इतने सालों में की गई मेरी मेहनत अब रंग ला रही है : अरमान जाफ़र

आयु वर्ग क्रिकेट में ख़ूब रन बनाने के बाद अब वह रणजी ट्रॉफ़ी में अपनी छाप छोड़ रहे हैं

रणजी ट्रॉफ़ी के इस सीज़न में अरमान तीन मैचों में दो शतक जड़ चुके हैं © Special Arrangement

बड़े रन और लंबी पारियां खेलने की भूख अरमान जाफ़र के अंदर हमेशा से ही रही है, फिर चाहे वह स्कूल स्तर पर हो, अंडर-19 पर हो या अंडर-25 स्तर पर। यह बात सीनियर लेवल पर भी साफ़ तौर पर नज़र आई जब उन्होंने रणजी ट्रॉफ़ी के इस सीज़न में अपना दूसरा शतक जड़ा। सेमीफ़ाइनल के चौथे दिन उन्होंने शतकवीर यशस्वी जायसवाल के साथ मुंबई को छह सालों में अपने पहले फ़ाइनल की दहलीज़ पर ला खड़ा किया है।

सरफ़राज़ ख़ान और पृथ्वी शॉ के साथ आयु वर्ग की क्रिकेट में शुरुआत करने के बाद अरमान को भविष्य में मुंबई क्रिकेट का अगला सुपरस्टार माना जा रहा था। हालांकि 2016 में डेब्यू के बाद से उनका करियार उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। घुटने की सर्जरी के बाद वह 2017 के सीज़न से बाहर हो गए थे। हालांकि इसके बाद उन्होंने अंडर-23 सीके नायडू ट्रॉफ़ी के मैच में सौराष्ट्र के ख़िलाफ़ 367 गेंदों पर नाबाद 300 रन बनाकर 2018 में मुंबई टीम में वापसी की थी। इसके बावजूद सीनियर स्तर पर उनका करियर उम्मादानुसार आगे नहीं बढ़ पाया।

इस सीज़न से पहले अरमान ने केवल पांच प्रथम श्रेणी मैच खेले थे और मात्र 55 रन बनाए थे। लोगों के संदेह के साथ-साथ अरमान भी आत्म-संदेह करने लगे थे। अरमान ने आयु वर्ग में बहुत नाम कमाया था और "जाफ़र" का नाम का भी दबाव था।

2010 में अंडर-14 जाइल्स शील्ड प्रतियोगिता में रिकॉर्ड 498 रन बनाने के बाद अरमान पहली बार सुर्ख़ियों में आए थे। यह स्कूल क्रिकेट में उस समय का सर्वाधिक स्कोर था। अंडर-19 कूच बेहार ट्रॉफ़ी में लगातार तीन दोहरे शतक लगाने के बाद उन्हें 2016 के अंडर-19 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में चुना गया था। उसी साल किंग्स XI पंजाब ने उन्हें 10 लाख रुपये में ख़रीदा था।

अरमान के अंदर लंबी और सूझबूझ भरी पारी खेलनी की भूख पूर्व भारतीय बल्लेबाज़ अभिषेक नायर ने साल 2019 में जगाई। अपनी विचारधारा में आए इस बदलाव के बारे में उन्होंने कहा, "मैं किसी भी पारी को हल्के में नहीं लेना चाहता था।"

अपनी सर्जरी के बाद अरमान ने नायर के साथ छह महीनों तक काम किया। उनके साथ हुई बातचीत से उन्हें "मानसिक तौर पर बेहतर होने" तथा "निजी मंज़ीलों पर ध्यान ना देने" में मदद मिली। उनके अनुसार यह एक अलग तैयारी थी।

अरमान ने कहा, "उनके साथ बात करके, उनके अनुभव के बारे में जानकर मुझे प्रेरणा मिली। उनके साथ हुई चर्चा में मुझे पता चला कि विनोद कांबली की तरह वह भी डेब्यू की पहली गेंद पर छक्का लगाना चाहते थे। हालांकि ऐसा हो ना सका क्योंकि वह बहुत दबाव में थे। इसके बाद वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए, शून्य के स्कोर पर आउट होते रहे और फिर उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। इस स्थिति में उन्होंने टीम में वापसी करने और बंबई के लिए इतने सालों तक रणजी ट्रॉफ़ी खेलने की भूख को कम नहीं होने दिया। आख़िरकार उन्होंने वापसी की और फिर भारतीय टीम का हिस्सा बने। यह मेरे लिए प्रेरणा देने वाला वाक्या था।"

अपने सफ़र के बारे में बताते हुए अरमान ने कहा, "मेरे लिए एक समय ऐसा था जहां मैंने पांच मैच खेले और उसके बाद मैंने कुछ नहीं किया। मैंने आयु वर्ग के टूर्नामेंटों में इतने सारे रन बनाए थे कि सभी को मुझसे बहुत उम्मीदें थी जो पूरी नहीं हो पाई। मुझे ख़ुद पर संदेह होने लगा लेकिन उनसे (नायर) और मेरे पिताजी से बात करने के बाद मेरी विचारधारा में बदलाव आया। मुझे लगता है कि इस सीज़न में मेरी विचारधारा बेहतर हो गई है। मेहनत तो मैंने की हैं लेकिन मेरी मानसिकता बेहतर हुई है। इसका फल मुझे अपने प्रदर्शन में देखने को मिल रहा है।"

यह साफ़ मानसिकता इस सीज़न में उनके द्वारा खेले गए तीनों मैचों में देखने को मिली। इस सीज़न में ओडिशा के ख़िलाफ़ ग्रुप स्टेज वाले मैच में तीसरे नंबर पर आते हुए उन्होंने 223 गेंदों में 125 रन बनाए। इसके बाद खेलने का अगला मौक़ा उन्हें आईपीएल के बाद क्वार्टर-फ़ाइनल में मिला जहां उन्होंने 60 और नाबाद 17 रनों की पारियां खेली।

शुक्रवार को सेमीफ़ाइनल में अरमान ने जस्ट क्रिकेट अकादमी ग्राउंड की सपाट पिच पर 127 रन बनाए और जायसवाल के साथ 289 रन जोड़े। मुंबई ने चार विकेट पर 449 रन बनाकर एक बढ़ी बढ़त दर्ज की।

चौथे दिन के खेल के बाद अरमान ने कहा, "पहली पारी में उनके आउट होने के बाद मैच हमारे पक्ष में था। हालांकि मैं किसी भी पारी को हल्के में नहीं लेना चाहता था। मैच की स्थिति चाहे जो भी हो, मैं किसी भी पारी को ज़ाया नहीं करना चाहता हूं। मैं टीम के लिए रन बनाना चाहता हूं।"

अपनी तैयारियों के बारे में उन्होंने बताया, "मैंने अपनी तैयारी में ज़्यादा बदलाव नहीं किए हैं। मैं बस वहीं दोहरा रहा हूं जो मैं पहले किया करता था। शायद उस समय चीज़ों का सही बैठना क़ीस्मत में नहीं लिखा था लेकिन अब सब कुछ सही हो रहा है। इतने सालों में की हुई मेहनत अब रंग ला रही है। मैं अपने पिताजी के साथ तैयारी करता हूं।"

मुंबई को पिछले छह सालों में पहली बार फ़ाइनल तक पहुंचाने के लिए तीन महत्वपूर्ण पारियां खेलने के बाद भी अरमान को अभी कुछ अरमान पूरे करने हैं। "इस सीज़न से पहले हमारे कोच (अमोल मुज़ुमदार) का संदेश था कि बंबई ने 41 बार ट्रॉफ़ी जीती है तो किसी भी हाल में हमें ट्रॉफ़ी जीतनी है। शुरुआत से यही हमारी मंज़िल रही है।"

सीनियर जाफ़र (चाचा वसीम) ने अपने करियर में 10 बार रणजी ट्रॉफ़ी जीती थी और अब जूनियर जाफ़र पहली बार चैंपियन बनने से ज़्यादा दूर नहीं हैं।

श्रीनिधि रामानुजम ESPNcricinfo में सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।

Comments