लेकिन अगर आप उनके बढ़ते शुभचिंतकों में से एक हैं, जो चाहते हैं कि उनका बल्लेबाज़ी औसत, उनकी क्षमता और टेस्ट उपलब्धियों को दर्शाए, तो लॉर्ड्स और अहमदाबाद में आउट होने का उनका तरीक़ा आपको काफ़ी खटका होगा।
राहुल के नाम अब 11 टेस्ट शतक हैं और इन 11 पारियों में उनका औसत 128.54 है। कम से कम दस टेस्ट शतक लगाने वाले 18 भारतीय बल्लेबाज़ों में यह सबसे ख़राब शतक औसत है, वहीं विश्व के
146 बल्लेबाज़ों में यह तीसरा सबसे ख़राब औसत है। उनसे नीचे सिर्फ़ असद शफ़ीक़ और तमीम इक़बाल हैं।
शतक औसत के और भी कई कारक होते हैं। एक सलामी बल्लेबाज़ के रूप में राहुल शायद ही कभी नाबाद शतक बनाएंगे, लेकिन बड़े शतक ही उस औसत को बढ़ाते हैं। राहुल के पास ऐसी बहुत कम ही बड़ी पारियां हैं। उन्होंने सिर्फ़ दो बार 150 का आंकड़ा पार किया है और ऐसा दोनों बार 2016 में हुआ था। इन्हीं कारणों से उनका करियर औसत सिर्फ़ 36.00 है, बशर्ते उन्होंने दुनिया भर में कई बेहतरीन पारियां खेली हैं।
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और साउथ अफ़्रीका में बतौर सलामी बल्लेबाज़
छह टेस्ट शतक बनाए हैं। एक एशियाई सलामी बल्लेबाज़ के रूप में इन देशों में उनसे ज़्यादा टेस्ट शतक सिर्फ़ सुनील गावस्कर के नाम है।
हालांकि राहुल के औसत के इतने ख़राब होने के और भी कारण हैं। 2018 और 2019 में उनका बेहद बुरा दौर रहा, जब उनकी तकनीक और ऑफ़-स्टंप की समझ बिगड़ गई थी। शायद ऐसा इसलिए भी था क्योंकि वह एक साथ बहुत कुछ बनने की कोशिश कर रहे थे- T20 में आक्रामक बल्लेबाज़ और टेस्ट में कठिन हालात में ओपनर। उन्होंने अपने करियर का ज़्यादातर टेस्ट क्रिकेट गेंदबाज़ों की मददगार पिचों पर खेला है और अक्सर ऐसे टेस्ट मिस किए हैं जब भारत का शीर्ष क्रम फ़्लैट पिचों पर चमका है।
उन्हें 2019 के वेस्टइंडीज़ दौरे के बाद ड्रॉप किया गया। भारत की अगली दो सीरीज़ में रोहित शर्मा और मयंक अग्रवाल ने पांच टेस्ट में छह शतक बनाए, जिनमें तीन दोहरे शतक भी शामिल थे।
शीर्ष टेस्ट बल्लेबाज़ हमेशा मौक़ा मिलने पर बड़े स्कोर बनाते हैं। लेकिन राहुल के पास अच्छे समय का पूरा फ़ायदा उठाने की भूख कम दिखती है, जैसा उनका शतक औसत भी दिखाता है। वह इस साल अब तक शानदार फ़ॉर्म में रहे हैं, लेकिन फिर भी उनका औसत 50 से कम (49.92) है।
यह थोड़ा सा उलझाने वाला है, क्योंकि इस साल ज़्यादातर समय राहुल तकनीकी रूप से बिल्कुल सही दिखे हैं। उनमें कोई कमज़ोरी नहीं दिखाई दी, जिस पर गेंदबाज़ निशाना साध सके। उन्होंने घंटों तक ऐसी गेंदों पर भी ग़लती नहीं की, जो ग़लती कराने लायक थीं। वह सतर्क रहे हैं और उन्होंने स्कोरिंग मौक़ों पर भी नज़र रखी है। फिर भी उनका औसत 49.92 है। यह टेस्ट क्रिकेट में उनका दूसरा सबसे अच्छा साल है। उनका सबसे अच्छा साल 2016 था, जब उनका औसत 59.88 था।
विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा के
तीन-तीन साल 500+ रन और 60+ औसत वाले रहे हैं। रोहित शर्मा और अजिंक्य रहाणे ने एक-एक बार ऐसा किया। ऋषभ पंत, शुभमन गिल और रवींद्र जाडेजा भी इसे क्रमशः दो बार, एक बार और एक बार कर चुके हैं।
इस साल राहुल के पास अभी भी समय है कि वह अपने 49.92 को और बेहतर करें, जिससे उनका करियर औसत भी 40 के पार हो।
राहुल के आंकड़ों और उनकी क्षमता की ऊंचाइयों के बीच का यह फ़ासला उनके करियर को बेहद रोचक बनाता है। लेकिन यह फ़ासला यह भी दिखाता है कि उन्होंने वह छलांग अभी तक नहीं लगाई है, जो एक बेहतरीन बल्लेबाज़ अब तक लगा लेते हैं। क्या वह अब 33 साल की उम्र में यह छलांग लगा सकते हैं?