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अपनी हर समस्या का हल निकालने की कला से युक्त अश्विन के अंतर्राष्ट्रीय करियर का सुखद अंत

अश्विन का अंतर्राष्ट्रीय करियर नाम नहीं प्रदर्शन के दम पर फलता फूलता रहा

Kumble toasts 'great champion' Ashwin: 'Wanted you to go past 619'

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बॉलीवुड फ़िल्म बंटी और बबली का एक डायलॉग है : "ये वर्ल्ड है ना वर्ल्ड, इसमें दो तरह के लोग होते हैं, एक जो सारी ज़िंदगी एक ही काम करते रहते हैं और दूसरे जो एक ही ज़िंदगी में सारे काम कर देते हैं।"

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आर अश्विन दूसरे तरह के लोगों की श्रेणी में आते हैं। वह बल्लेबाज़ी करना चाहते थे, वो तेज़ गेंदें डालना चाहते थे, वह मैचों का आयोजन करना चाहते थे।

अश्विन वो सबकुछ करना चाहते थे जिससे वह अपना जीवन यापन कर सकें। हममें से अधिकांश भारतीय यह सोचकर प्रयोग नहीं करते कि जो भी हमने खून पसीने की मेहनत से कमाया है, उसे हम कहीं खो ना दें। लेकिन अश्विन ने ऑफ़ स्पिन के साथ वो सबकी की जो वो कर सकते थे। क्रिकेट पंडित यह कहते रहे कि अश्विन बहुत प्रयोग करते हैं, ऑफ़ स्पिन एक ही चीज़ लगातार दोहराते रहने का नाम है, अगर वो लगातार प्रयोग करते रहे तो वो अपनी स्टॉक गेंद खो देंगे। तब अब वो क्या करेंगे?

गेंद को टप्पा पड़वाने के संबंध में अश्विन पूरी तरह से सुरक्षित थे, वो इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि वो जहां चाहेंगे गेंद को टप्पा पड़वा सकते हैं। तो उन्होंने अन्य प्रयोग भी किए, अलग अलग रन अप, अलग सीम पॉज़िशन, अलग अलग गेंदें, सब कुछ।

इस लेखक ने उनसे एक बार पूछा था कि क्या उन्हें ऑफ़ ब्रेक की क्वालिटी को खोने का भय नहीं है? अगर ऐसा हुआ तो वह क्या करेंगे? उन्होंने कहा कि अगर वह इसे खो देंगे तो इसका मतलब होगा कि यह उनके पास रह पाने वाली चीज़ नहीं थी। उपलब्धि हासिल करने की राह में अश्विन ने कभी भी भय और दकियानूसी विचारों को रोड़ा नहीं बनने दिया।

वापस बंटी बबली के उस डायलॉग की ओर चलते हैं। जब अश्विन एक ऑफ़स्पिनर भी नहीं बने थे तब राष्ट्रीय अंडर 17 कैंप के दौरान उन्होंने क्रिकेट को हमेशा के लिए छोड़ने का फ़ैसला कर ही लिया था। यह वो दौर था जब दक्षिण भारत के किसी भी क्रिकेटर को ड्रेसिंग रूम में टिके रहने के लिए यथासंभव हिंदी सीखनी पड़ती थी।अश्विन के लिए यह अचरज भरा था कि कोई उनकी असहजता को महसूस नहीं कर पा रहा था।

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हालांकि वो इस खेल से इतना प्रेम करते थे कि उन्होंने इस शुरुआती सदमे से उबरने के लिए हिंदी की कक्षाएं लेनी भी शुरू कर दी थीं। एक समय के बाद उन्होंने इसे एक राजनीतिक या सांस्कृतिक समस्या के तौर पर देखना छोड़ दिया।

अपनी समस्याओं का हल निकालने का माध्यम अश्विन ने अपने क्रिकेट को बनाया। कोई बल्लेबाज़ समस्या है, तो इसका हल मुझे निकलना है। इसका हल 537 टेस्ट विकेट और 37 पंजे के साथ निकालूंगा। बल्लेबाज़ी में मुश्किल पैदा हो रही है, तो इसका हल छह शतकों और 14 अर्धशतकों के साथ निकलेगा। छह में से पांच शतक मुश्किल परिस्थिति में आए, उन पांच में से एक शतक रोहित शर्मा के साथ बल्लेबाज़ी करते हुए। अश्विन जब संन्यास की घोषणा कर रहे थे, उस समय रोहित को अपने आंसुओं को रोकने के लिए संघर्ष करते देखा जा सकता था।

बिना कोई कारण दिए सीमित ओवरों से बाहर किया जाना भी एक समस्या थी, जिसका हल उन्होंने अपनी तरकश में नई गेंद जोड़कर और बल्लेबाज़ी में हिटिंग क्षमता विकसित कर निकाला। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उन्हें नियमित तौर पर सीमित ओवर प्रारूप में खेले काफ़ी समय हो गया है इसलिए इस बात को भुलाना आसान हो सकता है कि वह छह वर्षों तक प्रमुख ODI और T20I गेंदबाज़ रह चुके थे, वह पावरप्ले में गेंदबाज़ी किया करते थे और उनकी यह क्षमता चेन्नई सुपर किंग्स को IPL की ट्रॉफ़ी जिताने में अहम भूमिका निभाई थी।

अश्विन समस्या को इस तरह देखते थे कि उनका हल कैसे निकाला जा सकता है। उन्होंने कई समस्याओं का समाधान निकाला और अपने करियर में 11 बार प्लेयर ऑफ़ द सीरीज़ बने, जो कि विश्व क्रिकेट में संयुक्त तौर पर सर्वाधिक है। उनके नाम टेस्ट में 10 प्लेयर ऑफ़ द मैच अवॉर्ड भी हैं। अश्विन को टेस्ट में भारत के सबसे बड़े मैच विनर की उपाधि देना अतिश्योक्ति नहीं होगी।

वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप ने जब टीमों को घरेलू परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने के लिए मजबूर किया तब विपक्षी टीमों ने ऐसी पिचें तैयार की जहां स्पिनर को ज़रा भी मदद ना मिले, ताकि वह अश्विन को गेम से बाहर कर सकें।

हम अश्विन की योग्यता की तारीफ़ तो करते हैं लेकिन इस दौरान उनका अनुशासन और समर्पण हमारे ध्यान में नहीं आ पाता जिसकी बदौलत उन्होंने डेब्यू से लेकर अब तक घर पर खेला गया एक भी टेस्ट मिस नहीं किया। आधुनिक युग में यह एक बड़ी उपलब्धि इसलिए भी है क्योंकि आज के दौरान में क्रिकेट काफ़ी खेली जाती है।

अश्विन इस चीज़ पर गर्व कर सकते हैं कि उन्होंने हर अंतर्राष्ट्रीय मैच अपने प्रदर्शन के दम पर ही खेला। वह इतने बड़े खिलाड़ी नहीं थे कि उन्हें ड्रॉप नहीं किया जा सकता था लेकिन वह इतने छोटे खिलाड़ी भी नहीं थे कि उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सके।

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यह एक क्रूर विडंबना है कि टेस्ट में भारत के सबसे बड़े मैच विनर के अंतिम चार टेस्ट मैच हार (न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ तीन और एडिलेड टेस्ट) के नतीजे पर समाप्त हुए। अश्विन जैसे किसी भावुक व्यक्ति के संन्यास का फ़ैसला सोचने पर मजबूर ज़रूर करता है। उनसे यह उम्मीद की जा सकती थी कि वह अपना फ़ेयरवेल टेस्ट खेलेंगे।

लेकिन यह भी एक तथ्य है कि विदेशी धरती पर रवींद्र जाडेजा टेस्ट बल्लेबाज़ के रूप में अश्विन से आगे निकलने और इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ़्रीका में चौथे तेज़ गेंदबाज़ को फ़ायदा पहुंचाने वाली परिस्थितियों के चलते अश्विन को काफ़ी समय मैदान के बाहर बिताना पड़ता था।

प्लेइंग इलेवन का हिस्सा ना होने में कोई खराबी नहीं है लेकिन एक निश्चित उम्र और करियर के निश्चित पड़ाव पर आने के बाद आपको महीने के अंत में अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैसे की ज़रूरत तो पड़ती ही गई। अश्विन प्लेइंग इलेवन का हिस्सा होने के लिए क्लब क्रिकेट भी खेलेंगे और यह उन्हें अपने परिवार के साथ समय गुज़ारने में भी मदद करेगा।

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यह भले ही सुनने में अजीब लगे लेकिन अश्विन को बिना प्लेइंग इलेवन का हिस्सा रहे अंतर्राष्ट्रीय दौरा करने से ज़्यादा क्लब क्रिकेट खेलने में अधिक आनंद आता है। वह क्रिकेट को सिर्फ़ क्रिकेट के रूप में ही प्रेम करते हैं अन्य चीज़ों से उन्हें फ़र्क नहीं पड़ता।

अश्विन का करियर एक शानदार मोड़ पर समाप्त हुआ है। भला कौन अश्विन को टेस्ट मैच जीतकर विदा लेते नहीं देखना चाहता होगा? लेकिन अश्विन का अंतिम मैच भी अच्छा था। पिच स्पिन को मदद नहीं कर रही थी और नेथन लायन ने दोनों पारियों में सिर्फ़ एक ही ओवर डाला था, वहां अश्विन ऑस्ट्रेलिया पर हावी नज़र आ रहे थे। उस पिच पर भी अश्विन बल्लेबाज़ को हाथ खोलने का मौक़ा नहीं दे रहे थे, मिचेल मार्श का शिकार करने के साथ ही ट्रैविस हेड का उन्होंने शिकार कर ही लिया था लेकिन एक हाफ चांस पर हेड का कैच छूट गया। उस मैच में सिर्फ़ अश्विन और जसप्रीत बुमराह ही दो ऐसे गेंदबाज़ थे जिन्होंने प्रति ओवर तीन रन से कम की दर से रन खर्च किए थे।

अश्विन की आंखों से आंसू छलकेंगे लेकिन वो खुशी के आंसू होंगे। अगर उन्हें लगेगा कि यह अंत अच्छा नहीं था तो शायद वह यह कहेंगे शायद उन्हें इससे बेहतर अंत की ज़रूरत ही नहीं रही होगी।

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सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo के वरिष्ठ लेखक हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के कंसल्टेंट सब एडिटर नवनीत झा ने किया है।