उनादकट: टेस्ट विकेट लेना कुछ ऐसा है जिसकी मैंने हज़ार बार कल्पना की थी
जयदेव उनादकट और चेतेश्वर पुजारा घरेलू क्रिकेट में सौराष्ट्र के नामी खिलाड़ी रहे हैं। हालांकि उनादकट के दो टेस्ट के बीच पुजारा ने लाल गेंद को फ़ॉर्मेट में भारत के लिए 97 मैच खेले और ख़ुद को सितारों से सजी बल्लेबाज़ी लाइन अप में नंबर 3 पर स्थापित किया। जब उनादकट को मोहम्मद शमी की जगह टीम में बुलाया गया और वीज़ा में देरी के बाद आख़िरकार जब वह चटगांव पहुंचे और भारतीय टीम की सफ़ेद जर्सी पहनी तो पुजारा बहुत ख़ुश हुए।
उनादकट ने बांग्लादेश से लौटने के बाद पीटीआई से कहा, "मैं पहले मैच में नहीं खेल रहा था, लेकिन मैंने पहली बार शर्ट पहनी तो उन्होंने कहा 'तुम अच्छे दिख रहे हो'। यह दिल से कही गई बात थी और मैं देख सकता था कि वह मेरे लिए कितना ख़ुश थे। उनके साथ खेलना स्पेशल था। वह 10 से अधिक वर्षों से टीम का हिस्सा हैं। मैं उन्हें इस तरह से देखता हूं कि मैं भी टीम का हिस्सा बनना चाहता हूं, जैसे वह रहे हैं। उन्होंने अपने करियर में सभी उतार-चढ़ावों का सामना किया और 98 टेस्ट खेले हैं जो मेरे लिए बेहद प्रेरक रहा है।"
2010 अंडर-19 विश्व कप से आए उनादकट का 12 साल पहले हुआ टेस्ट डेब्यू भूला देने वाला रहा। साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ उस टेस्ट में भारतीय टीम की एक ही बार गेंदबाज़ी की बारी आई और उनादकट के आंकड़े थे 101 रन पर 0 विकेट। लेकिन इस 31 वर्षीय बाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज़ ने पिछले हफ़्ते बांग्लादेश के ख़िलाफ़ अपने दूसरे टेस्ट में अपने विशाल घरेलू अनुभव को दिखाया।
बांग्लादेश ने बल्लेबाज़ी चुनी और क़रीब 15 ओवर तक भारत नई गेंद से विकेट नहीं ले पाया था। नजमुल हुसैन शांतो और ज़ाकिर हसन दृढ़ और सतर्क थे। पहले बदलाव के रूप में लाए गए उनादकट गेंद को ऑफ़ स्टंप के आसपास के एरिया में करते रहे और मीरपुर की सपाट पिच पर अपना लेंथ बदलते रहे। आख़िरकार उन्होंने गुड लेंथ पर गेंद की, जो उछाल ली और ज़ाकिर के बल्ले का किनारा लेकर गली फ़ील्डर के पास गई - यह टेस्ट क्रिकेट में उनका पहला विकेट था।
उनादकट ने कहा, "मैं गुडलेंथ से बाउंस निकालने की कोशिश कर रहा था और लगा कि मैं ऐसा कर सकता हूं। यह एहसास (पहला टेस्ट विकेट मिलना) मेरे क्रिकेटिंग करियर की सबसे ख़ास यादों में से एक रहेगा। टेस्ट विकेट हासिल करना कुछ ऐसा है जिसकी मैंने 1000 बार कल्पना की थी। मुझे मौक़ा मिला, वह इस वजह से क्योंकि मैनेजमेंट को लगा कि मैं पिच के अनुकूल था। परिस्थितियां समान थीं (राजकोट के जैसा)। विकेट से ज़्यादा गति नहीं मिल रही थी और लेंथ पर हार्ड हिट करके ही आप कुछ कर सकते थे। मुझे पता था कि अगर मैं अपनी ताक़त पर टिका रहूंगा तो कुछ न कुछ मेरे लिए होगा और इस तरह मुझे वह अतिरिक्त उछाल मिला।"
उनादकट ने दूसरे टेस्ट में भारतीय एकादश में कुलदीप यादव की जगह ली थी, जो पहले टेस्ट में प्लेयर ऑफ़ द मैच रहे थे। यह एक ऐसा क़दम था जिसपर लोगों की राय अलग-अलग थी। एक ऐसी पिच जिसपर मैच आगे बढ़ने पर स्पिन होने की उम्मीद थी, भारत ने पहले मैच में तीन स्पिनरों को खेलाने के बाद तीन तेज़ गेंदबाज़ों को चुना था। उनादकट ने कहा कि उन्हें कुलदीप की जगह लेने का अतिरिक्त दबाव महसूस नहीं हुआ।
उन्होंने कहा, "मैं सिर्फ़ योगदान देना चाहता था। अगर विकेट नहीं लेता तो दूसरे छोर से दबाव बनाता। यही विचार था। घरेलू क्रिकेट ने मुझे इस तरह से बहुत मदद की है। जब आप विकेट नहीं हासिल कर रहे हों तब भी एक गेंदबाज़ के रूप में आपकी भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण होता है। आप दबाव बना सकते हैं और बल्लेबाज़ को संदेह में डाल सकते हैं और अन्य गेंदबाज़ इसका फ़ायदा उठा सकते हैं।"
जहां अपने दूसरे टेस्ट के लिए उनादकट ने 12 सालों तक इंतज़ार किया, वहीं उन्होंने घरेलू सर्किट में कड़ी मेहनत की और सौराष्ट्र को काफ़ी सफलता दिलाई। उन्होंने 2019-20 सीज़न में 67 विकेट लिए और सौराष्ट्र को पहली बार रणजी चैंपियन बनाया। इस टूर्नामेंट में पिछले तीन सीज़नों में उन्होंने 21 मैचों में 115 विकेट लिए हैं।
उनादकट ने कहा, "मुझे हमेशा विश्वास था कि मुझे एक और मौक़ा मिलेगा। मुझे नहीं पता कैसे, ईमानदारी से कहूं तो भारतीय तेज़ गेंदबाज़ पिछले तीन-चार सालों से अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। मैं उन्हें देखकर प्रेरित हो रहा था। सौराष्ट्र का नेतृत्व करने से मुझे अपने खेल पर ध्यान केंद्रित करने और किसी और चीज़ से विचलित न होने में मदद की है। इससे मुझे फ़्यूचर देखने में मदद मिली है। सौराष्ट्र की कप्तानी करते हुए मैं न केवल अपने प्रदर्शन की परवाह कर रहा हूं बल्कि दूसरों और टीम के लक्ष्य की भी परवाह कर रहा हूं। इससे मुझे आगे बढ़ने में मदद मिली है।" .
उन्होंने आगे कहा, "(यह वापसी) मेरे परिवार, मेरी पत्नी के लिए बहुत भावुक पल था। जब 2010 में मैंने डेब्यू किया था तो मेरी पत्नी मेरे साथ नहीं थी। उसे मुझ पर मुझसे ज़्यादा विश्वास था। और जब मुझे पता चला कि मैं खेल रहा हूं तो मेरे वैसे ही रोंगटे खड़े हो गए जैसे 12 साल पहले मैंने महसूस किए थे। जब मैंने डेब्यू किया तब मैं काफ़ी युवा था। इतने सालों में (घरेलू स्तर पर) मैंने कभी भी अनुभवी की तरह महसूस नहीं किया। मैं अभी भी 31 साल का हूं और अपने शीर्ष पर हूं। ये चार से पांच साल मेरे करियर के शीर्ष समय होंगे और जितना हो सके मैं इसे जारी रखना चाहता हूं।"
भारत की अगली टेस्ट सीरीज़ जनवरी-फ़रवरी में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ घर में है, लेकिन उनादकट ज़्यादा आगे नहीं देख रहे हैं। उन्होंने कहा, "मैं ज़्यादा उम्मीद नहीं रख रहा हूं। मैं रणजी के अगले राउंड का इंतज़ार कर रहा हूं और मैं बस यही सोच रहा हूं। अगर यह (चयन) होना होगा तो होगा।"