शास्त्री : कोहली को टेस्ट से संन्यास लेने का पछतावा नहीं है
शास्त्री ने कहा कि विभिन्न प्रारूपों में उसी इंटेंसिटी के साथ खेलना कोहली के लिए आसान नहीं था

रवि शास्त्री ने बताया है कि विराट कोहली के टेस्ट से संन्यास लेने से पहले उनकी कोहली के साथ चर्चा हुई थी और इससे शास्त्री को इस बात का भरोसा हो गया कि यह कोहली का संन्यास लेने का सही समय है। शास्त्री कोहली की कप्तानी के अधिकांश समय में भारतीय टीम के कोच रहे थे और उन्होंने कहा कि कोहली को किसी तरह का पछतावा नहीं है। शास्त्री का मानना है कि कोहली अभी भी वनडे और फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट में अपना बड़ा योगदान दे सकते हैं।
शास्त्री ने ICC रिव्यू पर कहा, "मैंने उनसे इस संबंध में बात की थी और शायद घोषणा से एक हफ़्ते पहले और मुझे लगता है कि उनका मन पूरी तरह से स्पष्ट था कि उन्होंने अपना सबकुछ दे दिया है। वह एक निजी बातचीत थी और मैंने उनसे एक या दो सवाल पूछे थे और उनके मन में किसी तरह का संदेह नहीं था। जिसने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि 'हां, यह सही समय है।' दिमाग़ ने शरीर से कह दिया है कि संन्यास लेने का यही सही समय है।"
"उन्हें किसी तरह का पछतावा नहीं है, हर कोई उन्हें और खेलते देखना चाहता था। लेकिन वह व्यापक तौर पर देख रहे हैं, वह यह महसूस करते हैं कि वह वनडे क्रिकेट में बड़ा योगदान दे सकते हैं। उनके पास फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट में योगदान देने के लिए काफ़ी कुछ बचा है और मुझे लगता है कि उन्हें किसी तरह का पछतावा नहीं होगा क्योंकि अपना सबकुछ दिया है।"
कोहली ने अपने 14 वर्षीय लंबे टेस्ट करियर में 124 टेस्ट मैच खेलते हुए 30 शतक लगाए और इस प्रारूप में वह भारत के सबसे सफल कप्तान भी हैं। शास्त्री ने कहा कि सभी प्रारूपों में उच्च इंटेंसिटी के साथ तालमेल बिठाना कठिन काम था और इसे सुनिश्चित करने के लिए टेस्ट क्रिकेट को जगह देनी पड़ी।
शास्त्री ने कहा, "एक बल्लेबाज़ या गेंदबाज़ के तौर पर आप अपना काम करते हैं और फिर आराम करते हैं। लेकिन कोहली के साथ ऐसा नहीं है, उनका खेलने का तरीका ऐसा है कि वह यही सोचकर खेलते हैं जैसे सभी विकेट उन्हें लेने है, उन्हें ही हर कैच पकड़ना है, मैदान पर उन्हें ही हर निर्णय लेना है।"
"इतना ज़्यादा खेल में रम जाने के बाद अगर वह आराम नहीं करते हैं, अगर वह यह तय नहीं करते हैं कि विभिन्न प्रारूपों में उन्हें कितना खेलना है तो वह ज़ाहिर तौर पर बर्नआउट की स्थिति में होंगे। ख़ैर, वह अब टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह चुके हैं। हालांकि मुझे लगता है कि वह दो और साल तक खेल सकते थे लेकिन वह अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं। अगर उन्हें लगता है कि वो पर्याप्त खेल चुके हैं, तो खेल चुके हैं।"
कोहली ने मैदान पर अपनी बल्लेबाज़ी के साथ ही अपने एक्सप्रेसिव स्वभाव से इस खेल पर एक अमिट छाप छोड़ी है। शास्त्री के अनुसार यह एक ऐसा गुण है जिसने दर्शकों और खिलाड़ियों को खेल में दिलचस्पी लेने पर मजबूर कर दिया।
शास्त्री ने कहा, "दुनिया भर में उनकी प्रशंसा की जाती है, पिछले एक दशक में किसी भी अन्य क्रिकेटर की तुलना में उनके प्रशंसकों की संख्या ज़्यादा है। चाहे वो ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ़्रीका हो, उन्होंने दर्शकों को खेल देखने पर मजबूर किया। उनके बीच प्यार और नफ़रत भरा रिश्ता था।"
"वे क्रोधित हो जाते थे क्योंकि उनमें दर्शकों को झकझोर देने की क्षमता थी। जिस तरह से वे जश्न मनाते थे, उनकी तीव्रता ऐसी होती थी कि ऐसा लगता था कि मानो कोई दाने निकल आए। यह बहुत तेज़ी से फैलता था, सिर्फ़ ड्रेसिंग रूम में ही नहीं, बल्कि क्रिकेट देखने वाले लोगों के लिविंग रूम में भी। इसलिए वे एक संक्रामक व्यक्तित्व थे। यह ऐसी चीज़ है जिसे मैं हमेशा याद रखूंगा।"
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