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अपना 13वां रणजी ट्रॉफ़ी खेल रहे बावने इस बार ख़िताब का सूखा ख़त्म करना चाहते हैं

'मैं केवल अपना काम करता हूं क्योंकि चयन मेरे हाथ में नहीं है'

सक्रिय क्रिकेटरों में रणजी ट्रॉफ़ी में दूसरे सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं Ankit Bawne  M Ranjith Kumar

महाराष्ट्र के मैराथन मैन अंकित बावने अब अपने 13वें रणजी ट्रॉफ़ी सीज़न में प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने अपना डेब्यू केवल 15 साल की उम्र में दिसंबर 2007 में कर्नाटक के ख़िलाफ़ रत्नागिरि में किया था। इन 18 सालों के बाद भी वह घरेलू क्रिकेट के कठिन परिश्रम का आनंद ले रहे हैं और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित हैं।

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सक्रिय रणजी खिलाड़ियों में वह जम्मू-कश्मीर के पेशेवर पारस डोगरा (9505) के बाद दूसरे सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं। उनके नाम 7244 रन हैं और साथ ही वह 50-ओवर वाले प्रारूप विजय हजारे ट्रॉफ़ी में सबसे ज़्यादा रन (4010) बनाने वाले खिलाड़ी हैं। यह 32 वर्षीय बावने की स्थिरता और टिकाऊपन का सबूत है।

बावने ने नए घरेलू सीज़न की शुरूआत से पहले ESPNcricinfo से बात करते हुए कहा, "मैं अपने माता-पिता के लिए इकलौता बच्चा हूं और मैं 14 साल की उम्र से घर से दूर रहा हूं। यह एक शानदार यात्रा रही है, पर अभी भी बहुत आगे जाना है और मुझे विश्वास है कि मेरे पास अभी भी काफ़ी रन बाक़ी हैं।

"मुझे लगता है कि लगातार मेहनत करते रहना महत्वपूर्ण है, चाहे आप किसी भी स्तर पर क्रिकेट खेलें। कुछ खिलाड़ी भारत के लिए खेलते हैं, कुछ राज्य के लिए और कुछ खिलाड़ी ऐसे होंगे, जो सिर्फ़ लीग स्तर पर ही रहेंगे और आगे का मौक़ा नहीं पाएंगे। पर मेरा मानना है कि एटीट्यूड और अनुशासन हमेशा होना चाहिए। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे मेहनती व्यक्ति के रूप में याद रखें ना कि सिर्फ़ किसी रिकॉर्ड के लिए। अगर मैं पर्याप्त रन नहीं बना रहा, तो मुझे ड्रॉप भी दिया जाए। पर कोई मुझे इसलिए न हटाए क्योंकि मैं फ़िट नहीं हूं और बस अपने करियर को आगे बढ़ा रहा हूं।"

बावने ने लाल गेंद की क्रिकेट में इंडिया A स्तर पर भी सफ़लता हासिल की है। उन्होंने इंडिया A के लिए 19 पारियों लगभग 55 की औसत से 663 रन बनाए हैं। हालांकि, बावने को अगले स्तर पर अवसर नहीं मिल पाया। कोविड-19 के बाद टीम प्रबंधन नई उभरती प्रतिभाओं की ओर गया और इसे देखते हुए पिछले पांच साल से वह इंडिया A का हिस्सा नहीं रहे, पर इससे वह घरेलू क्रिकेट में मेहनत से अपनी लगन खोने वाले नहीं हैं।

बावने ने कहा, "मैं सिर्फ़ वही कंट्रोल करना चाहता हूं जो मेरे हाथ में है। चयन मेरे हाथ में नहीं है। मेरे पास कुछ अच्छी टीमों के ख़िलाफ़ शतकीय पारियां हैं और मैंने इंडिया A की कप्तानी भी की है। अचानक मैं इंडिया A का हिस्सा नहीं रहा, पर मैं ऐसा खिलाड़ी नहीं हूं, जो चयन समिति पर सवाल उठाए। जो कुछ मेरे लिए लिखा है, मैं वह करूंगा। देखिए, कुछ अंपायरिंग के फ़ैसले आपके हाथ में नहीं होते। वैसे ही, हर सीज़न भी आपके हाथ में नहीं होता (हंसते हुए)।"

पिछले रणजी सीज़न में सात मैचों में केवल दो जीत दर्ज करने के बाद महाराष्ट्र ने अपनी टीम में कुछ बदलाव किए हैं। उन्होंने दो नए पेशेवरों के तौर पर पृथ्वी शॉ और जलज सक्सेना को लिया है। साथ ही उन्होंने विक्टोरिया के पूर्व बल्लेबाज़ और बांग्लादेश के कोच रहे शॉन विलियम्स को अपने डायरेक्टर ऑफ क्रिकेट के रूप में जोड़ा है।

एक घरेलू क्रिकेटर के रूप में, आपको एक उबाऊ ज़िंदगी जीनी पड़ती है। आपको सुबह जल्दी उठना होता है। अपने भोजन का ध्यान रखना होता है। दिन में दो बार वर्कआउट करना होता है। जब आप यह 365 दिन करते हैं, तो आप इसकी आदत डाल लेते हैं और यही मेरे पिछले 17 सालों की ज़िंदगी रही है। मैं वही खाना खाता हूं, उसी समय सोता हूं और रणजी से पहले यहां चेन्नई लीग खेलता हूं।अंकित बावने

जहां सक्सेना एक देर से साइन हुए खिलाड़ी थे। वहीं शॉ ने प्री-सीज़न बुची बाबू टूर्नामेंट (चेन्नई) में अपने डेब्यू पर शतकीय पारी खेलकर टीम में अपनी जगह बना ली है। KSCA के के थिम्मप्पैया मेमोरियल ट्रॉफ़ी में शॉ ने महाराष्ट्र की कप्तानी का भी स्वाद चख लिया।

बावने, जो आगामी रणजी ट्रॉफ़ी में महाराष्ट्र की कप्तानी करेंगे, मानते हैं कि व्यक्तिगत बदलावों के बीच क़िस्मत में भी बदलाव आएगा।

बावने ने कहा, "हम लाल गेंद की क्रिकेट में अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए, पर हम सफ़ेद गेंद की क्रिकेट में लगातार अच्छा कर रहे हैं। युवा खिलाड़ियों को अनुभवी खिलाड़ियों के साथ मिलाकर संतुलन बनाना भी ज़रूरी है। पृथ्वी ने यहां आकर हमारी ओपनिंग की कमी को भर दिया है। पृथ्वी 25 साल का है और महाराष्ट्र के लिए लंबे समय तक उपयोगी साबित हो सकता है। मुंबई से पुणे जाना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। जब भी वह मुंबई जाना चाहे, वह बस तीन घंटे की ड्राइव पर है और अपने परिवार के साथ रह सकता है। पृथ्वी के साथ-साथ हमारे पास [राजनीश] गुरबानी भी है और हम जो कुछ भी चाहिए, कर रहे हैं ताकि यह लाल गेंद की टीम बेहतरीन बने।

"हमारी ओपनिंग में थोड़ी कमी थी, पर पृथ्वी आ गया है। गुरबानी के अलावा मुकेश चौधरी और रामकृष्ण घोष जो एक अच्छे ऑलराउंडर हैं, वह CSK का हिस्सा रहे हैं। विकी ओस्तवाल अंडर-23 से कदम बढ़ा रहे हैं। अर्शीन कुलकर्णी और सचिन धस भी काफी प्रतिभाशाली हैं। इसलिए इस साल हमारे पास एक शानदार यूनिट है। हमारे कोच हर्षद खादिवाले और समद फ़लाह भी जीतने के लिए भूखे हैं।"

लगभग पांच सालों से इंडिया A के लिए नहीं खेले हैं अंकित बावने  PTI

बावने के दिल में रणजी ट्रॉफ़ी जीतने की काफ़ी इच्छा है। यह ऐसा कुछ है जो उन्हें और उनकी टीम को कई वर्षों से हासिल नहीं हुआ है। महाराष्ट्र ने आख़िरी बार यह ट्रॉफ़ी 1940-41 में जीती थी। 2013-14 में बावने उस सूखे को ख़त्म करने के काफ़ी नज़दीक पहुंचे थे, पर फ़ाइनल में हैदराबाद में कर्नाटक से हार गए थे। उस फ़ाइनल में बावने ने दोनों पारियों में अर्धशतक बनाया था, पर अपनी पहली पारी के 89 रन को बड़ी शतकीय पारी में नहीं बदल सके थे। वह इसके लिए आज भी पछतावा जाहिर करते हैं।

"प्री-सीज़न की तैयारी अच्छी रही है और हमारे प्रेसीडेंट ने भी कहा है कि महाराष्ट्र रणजी ट्रॉफ़ी जीतने की सोच रहा है। मैंने घरेलू क्रिकेट में बहुत कुछ हासिल किया है पर कभी रणजी ट्रॉफ़ी नहीं जीती। मुझे वह 90 (89) रन की फ़ाइनल की पहली पारी याद है। अगर मैंने 150 बनाये होते तो शायद चीज़ें अलग होतीं। एक रणजी टाइटल कुछ ऐसा है, जिसे मैं उम्र भर संजोकर रख सकता हूं। इसलिए लक्ष्य है कि शरीर को लाइन पर रखकर महाराष्ट्र के लिए जीतना।"

बावने नए घरेलू सीज़न की तैयारी के लिए चेन्नई की पहली-डिवीज़न लीग में खेले। यह उनकी दशक से ज़्यादा पुरानी प्री-सीज़न तैयारी का हिस्सा रहा है। वह इस "बोरिंग" रूटीन को अपनाने में ख़ुश हैं और हर साल वही दिनचर्या दोहराते हैं ताकि रणजी के लंबे पर्व के लिये तैयार रहें।

"एक घरेलू क्रिकेटर के रूप में, आपको एक उबाऊ ज़िंदगी जीनी पड़ती है। आपको सुबह जल्दी उठना होता है। अपने भोजन का ध्यान रखना होता है। दिन में दो बार वर्कआउट करना होता है। जब आप यह 365 दिन करते हैं, तो आप इसकी आदत डाल लेते हैं और यह मेरे पिछले 17 सालों की ज़िंदगी रही है। मैं वही खाना खाता हूं, उसी समय सोता हूं और रणजी से पहले यही चेन्नई लीग खेलता हूं। मैं चाहे जिस भी स्तर पर खेलूं, प्रदर्शन करता रहूंगा क्योंकि मेरी दिनचर्या सेट है और मैं अच्छे से तैयार हूं। जब आप 29-30 साल की उम्र पार कर जाते हैं तो आपको शरीर पर अधिक ध्यान देना होता है। मैं एक और घरेलू सीज़न के लिए तैयार हूं।"

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देवरायण मुथु ESPNcricinfo में सब-एडिटर हैं