जलज सक्सेना: 'मेरे इमोशन, दिल और सबकुछ प्रथम श्रेणी क्रिकेट के साथ है'
38 की उम्र में भी रिकॉर्ड-ब्रेकिंग ऑलराउंडर लगातार खुशी और शांति हासिल कर रहा है

दिसंबर 2005 में जलज सक्सेना के रणजी ट्रॉफ़ी डेब्यू के बाद से इस टूर्नामेंट में उनसे अधिक विकेट किसी और ने नहीं लिए हैं। अपने करियर में लगभग दो दशक पूरे हो जाने के बाद भी वह लगातार खेल रहे हैं जबकि उनके साथ के कई खिलाड़ी रिटायर हो चुके हैं। इस सीज़न की शुरुआत में ही केरल के इस ऑलराउंडर ने रणजी ट्रॉफ़ी में 6000 रन और 400 विकेटों का डबल पूरा करने वाला पहला खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल किया था। अहमदाबाद में गुजरात के ख़िलाफ़ केरल सेमीफ़ाइनल मैच की तैयारी कर रही है और उससे पहले ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो ने सक्सेना के साथ खास बातचीत की है।
लगभग 7000 प्रथम श्रेणी रन, 478 विकेट, 34 फाइव विकेट हॉल। 38 की उम्र में आपको क्या प्रेरित करता है?
मैं इस खेल से प्यार करता हूं और लंबे समय तक इसे खेलना चाहता हूं। यही मेरी प्रेरणा है। मैंने कभी भारत के लिए नहीं खेला तो वह आग भी अभी बाकी है। प्रोफेशनल के तौर पर अगर वह आग आपके अंदर नहीं है तो आप नहीं टिक पाएंगे। चाहे आप 38-39 के हों या 20-22 के आपको ख़ुद को पुश करना होता है। आपको एक लक्ष्य लेकर चलना होता है क्योंकि बिना लक्ष्य के आप प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे। मैं जानता हूं कि भारत के लिए अब खेलना असंभव के समान है और शायद मैं केवल सपना ही देख सकता हूं। मुझे यह पता है, लेकिन अगर सपना मर गया तो मैं प्रदर्शन नहीं कर पाऊंगा।
क्या कभी आपको अपनी इस लड़ाई पर आश्चर्य होता है?
मैं इसे इस तरह नहीं देखता हूं। यह किसी के ख़िलाफ़ लड़ाई नहीं है। मैं यह अपने लिए कर रहा हूं। मैं किसी को कुछ साबित करने के लिए नहीं खेलता। 38 की उम्र में भी अच्छा होने के लिए खेल रहा हूं और मैं हर दिन इसके लिए प्रेरित होता हूं। निश्चित तौर पर मैं देश के लिए खेलना चाहता हूं, लेकिन अगर यह नहीं हो सकता या नहीं हो पाया तो क्या मैं अपनी खुशी के लिए नहीं खेल सकता? मैं इस तरह से सोचता हूं। 150 के क़रीब प्रथम श्रेणी मैच खेलने को लेकर खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं।
अश्विन के रिटायर हो जाने के बाद क्या आपको लगता है कि भारत के लिए खेलने के सपने को लेकर अधिक ज़ोर लगाना चाहिए? भले यह ही यह शाहबाज़ नदीम की तरह दो-तीन टेस्ट का छोटा करियर ही क्यों ना हो?
मैं इसके बारे में नहीं सोचना चाहता हूं क्योंकि यह भी ऐसी चीज़ है जिस पर मेरा वश नहीं है। सपना तो है, लेकिन यदि मैं इस तरह से सोचने लगा कि अब वह नहीं हैं तो मेरे पास एक मौक़ा है तो मैं उसी जगह पहुंच जाऊंगा जिसने मुझे सबसे अधिक परेशान किया है। एक बार फिर मैं उस बुरे दौर में चला जाऊंगा जहां मेरे ऊपर दबाव और तनाव होगा और वह भी ऐसी चीज़ का जिस पर मेरा कंट्रोल नहीं है।
जब आपने रणजी ट्रॉफ़ी में 400 विकेट लिए तो वह मैच देखने के लिए आपके माता-पिता भी वहां मौजूद थे। ये कितना स्पेशल था?
वे पहली बार केरल आए थे। ये ऐसा मैच था जहां मुझे पता था कि मेरे पास मौक़ा है। मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने ये देखा। मेरे पिता अब भी मुझे कड़ी मेहनत करने और भारत के लिए खेलने योग्य बनने को लेकर पुश करते रहते हैं। मुझे नहीं लगता कि जब तक मैं रिटायर नहीं हो जाऊंगा तब तक वह मेरी तारीफ़ करने वाले हैं। यह उनके अनुशासन का ही नतीजा है कि मैं इतने अधिक प्रथम श्रेणी मैच खेल सका हूं।
शशांक किशोर ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं
Read in App
Elevate your reading experience on ESPNcricinfo App.