क्या शाहरुख़ ख़ान और राहुल द्रविड़ की समानता सफलता में भी परिवर्तित होने वाली है?
एक कोच के तौर पर द्रविड़ कैसे कबीर ख़ान जैसे ही हैं

19 नवंबर, 2023। अहमदाबाद में ख़िताबी जंग का फ़ैसला सुपर ओवर से होने वाला है। अंतिम गेंद डाली जाने से पहले ड्रेसिंग रूम में बैठे कोच राहुल द्रविड़ मैदान की तरफ़ देखते हैं और एक खिलाड़ी की उनके ऊपर नज़र पड़ती है। द्रविड़ कुछ इशारा करते हैं और पलक झपकते ही भारत ऑस्ट्रेलिया को हरा देता है।
सोच में पड़ गए ना? यह कोई भविष्यवाणी नहीं है और ना ही रविवार को खेले जाने वाले फ़ाइनल की पटकथा है। हालांकि भारत का यह विश्व कप अभियान किसी फ़िल्मी कहानी से कम भी नहीं है। यह कहानी टीम के मुख्य कोच द्रविड़ के इर्द गिर्द बुनी जा रही है और वे ही इस कहानी के मुख्य किरदार और सूत्रधार भी हैं।
जैसे-जैसे विश्व कप अपनी अंतिम दहलीज़ की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे सोशल मीडिया पर लगातार द्रविड़ की छवि की तुलना एक फ़िल्मी किरदार से की जा रही है। 2007 वनडे विश्व कप में मिली हार और मौजूदा विश्व कप में टीम इंडिया के बेहतरीन प्रदर्शन को चक दे इंडिया के कबीर ख़ान की हार और उसकी वापसी से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि इस विश्व कप में बहुत कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो कि चक दे इंडिया से मिलता जुलता है। यह एक संयोग है कि चक दे इंडिया जिस साल रिलीज़ हुई उसी साल भारत द्रविड़ की कप्तानी में विश्व कप के पहले राउंड से बाहर हुआ। जिस समय चक दे इंडिया रुपहले परदे पर धमाल मचा रही थी उस दौरान द्रविड़ का कप्तानी करियर अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था, लेकिन 16 साल बाद वक्त ने एक बार फिर करवट ली है। चक दे इंडिया की तर्ज़ पर ही कोच द्रविड़ के कार्यकाल का फ़ाइनल भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला जा रहा है।
इसे सिर्फ़ एक संयोग करार दिया जा सकता है लेकिन ऐसे कई पहलू हैं जहां ना सिर्फ़ कबीर और द्रविड़ की कहानी एक जैसी लगती है बल्कि दोनों के किरदार भी एक जैसे ही लगते हैं। एक कोच के तौर पर कबीर खेल के साथ साथ टीम की एकजुटता को भी उतना ही महत्व देते हैं। ज़्यादा पीछे ना जाएं तो 2019 विश्व कप में ही भारतीय टीम की एकजुटता को लेकर कई तरह की शंकाओं ने जन्म लिया था, 2011 और 2015 विश्व कप से पहले भी टीम में एकजुटता की कमी होने की चर्चाएं आम हुआ करती थीं। लेकिन इस बार भारतीय टीम के बीच ना सिर्फ़ मैदान में एकजुटता दिखाई दे रही है बल्कि ड्रेसिंग रूम का दृश्य भी वैसा ही नज़र आ रहा है।
कबीर टीम को व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखने को तरजीह देते हैं। टीम के हित को देखते हुए कबीर सबसे सीनियर खिलाड़ी (बिंदिया नायक) को बाहर करने से परहेज़ नहीं करते। कबीर ख़ान जैसा ही जोखिम द्रविड़ उठाते हैं और टीम कॉम्बिनेशन को सुनिश्चित करने के लिए टूर्नामेंट के पहले चार मैचों में टीम के सबसे अनुभवी तेज़ गेंदबाज़ को अंतिम एकादश में जगह नहीं मिल पाती। हालांकि ज़रूरत पड़ने पर बिंदिया और मोहम्मद शमी की वापसी होती है और उसके बाद टीम पीछे मुड़ कर नहीं देखती।
प्रयोग एक ऐसा शब्द है जो द्रविड़ के करियर से इतना जुड़ा हुआ है कि शायद द्रविड़ ख़ुद चाहकर भी इसे अपने आप से जुदा नहीं कर सकते। हालांकि इन प्रयोगों के पीछे टीम को स्थिरता देने की कबीर जैसा दृढ़ संकल्प छुपा होता है। हॉकी के मैदान में कबीर खिलाड़ियों के रोल बदलने और तय करने में अपनी पूरी ताक़त झोंक देते हैं। ठीक वैसे ही द्रविड़ की अगुवाई में विश्व कप से पहले एक एक खिलाड़ी का रोल तय हो जाता है। के एल राहुल और श्रेयस अय्यर के चोटिल होने के बावजूद द्रविड़ उन्हें अपने विश्व कप योजना का हिस्सा रखते हैं। इशान किशन के रूप में नियमित विकेटकीपर का विकल्प होने के बावजूद ज़िम्मेदारी के एल ही निभाते हैं। वनडे प्रारूप में सूर्यकुमार यादव के उम्मीदों पर खरे ना उतर पाने के कारण द्रविड़ आलोचना भी झेलते हैं लेकिन इसके बावजूद द्रविड़ उन्हें बैक करना नहीं छोड़ते।
टॉप ऑर्डर आक्रामक शैली में खेलता है और खासकर मध्य क्रम में विराट कोहली एंकर रोल निभाते हैं और दूसरे छोर का खिलाड़ी अटैकिंग मोड में खेलता है। लेकिन इन दो विपरीत शैलियों के बावजूद खिलाड़ी लगातार स्ट्राइक बदलना नहीं भूलते। यह कुछ कबीर ख़ान की कोचिंग मानसिकता जैसा ही है जहां वह हर खिलाड़ी को अपने पास पांच सेकंड से ज़्यादा देर तक गेंद ना रखने का निर्देश देते हैं।
द्रविड़ को एक शांत स्वभाव वाले व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है। लेकिन जैसा कि ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो के सहायक एडिटर सिद्धार्थ मोंगा भी यह मानते हैं कि द्रविड़ ज़रूरत पड़ने पर सख़्त होना भी जानते हैं और एक टीवी कमर्शियल में द्रविड़ के इंदिरानगर के गुंडा का अवतार पूर्ण रूप से काल्पनिक भी नहीं है। कबीर ख़ान भी अपनी टीम को स्पष्ट संदेश देते हैं, "हर टीम में एक ही गुंडा हो सकता है और इस टीम का गुंडा मैं हूं।"
बहरहाल फ़ाइनल का नतीजा चक दे इंडिया की तर्ज़ पर भले ही पेनाल्टी शूट आउट (सुपर ओवर) के आधार पर ना भी निकले लेकिन ख़ुद निजी और पेशेवर जीवन में भी द्रविड़ का किरदार रुपहले परदे पर कबीर ख़ान की भूमिका निभाने वाले अभिनेता से काफ़ी मिलता जुलता है। द्रविड़ कर्नाटका से आते हैं और शाहरुख़ ख़ान का भी कर्नाटका से गहरा नाता रहा है।
शाहरुख़ के फ़िल्मी करियर में भी 'राहुल' नाम के किरदार का एक अलग स्थान है जो द्रविड़ के कोचिंग कार्यकाल की शुरुआत की तरह ही गढ़े गए विलेन के किरदार से शुरू तो हुआ लेकिन कालांतर में इसी 'राहुल' का किरदार गुस्सैल और हिंसक युवक की छवि को त्याग कर द्रविड़ जैसा शांत और विनम्र नायक बन गया। रुपहले परदे पर उसके किरदार की सौम्यता ने सफलता की ना सिर्फ़ सीढ़ियां चढ़ीं बल्कि अपने नए पैमाने तय किए। इस साल को रुपहले परदे वाले राहुल की वापसी और सफलता का साल माना जा रहा है, शायद यह साल कोच राहुल के लिए भी कुछ वैसा ही साल रहने वाला है।
नवनीत झा ESPNcricinfo में कंसल्टेंट सब एडिटर हैं।
Read in App
Elevate your reading experience on ESPNcricinfo App.