कैसे सिकंदर रज़ा ने हरारे 2018 की बुरी यादों को दफ़नाने का काम किया

चार साल पहले की तरह ज़िम्बाब्वे की विश्व कप आशाएं एक पेचीदा चेज़ में अटकती दिखीं, लेकिन रज़ा की साहसी पारी ने लगाया टीम की नैय्या पार

एक्स्ट्रा कवर के ऊपर से बड़ा शॉट खेलते हुए सिकंदर रज़ा © ICC/Getty Images

सिकंदर रज़ा आउट होने के बाद जब पवेलियन लौट रहे थे तब वह लगातार ख़ुद को कोसते हुए मैदान से निकल रहे थे। उनके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर था कि वह कितने निराश थे। जब वह डगआउट पहुंचे तो उन्होंने रोते हुए अपने चेहरे को हाथों में छुपा लिया। जब उन्होंने मैदान पर अपनी नज़रें जमाई तो ऐसा लग रहा था वह दूर किसी दुर्लभ चीज़ को देख रहे हों। शायद उनके मन में सैंकड़ों दिल तोड़ने वाली यादें वापसी कर रहीं थीं, हालांकि पिच पर उनके साथी एक आसान जीत की तरफ़ टीम को अग्रसर रख रहे थे।

रज़ा के आउट होने से ज़िम्बाब्वे के समर्थकों के जोश में कोई बदलाव नहीं आया था। यह समर्थक रोज़ आकर अपनी ऊर्जा से होबार्ट के मैदान को हरारे के किसी कोने में तब्दील करते आए हैं। ज़रूरी रन रेट अब एक रन प्रति गेंद से भी नीचे का था और कप्तान क्रेग एर्विन अभी भी क्रीज़ पर थे और अच्छी बल्लेबाज़ी कर रहे थे। अगर आपको संदर्भ चाहिए कि रज़ा आउट होने के बाद इतने निराश क्यों हुए तो आपको चार साल पहले यूएई के विरुद्ध एक वनडे मैच को याद करना होगा। 2018 में ज़िम्बाब्वे एक ऐसी जीत के कगार पर था जिससे उसके लिए विश्व कप में क्वालिफ़ाई करना तय हो जाता। ऐसे में ज़िम्बाब्वे क्रिकेट संघ की आर्थिक मुश्किलों से भी छुटकारा मिलने के अच्छे आसार नज़र आ रहे थे। लेकिन रज़ा ने आज ही की तरह एक ग़लत शॉट खेला और आउट हो गए। ज़िम्बाब्वे वहां से मैच हार बैठा और 2019 विश्व कप के सपने चकनाचूर हो गए। एक साल के अंदर आईसीसी के प्रतिबंध के चलते टीम अगले टी20 विश्व कप से भी बाहर हो गई।

ज़िम्बाब्वे क्रिकेट अब बेहतर अवस्था में है लेकिन होबार्ट में हरारे से कुछ समानताएं नज़र आने लगी थी। एक ऐसे विपक्ष के विरुद्ध जिनसे जीतने की पूरी उम्मीद थी, वहां भी शुरुआत ख़राब रही थी। होबार्ट और हरारे दोनों में मौसम ऐसा था कि कभी भी बारिश हो और हारने पर मायूसी और प्रतिक्रिया भी उतनी ही तीव्र होती जैसे हरारे में थी।

हालांकि डेविड हाउटन के कोच नियुक्त होने के बाद से ज़िम्बाब्वे नकारात्मक सोच के आगे निकलने की पूरी कोशिश कर रहा है। हाउटन ने खिलाड़ियों को आश्वस्त किया है कि आक्रामक खेल से उत्पन्न हार पर किसी खिलाड़ी को दोषी नहीं ठहराया जाएगा। यह कहना आसान है, लेकिन वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ ऐसी मानसिकता के चलते मिली हार के ठीक दो दिन बाद इस पर अमल करना उतना ही कठिन।

रज़ा दबाव को समझते हैं और साथ ही हारने के अंजाम को भी। रन रेट जब आठ के आसपास पहुंच चुका था तो उन्होंने साफ्यान शरीफ़ के विरुद्ध पहला जोख़िम लेते हुए उन्हें मिड-ऑफ़ के ऊपर मारा। रज़ा ने मैच के बाद नम आवाज़ में कहा, "हमने कई टूर्नामेंट खेले जहां टीमों में ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा थी और स्कॉटलैंड भी प्रशंसा के पात्र हैं। हमने अच्छी गेंदबाज़ी की तो हमें पता था हम जीत सकते हैं। अल्हम्दुलिल्लाह, आज मेरी बारी थी लेकिन क्रेग ने बहुत अच्छा खेला और युवाओं ने मैच ख़त्म किया। यह काफ़ी भावनात्मक पल है और बहुत यादगार भी। मैंने क्रेग को यही बताया कि उनका काम है पूरी पारी बल्लेबाज़ी करना। मैं आठ या 10 गेंदों में तेज़ी से रन चढ़ाना चाहता था और मेरे कुछ जोख़िम काम कर गए। हमारी साझेदारी अच्छी जमी और इसके बदौलत हम जीत पाए।"

ज़िम्बाब्वे यहां हार जाता तो रज़ा उनके इतिहास के एक और भावभीनी पल के साक्षी बनते। आज से 18 महीने पहले उन्हें अस्थी-मज्जा की एक बीमारी हुई थी जिसे कैंसर का दर्जा भी मिलना मुमकिन था। ऐसी परिस्थिति में मैदान के बीच बल्लेबाज़ी का दबाव शायद कुछ भी नहीं। आख़िरकार रज़ा बाहरी किनारा देकर आउट हुए लेकिन तब तक उन्होंने अपनी टीम को जीत की राह पर अच्छे से रख दिया था।

रज़ा ने कहा, "मेरा मानना है अगर आप ख़राब गेंद या ख़राब शॉट के डर के साए में खेलते हैं तो आप क्रिकेटर के तौर पर नहीं बढ़ सकते। आप वैसे बढ़ ही नहीं सकते।"

यह संदेश रज़ा से बेहतर कुछ क्रिकेटर जानते हैं और समझ चुके हैं। उनके अपने साथी इस जीत का जश्न कई घंटों तक मनाएंगे। इन सब से दूर रज़ा यही सोचेंगे कि ज़िम्बाब्वे के लिए खेलते हुए उनका व्यक्तिगत विकास किस रफ़्तार से हुआ है।

दान्याल रसूल ESPNcricinfo के सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo के सीनियर असिस्टेंट एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है।

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