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सिर्फ़ विदेश ही नहीं घर में भी छा रहे हैं भारत के तेज़ गेंदबाज़

अश्विन और जाडेजा के प्रभुत्व के बीच 2016 से भारत के तेज़ गेंदबाज़ भी भारत में प्रभावी रहे हैं

भारत के स्पिनर हमेशा से घर में बेहतरीन साबित होते हैं। लेकिन पिछले पांच-छह सालों में एक चीज़ ज़रूर बदला है। स्पिनरों के प्रभुत्व के बीच भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों ने इस दौरान अपनी सफलता की राह बनाई है। पहले उनका काम गेंद को पुराना करने पर होता था ताकि फिर स्पिनर आए और पुराने गेंद से कमाल करें। हालांकि बीच-बीच में कपिल देव, जवागल श्रीनाथ और ज़हीर ख़ान जैसे तेज़ गेंदबाज़ भी निकले, जो फ़्लैंट भारतीय पिचों पर पुरानी गेंद से रिवर्स स्विंग हासिल करने की भी क्षमता रखते थे।
लेकिन अब भारतीय तेज़ गेंदबाज़ मैच में अंतर पैदा कर रहे हैं। वे ना सिर्फ़ रिवर्स स्विंग करा रहे हैं, बल्कि नए गेंद से तेज़ गेंद फेंककर, स्टंप को निशाना बनाकर और दोनों तरफ़ परंपरागत स्विंग हासिल कर महत्वपूर्ण विकेट चटका रहे हैं। अश्विन और जाडेजा के कमाल के बीच यह भारतीय क्रिकेट के लिए एक महत्वपूर्ण दृश्य है।
यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब तेज़ गेंदबाज़ों को पता होता है कि उनके पास अधिक समय नहीं है और पहले ही घंटे में गेंद स्पिनर को दिया जा सकता है। यह चीज़ उन्हें और आक्रामक बनाती है और ज़ल्दी-ज़ल्दी विकेट लेने के लिए प्रेरित करती है।
2016 के बाद से भारत के तेज़ गेंदबाज़ों का घर में औसत 24.35 का रहा है, वहीं कोई भी विपक्षी टीम 30 के आस-पास भी नहीं पहुंची है। यब बहुत बड़ा अंतर है और भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों की इस उपलब्धि पर शायद ही अभी तक किसी का ध्यान गया है।
इसलिए हम देखते हैं कि जहां एक तरफ़ विपक्षी टीम का स्पिनर अकेले 10 विकेट चटका लेता है, भारतीय टीम के तेज़ गेंदबाज़ उसी पिच पर प्रभावित करते हैं और शुरुआती विकेट चटकाते हैं।
शनिवार को मोहम्मद सिराज ने यही किया। उनका एक्शन, उनका गेंदबाज़ी एंगल सब देखकर लगता है कि वह इनस्विंग गेंदबाज़ हैं, लेकिन वह प्रमुखतया एक आउटस्विंग गेंदबाज़ हैं। हालांकि उनकी सबसे अच्छी बात यह है कि उनकी गेंदें अधिकतर स्टंप पर ही ख़त्म होती हैं, जिसके कारण आपको इसे खेलना ही पड़ता है, आप उसे छोड़ नहीं सकते।
सलामी बल्लेबाज़ विल यंग उनका पहला शिकार हुए। वह गेंद को खेलने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन गेंद बल्ले का बाहरी किनारा लेते हुए सेकेंड स्लिप के पास गई। यह गेंद इतना अंदर थी कि अगर यंग उसे छोड़ते तो पगबाधा भी हो सकते थे।
सिराज ने दिन के खेल के बाद कहा, "जिस तरह से स्पिनर मैच में अपना प्रभुत्व बनाए रखे थे, हमें पता था कि हमें बस तीन या चार ओवर ही मिलने वाला है। इसलिए हम उन सीमित मौक़ों में ही अंतर पैदा कर एक या दो विकेट निकालना चाहते थे। मैं अपनी गेंदें स्टंप पर ख़त्म करना चाहता था। अगर आप इस लाइन पर स्विंग हासिल करते हैं तो यह बल्लेबाज़ों के लिए और मुश्किल हो जाता है। अगर आप इसे छोड़ेगे तो एलबीडब्ल्यू होंगे और अगर खेलने जाएंगे तो स्विंग के कारण बाहरी किनारा लगने का ख़तरा होगा। न्यूज़ीलैंड के गेंदबाज़ लगातार ऑफ़ स्टंप के बाहर गेंदबाज़ी कर रहे थे, इसलिए मैंने स्टंप में गेंदबाज़ी करने का फ़ैसला किया। जब मुझे स्विंग मिलने लगा तो यह और ख़तरनाक हो गया।"
यहां पर सिराज को एक लाभ भी प्राप्त था। अगर वह कुछ रन भी दे देते, तो उन्हें पता था कि स्पिनर आएंगे और रनों पर लगाम लगा देंगे। इसलिए उन्होंने उन्मुक्त ढंग से आक्रामक गेंदबाज़ी की। न्यूज़ीलैंड के तेंज़ गेंदबाज़ों को यह लाभ प्राप्त नहीं है।
हालांकि भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों के साथ यह नुक़सान भी है कि उन्हें बल्लेबाज़ों को सेट-अप करने का अधिक समय नहीं मिलता क्योंकि थोड़े समय बाद ही स्पिनर आ जाते हैं। इसलिए उन्हें जो करना होता है, तुरंत ही करना होता है। रॉस टेलर के साथ ऐसा ही हुआ। सिराज ने उन्हें बिना सेट-अप किए ही स्टंप की लाइन में आउटस्विंग गेंद फेंक कर आउट किया।
इस विकेट के बारे में बात करते हुए सिराज कहते हैं, "हमने इनस्विंग गेंदबाज़ी के लिए फ़ील्ड सजायी थी और मैं स्टंप पर गेंदबाज़ी कर एलबीडब्ल्यू के लिए देख रहा था। लेकिन मैंने एक गेंद आउटस्विंग डालने की सोची। चूंकि मुझे शुरुआती विकेट मिल चुका था, तो मुझमें आत्मविश्वास भी था। हां, लेकिन मुझे इसे स्टंप की लाइन में ही करना था। यह किसी भी तेज़ गेंदबाज़ के लिए एक ड्रीम गेंद होती है।"
थोड़ी देर बाद ही टेलर का ऑफ़ स्टंप उखड़ चुका था। सिराज के खाते में अब 13 गेंदों में तीन विकेट थे। यही पिछले कुछ सालों में भारतीय पिचों पर भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों की सच्ची कहानी रही है।

सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में सहायक संपादक हैं, अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के दया सागर ने किया है