सचिन तेंदुलकर रोड सेफ़्टी वर्ल्ड सीरीज़ के तहत सोमवार को न्यूज़ीलैंड लेजेंड्स के ख़िलाफ़ खेलेंगे। ब्रायन लारा के साथ कानपुर में उनकी मुलाक़ात बारिश के भेंट चढ़ गई थी लेकिन हम उम्मीद कर सकते हैं कि इंदौर में ऐसा नहीं होगा। बहरहाल पिछले बार हमने आपको तेंदुलकर और लारा के यादगार मैचों के बारे में बताया था। इस बार आपको याद दिलाते हैं कि क्यों उनके 24 साल के अंतर्राष्ट्रीय करियर में न्यूज़ीलैंड का अहम स्थान रहा।
एक तेजस्वी करियर का आग़ाज़
1990 में भारत, न्यूज़ीलैंड में तीन टेस्ट सीरीज़ में 1-0 से पिछड़ रहा था जब दोनों टीमें नेपियर गईं। पहला दिन कोई खेल हो ना सका और दूसरा दिन भी पूरा खेल नहीं हो सका। तीसरे दिन 16 साल और साढ़े सात महीने के उम्र के तेंदुलकर स्टंप्स तक ज़बरदस्त एकाग्रता का परिचय देते हुए
80 पर नाबाद रहे। उनके सामने गेंदबाज़ी क्रम थी
रिचर्ड हैडली,
डैनी मॉरिसन,
मार्टिन स्नेडन और
जॉन ब्रेसवेल जैसे अनुभवी गेंदबाज़ों की। अगले दिन तेंदुलकर 88 तक पहुंचे और ऐसा लगा शायद वह मुश्ताक़ मोहम्मद के सबसे युवा टेस्ट शतकवीर बनने का रिकॉर्ड तोड़ देंगे, लेकिन मॉरिसन की एक गेंद को वह हवा में खेल बैठे और कैच कप्तान ने लिया, जो एक दशक बाद तेंदुलकर के करियर का फिर से बड़ा हिस्सा बनने वाले थे। जी हां, 2000 और 2005 के बीच कोच रहे जॉन राइट।
बतौर कप्तान, अक्सर यह बात की जाती है कि तेंदुलकर का रिकॉर्ड काफ़ी साधारण था। जहां इस बात में कुछ सच्चाई तो है ही, लेकिन यह भी याद रखना ज़रूरी है कि उन दिनों भारतीय क्रिकेट टीम में निरंतरता और अनुभव का अभाव सा था। साथ ही उनकी कप्तानी में भारत को साउथ अफ़्रीका, पाकिस्तान (केवल वनडे के लिए), वेस्टइंडीज़ और ऑस्ट्रेलिया जैसे चुनौतीपूर्ण दौरों पर जाना पड़ा।
फिर भी इस सब के बीच उन्होंने कुछ
लाजवाब पारियां खेली थी और उनमें कई सारे न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध आए। 1997 के इंडिपेंडेंस कप में बेंगलुरु में उन्होंने
117 बनाते हुए नई गेंद जोड़ी के धागे ही खोल दिए। 1999 में पहले उन्होंने वनडे सीरीज़ में हैदराबाद में
186 की अविजित पारी से एक नया भारतीय रिकॉर्ड स्थापित किया और
राहुल द्रविड़ के साथ रिकॉर्ड 331 रन जोड़े।
अपने 20 साल के करियर में तेंदुलकर ने हर देश में अच्छी बल्लेबाज़ी की थी और भारत को सफलता दिलाने में भूमिका अदा किया था लेकिन एक न्यूज़ीलैंड में ही भारत ना तो बहुत क़ामयाब रहा था, और कुल चार टेस्ट दौरों के बावजूद तेंदुलकर ने भी 1998 में वेलिंग्टन में ही इकलौता अंतर्राष्ट्रीय शतक मारा था।