कानपुर डायरीज़ : जादू है, नशा है, कानपुर का
सचिन तेंदुलकर तो जादूगर हैं ही लेकिन इस शहर की बात वैसे ही कुछ और है

मैं कानपुर बस इससे पहले एक बार आया था। 2013 में भारत, वेस्टइंडीज़ से एक वनडे मैच जीता था और उसी रोज़ भारतीय टीम के बल्लेबाज़ सुरेश रैना का जन्मदिन भी था। मैं रेडियो कॉमेंट्री के लिए दिन के मैच के लिए उसी सुबह लगभग चार बजे दिल्ली से ट्रेन से पहुंचा और सीधा मेरे साथी कॉमेंटेटर्स के होटल पहुंचा। मैच के बाद कुछ घंटे टीवी में मेरे पुराने दोस्त रह चुके साथी आजेश से मिला और फिर स्टेशन चला गया। यह अलग बात है कि दिल्ली के आनंद विहार तक की गाड़ी इस बार लगभग छह घंटे देर से आई।
इस भूमिका की ज़रूरत इसलिए कि रोड सेफ़्टी वर्ल्ड सीरीज़ (आरएसडब्ल्यूएस) के लिए जब मैं दो दिनों के लिए कानपुर आया तो मेरे पिताजी ने कुछ जगह देखने के लिए बताया था। दरअसल मेरे दादाजी रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक अफ़सर हुआ करते थे और 1947 से 1961 तक यहीं रहे और फिर दिल्ली गए थे। पिताजी और उनके छोटे भाई और बहन शुरुआती सालों में यहीं रहते थे। शहर के बीच स्थित अशोक नगर में ही उनका पूरा संसार था।
शुक्रवार को पहले मैच की पूर्व संध्या पर लखनऊ हवाई अड्डे से आते हुए पहली बार कानपुर और उन्नाव जैसे शहरों को अच्छे से देखा। पहली बार का सफ़र स्टेशन, सिविल लाइंस और ग्रीन पार्क स्टेडियम के दायरे के बीच ही रह गया था लेकिन इस बार शहर का काफ़ी हिस्सा देख पाया। होटल में कई परिचित चेहरों में एक थे ऑस्ट्रेलिया के लेफ़्ट आर्म रिस्ट स्पिनर ब्रैड हॉग जो इस बार कॉमेंट्री टीम का हिस्सा होंगे। उनसे काफ़ी देर बात करके मैं शहर और फिर ग्रीन पार्क स्टेडियम गया।
स्टेडियम में पहली हुड़दंग इस बात पर मची कि कई स्थानीय पत्रकार अक्रेडिटेशन से वंचित रह गए थे। और वहीं इस बार कई फ़ैन ग्रुप के सदस्यों को कार्ड मिले हैं। इसका एक फल यह रहा कि घोषणा होने के बावजूद प्रेस वार्ता को रद्द कर दिया गया।
मैं यहां कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों को मिलने और उनसे छोटे और मज़ेदार साक्षात्कार रिकॉर्ड करने की फ़ेहरिस्त लेकर आया हूं। मैं और मेरे कैमरामैन आलम टीमों के अभ्यास से पहले मैदान के पास पहुंच गए लेकिन यहां से सुरक्षा कर्मी को पार पाना कठिन था। शहर के कुछ पदाधिकारी आ रहे थे और ऐसे में किसी का भी मैदान पर उतरना वर्जित था। आख़िर में साउथ अफ़्रीकी खिलाड़ी अभ्यास में जुट गए और जब वह अधिकारी आए तो इंडिया लेजेंड्स के कप्तान सचिन तेंदुलकर अपने साथियों के साथ उनसे मिलने गए। लगभग आधे घंटे बाद भारतीय टीम ने भी अभ्यास शुरू किया और तब तक आलम और मैं मैदान पर ही थे।
काफ़ी प्रयास के बाद मखाया एनटीनी से बात हुई। एक ज़िंदादिल क्रिकेटर जो आज भी पूरे मौज में रहते हैं। एनटीनी ने कुछ वक़्त गेंदबाज़ी की और फिर भारतीय ख़ेमे में जाकर सचिन, युवराज सिंह, रैना, मनप्रीत गोनी, मुनाफ़ पटेल जैसे लोगों से मज़ाक़ में जुट गए। समर्थकों, नेट गेंदबाज़ों और ग्राउंड स्टाफ़ से भी खुलकर मिले और उनके साथ सेल्फ़ी खिंचवाईं। एनटीनी कभी किसी को 'गणपति बाप्पा मोर्या' कहते तो कभी 'माशाल्लाह'...जो भी हो उनकी भारतीयता को अपनाने की यह कोशिश अच्छी थी।
कप्तानी के ज़िम्मेदारियों के चलते जॉन्टी रोड्स और सचिन हमसे बात नहीं कर पाए। इंडिया लेजेंड्स से कुछ खिलाड़ियों के मना करने के बाद नमन ओझा हमसे मिले। नेट्स को ग़ौर से देखकर दो खिलाड़ी जो ज़बरदस्त टच में दिखे वह थे युवराज और यूसुफ़ पठान। दोनों ने कम से कम एक-एक गेंद स्टेडियम के बाहर भेजी।
कल गणेश उत्सव का आख़िरी दिन भी था। सिर्फ़ हम मीडिया वाले ही नहीं, कॉमेंट्री और टीवी प्रसारण से जुड़े लोग भी विसर्जन के लिए निकले अनगिनत जुलूसों के चक्कर में फंस गए। मैंने यह दोपहर को ही देखा था और शाम तक इसकी आदत सी बन गई थी। रात को होटल पहुंचने और सुबह नाश्ता करने तक लिसा स्थालेकर, मनिंदर सिंह, सबा करीम, सुशील दोषी और मेरे दिल्ली के कॉमेंट्री के दोस्त सुनील तनेजा से भी मुलाक़ात हुई।
और हां, पिताजी के बताए लगभग सारे ठिकाने कल देख लिए। उनका और बुआ का सबसे पहला स्कूल, मोतीझील का उद्यान। और उनका घर जो अब एक जादूगर का निवास है (पीसी कानपुरी) और जो वहां एक 'मैजिक इंस्टिट्यूट एंड रिसर्च सेंटर' चलाते हैं।
वैसे पिताजी और मेरे, दोनों के बचपन के जादूगर तो क्रिकेटर ही हुआ करते थे। और उन्हीं के साथ बैठकर चाय पीना और उनके यादगार मैचों के बारे में गपशप में भाग लेना और बाद में अपने समय के सूरमाओं को फिर मैदान पर उतरते देखना किसी जादू से कम कहां।
देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर असिस्टेंट एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख हैं।
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