क्या राहुल द्रविड़ कभी टीम इंडिया के मुख्य कोच बनेंगे?

उनका कोच बनना निःसंदेह टीम के लिए फायदेमंद रहेगा, लेकिन इसमें कई सारी अज्ञात बाधाएं भी शामिल हैं।

भारतीय कप्तान विराट कोहली के साथ राहुल द्रविड़ Aijaz Rahi / © Associated Press

राहुल द्रविड़, मुख्य कोच, भारत। आपको गुदगुदी हुई ना?

द्रविड़ उस लड़के की तरह हैं, जिसे मिलने के बाद किसी भी लड़की का मां-बाप खुश होगा। द्रविड़ में हमेशा भावी दामाद की गुणवत्ता रही है और वर्तमान में यह गुणवत्ता दोगुनी हो गई है क्योंकि भारत के जो वास्तविक वर्तमान कोच हैं, उनके बारे में कोई भी मां-बाप के आपको चेतावनी देगा।

श्रीलंका में द्रविड़ का काम कोई ऑडिशन नहीं हैं क्योंकि वह पहले ही मुख्य कोच के लिए अपनी अनिच्छा जता चुके हैं। लेकिन निश्चित रूप से बहुत से लोग इसे एक ऑडिशन के रूप में देख रहे होंगे। टी20 विश्व कप के बाद रवि शास्त्री का अनुबंध खत्म हो रहा है और लोगों को सपने देखने की अनुमति है।

और क्यों नहीं? यह कई स्तरों पर समझ में आता है। उनका क्रिकेटिंग करियर भारत के मुख्य कोच बनने की प्रस्तावना की तरह है। एक खिलाड़ी के रूप में उन्होंने जो कुछ हासिल किया, वह उनके आसपास के महान खिलाड़ियों से काफी अलग करती है।

द्रविड़ अपने समकालीनों की तुलना में अधिक मेहनत और काम करने वाले खिलाड़ी के रूप में सामने आए हैं। कई बार उन्हें एक सीमित खिलाड़ी भी कहा जाता है, लेकिन उन्हें अपनी मजबूतियों और सीमाओं के बारे में स्पष्ट पता था। कोचिंग भी उनके लिए एक अमूल्य गुण है।

वह पिछले कुछ सालों से एक कोच के रूप में लगातार काम भी कर रहे हैं। हालांकि इससे उनके कोच बनने की योग्यता या फिर सिर्फ व्यावहारिक अनुभव साबित नहीं होती, बल्कि यह भी दिखता है कि वह बदलते हुए खेल से लगातार जुड़े हुए हैं। उपमहाद्वीप और खासकर पाकिस्तान में कोच बनने वाले पूर्व खिलाड़ियों में अक्सर यह देखा जाता है कि वे अपने समय से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। वे अपने समय में ही फंसकर यह पहचानने में असमर्थ होते हैं कि क्रिकेट काफी बदल चुका है।

आईपीएल फ्रेंचाइज़ी, भारत की अंडर -19 व ए टीम और राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (NCA) में काम करके द्रविड़ उस माहौल को पहचानते हैं, जहां से युवा क्रिकेटर आ रहे हैं। उनके कोचिंग तकनीक में डेटा एनालिटिक्स भी है, लेकिन वह इस बात पर भी ध्यान देते हैं कि कौन सा खिलाड़ी किस हद तक डेटा एनालिटिक्स समझता है और किन खिलाड़ियों को समझाने के लिए अलग तकनीक की जरूरत है।

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में मुख्य कोचों के विपरीत द्रविड़ का स्थान बहुत विशेष और अलग है। वर्तमान में कोचों का एक समूह उन लोगों का है, जिनके पास एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय करियर और सीमित कोचिंग अनुभव है। इसमें मिस्बाह-उल-हक, मार्क बाउचर, रवि शास्त्री, फिल सिमंस, लांस क्लूजनर और जस्टिन लैंगर का नाम आता है। दूसरा समूह उन पूर्व क्रिकेटरों का है, जिनका घरेलू क्रिकेट करियर तो बहुत बड़ा लेकिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर बहुत छोटा था। इसमें क्रिस सिल्वरवुड, गैरी स्टीड और लालचंद राजपूत का आता है। अंत में कई ऐसे पूर्व क्रिकेटर हैं, जो सिर्फ कोचिंग के लिए ही जाने जाते हैं, जैसे- ग्राहम फोर्ड, मिकी आर्थर और रसेल डोमिंगो।

लेकिन द्रविड़ इन सबसे अलग और अनूठा स्थान रखते हैं। ऊपर दी गई सूची में कई लोगों की तुलना में उनका करियर अधिक बड़ा और महान है। द्रविड़ ने अपने कोचिंग करियर में भी अब तक बेहतर ही किया है। हालांकि उनको अधिकतर समय तुलनात्मक रूप से एक बेहतर टीम और संसाधन भी मिले हैं।

श्रीलंका दौरे पर गए भारतीय सीमित ओवर की टीम के कप्तान शिखर धवन के साथ कोच राहुल द्रविड़ © Sri Lanka Cricket

भारतीय क्रिकेट टीम को इस समय सबसे अधिक किसकी जरूरत है और इसका एकमात्र स्पष्ट जवाब है- ख़िताब। हाल ही में विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फ़ाइनल हारने वाली भारतीय टीम को एक खिताब की बहुत ही ज्यादा जरूरत है।

भारतीय टीम पहले से ही अपने घर में अपराजेय हैं और अधिकांश अन्य देशों में भी उन्हें हराना तो दूर, रोकना भी मुश्किल है। वे पहले से ही सभी सफेद गेंद के टूर्नामेंट्स में फेवरेट होते हैं और अधिकतर के सेमीफ़ाइनल में जरूर प्रवेश करते हैं।

लेकिन वह कई सालों से एक वैश्विक ख़िताब से दूर रहे हैं, जिसके लिए टीमें और खिलाड़ी जी-जान से मेहनत करते हैं। और खुद को तोड़ते हैं। कितने लोग को मार्सेलो रियोस याद हैं? खेलों का यह एक अपरिहार्य और थोड़ा अजीब नियम है कि हम खिताब जीतने से ही टीम या खिलाड़ियों की महानता को आंकते हैं। (मार्सेलो रियोस एक समय टेनिस के नंबर वन खिलाड़ी थे, लेकिन उनके नाम एक भी ग्रैंड स्लैम ख़िताब नहीं है।)

पिछले कुछ समय से भारत दुनिया का सबसे सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटिंग देश बनने के कगार पर है, हालांकि विडंबना यह है कि वह बन नहीं पाया है। उन्हें यहां बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। लेकिन अब उन्हें जिस चीज की आवश्यकता है, वह है- 'अतिसूक्ष्म प्रगति'। टीम को छोटी-छोटी बातों पर अधिक ध्यान, प्लेइंग इलेवन का बेहतर चयन और अधिक कुशल प्रबंधन की जरूरत है। द्रविड़ इन सब चीजों में बहुत बेहतर हैं।

आप कह सकते हैं कि भारत की सीमित ओवर की बल्लेबाज़ी की समस्या अधिक जटिल है और उसे सुधारने के लिए अधिक सूक्ष्म व संवेदनशील हाथों की जरूरत है। लेकिन जल्द ही टेस्ट में भी एक बड़ा परिवर्तन हो सकता है, क्योंकि विराट कोहली अब 32, अजिंक्य रहाणे 33, चेतेश्वर पुजारा 33, रोहित शर्मा 34, आर अश्विन 34, रवींद्र जडेजा 32, इशांत शर्मा 32 और मोहम्मद शमी 30 साल के हो चुके हैं। टेस्ट हो या सीमित ओवर क्रिकेट, दोनों मामलों में सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता होगी और द्रविड़ इसमें माहिर हैं।

इस सब के लिए कुछ अज्ञात तत्व होंगे, जोखिम की भावना होगी क्योंकि यह इंसानों का मामला है, कोई एल्गोरिदम नहीं। युवा खिलाड़ियों के साथ काम करना और नेशनल टीम में स्थापित सुपरस्टार खिलाड़ियों के साथ काम करना, पूरी तरह से अलग है।

2007 में द्रविड़ का कप्तानी से इस्तीफ़ा देना अभी भी याद है। उन्होंने इसका आनंद लेना बंद कर दिया था। उन्होंने एक बार इसके बारे में खुलकर बात भी की थी। यह बताने की जरूरत नहीं है कि भारत के मुख्य कोच को कप्तान की तरह कोई छुट्टी नहीं है। यह एक थकाऊ और भारी काम हो सकता है।

द्रविड़ या टीम से ज्यादा यह बीसीसीआई का मुद्दा है। यह एक पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव की तरह होगा जो हाल ही में सौरव गांगुली के अध्यक्ष बनने के साथ लागू हुआ है। फ़िलहाल यह एक अनुत्तरित प्रश्न है, जिसका जवाब कतई आसान नहीं है।

ओस्मान समीउद्दीन ESPNcricinfo के सीनियर एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर दया सागर ने किया है।

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