पिंक बॉल के ख़िलाफ़ बल्लेबाज़ी करना क्यों है बहुत मुश्किल
क्या है ट्विलाइट और क्यों यह गेंदबाज़ी के लिए होता है सबसे मुफ़ीद समय, पिंक बॉल टेस्ट के बारे में जानिए यहां सब-कुछ
रोहित और राहुल का क्या होगा बैटिंग ऑर्डर, पंत कहां खेलेंगे?
#Runorder में एडिलेड टेस्ट के लिए भारतीय बैटिंग ऑर्डर पर चर्चा ESPNcricinfo हिंदी टीम के साथभारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी का दूसरा टेस्ट, दिन-रात्रि (डे-नाईट) का मैच होगा, जो कि एडिलेड मैदान की दुधिया रोशनी में गुलाबी गेंद (पिंक बॉल) से खेला जाएगा। यह ऑस्ट्रेलिया का कुल 12वां पिंक बॉल टेस्ट होगा, जो कि उन्होंने सभी अपने घरेलू मैदानों पर ही खेले हैं। इन 12 टेस्ट मैचों में से 11 में ऑस्ट्रेलिया को जीत मिली है, जबकि एकमात्र हार उन्हें इस साल की शुरुआत में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ ब्रिसबेन के गाबा में मिली थी।
डे-नाईट मैचों में एडिलेड है ऑस्ट्रेलिया का क़िला
पिछली बार भारतीय टीम जब एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अंतिम बार डे-नाईट टेस्ट मैच में उतरी थी, तो दूसरी पारी में 36 रन के रिकॉर्ड स्कोर पर ऑलआउट हो गई थी और उन्हें पहली पारी में बढ़त लेने के बावजूद आठ विकेट से करारी हार का सामना करना पड़ा था। सीरीज़ में 1-0 की बढ़त ले चुकी भारतीय टीम अब उस शर्मनाक हार का भी बदला लेना चाहेगी। हालांकि यह किसी भी तरह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने इस मैदान में सर्वाधिक सात डे-नाईट टेस्ट मैच खेले हैं और अभी तक यहां पर अजेय रहे हैं।
पिंक बॉल टेस्ट का संक्षिप्त इतिहास
ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच एडिलेड के इसी मैदान पर नवंबर-दिसंबर 2015 में दुनिया का पहला डे-नाईट टेस्ट मैच खेला गया था और कुल मिलाकर यह 23वां पिंक बॉल टेस्ट मैच होगा। अगर भारत की बात करें तो भारतीय टीम का यह सिर्फ़ पांचवां पिंक बॉल टेस्ट मैच होगा। उन्होंने नवंबर 2019 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ कोलकाता में अपना पहला पिंक बॉल टेस्ट मैच खेला था, जहां पर भारतीय टीम को पारी और 46 रनों की बड़ी जीत मिली थी। तब से भारतीय टीम ने तीन और पिंक बॉल टेस्ट मैच खेला है, जिसमें से दो घरेलू सरज़मीं पर खेले मैचों में उन्हें दो बड़ी जीत जबकि एडिलेड के मैच में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था।
पिंक बॉल का उपयोग क्यों?
2010 के दशक में टेस्ट मैचों की घटती लोकप्रियता से चिंतित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने इसमें कुछ प्रयोग करने की ठानी और डे-नाईट टेस्ट मैचों का विचार सामने आया। चूंकि दूधिया रोशनी में लाल गेंद मानवीय आंखों के लिए मुफ़ीद नहीं है, इसलिए प्रयोग के तौर पर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के प्रथम श्रेणी मैचों में गुलाबी गेंद का इस्तेमाल किया गया और प्रयोग सफल होने पर उसे टेस्ट मैचों में लाया गया।
पिंक बॉल बल्लेबाज़ी के लिए कठिन क्यों?
यह एक सबसे बड़ा सवाल है। अभी तक पिंक बॉल टेस्ट मैचों का इतिहास देखा जाए तो 22 में से सिर्फ़ छह पिंक बॉल टेस्ट मैच ही पांचवें दिन तक पहुंच पाए हैं, वहीं सात मैच चौथे दिन पर समाप्त हुए हैं। वहीं नौ मैच ऐसे भी हैं, जो तीन या उससे कम दिन के भीतर समाप्त हुए हैं। अभी तक कोई भी ऐसा डे-नाईट टेस्ट मैच नहीं हुआ है, जो ड्रॉ पर समाप्त हुआ हो, जबकि दो मैच तो दो दिन के भीतर ही समाप्त हुए हैं।
इसका मतलब यह है कि पिंक बॉल के सामने बल्लेबाज़ी करना आसान नहीं है, जैसा कि केएल राहुल ने भी बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान स्वीकार किया। उन्होंने कहा, "जब गुलाबी गेंद, गेंदबाज़ के हाथ से छूट रही है, तो उसे तुरंत देखना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। यह लाल गेंद से थोड़ा अधिक हार्ड भी है। वहीं जब आप फ़ील्डिंग करते हो, तब भी लगता है कि यह आपकी हथेली पर अधिक तेज़ी से लग रहा है। यह कुछ अधिक तेज़ भी है। बल्लेबाज़ी में भी कुछ ऐसा ही है। यह बल्लेबाज़ की तरफ़ लाल गेंद से अधिक तेज़ी से आती है और लाल गेंद से अधिक सीम भी करती है। यह बल्लेबाज़ों के लिए एक चुनौती है, लेकिन मैं इसका सामना करने के लिए उत्साहित भी हूं क्योंकि यह मेरा पहला पिंक बॉल टेस्ट है।"
KL Rahul: 'Focus is on winning each session and not worry about whole game'
The India batter says he is excited for his first-ever pink ball Testवहीं मोहम्मद सिराज ने भी प्रधानमंत्री एकादश के ख़िलाफ़ मैच के बाद कहा था, "पिंक बॉल, रेड बॉल से काफ़ी अलग है। गेंद को लेकर दुविधा की स्थिति पनप सकती है लेकिन हमारा ध्यान सिर्फ़ अभ्यास करने पर है और हम दिन प्रतिदिन सुधार करते जाएंगे। इसकी सीम काफ़ी सख़्त है और यह गेंद काफ़ी चमकीली व बड़ी भी है। हालांकि जितना आप अभ्यास करेंगे, उतना ही अच्छा यह आपके लिए होगा। मुझे लगता है कि पिंक बॉल के साथ बैक ऑफ़ लेंथ गेंदबाज़ी करना अधिक सही रहेगा।"
आपको बता दें कि ऑस्ट्रेलिया डे-नाईट टेस्ट मैचों में पहले बल्लेबाज़ी कर दूसरी टीम को दूसरे दिन के ट्विलाइट में गेंदबाज़ी करना पसंद करते हैं। ट्विलाइट का समय सूर्यास्त से 20 मिनट पहले से सूर्यास्त के 20 मिनट बाद तक होता है, जब बल्लेबाज़ी करना अधिक कठिन होता है। एडिलेड में सूर्यास्त वहां के स्थानीय समयानुसार रात आठ बजे होता है।
एडिलेड के पिच क्यूरेटर डेमियन हो ने भी बताया, "दोनों टीमों के पास कुछ विश्व स्तरीय गेंदबाज़ हैं, जो पिंक बॉल से नए बल्लेबाज़ों को चुनौती दे सकते हैं। डे-नाईट मैचों में नए बल्लेबाज़ों के लिए अधिक चुनौती होती है। अगर फ़्लडलाइट्स जलने पर (ट्विलाइट के समय) आपके पास नई गेंद नहीं होती है, तब सेट बल्लेबाज़ों के लिए बल्लेबाज़ी करना आसान होगा, जैसा कि हमने शेफ़ील्ड शील्ड के मैचों में भी देखा है। लेकिन अगर उस समय अगर गेंदबाज़ी टीम के पास नई गेंद है और क्रीज़ पर नए बल्लेबाज़ हैं, तो मुश्किल होगी।"
ऐसा हमें भारत के पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे पर एडिलेड टेस्ट में ही देखने को मिला था, जब टेस्ट मैच के तीसरे दिन की सुबह भारतीय टीम जॉश हेज़लवुड और पैट कमिंस के आगे सिर्फ़ 36 रनों पर नेस्तनाबूत हो गई थी।
पुजारा से समझिए क्यों पिंक गेंद ज़्यादा परेशान करती है?
"गेंद के ऊपर ज़्यादा लैकर का इस्तेमाल किया जाता है जिससे स्विंग अधिक मिलती है"उस मैच का हिस्सा रहे चेतेश्वर पुजारा कहते हैं, "गुलाबी गेंद लाल गेंद से थोड़ा अधिक चमकती है। इसका कारण यह है कि इस पर कलर के कोट कुछ अधिक होते हैं और इसमें पेंट की लेयर भी कुछ अधिक होती है, जो जल्दी से नहीं जाती है। जब आप लाल गेंद का सामना कर रहे होते हैं तो वह जल्दी से पुरानी हो जाती है, जबकि गुलाबी गेंद में अधिक समय तक चमक बनी रहती है। चूंकि गुलाबी गेंद पर पेंट की अधिक लेयर होती हैं, इसलिए जब यह पिच पर पड़ती है, तो थोड़ा अधिक स्किड करती है। इसलिए एक बल्लेबाज़ के तौर पर आपके पास बहुत कम समय होता है और यही सबसे बड़ा अंतर होता है, जिसमें बल्लेबाज़ को जल्द से जल्द ढलना होगा।"
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं।dayasagar95
Read in App
Elevate your reading experience on ESPNcricinfo App.