आख़िर कोहली की ख़राब फ़ॉर्म के पीछे क्या कारण हैं?
"फ़ॉर्म टेंपररी होता है और क्लास परमानेंट, और कोहली क्लास हैं।"
"वह आउट ऑफ़ फ़ॉर्म नहीं हैं। बस रनों की कमी है।"
"ऐसा नहीं है कि वह रन नहीं बना रहे हैं, सिर्फ़ शतक नहीं लगा पा रहे हैं। वैसे भी, यह आने वाला ही है। शायद इस सीरीज़, इस टूर्नामेंट, इस मैच में।"
उनके 71वें अंतर्राष्ट्रीय शतक का इंतज़ार लंबा होने पर चर्चा शुरू हुई, लेकिन अब यह एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंच गई है जहां अब बातचीत सिर्फ़ अगले शतक के बारे में नहीं रह गई है।
विराट कोहली के क्लास और उनके कौशल को लेकर किसी के मन में कोई संदेह नहीं है और भले ही वह यहां से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में रन नहीं बनाते हैं फिर भी उन्हें इस खेल को खेलने वाले महान लोगों में से एक माना जाएगा।
फिर भी यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि जादू की छड़ी की तरह काम करने वाला उनका बल्ला अब उनके जैसा नहीं चल रहा है। उनकी अजेयता की आभा फ़ीकी पड़ गई है और उनकी मौजूदगी से गेंदबाज़ों के मन में पहले जैसा डर नहीं है।
लेकिन ईमानदारी से कहा जाए तो: यह हर किसी के साथ हुआ है जिसने उनसे पहले इस खेल को खेला है।
ठीक है, अब मैं अन्योक्तियों को पीछे छोड़ दूंगा और तत्कालिन मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करूंगा।
कोहली ने हाल ही में पर्याप्त रन नहीं बनाए हैं। इस बारे में दर्जनों थ्योरी दिए जा रहे हैं कि क्या ग़लत हो रहा है और यह भयानक दौर कैसे और कब समाप्त हो सकता है। मैं उन लोंगों में शामिल होने का दोषी हूं, जिसे मैं इस लेख में बाद में विस्तार से बताऊंगा।
जब कोई खिलाड़ी ख़राब दौर से गुज़रता है, तो बातचीत सिर्फ़ दो चीज़ों पर होती है - क्या यह समस्या तकनीकी है या मानसिक? मेरा सीमित अनुभव कहता है कि, दोनों आपस में गुंथे हुए हैं; अक्सर इसमें से एक समस्या दूसरी समस्या की ओर ले जाता है और कोई भी यह निर्धारित नहीं कर सकता कि पहले क्या आया।
यहां घटनाओं का एक चक्र है: अनजाने में आपके खेल में एक छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी आ जाती है, लेकिन आप इसकी उपस्थिति को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि आप इसे सकारात्मक मानसिकता के साथ कुछ समय के लिए संभालने में सक्षम होते हैं। जब तक इसे संभालना बहुत ज़्यादा नहीं हो जाता और आप अपनी लय खो देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानसिकता पहले जैसी नहीं रहती। फिर आप आत्मविश्लेषण करना शुरू करते हैं और संदेह एक निरंतर साथी बन जाता है।
फिर आप दोनों पहलुओं पर काम करना शुरू करते हैं। तकनीकी पर पहले, क्योंकि यह यथार्थ है और फिर मानसिकता: सकारात्मक विचार, कल्पना, और बहुत कुछ। अंतत: आप कुछ समय के लिए इस गड्ढे से बाहर निकलने का रास्ता खोज लेते हैं और फिर इसके बाद आप ऐसा नहीं कर पाते हैं। यह एक क्रिकेटर के करियर का एक बुनियादी चक्र है, जो कई बार आता है और अलविदा कहने के बाद ही ख़त्म होता है।
मैं किसी भी तरह से यह नहीं कह रहा हूं कि कोहली का करियर अपने अंतिम समय के बहुत क़रीब हैं। असल में उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है, उनकी फ़िटनेस के प्रति प्रतिबद्धता और लड़ने का ज़ज़्बा, संभावना है कि वह फिर से ज़बर्दस्त वापसी करने में सक्षम होगा। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि उनके और भारतीय क्रिकेट के तत्काल भविष्य को देखते हुए यह जल्द ही हो। लगभग आठ सप्ताह में विश्व कप जो शुरू होने वाला है।
तो क्या यह एक तकनीकी समस्या है जिसका कोहली सामना कर रहे हैं? क्या यह लंबे फ़्रंट फ़ुट स्ट्राइड के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है (वही प्रतिबद्धता जिससे उन्हें हज़ारों अंतर्राष्ट्रीय रन मिले) या क्या यह फ़्रंट फ़ुट अब बहुत आगे जा रहा है, जिससे वह बाहर की गेंदों पर ललच जा रहे हैं? (याद रखें, रिकी पोंटिंग का फ़्रंट फ़ुट बहुत आगे निकला करता था।) या वह बैकफ़ुट से ऑफ़ साइड में खेलने में उतने मज़बूत नहीं हैं और गेंदबाज़ों ने आख़िरकार इसका पता लगा लिया है?
ग्रैम स्मिथ ने ज़्यादा कवर ड्राइव नहीं लगाई। वीरेंद्र सहवाग पुल और हूक नहीं करते थे। और भी ऐसे कई उदाहरण हैं। लेकिन इन बाधाओं ने उन खिलाड़ियों को बेहद सफल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर बनने से नहीं रोका। हां, कोहली पहले की तुलना में अधिक बाहरी किनारा लगा रहे हैं, लेकिन क्या यह उनके आउट होने का एकमात्र तरीक़ा है? एक बार फिर मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि कोई तकनीकी समस्या नहीं है लेकिन इस सूखे दौर की अवधि बताती है कि इसमें और भी बहुत कुछ है।
पिछले दो साल में दो चीज़ें हुई हैं जो कोहली के साथ पहले नहीं हुई थीं। कोविड के कारण लंबे समय तक क्रिकेट नहीं हुआ और साथ ही कोहली ने ब्रेक लेने की इच्छा व्यक्त की, जो उन्होंने तब नहीं की जब वह अपनी फ़ॉर्म के चरम पर थे। उस समय वह कमोबेश हर दिन खेलना चाहते थे, यदि ऐसा संभव था। बायो-बबल थकान वास्तविक है और यह खिलाड़ियों को उन परिस्थितियों में डाल देती है जिन्हें उन्होंने पहले कभी अनुभव नहीं किया है और लंबे ब्रेक ऐसी चीज़ें हैं जो अधिकांश मौजूदा खिलाड़ी नहीं जानते कि कैसे संभालना है।
काफ़ी लंबे समय तक, एक शीर्ष खिलाड़ी के लिए फ़ॉर्म में वापस आने का एकमात्र तरीक़ा जितना संभव हो उतना क्रिकेट खेलना था, भले ही इसका मतलब थोड़ा निचले स्तर पर खेलना हो। लगभग एक दशक पहले तक हर कोई उस क़वायद से गुज़रा था। लेकिन आजकल ख़राब फ़ॉर्म के बाद खेल से ब्रेक ले लिया जाता है। मैं एक विशेषज्ञ नहीं हूं और न ही होने का दिखावा करूंगा लेकिन हम सही में नहीं जानते कि फ़ॉर्म और आत्मविश्वास हासिल करने के लिए यह सबसे अच्छा तरीक़ा है या नहीं। समय बदल गया है और इस तरह के मुद्दों से निपटने के तरीक़े भी बदल गए होंगे।
दूसरी चीज़ जो कोहली के साथ बदल गई - और यह सिर्फ़ तब हुआ जब उन्होंने कुछ समय के लिए पर्याप्त स्कोर नहीं किया - नई पारी शुरू करने का उनका दृष्टिकोण। कोहली की बल्लेबाज़ी की बुनियाद उनके मेथड के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता थी। लेकिन ऐसा लगता है कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने विभिन्न तरीक़ो को आज़माया है। इतना कि आपको शायद ही याद हो कि उनका फ़ुलप्रूफ़ पुराना तरीक़ा क्या था। वह बहुत अधिक ज़ोर से प्रहार कर रहे हैं और काफ़ी सतर्क भी हो गए हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उन्होंने अपने आज़माए हुए तरीक़े का बिल्कुल भी पालन नहीं किया है, लेकिन उस मेथड से चूक भी बहुत बार हुआ है।
यदि आप सिंगल डिजिट स्कोर में आउट होते रहते हैं तो समस्या उतनी गंभीर नहीं है। उन मामलों में आप समस्या को बहुत आसानी से पहचान पाएंगे। लेकिन अगर आप शुरुआत कर रहे हैं और पारी में आगे ग़लतियां कर रहे हैं, तो आप समस्या की पहचान करने में विफल रहते हैं। यह ऑफ़ स्टंप के बाहर पहली गेंद नहीं है जिस पर आपने बाहरी किनारा लगाया है बल्कि 70वां या 100वीं गेंद है और यह एक मानसिक समस्या होने की ओर इशारा करती है। बेशक़ यह एक तकनीकी ख़ामी है, लेकिन यह मानसिक अनुशासन या इसकी कमी है, जो उस ग़लती को करने के लिए मजबूर करती है।
थ्योरी में क्रिकेट एक टीम गेम है, लेकिन आप अक्सर अपने दम पर होते हैं। जब आप टीम की सफलताओं और हार का हिस्सा होते हैं, तो आप अपने प्रदर्शन के एक वैकल्पिक यूनिवर्स में भी रहते हैं। और वहां बहुत अकेला हो जाते हैं।
अपने अधिकांश करियर में कोहली को इन सब चीज़ों का सामना नहीं करना पड़ा। अब उन्हें उस रास्ते पर चलना है जिस पर लगभग सभी ने यात्रा की है। यह रास्ता उन्हें पुराने गौरव के दिनों में वापस ले जा सकता है या हो सकता है कि वह फिर कभी उस ऊंचाई को हासिल न कर पाएं।
यह तकलीफ़देह विचार है, लेकिन फिर भी इस पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि बंधनमुक्त जीवन जीने का यही एकमात्र तरीक़ा है। खेल खेलने का आनंद हमेशा आक्रामक या लगातार रक्षात्मक होने में नहीं है, बल्कि अपनी गति से खेलने में है। परिणाम के बारे में सोचे बिना आपने अपने लिए जो गति निर्धारित की है, उसमें आप सबसे अधिक सहज थे। तभी हर गेंद एक घटना बन जाती है - उस समय आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना हो जाती है।
मौजूदा भारतीय टीम का सेटअप कोहली के लिए आदर्श है कि वह अपनी कुछ अपेक्षाओं सहित, उम्मीदों से मुक्त हो जाएं, क्योंकि टीम के परिणाम पर अटूट ध्यान केंद्रित होता है।
यह सेटअप उन्हें अर्धशतक या शतकों के लिए नहीं आंकेगा जो उन्होंने स्कोर किया या नहीं, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि वह टीम के फ़लसफ़ा को बनाए रखने में कैसे योगदान दे पाए हैं, और यह एक प्यारी जगह है।
कोहली ने अपनी सफलता के लिए एक बड़ी क़ीमत चुकाई है, जिसमें न केवल दूसरों को उनके द्वारा सेट ऊंचे मानकों के आधार पर आंकना शामिल है, बल्कि कोहली ख़ुद भी वह खिलाड़ी बनने की कोशिश कर रहे हैं जो वह तीन साल पहले थे। आप उनके संघर्ष को लगभग छू और महसूस कर चुके हैं और ऐसा कोई क्रिकेट प्रेमी नहीं है जिसने इसे ख़त्म होने की कामना नहीं की है। खेल, खिलाड़ी और दर्शक के लिए समान रूप से आनंद का स्रोत होना चाहिए, न कि पीड़ा का। हमें उम्मीद है कि उन्होंने जो ब्रेक लिया है वह काम करेगा और बल्ला फिर से उनकी जादू का छड़ी बन जाएगा।
भारत के पूर्व सलामी बल्लेबाज़ आकाश चोपड़ा चार किताबों के लेखक हैं, जिनमें से नवीनतम है द इनसाइडर: डिकोडिंग द क्राफ़्ट ऑफ़ क्रिकेट।। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के एडिटोरियल फ़्रीलांसर कुणाल किशोर ने किया है। @ImKunalKishore