तेंदुलकर बनाम ऑस्ट्रेलिया : सिडनी, पर्थ, चेन्नई, कोची में लेजेंड के कारनामे
अगर ऑस्ट्रेलिया को भारतीय दिग्गज का मनपसंद विपक्षी टीम कहा जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं

रोड सेफ़्टी वर्ल्ड सीरीज़ अब आ पहुंचा है रायपुर, जिस शहर में इत्तिफ़ाक़ से पिछला संस्करण कोरोना के चलते आकर कुछ मैचों के बाद रुक गया था। अब इंडिया लेजेंड्स और कप्तान सचिन तेंदुलकर के सामने चुनौती है ऑस्ट्रेलिया लेजेंड्स को पार पाकर फ़ाइनल में जगह बनाने की।
हमने आपको क्रमश: तेंदुलकर की ब्रायन लारा, न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड के विरुद्ध यादगार मैचों के बारे में इस टूर्नामेंट के दौरान बताया है। ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ तो ऐसा करना एक कठिन काम है क्योंकि टेस्ट (39 मैचों में 55.00 के औसत और 11 शतकों के साथ 3630 रन) और वनडे क्रिकेट (71 मैचों में 3077 रन, 44.59 औसत और नौ शतकीय पारियां) में उन्होंने इस टीम के ख़िलाफ़ कई ज़बरदस्त मुक़ाबले खेले हैं। फिर भी हम चुनते हैं कुछ ख़ास लम्हों को, और कोशिश करेंगे एक-आध प्रत्यक्ष उदाहरणों को शामिल नहीं किया जाए।
वाका के आक़ा
1991-92 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर तेंदुलकर 18 साल के थे लेकिन तब तक भारत के बाहर तीन कठिन दौरों का हिस्सा रह चुके थे। सिडनी में 148 नाबाद के दौरान उन्होंने और रवि शास्त्री ने युवा शेन वॉर्न की पिटाई करते हुए पहली बार भारत को सीरीज़ में हावी होने दिया था लेकिन मैच ड्रॉ रहा।
पर्थ में आख़िरी टेस्ट में भारत के सामने एक उछाल भरी पिच पर क्रेग मैकडर्मट, मर्व ह्यूज़, पॉल राइफ़ल, माइक व्हिटनी और टॉम मूडी गेंदबाज़ी की कमान संभाल रहे थे। दसवें नंबर पर किरण मोरे ने 43 बनाकर पारी का दूसरा सर्वाधिक स्कोर बनाया। छह बल्लेबाज़ दोहरे अंक तक नहीं पहुंचे। इस बीच कट और बैकफ़ुट पंच का बेहतरीन उपयोग करते हुए तेंदुलकर ने 114 रन बनाए, जो उनके कई क़रीबी दोस्त और प्रतिद्वंद्वी उनका सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय शतक मानते हैं।
क्या एक गेंद में जादू हो सकता है?
टाइम मशीन में छलांग लगाकर हम पहुंचते हैं मोहाली। लगभग जैसा आजकल चल रहा है, उन दिनों एक त्रिकोणीय श्रृंखला के लिए ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ़्रीका की टीमें भारत में थीं। भारतीय कप्तान थें तेंदुलकर।
आख़िरी लाग मैच में ऑस्ट्रेलिया को जीतना ही था, और वह भारत के 289 के स्कोर का समझदारी से पीछा कर रहा था। 49 ओवर तक ब्रैड हॉग और ग्लेन मैक्ग्रा क्रीज़ पर टिके थे और 284 के स्कोर पर लड़ रहे थे। तेंदुलकर के पास विकल्प था रॉबिन सिंह के पास जाने का, लेकिन वह ऑलराउंडर 1989 के बाद पहली बार भारत के लिए उस मैच में खेल रहा था। तेंदुलकर ने गेंद अपने हाथ में लिया, हॉग के संभावित स्वीप का पूर्वानुमान लगाते हुए मध्यम तेज़ गति की गेंद को ऑफ़ स्टंप के बाहर रखा। हॉग बीट हुए और हड़बड़ाहट में रन आउट हो गए।
1998, एक प्रेम कथा
यह एक ऐसा साल था कि अगर आप तेंदुलकर को समुद्र पर चलने का आग्रह करते तो शायद वह भी उनसे हो जाता। हालांकि भारत में ऑस्ट्रेलिया के 12 सालों में पहले पूर्ण सीरीज़ की पहली पारी में वॉर्न ने उन्हें ऑफ़ स्टंप के बाहर ललचा कर ड्राइव पर स्लिप में कैच करवाया था।
ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 71 की बढ़त ले ली थी और दूसरी पारी में जब तेंदुलकर बल्लेबाज़ी करने उतरे तो भारत एक ख़राब हो रही पिच पैर दो विकेट पर केवल 44 रन आगे था। तेंदुलकर ने ऑस्ट्रेलिया के दौरे से पहले अनुमान लगाया था कि ऐसी विकेटों पर वॉर्न राउंड द विकेट से लेग स्टंप के बाहर के खुरदरे एरिया का फ़ायदा उठाना चाहेंगे। पूर्व भारतीय लेग स्पिनर और मशहूर कॉमेंटेटर लक्ष्मण शिवरामकृष्णन के साथ उन्होंने इस कोण के ख़िलाफ़ अभ्यास किया था। चेन्नई में उस पारी में उन्होंने इसका लाभ उठाया, और 155 की नाबाद पारी खेलते हुए ऑस्ट्रेलिया को मैच से बाहर कर दिया।
कोची का कलाकार
टेस्ट सीरीज़ में तो तेंदुलकर ने 111.50 के औसत से 446 रन बनाए ही, उसके बाद ज़िम्बाब्वे और ऑस्ट्रेलिया के साथ त्रिकोणीय श्रृंखला का पहला मैच कोची के नेहरू स्टेडियम में हुआ। जब माइकल कैस्प्रोविट्ज़ ने तेंदुलकर को आठ रन पर आउट किया तो ज़रूर कंगारू ख़ेमे में राहत और ख़ुशी की लहरें दौड़ी होंगी। हालांकि दिन था 1 अप्रैल का और तेंदुलकर शाम तक उन पर एक अच्छा मज़ाक़ खेलने वाले थे।
दरअसल पिच पर अच्छी स्पिन मौजूद थी और ऐसे में कप्तान मोहम्मद अज़हरुद्दीन ने छठे गेंदबाज़ के तौर पर अपने स्टार खिलाड़ी को गेंद थमाई। तेंदुलकर ने जब विरोधी कप्तान स्टीव वॉ का अपनी गेंद पर रिटर्न कैच पकड़ा तब तक ऑस्ट्रेलिया मैच में आगे था। अगले कुछ ओवर में तेंदुलकर ने चार और विकेट लिए, जिनमें माइकल बेवन, डैरन लीहमन, मूडी और डेमियन मार्टिन जैसे नाम शामिल थे। भारत मैच आसानी से जीता और तेंदुलकर ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध उस वर्ष के शेष छह पारियों में चार शतक जड़े।
सिडनी के सरताज
अगर तेंदुलकर का चेन्नई में रिकॉर्ड अविश्वसनीय था तो भारत के बाहर वह सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में पूरे जलवे में आते थे। ऑस्ट्रेलिया के इस मैदान में उन्होंने पांच मैचों में 157.00 के औसत से 785 रन बनाए और तीन दौरों पर यादगार शतक लगाए। 2004 में 241 नाबाद ना सिर्फ़ इनमें सर्वाधिक स्कोर था (और टेस्ट क्रिकेट में बांग्लादेश के विरुद्ध 248 नाबाद के बाद उनका दूसरा सर्वाधिक) बल्कि एक असाधारण पारी थी क्योंकि उस दौर पर वह कई बार ड्राइव पर आउट हो रहे थे। ऐसे में तेंदुलकर ने पूरी पारी में कवर ड्राइव नहीं किया। संपूर्ण अनुशासन भरी बल्लेबाज़ी के चलते भारत ने स्टीव वॉ के आख़िरी टेस्ट में उन्हीं के घरेलू मैदान पर ऑस्ट्रेलिया को लगभग मैच और सीरीज़ दोनों से हाथ धोने पर मजबूर कर दिया।
सिडनी के सरताज, भाग 2
चार साल बाद भारतीय क्रिकेट में परिवर्तन की हवा बह रही थी। नए वनडे कप्तान थे महेंद्र सिंह धोनी और कई वरिष्ठ खिलाड़ी वनडे टीम से बाहर हो चुके थे। त्रिकोणीय श्रृंखला के पहले फ़ाइनल में भारतीय गेंदबाज़ों ने ऑस्ट्रेलिया को 239 के स्कोर पर रोका था लेकिन जवाब में ब्रेट ली की अगुआई में उनके गेंदबाज़ आग उगल रहे थे। ऐसे में तेंदुलकर ने भारत को पहली बार ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय श्रृंखला जिताने का भार लिया और एक ज़बरदस्त 117 की नाबाद पारी खेली। अच्छी गेंदबाज़ी को सही सम्मान, और थोड़ी भी चूक होने पर सही नसीहत। युवा रोहित शर्मा के साथ उन्होंने बल्लेबाज़ी करते हुए ऑस्ट्रेलियाई धरती पर अपनी इकलौती वनडे शतकीय पारी को अंजाम दिया। अगले फ़ाइनल में उन्होंने फिर 91 बनाए और भारत 1985-86, 1991-92 और 2003-04 में इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के फ़ाइनल में हारने के बाद पहली बार जीत का स्वाद चखा।
देबायन सेन ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सहायक एडिटर और स्थानीय भाषा लीड हैं।
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