भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे की रोचक कहानियां ESPNcricinfo हिंदी सदस्यों की ज़ुबानी
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी से पहले हमने उन चुनिंदा खट्टी-मीठी यादों को समेटा है जो हर क्रिकेट फ़ैंस के ज़ेहन में ज़िंदा हैं
भारत एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जा रहा है जहां इस बार टीम इंडिया पांच मैचों की टेस्ट सीरीज़ खेलेगी। यह वाक्य सीधा, साधारण और सपाट है लेकिन जैसे ही आप इसके बारे में सुनते हैं, कई कहानियां याद आ जाती हैं। फिर चाहे वह 2003 में दादा की 'दादागिरी' हो या 1999 में सचिन तेंदुलकर को 'SBW' आउट देना हो या फिर चाहे पंत द्वारा गाबा का घमंड तोड़ना। हिंदी टीम के सभी सदस्यों ने ऑस्ट्रेलियाई दौरे की अपनी-अपनी यादें सामने रखी हैं। वैसे हम चाहेंगे कि आप भी हमारे साथ अपनी पसंदीदा यादों को साझा करें।
1999-2000: ग्लेन मैकग्रॉ ने सचिन तेंदुलकर को किया 'SBW'
- सैयद हुसैन
साल 1999, एडिलेड का मैदान और भारतीय कप्तान सचिन तेंदुलकर के कंधों पर था भारत को हार के संकट से बचाने का दारोमदार। ऑस्ट्रेलिया ने भारत के सामने रखा था 396 रन का लक्ष्य और बाक़ी थे क़रीब डेढ़ दिन।

पहली पारी में अर्धशतक लगा चुके तेंदुलकर नंबर-5 पर आठवें ओवर में ही बल्लेबाज़ी करने आ गए थे। सामने थे ग्लेन मैकग्रॉ। मैकग्रॉ ने एक बाउंसर डाली जिसे तेंदुलकर छोड़ना चाहते थे और झुक गए। लेकिन गेंद उनके कंधे पर जाकर लगी, मैकग्रॉ ने ज़ोरदार अपील की और अंपायर डैरिल हार्पर ने उन्हें LBW आउट करार दे दिया।
भारतीय फ़ैंस हतप्रभ रह गए कि ये क्या हुआ? लेकिन अंपायर के फ़ैसले के बाद तेंदुलकर बिना खाता खोले पवेलियन लौट गए और भारत को उस मैच में 285 रन से हार मिली। सालों बाद मैकग्रॉ ने एक टीवी इंटरव्यू में उस घटना के बारे में कहा था, "बाउंसर अमूमन उसके [तेंदुलकर] सिर के ऊपर से निकल जाता है लेकिन उस दिन वह नीचे झुक गया था और गेंद कंधे पर लगी। लेकिन क्या यह LBW था, मुझे लगता है शायद यह SBW (शोल्डर बिफ़ोर विकेट) होना चाहिए था।"
2003-04: टीम मुश्किल में हो तो द्रविड़ से अच्छा विकल्प नहीं
-राजन राज
जब कहानी ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ बेहतरीन पारियों से जुड़ी हो तो राहुल द्रविड़ की अविश्वसनीय 233 रन की पारी को याद करना लाज़मी है।
एडिलेड में खेले गए उस मैच की पहली पारी में रिकी पोंटिंग की बेहतरीन 242 रन की पारी से ऑस्ट्रेलिया 556 रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर चुका था। जवाब में भारतीय टीम के चार विकेट 85 रन पर गिर गए। टीम को संकट से निकालने का ज़िम्मा द्रविड़ अपने कंधों पर लिया और यहां से 233 रनों की बेहतरीन पारी खेली। लक्ष्मण के साथ 303 रनों की साझेदारी करने के अलावा उन्होंने पार्थिव पटेल सहित पूछल्ले क्रम के साथ भी उपयोगी साझेदारियां की। द्रविड़ की इस पारी के चलते भारत ने न सिर्फ़ 657 रनों का एक बड़ा स्कोर खड़ा किया बल्कि यहां से भारत ड्राइविंग सीट पर आ गया। द्रविड़ ने अपनी एक बेहतरीन पुल शॉट के साथ इस मैच में अपने शतक को पूरा किया था। उनकी इस पारी में ऑन ड्राइव, फ़्लिक और कवर ड्राइव जैसे दिलकश शॉट देखते ही बन रहे थे।
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में अजीत आगरकर 6 विकेट लेते हैं और मेज़बान टीम सिर्फ़ 196 के स्कोर पर ढेर हो जाती है। दूसरी पारी में भी द्रविड़ के बल्ले से नाबाद 72 रन निकले और उन्होंने ही जीत का चौका लगाकर इस मैच में भारत को जीत दिलाई। इस मैच में कुल 1508 रन बने जो भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच आज तक किसी भी एक टेस्ट मैच का सबसे बड़ा योग है।
2003-04: जब तेंदुलकर ने बिना कवर ड्राइव खेले बनाए 241 रन
-दया सागर
तेंदुलकर का फ़ॉर्म अच्छा नहीं चल रहा था। सीरीज़ के पहले तीन टेस्ट मैचों में तेंदुलकर का स्कोर 0, 1, 37, 0 और 44 था। तेंदुलकर इससे काफ़ी निराश थे और उन्होंने पाया कि ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि वह ऑफ़ स्टंप के बाहर जाने वाली गेंदों को ड्राइव करने के प्रयास में दूर से ही खेल रहे थे। तेंदुलकर ने इसे बदलने की ठानी और निर्णय लिया कि वह सिडनी में होने वाले आख़िरी टेस्ट में ड्राइव करेंगे ही नहीं। तेंदुलकर को ऑफ़ साइड में सात फ़ील्डर रखकर लगातार ऑफ़ स्टंप के बाहर गेंदें डाली गईं लेकिन वह ऑस्ट्रेलिया के जाल में नहीं फंसे। तेंदुलकर ने इस पारी में कुल 33 चौके लगाए लेकिन एक भी चौका कवर के क्षेत्र में नहीं आया।
तेंदुलकर ने ऐसी गेंदों का इंतज़ार किया, जो उनके शरीर तक आए और वह उन्हें फ़्लिक या क्लिप करते हुए मिडविकेट की दिशा में भेज सकें। तेंदुलकर ने ऐसा पूरी पारी के दौरान किया और न सिर्फ़ शतक बल्कि एक बड़ा दोहरा शतक (नाबाद 241) लगाया।
2018-19: पुजारा के तौर पर दिखी नई दीवार
-नवनीत झा
भारत 2018 तक सिर्फ़ एक टेस्ट श्रृंखला (2003-04) ही ऑस्ट्रेलिया में ड्रॉ करा पाया था। ऑस्ट्रेलिया में पहली टेस्ट सीरीज़ जीत हासिल करने में चेतेश्वर पुजारा ने अहम भूमिका निभाई थी।
पुजारा इस श्रृंखला में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ थे। उन्होंने तीन शतक लगाए थे। इन तीनों शतकों में उनका सबसे यादगार शतक एडिलेड में आया था क्योंकि उनकी यह पारी न सिर्फ़ एक अहम मौक़े पर आई थी बल्कि कठिन परिस्थितियों में बल्लेबाज़ी करते हुए आई थी। पुजारा ने दोनों पारियों में भारत को संकट से उबारा था।
वहां पुजारा ने अकेले दोनों पारियों में कुल 194 (121 और 73) रन बनाए थे। पुजारा के अलावा उस मैच में कोई अन्य भारतीय बल्लेबाज़ 50 के आंकड़े तक को छू नहीं पाया था, अन्य दो अर्धशतक ऑस्ट्रेलिया की ओर से दो अलग अलग पारियों में आए थे।
2007-08: पर्थ पर 'बदले' वाला पलटवार
- सैयद हुसैन
2008 में भारत जब पर्थ पहुंचा, तो वह मैच एक जंग जैसा रुप ले चुका था। इससे पहले सिडनी टेस्ट में हुई अपांयरिंग और 'मंकीगेट' विवाद ने पर्थ टेस्ट को एक भावनात्मक मोड़ पर ला खड़ा किया था। हमेशा शांत रहने वाले अनिल कुंबले को भी यह कहना पड़ा था कि 'केवल एक टीम ही क्रिकेट की भावना के अनुसार खेल रही थी'।
पर्थ में भारत की तरफ़ से न किसी बल्लेबाज़ ने शतक जड़ा था और न ही किसी गेंदबाज़ को पारी में पांच विकेट मिले थे। लेकिन सभी खिलाड़ियों में मानो एक बदले की भावना जाग गई थी और उन्हें सिर्फ़ जीत चाहिए थी - एक यूनिट की तरह खेलते हुए भारत ने पर्थ टेस्ट 72 रन से अपने नाम कर लिया था। इस टेस्ट को युवा इशांत शर्मा बनाम रिकी पोंटिंग के तौर पर भी याद किया जाता है - जब इशांत ने पोंटिंग का दोनों ही पारियों में शिकार किया था।
ESPNcricinfo हिंदी के सदस्य सैयद हुैसन, दया सागर, राजन राज और नवनीत झा ने ऑस्ट्रेलिया दौरे की अपनी यादों को समेटा है।
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