो सके, उतनी गहराई तक कैसे ले जा सकता हूं और इसके साथ ही वे मुझे पूरी आजादी भी देते हैं। उनका कहना है कि 'अगर आपको लगता है कि आप किसी एक शॉट को अच्छी तरह से खेल सकते हैं तो यह सुनिश्चित करें कि आप इसके लिए प्रतिबद्ध हैं और आप इसे पूरे मन के साथ खेल रहे हैं।' वे जानते हैं कि मैं स्वीप और रिवर्स स्वीप खेलता हूं और वे कहते हैं कि आप ऐसे शॉट खेलें, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आप उचित गेंदों पर इस तरह के शॉट खेल रहे हैं।"
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