दिल्ली का छोटा अफ़ग़ानिस्तान: निराशा के माहौल में उम्मीद घोलता क्रिकेट का जुनून
भारत या अफ़ग़ानिस्तान- किसका समर्थन करें? इस बात पर भी दोहरे मन में हैं अफ़ग़ानी शरणार्थी और छात्र

मंटो, औशक और काबुली पुलाव। ये कुछ अफ़ग़ानी पकवानों के नाम हैं, जो लाजपत नगर के मज़ार रेस्टोरेंट से अफ़ग़ानी क्रिकेटरों के होटल में भेजे गए। अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट टीम भारत के ख़िलाफ़ विश्व कप का लीग मुक़ाबला खेलने के लिए दिल्ली में हैं। टीम के कप्तान हशमतउल्लाह शाहीदी, विकेटकीपर बल्लेबाज़ रहमानउल्लाह गुरबाज़ और स्पिनर मुजीब-उर-रहमान तो इसका स्वाद लेने रेस्टोरेंट तक पहुंच गए।
दिल्ली के लाजपत नगर-जंगपुरा के भोगल इलाके को 'छोटा अफ़ग़ानिस्तान' भी माना जाता है। यहां पर अफ़ग़ानिस्तानी शरणार्थी परिवारों और विद्यार्थियों की एक बड़ी संख्या है, जो दिल्ली में होने जा रहे भारत-अफ़ग़ानिस्तान मैच को लेकर उत्साहित दिखें। स्वदेश में फैली हिंसा, गृहयुद्ध और भूकंप के बीच मैच को लेकर यह जोश और जुनून उनकी दुःख और निराशा पर राहत के एक मरहम का काम कर रहा है।
मोहम्मद उस्मान एक ऐसे ही युवा हैं। 2015 में वह अपने परिवार के साथ कांधार से भारत आए थे। अब वह दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में राजनीतिक शास्त्र विषय से ग्रेजुएशन कर रहे हैं। उस्मान को क्रिकेट में उतनी दिलचस्पी नहीं है, लेकिन वे भारत-अफ़ग़ानिस्तान, भारत-पाकिस्तान और पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के मैच ज़रूर देखते हैं। हालांकि वह ग्लोबल सुपरस्टार राशिद ख़ान से पहले अनुभवी मोहम्मद नबी के फ़ैन हैं।
उन्होंने इसका कारण भी बताया। उस्मान के अनुसार, "नबी तबसे खेल रहे हैं, जब राशिद बच्चा था। नबी जैसे लोगों ने इस टीम को बनाया है, इतना आगे लेकर गए हैं कि अब हम विश्व कप में खेल रहे हैं। उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के लिए बहुत कुछ किया है। उन्होंने हिंसा और गृहयुद्ध से जूझ रहे युवाओं के लिए जश्न मनाने का एक मौक़ा और उम्मीद की एक किरण दी है।"
उस्मान के पिता भोगल मुहल्ले के चौराहे पर किराने और अफ़ग़ानिस्तानी ड्राई फ़्रूट्स की एक दुकान चलाते हैं। उस्मान इस मैच को देखने जाना चाहते थे, लेकिन वह मज़बूर हैं। उन्होंने बताया, "अगर दुकान से छुट्टी मिली और पापा ने परमिशन दिया तो मैं मैच देखने ज़रूर जाऊंगा। मैं पढ़ाई भी करता हूं और दुकान भी चलाता हूं। मैं घर का बड़ा लड़का हूं और मेरे दोनों छोटे भाईयों की परीक्षा चल रही है, इसलिए मेरा मैच में जाना मुश्किल लग रहा है। मैं दुकान से ही स्ट्रीमिंग के जरिए इस मैच को पूरा फ़ॉलो करूंगा।"
हालांकि उस्मान के पड़ोसी दुकानदार 28 वर्षीय मूसा ख़ान इससे अलग राय रखते हैं। उन्होंने तो 'क्रिकेट से नफ़रत' करने की बात तक कह डाली। उनके अनुसार जब उनका देश गृहयुद्ध, हिंसा और भूकंप से जूझ रहा है, तो उन्हें क्रिकेट या किसी भी खेल को जश्न के रूप में नहीं मनाना चाहिए।
2021 तक मूसा ख़ान के साथ सब कुछ अच्छा चल रहा था। वह साउथ कोरिया से सहायता प्राप्त काबुल के एक विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे और उन्हें अपने अंतिम साल की पढ़ाई के लिए सियोल जाना था। तभी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का तख़्तापलट हुआ और अब वह अपनी पढ़ाई, करियर और संयुक्त परिवार को छोड़कर भारत में हैं। इन्हीं सब बातों ने उन्हें परेशान कर रखा है।
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राशिद ख़ान के लिए विश्व कप 2019 के बाद से वनडे में छह बार ऐसा मौक़ा आया है जब उन्होंने एक भी विकेट ना ली हो25 साल के अल्मास शैरियान भी उस्मान की तरह मैच देखने जाना चाहते हैं, लेकिन उनके पास टिकट नहीं है। वह 'जुगाड़' कर रहे हैं कि कहीं से उन्हें टिकट मिल जाए। वह इससे पहले 2020 में हुए आयरलैंड के ख़िलाफ़ तीन मैचों की टी20 सीरीज़ को देखने गए थे, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ग्रेटर नोएडा में हुआ था।
उस सीरीज़ को याद करते हुए अल्मास कहते हैं, "नबी, राशिद और गुरबाज़ जैसे खिलाड़ियों को सामने खेलता देखकर बड़ा मज़ा आया था। तब टिकट बहुत सस्ते थे, जबकि अब विश्व कप के कारण टिकट बहुत महंगे हो गए हैं और मिल भी नहीं रहे हैं। लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि कहीं से टिकट मिल जाए और मैं मैच के लिए जाऊं।" 2016 में भारत आने से पहले अल्मास एक पत्रकार बनना चाहते थे। उन्होंने अपने पत्रकारिता करियर को पढ़ाई के साथ-साथ ही शुरू भी कर दिया था। लेकिन देश में मचे संघर्ष के कारण उन्हें अपना करियर छोड़ भारत आने को मज़बूर होना पड़ा। वह अब लाजपत नगर स्थित मशहूर अफ़ग़ानी बर्गर की दुकान पर बर्गर बनाते हैं। उनके सबसे पसंदीदा खिलाड़ी राशिद ख़ान हैं।
अल्मास के अनुसार अफ़ग़ानिस्तानी क्रिकेट टीम ने पिछले कई दशकों से हिंसा और गृहयुद्ध चल रहे देश को जश्न मनाने का एक बहाना दिया है। इसी बात को अपने अंदाज में निदा भी दोहराती हैं, जो दिल्ली स्कूल ऑफ़ जनर्लिज्म में पत्रकारिता की छात्र हैं। उनके अनुसार, "क्रिकेट ने अफगानिस्तान को एकता प्रदान की है। यह राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है और युवाओं के लिए युद्ध व हिंसा से बचने का उपाय भी है। इससे इस युद्धग्रस्त देश को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है और विश्व कप में खेलना हमारे लिए गर्व की बात है।"
निदा ने बताया कि इस मैच में किसका समर्थन करें, इस बात पर भी अफ़ग़ानी समुदाय दोहरे मन में है। "जहां अफ़ग़ानिस्तान हमारा घर, वहीं भारत हमारा दूसरा घर है। हर साल हज़ारों लोग शिक्षा, मेडिकल और व्यापारिक उद्देश्यों से भारत आते हैं और यहीं के हो जाते हैं। इसके अलावा देश में चल रहे संघर्ष के कारण यह हज़ारों शरणार्थियों के लिए भी एक घर जैसा है। इसलिए अफगानिस्तान बनाम भारत मैच में कई अफ़ग़ानी लोग भारत का समर्थन करते हुए दिख सकते हैं, यह उनके व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है।"
"मैं तो बिला शक भारत का समर्थन करूंगी," निदा मुस्कुराते हुए अपनी बातों को ख़त्म करती हैं।
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं. @dayasagar95
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