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अपने पापा के बनाए स्टेडियम में रणजी ट्रॉफ़ी का मैच खेलेंगे अभिमन्यु ईश्वरन

देहरादून के जिस स्टेडियम उत्तराखंड और बंगाल का मैच होगा, उसके मालिक अभिमन्यु के पिता हैं

अभिमन्यु ईश्वरन बांग्लादेश दौरे पर गई भारतीय टेस्ट टीम का हिस्सा थे  AFP via Getty Images

अभिमन्यु ईश्वरन के पिता आरपी ईश्वरन ने साल 2005 में देहरादून में एक बड़ी ज़मीन ख़रीदी और एक क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण शुरू किया। ईश्वरन के स्वामित्व वाली क्रिकेट अकादमी चलाने वाली नेशनल स्कूल ऑफ़ क्रिकेट को अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी कहा जाता था, जो महाभारत के चरित्र से प्रेरित था।

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वहीं जब साल 1995 में ईश्वरन को एक बेटा हुआ तो उसका नाम भी उन्होंने अभिमन्यु ही रखा। जब स्टेडियम का काम पूरा हो गया तो उसका नाम रखा गया अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी स्टेडियम।

अब 3 जनवरी को बंगाल के सलामी बल्लेबाज़ और कप्तान अभिमन्यु उत्तराखंड के ख़िलाफ़ रणजी ट्रॉफ़ी मैच के लिए उस स्टेडियम में अपनी टीम का नेतृत्व करेंगे। अभिमन्यु हाल ही बांग्लादेश दौरे पर गई बांग्लादेश टेस्ट टीम का भी हिस्सा थे। यह इस स्टेडियम में होने वाला पहला प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच होगा।

अभिमन्यु ने पीटीआई से कहा, "इस मैदान पर मैंने बचपन में क्रिकेट सीखा है और अब इसी मैदान पर रणजी मैच खेलना मेरे लिए गर्व का क्षण है। यह ईश्वरन के प्यार और कड़ी मेहनत का नतीज़ा है। घर आना हमेशा एक शानदार अहसास होता है, लेकिन एक बार जब आप मैदान पर होते हैं, तो ध्यान बंगाल के लिए मैच जीतने पर होता है।"

मुझे नहीं लगता कि (खिलाड़ियों के नाम पर मैदान पर खेलने के) ऐसे कुछ ख़ास उदाहरण हैं, लेकिन मेरे लिए यह कोई उपलब्धि नहीं है। स्टेडियम 'सिर्फ़ मेरे बेटे के लिए नहीं' है। हां, यह अच्छा लगता है, लेकिन असली उपलब्धि तब होगी जब मेरा बेटा भारत के लिए 100 टेस्ट खेल सके। यह एक ऐसा स्टेडियम है जिसे मैंने खेल के प्रति अपने जुनून के कारण बनाया है, न कि केवल अपने बेटे के लिए।"आरपी ईश्वरन

ऐसे कई स्टेडियम हैं कि जिनका नाम खिलाड़ियों के नाम पर रखा गया है। जैसे कि एंटिगा में सर विवियन रिचर्ड्स स्टेडियम, त्रिनिदाद में ब्रायन लारा स्टेडियम, ब्रिसबेन में ऐलेन बॉर्डर फ़ील्ड और एडिलेड में करेन रोल्टन ओवल को प्रतिष्ठित खिलाड़ियों के अंतर्राष्ट्रीय करियर समाप्त करने के बाद फिर से नामित किया गया लेकिन अभिमन्यु के मामले में ऐसा बिल्कुल नहीं है।

डैरन सैमी एकमात्र ऐसा खिलाड़ी हो सकते हैं, जिन्होंने अपने नाम के स्टेडियम में क्रिकेट खेला है। हालांकि एक बात तो ज़रूर है कि अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी स्टेडियम में अभिमन्यु का खेलना उनके परिवार के लिए काफ़ी अच्छा अवसर होगा।

देहरादून में फ्लडलाइट वाले इस मैदान का उपयोग बीसीसीआई और उत्तराखंड क्रिकेट संघ द्वारा पिछले कुछ वर्षों से किया जा रहा है। वहां कई घरेलू मैच आयोजित किए गए हैं, लेकिन इस स्तर पर एक भी ऐसा मैच नहीं खेला गया है।

ईश्वरन ने पीटीआई से कहा,'' मुझे नहीं लगता कि (खिलाड़ियों के नाम पर मैदान पर खेलने के) ऐसे कुछ ख़ास उदाहरण हैं, लेकिन मेरे लिए यह कोई उपलब्धि नहीं है। स्टेडियम 'सिर्फ़ मेरे बेटे के लिए नहीं' है। हां, यह अच्छा लगता है, लेकिन असली उपलब्धि तब होगी जब मेरा बेटा भारत के लिए 100 टेस्ट खेल सके। यह एक ऐसा स्टेडियम है जिसे मैंने खेल के प्रति अपने जुनून के कारण बनाया है, न कि केवल अपने बेटे के लिए।"

अभिमन्यु के पिता चाहते हैं कि वह भारत के लिए 100 टेस्ट मैच खेलें  Bangladesh Cricket Board

"मैंने 2006 में इसे बनाना शुरू किया और मैं अभी भी इसे लगातार अपग्रेड करने के लिए अपनी जेब से ख़र्च कर रहा हूं। मुझे इससे कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ है। यह सब मैं क्रिकेट के प्रति अपने जुड़ाव के कारण कर रहा हूं।"

पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट ईश्वरन क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन नहीं बन सके। उनकी पेशेवर सफलता का मतलब था कि वे अभिमन्यु को बड़ा बनाने के लिए उनका साथ दे सकते थे। अभिमन्यु ने हाल के दिनों में भारत ए का नेतृत्व किया है और वह बैकअप ओपनर के रूप में भारतीय टेस्ट टीम का भी हिस्सा रहे हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण नहीं किया है।

ईश्वरन अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, "मैं एक अख़बार बांटता था और देहरादून में आइसक्रीम बेचता था। जब मैंने अपनी सीए की डिग्री पूरी की थी, मैं खेल को वापस कुछ देना चाहता था और यह मेरा सौभाग्य है कि भगवान ने मुझे एक बेटा दिया जो क्रिकेट भी खेलता है।"

वह एक सफल प्रथम श्रेणी क्रिकेटर के एक गौरवान्वित पिता हैं। लेकिन ईश्वरन को इससे भी संतुष्टि मिलती है कि उनकी अकादमी ने अब तक ऐसे पांच खिलाड़ियों को तैयार करने में मदद की है, जो वर्तमान उत्तराखंड की टीम में हैं, जिसमें सीमर दीपक धपोला भी शामिल हैं, जिन्होंने आख़िरी मैच में आठ विकेट हासिल किए थे। ईश्वरन तमिलनाडु से हैं और उनकी पत्नी पंजाब से हैं। उनका परिवार 1969 में उत्तराखंड चला गया था। जब अभिमन्यु नौ साल के थे, तब ईश्वरन ने अभिमन्यु के लिए घर के रूप में बंगाल को चुना क्योंकि बंगाल में क्रिकेटरों को लेकर बेहतर मौक़े थे।

अभिमन्यु अभी भी देहरादून में प्रशिक्षण लेते हैं और उत्तराखंड के कई खिलाड़ियों से परिचित हैं। ऐसा हो सकता है कि विपक्षी टीम के खिलाड़ियों का इसका लाभ मिले लेकिन अभिमन्यु ऐसा नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा, "मैंने उनमें से (उत्तराखंड के खिलाड़ी) बहुत के साथ अभ्यास किया है और मैं इससे इनकार नहीं करूंगा कि इससे मदद मिलती है। लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह की वीडियो विशेषज्ञ मौजूद है, उससे किसी भी टीम एक समान ही लाभ मिलता है।"

Abhimanyu EaswaranIndiaBengal vs UttarakhandRanji Trophy