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दीप्ति शर्मा: हमने सेमीफ़ाइनल ऐसे खेला, जैसे फ़ाइनल खेल रहे हों

दीप्ति ने विश्व कप की अपनी और भारतीय टीम की सुनहरी यादों को ताज़ा किया और साथ ही पूरे सफ़र के बारे में भी बताया

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Deepti Sharma: 'We were determined to win this time, we'd waited long enough'

The India allrounder looks back at the days leading to the World Cup and how the team worked together as one unit to clinch their first title

अपने 10 वर्ष के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर में दीप्ति शर्मा के लिए सबसे यादगार समय हालिया महिला वनडे विश्व कप के दौरान आया जिसमें उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाए और तोड़े। अपने साक्षात्कार में उन्होंने टीम की और ख़ुद की तैयारी के साथ ही टूर्नामेंट से जुड़ी अपनी सुनहरी यादों पर चर्चा की है।

शुरुआत करते हैं उस आख़िरी गेंद से जो आपने विश्व कप में डाली थी। उस जीत के मोमेंट से लेकर लगभग 10 दिन हो गए। इतना सारा सेलिब्रेशन हुआ, आप लोग दिल्ली भी गईं। तो अभी तक ये कैसा रहा? इस विश्व कप का महत्व क्या रहा है टीम और आपके लिए?

अभी तो थोड़ा कोशिश कर रहे हैं सिंक इन करने की। इतनी अच्छी यादें हैं कि हम चाहेंगे कि इसको हमेशा आगे ले जाएं। और जो मैंने आख़िरी गेंद डाली थी जिस गेंद पर ऑल आउट हुआ। हम लोगों ने मैच जीता, उसके बाद ट्रॉफ़ी उठाई। मेरे लिए ये काफ़ी अच्छी यादें हैं। क्योंकि (नैडीन) डी क्लर्क काफ़ी अच्छा खेल रही थीं टूर्नामेंट में, अगर देखा जाए तो तो उनका विकेट भी काफ़ी अहम था। उस समय हमें जीत के लिए केवल एक ही विकेट लेना था तो मेरी सोच थी कि जितनी जल्दी विकेट मिलेगा हम उतने ही अच्छे अंतर से मैच जीतेंगे।

आख़िरी गेंद का वो लम्हा याद है आपको जब हरमनप्रीत कौर ने जंप किया, कैच पकड़ा, अचानक सब लोग जो स्टैंड में खड़े हो गए, गाने बजे, वो सब आपको कब तक याद रहेगा?

मुझे लगता है कि पूरे जीवन यह याद रहने वाला है। क्योंकि जब विकेट लिया, उसके बाद जब उन्होंने [हरमनप्रीत] एक पूरा राउंड लगाया, तो वह कपिल देव जैसा थोड़ा सा हो गया था क्योंकि उन्होंने भी आख़िरी कैच लिया था और फिर उसके बाद उन्होंने गेंद भी रखा था अपने पास। काफ़ी अच्छी याद थी ये मेरे लिए और जब आपने आख़िरी विकेट लिया है तो जाहिर सी बात है वो हमेशा आपकी जिंदगी में यादगार पल रहेगा।

मैच के थोड़ा पहले का बताइए। शायद 12-1 बजे तक आप लोग स्टेडियम में आते होंगे बस में। उस समय कैसा माहौल था। आप तो इतनी सीनियर खिलाड़ी हैं। आपको क्या लग रहा था कि किसके मन में क्या चल रहा है? नर्वसनेस तो नेचुरल चीज़ है उसमें कोई ख़राबी भी नहीं है। पर आपको क्या याद है कि ड्रेसिंग रूम का माहौल कैसा था?

फ़ाइनल से पहले जब हम लोग बस से आ रहे थे और जब ड्रेसिंग रूम पहुंचे तो उस टाइम काफ़ी बारिश हो रही थी। हमने काफ़ी इंतज़ार किया कि मैच जल्दी शुरू हो हो जाए क्योंकि परिवार के लोग वगैरह भी आये हुए थे। हमारी सोच केवल यही थी कि आज ही मैच होना चाहिए क्योंकि उसके लिए उत्सुकता बहुत अधिक थी और सब लोग बस इंतज़ार कर रहे थे। घबराहट तो किसी को नहीं थी क्योंकि सब लोग बस इस चीज़ का इंतज़ार कर रहे थे कि किसी भी तरह ये पूरा मैच हो ताकि एक टीम के रूप में जिसका जो भी रोल है उसमें पूरा रोल प्ले करें।

दीप्ति ने अपने पंजे में Annerie Dercksen और Laura Wolvaardt के विकेट चटकाए  ICC/Getty Images

हमें पता था की हम एक टीम के रूप में एक-दूसरे के ऊपर जो भरोसा दिखाते हैं, चाहे वह बल्लेबाज़ हों या गेंदबाज़ सबसे अच्छी बात है कि ये टीम भरोसा करती है। हमेशा जो भी सीख़ होती है, पहले मैच से या जो भी हम लोग मीटिंग में बात करते हैं कि हमको अभी इस प्लान से जाना चाहिए, ए प्लान या बी प्लान तो हम हमेशा सोचते हैं कि हमारे पास विकल्प क्या हैं? उसी चीज़ पर अधिक फ़ोकस रहता है। हम बहुत चिल थे। फ़ाइनल से पहले हम बहुत नहीं सोच रहे थे कि हमें ऐसा करना है या वैसा करना है। हम एक आम मैच की तरह खेल रहे थे और बस यह था कि 7-8 घंटे हमें अधिक फ़ोकस करना है जो कि हमने पहले कभी उतना फ़ोकस नहीं किया है उससे अधिक इस मैच में फोकस करना है।

कप्तान हरमनप्रीत भी अक्सर विश्व कप के दौरान और फ़ाइनल के बाद कह रही थीं की ये टीम बहुत स्पेशल थी, तो सीनियर प्लेयर के हिसाब से 2-3 ऐसी क्या चीजें आपने देखीं जो इस टीम को इतना स्पेशल बनाती हैं?

देखिए पहले तो ये सबसे यंग टीम थी क्योंकि पहले ऐसा होता था कि आमतौर पर सीनियर प्लेयर अधिक हुआ करते थे और यंग प्लेयर कम। अभी अधिकतर यंग हैं और सबको अपना अपना रोल बता दिया गया था। सबको अपने रोल को लेकर चीज़ें साफ़ पता थीं कि मेरा ये प्लान है और अभी मुझे अगर इस पोज़ीशन पर जाके ऐसे खेलना है तो क्या करना है। इससे किसी तरह की कन्फ्यूजन नहीं हुई थी। सबको पता था कि किसका क्या रोल है। जो भी यंग प्लेयर्स बात करते थे और पूछते थे कि यदि ऐसी परिस्थिति में अग़र आप हैं तो क्या प्लान करती हैं, क्या-क्या सोचती हैं कि मुझे क्या करना चाहिए तो ऐसी चीज़ों में मैं उन लोगों की मदद करती हूं। सबकी सोच यही रहती है कि कैसे एक टीम के रूप में हम लोग परफ़ॉर्म करें और कैसे एक अच्छे प्लेटफ़ॉर्म पर इंडियन टीम को लेकर जाएं।

आपके पांच में से जो दो विकेट के बारे में ख़ासकर बताएं। एक तो एनरी डर्कसन को आपने यॉर्कर डाली और स्पिनर से यार्कर की उम्मीदें बहुत कम होती हैं। दूसरा क्लोई ट्राईऑन बैटिंग कर रही थीं तो उनको भी आपने एक तेज़ गेंद डाली थी। उन गेंदों के पहले उनकी बैटिंग को देखते हुए या पिच को देखते हुए बारिश के बाद भी थोड़ा सा स्टिकी भी हो गया था। क्या आपके दिमाग़ में आया कि आपने थोड़ा सा नॉर्मल से अलग जाकर आपने ऐसी गेंदें डाली?

मैंने अपनी गेंदबाज़ी में थोड़े बदलाव किए हैं और अलग-अलग तरह की गेंदें डालने लगी हूं। यदि मेरे पास अधिक विकल्प हैं तो मुझे पता भी होना चाहिए कि कौन सी गेंद का इस्तेमाल कब करना है। यॉर्कर की ही बात करें तो वह गेंद मेरे दिमाग़ में थी। ट्रॉईऑन उनकी अच्छी बल्लेबाज़ है जो कि हमेशा मैच को डीप लेकर जाती हैं तो मुझे पता था कि मेरे पास क्या विकल्प हैं और अग़र अभी इस समय पर वह गेंद डालने की कोशिश करूंगी तो विकेट आ सकता है।

ऐसा करने को लेकर मैं पूरी तरह से कॉन्फिडेंट थी। डर्कसन का जो विकेट था वह भी काफ़ी अहम था क्योंकि उस समय वुलफ़ार्ट के साथ उनकी एक साझेदारी बन चुकी थी। मैं यही सोच रही थी कि किसी तरह अपनी टीम को ब्रेकथ्रू दिला सकूं। मेरे दिमाग़ में वही चल रहा था। मेरी और हैरी दी की बात भी वही हो रही थी कि दीप्ति बस एक विकेट लेना है उसके बाद हो जाएगा। जब सेट बल्लेबाज़ आउट होता है तो टीम पर दबाव बनता है। निश्चित रूप से मेरे दिमाग़ में यही था कि जितना अधिक से अधिक हो पाए वैरिएशन का इस्तेमाल करना है।

बड़े विकेट की आपने बात की तो लॉरा वुलफ़ार्ट की बात तो करनी पड़ेगी। ख़ासकर जो अमनजोत ने डीप में कैच लिया, तीन बार जो ऑलमोस्ट हार्ट अटैक दे दिया उन्होंने पूरे स्टैंड में। आपके दिमाग़ में क्या चल रहा था?

देखिए उसने काफ़ी अच्छे कैच पकड़े हैं। अभी तक मैंने इंडियन टीम में उसका खेल जितना क़रीब से देखा है उसमें यह पहला कैच होगा जिसमें उसने इतनी गलतियां कीं। इसका मतलब है कि दबाव तो होता है और ख़ासकर जब आप फ़ाइनल खेल रहे होते हैं तो दबाव आ ही जाता है। लाइट्स के नीचे कई बार ऊंचे कैच पकड़ना मुश्किल हो जाता है, लेकिन हम भाग्यशाली रहे कि वह कैच पकड़ने में सफल रहीं। हमने काफ़ी प्रैक्टिस भी की थी कि जब लाइट्स के नीचे इस तरह की परिस्थितियां आएंगी तो हमें किस तरह कैचिंग करनी है। मैच में हम एक यूनिट के रूप में खेल रहे थे जिसमें केवल प्लेइंग इलेवन ही नहीं बल्कि उसके बाहर बैठीं चार खिलाड़ियों की भूमिका भी अहम थी। अच्छा रहा कि वो कैच सफल रहा, हम लोगों ने कैच लिया क्योंकि वह विकेट काफ़ी अहम था।

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इस विश्व कप को जीतने के पहले सब लोग 2017 की बात करते थे। ज़ाहिर तौर पर टीम में भी बात हुई होगी कई बार। पर ये विश्व कप जीतने के बाद आप आपको क्या लगता है कि उसकी यादें हटा देनी चाहिए? अब तो जीत लिया है वर्ल्ड कप। या आपको लगता है कि वो भी बहुत एक बड़ा स्टेप था? 2017 अब अब क्या जगह रखता है आपकी यादों में?

बिल्कुल, मेरे और विमेंस क्रिकेट दोनों के लिए भी ये काफ़ी बड़े बदलाव वाला मोमेंट रहा। 2017 विश्व कप को नहीं भूलना चाहूंगी क्योंकि वह मेरा पहला विश्व कप था। उससे काफ़ी सारे पॉज़िटिव रहे हैं महिला क्रिकेट के लिए और उसके बाद काफ़ी विकास हुआ है। पहले इतने अधिक मैच नहीं होते थे। देखा जाए तो हम जब वापस दिल्ली आए थे तो हमारा इतना अच्छा स्वागत हुआ था कि जैसे हम उपविजेता नहीं बल्कि विजेता बनकर लौटे हैं। हम भले ही इंग्लैंड में खेल रहे थे लेकिन क्राउड काफ़ी अच्छा था और सब भारत को चीयर कर रहे थे। कहीं न कहीं वो दिमाग़ में रहता है कि जब भी हम खेलते हैं जितने भी हमने मैच खेले 2017 विश्व कप से अब तक तो काफ़ी सारी यादें रही हैं। पर्सनली अगर मैं बोलूं तो काफ़ी लोग जानने लगे थे कि दीप्ती शर्मा कौन है और उनका गेम कैसा है। कैसे वह गेम को चेंज करती हैं। वो कैसे मैच को अलग-अलग परिस्थिति में ले जाती हैं। मेरे बारे में लोगों को काफ़ी पता चला और यह केवल आगरा में ही नहीं बल्कि अलग-अलग शहरों में भी तो वह मेरे लिए और साथ ही महिला क्रिकेट के लिए भी टर्निंग पॉइंट था।

अगर मैं 2025 अभी के विश्व कप की बात करूं तो मुझे नहीं लगता कि इस याद को कोई भूल सकता है, क्योंकि इतने सालों में पहली बार हुआ है। इसका इतना इंतज़ार सभी को था, फैंस या सबके परिवार वगैरह को। मुझे लगता है कि ये बहुत स्पेशल रहेगा हमारे लिए और इसके पीछे की कड़ी मेहनत भी काफ़ी रही है। इन 45 दिनों को ही देखा जाए तो हम ढंग से सो भी नहीं पा रहे थे। जब भी हम सोते थे तो हमें अगले दिन के मैच का ख़्याल आता था। हमेशा दिमाग़ में वो चलता रहता था कि इस बार हमें फ़ाइनल खेलना है और ट्रॉफ़ी उठानी है। हम ये सोच रहे थे कि इंतज़ार बहुत हो चुका है कि इतने सालों से हम कभी सेमीफ़ाइनल तक पहुंच रहे हैं, कभी फ़ाइनल तक पहुंच रहे हैं। हालांकि, ट्रॉफ़ी उठाने से एक कदम दूर रह जा रहे हैं। बस ये ही सबके ज़ेहन में था कि अगर अभी नहीं तो कभी नहीं। पूरा विश्व कप इसी माइंडसेट के साथ खेले हैं हम लोग।

आपने कहा लोग जानने लगे जैसे आपको की आप कैसे मैच टर्न करती हैं और इस विश्व कप में तो अक्सर आपने किया। क्राउड भी बहुत अच्छा रहा था। पहले मैच में गुवाहाटी से लेकर फ़ाइनल में तो खैर आना ही था। तो इतना बड़ा मतलब विश्व कप जैसा टूर्नामेंट घर पर खेल रहे थे आप लोग तो उससे प्रेशर भी आ सकता है। तो आपने कैसे इन चीजों से डील किया?

जब हमारा श्रीलंका के ख़िलाफ़ ओपनिंग मैच हुआ था तो गुवाहाटी में काफ़ी लोग लोग आए थे हमें सपोर्ट करने के लिए। पर्सनली मुझे अच्छा लगता है जब क्राउड आता है और इंडियन टीम को सपोर्ट करता है। हम लोग इससे प्रेरित रहते हैं कि नहीं हम अकेले 11 या 15 लोग नहीं खेल रहे हैं, साथ में और भी हमें सपोर्ट करने के लिए लोग हैं। ये एक अच्छी चीज़ रहती है। जैसा की मैंने बोला कि मुझे फैंस का सपोर्ट काफ़ी अच्छा लगता है और हमेशा जब ऐसा मोमेंट आता है तो कोशिश रहती है कि बाहर से आ रही आवाज आती रहे, लेकिन इससे फील्ड पर हम अपने फोकस को कम ना होने दें।

दीप्ति ने वनडे में अपनी बल्लेबाज़ी में सुधार का श्रेय T20 में अपने खेल को दिया  ICC/Getty Images

एक बार स्टार स्पोर्ट्स पर दिखाया गया था कि 2023 और 24 में आपकी बैटिंग स्ट्राइक रेट 71 थी और इस साल विश्व कप शुरू होने के पहले ही आपकी स्ट्राइक रेट 100 के ऊपर पहुंच गयी थी, औसत भी लगभग डबल हो गयी थी। तो इन चीजों पर कैसे काम किया?

जब भी मैं घर पर आती थी आगरा में तो भैया के साथ कुछ शॉट्स के प्रैक्टिस करती थी जो मुझे डेवलप करना था। कोशिश करती थी कि कैसे उसको कैसे अपनी ताकत में अच्छे से शामिल करूं। केवल T20 में ही नहीं जिसमें हमें लगता है कि हमेशा लॉफ्डेट शॉट खेलते हैं। मेरा मानना है कि अब T20 और 50 ओवर का क्रिकेट बराबर हो चुका है। उसमें भी उतना ही स्ट्राइक रेट चाहिए होता है। मेरा बस यही माइंडसेट था कि जब भी मुझे बैटिंग मिलेगी तो जो भी चीज़ें मैंने प्रैक्टिस में डेवलप की हैं या जो भी मैंने सुधार किए हैं उसी माइंडसेट से जाऊं और जो मैंने सीखा है अपने गेम में बस उसी को अप्लाई करूं। निश्चित रूप से मेरी सोच थी कि गेंदें अधिक मिलें या कम मुझे अपने स्वाभाविक खेल पर भरोसा जताना है। मैंने किसी एक साइड में खेलने के बजाय गेंद को मेरिट के हिसाब से खेला। इस विश्व कप में सोच यही थी कि जैसी गेंद मिलेगी उसी तरह शॉट खेलूंगी और कम से कम गेंदों में अधिक से अधिक रन बनाने की कोशिश करूंगी।

T20 और वनडे अब तो आप एक ही सांस में दोनों का नाम ले रही हैं। 2024 WPL में आपने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब आपको MVP मिला था उससे बहुत फ़ायदा हुआ था आपको। उसके बारे में थोड़ा बताइए कि कैसे आपने उस चीज़ का फ़ायदा अपने ODI गेम में भी लिया?

वो वाला सीज़न मेरे लिए बहुत अहम था क्योंकि उसमें ऐसा था कि मैंने किसी सेट क्रम पर बल्लेबाज़ी नहीं किया बल्कि अलग-अलग नंबर पर खेलने उतरी थी। शुरुआती मैचों में तो ऐसा भी था कि छठे या सातवें नंबर पर बल्लेबाज़ी मिलती थी। फिर अचानक तीन या चार नंबर पर जाना पड़ा। जब भी बात हुई उस समय पर मैनेजमेंट से मैंने हमेशा कहा कि मैं ऊपर खेलने के लिए हमेशा तैयार हूं और मुझे जितने भी ऊपर बल्लेबाज़ी मिलेगा मुझे उतनी खुशी होगी। मेरा माइंडसेट यही था कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि मैं कौन से नंबर पर जाने वाली हूं, बस मेरा जो गेम है मुझे वही खेलना है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि किधर खेलने जा रहे हो, कैसे खेल रहे हो। बस अगर आप गेंद को अच्छे से देख रहे हो और अच्छे शॉट लगा रहे हो तो स्कोरबोर्ड पर चौके और छक्के ही दिखते हैं। 20 ओवर में आप जितना बना सकते हो और टीम को जितने अधिक रन दे सकते हो इसी माइंडसेट के साथ मैंने WPL खेला।

बल्लेबाज़ी में ऊपर-नीचे जाने की बात की तो हमें जेमी की याद आ रही है। उन्होंने नंबर 5 पर बैटिंग की लगभग 2 साल से। फिर विश्व कप के बीच में उनको ऊपर पुश किया गया। तो आप जैसे सीनियर प्लेयर्स ने ऐसा कुछ उनसे बात की ताकि उनको लगे कि नहीं मैं यहां भी कर सकती हूं?

नहीं, मेरे ख्याल से उसे इसकी आदत है। ओपनिंग से लेकर पांच नंबर तक या यूं कहें कि जिस भी नंबर पर आप उसको भेज दो वह हमेशा तैयार रहती है। घरेलू क्रिकेट में उसने कई सालों तक प्रैक्टिस की थी और वह इसके लिए तैयार भी थी। हम केवल उसको मोटिवेट कर रहे थे। आपने देखा होगा कि जब वह गेम ज़ोन से बाहर रहती है तो अच्छा खेलती है। जितना वह अपने खेल का लुत्फ़ लेती है उतना ही अच्छा खेलती है। अगर आपने देखा हो की जब वो बाउंड्री भी लगाती है तो ऐसे पंच करती है जिससे उसके अंदर ऊर्जा बनती है। यही उसका स्वभाव है। जब वह नॉन स्ट्राइक एंड पर होती है या जब मै भी खेल रही होती हूं उसके साथ तो वहां से भी वह हौसला बढ़ाती है।

जब वह स्ट्राइक पर होती है तो हम लोग उसका हौंसला बढ़ाते हैं। आप अपने साथी खिलाड़ी को कैसे आत्मविश्वास दे सकते हो जब थोड़ा सा ऊपर नीचे टाइम होता है। किसी भी प्लेयर के लिए ऐसा हो सकता है कि उससे पहले के मैचों में थोड़ा सा ऐसे ही चल रहा था, लेकिन फिर वही बात है कि अच्छे प्लेयर और बेस्ट प्लेयर वही हैं जो मुख्य मैच में करें। नॉकआउट वाले स्टेज पर यदि उसका शतक नहीं लगता और वह नाबाद नहीं आती तो परिणाम कुछ भी हो सकता था। उसने भरोसा रखा कि अगर मैं अंत तक रहूंगी तो हम चेज़ कर लेंगे। उसका यही माइंडसेट था और हम भी बात कर रहे थे कि जेमी तुम्हें अंत तक टिके रहना है और मैच फिनिश करना है। हमें पता है डीवाई पाटिल स्टेडियम के बारे में। हम जानते हैं कि चेज करते हुए अंत में यहां चीज़ें कैसी रहती हैं। हमें भरोसा था कि 50 ओवर तक डटे रहे तो निश्चित रूप से चेज़ हो जाएगा।

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वो मैच जिस तरह से जीते थे, जो खुशियां मनाई गई थीं वो काफी इमोशनल थीं। फिर जब अगले दिन आप लोग उठे होंगे तो फिर फ़ाइनल की तरफ देखना था आप लोगों को। कितना आसान या मुश्किल था अपने आपको फिर वापस शांत करना और ये याद दिलाना कि अब उससे भी बड़ा मैच आने वाला है?

पहले तो जब हम सेमीफ़ाइनल खेल रहे थे तो हमने ये नहीं सोचा था कि सेमीफ़ाइनल खेल रहे हैं। हमने यह सोचा था कि ये ही हमारा फ़ाइनल मैच है। अगर हम ये जीतेंगे तो ही हम चैंपियन बन जाएंगे। हमारा मेन फोक़स सिर्फ़ उसी पर था क्योंकि सात बार की चैंपियन टीम के साथ जब आप खेल रहे हों तो कहीं न कहीं आपका माइंडसेट अलग लेवल पर होना चाहिए। जो आपकी सोच है वो अलग होनी चाहिए, ख़ास करके इस टीम के साथ। तो हम लोगों को पता था कि हमें क्या करना है। सेमीफ़ाइनल में तो बस सेम ही माइंडसेट था। हम काफ़ी पॉज़िटिव थे। हमें पता था कि अगर हम अपना बेस्ट क्रिकेट खेलेंगे तो यह ज़रूर होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया एक ऐसी टीम है जो कहीं न कहीं डरती है तो इंडियन टीम से ही। अगर उनसे मैच होगा तो कुछ भी हो सकता है। ऐसा नहीं है कि एकतरफ़ा मैच हो या ऐसा कुछ लेकिन उन लोगों के दिमाग़ में ऐसा रहता है। ये अच्छी बात है कि अब इंडियन टीम दूसरी टीमों के दिमाग़ में संदेह ला रही है। आप समझ सकते हो कि कितना आगे बढ़ चुका है क्रिकेट।

आप वनडे विश्व कप इतिहास की पहली खिलाड़ी हैं में जिसने एक संस्करण में 200 रन बनाए हैं और 20 से ज्यादा विकेट भी लिए। एक टॉप लेवल की ऑलराउंडर को ऐसे अपने प्रदर्शन में लगातार निरंतरता बनाए रखना कितना कठिन होता है?

मुश्किल तो होता है बिल्कुल, लेकिन सारी चीज सोच पर डिपेंड करती है कि आप कैसा सोच रहे हैं। उस टाइम मेरा माइंडसेट ऐसा रहता है कि जब अच्छा होता है या जब बुरा होता है तब भी मैं सोचती हूं की अभी और क्या करना चाहिए। ये मेरी आदत है कि अच्छा होता है तो उसमे भी मैं सोचती हूं कि मैं और क्या बेहतर कर सकती हूं, क्या मेरी लर्निंग है। जो भी मैच खेलती हूं लास्ट मैच से और हमेशा ये रखती हूं अपने दिमाग़ में कि मेरे पास तीन चीज़ें है और मैं अगर मान लीजिए एक या दो में नहीं अच्छा कर पाई तो जो बचा हुआ विभाग है, फ़ील्डिंग तो खैर करनी पड़ती है सबको ही। ऐसा रहता है कि जो बाक़ी विभाग है उसमे में बेहतर करूं टीम के लिए चाहे वो कोई भी विभाग हो सकता है। ऑलराउंडर के रूप में मैं टीम में जितना ही योगदान दूंगी वो उतना ही अच्छा रहेगा।

इस टीम के बारे में एक ख़ास चीज़ यह भी है कि आप इतने सारे प्लेयर्स ख़ासकर सीनियर प्लेयर्स सब दिल्ली, बॉम्बे से नहीं हैं। आप आगरा से, स्मृति सांगली से, हरमन पंजाब से, तो विश्व कप जीतने के बाद ख़ासकर युवा लड़कियों को क्या संदेश देना चाहेंगी?

सभी युवा लड़कियों के लिए मेरा यही मैसेज रहेगा कि बड़ा सोचो। जो भी आपका इंट्रेस्ट है आप बस अपने इंट्रेस्ट के साथ जाओ और सबसे अहम बात है परिवार का सपोर्ट क्योंकि सारी लड़कियों को परिवार से सपोर्ट नहीं मिल पाता है। मुझे पूरी उम्मीद है कि इस विश्व कप के बाद लोगों की मानसिकता बदली है। लोग अपनी बच्ची को क्रिकेट खिलाना चाहते हैं तो निश्चित रूप से महिला क्रिकेट ने ये बदलाव लाया है। अभी मैं चाहूंगी की लंबा सोचें, बड़ा सोचें और हमेशा पॉजिटिव सोचें।

आख़िरी सवाल- अब WPL ऑक्शन भी आ रहा है। रिटेंशन लिस्ट भी आ गई है। कई लोगो को काफ़ी सरप्राइज लगा कि यूपी वारियर्ज़ ने एक ही प्लेयर को रिटेन किया। उसको और अब ऑक्शन को किस तरह से देख रही है?

मैं तो मतलब पर्सनली बोलूं तो बहुत उत्सुक हूं ऑक्शन के लिए। देखते हैं कि ये कैसा जाता है, लेकिन ऑक्शन को लेकर काफ़ी उत्सुक हूं।

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Vishal Dikshit is an assistant editor at ESPNcricinfo