चिन्नास्वामी स्टेडियम बेंगलुरु: सिद्धू का वार, कपिल की हीरोगिरी और एक रोमांचक टाई मैच

नीरज पाण्डेय
चिन्नास्वामी में भारत ने अब तक नहीं गंवाया है विश्व कप का कोई भी मुक़ाबला

वेंकटेश प्रसाद का आमेर सोहेल को आउट करना बना आइकॉनिक मोमेंट © Getty Images

भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप 2023 में अपना आखिरी लीग मैच बेंगलुरु में नीदरलैंड्स के ख़िलाफ़ खेलने वाली है। एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम भारत के सबसे पुराने और ऐतिहासिक स्टेडियमों मे से एक है। इस स्टेडियम में अब तक भारत ने वनडे विश्व कप के तीन मैच खेले हैं। भारत को इस मैदान पर वनडे विश्व कप में एक भी हार नहीं झेलनी पड़ी है और वे इसी लय को जारी रखने की कोशिश नीदरलैंड्स के ख़िलाफ़ भी करेंगे। आइए आपको पुराने दिनों की ओर लेकर चलते हैं और देखते हैं कि भारत ने विश्व कप मैचों में चिन्नास्वामी स्टेडियम में कैसा प्रदर्शन किया है।

कपिल देव बने भारत के हीरो (1987)

1987 विश्व कप को भारत और पाकिस्तान ने मिलकर संयुक्त रूप से होस्ट किया था। भारत ने लीग स्टेज का अपना एक मैच न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ चिन्नास्वामी में खेला था। पहले बल्लेबाज़ी करते हुए भारत ने अपने दोनों ओपनर्स कृष्णमचारी श्रीकांत और सुनील गावस्कर के विकेट रन आउट के रूप में गंवाए और फिर दिलीप वेंगसरकर तो खाता खोले बिना आउट हो गए। 21 रनों पर ही तीन विकेट गिरने के बाद भारत काफ़ी दबाव में था। नवजोत सिंह सिद्धू ने फिर पारी को संभाला और 71 गेंदों में 75 रनों की तेज़ पारी खेली। 114 के स्कोर तक भारत ने पांच विकेट गंवा दिए जिनमें सिद्धू का विकेट भी शामिल था।

यहां से कप्तान कपिल देव ने कमान संभाली और सातवें नंबर पर आने के बाद 58 गेंदों में नाबाद 72 रन बना डाले। उन्हें किरन मोरे का अच्छा साथ मिला जिन्होंने नौवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए केवल 26 गेंदों में 42 रन बना दिए थे। इस तरह भारत ने 252/7 का स्कोर खड़ा किया था। स्कोर का पीछा करते हुए न्यूज़ीलैंड को अच्छी शुरुआत मिली थी और उनके ओपनर केन रदरफोर्ड ने 75 रनों की पारी खेली थी। मध्यक्रम में ऐंड्रयू जोंस ने 64 रन बनाए थे। हालांकि, इसके बाद कोई अन्य बल्लेबाज़ मैदान पर टिक नहीं सका और वे निर्धारित ओवरों में केवल 236/8 का स्कोर ही बना सके।

पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की जीत के कई हीरो (1996)

1996 विश्व कप के क्वार्टर-फ़ाइनल में भारत का सामना पाकिस्तान से चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुआ। पहले बल्लेबाज़ी करते हुए भारत के लिए ओपनर सिद्धू ने 115 गेंदों में 93 रनों की बेहतरीन पारी खेली। सचिन तेंदुलकर (31) के साथ उन्होंने 90 रनों की ओपनिंग साझेदारी की थी। मध्यक्रम में कोई अर्धशतक तो नहीं आया, लेकिन सबसे अहम योगदानों की बदौलत भारत ने 287/8 का स्कोर खड़ा कर लिया था। भारत को इस स्कोर तक लेकर जाने में अजय जाडेजा की भूमिका सबसे अहम रही। जाडेजा जब क्रीज़ पर आए थे तब नौ से भी कम ओवर बचे हुए थे। हालांकि, उन्होंने 25 गेंदों में 45 रनों की पारी खेलकर भारत को अच्छी फ़िनिश दिलाई थी।

स्कोर का पीछा करते हुए पाकिस्तान ने सधी हुई शुरुआत कर ली थी। आमेर सोहेल (55) रन बनाने के बाद वेंकटेश प्रसाद की गेंद पर क्लीन बोल्ड हुए थे। एक वीडियो आपने भी जरूर देखा होगा जिसमें सोहेल चौका मारने के बाद वेंकटेश को गेंद लाने के लिए कहते हैं और अगली ही गेंद पर वेंकटेश उन्हें बोल्ड कर देते हैं। ये आइकॉनिक मोमेंट इसी मैदान का है। सोहेल के आउट होते ही पाकिस्तान की पारी तेज़ी से बिखरने लगी और वे 248/9 का स्कोर ही बना पाए। भारत के लिए वेंकटेश और अनिल कुंबले ने सर्वाधिक तीन-तीन विकेट अपने नाम किए थे।

जब किसी टीम को नहीं बल्कि क्रिकेट को मिली जीत (2011)

2011 विश्व कप के लीग स्टेज मैच में भारत ने इंग्लैंड के ख़िलाफ़ चिन्नास्वामी में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 338 रन बना दिए थे। सचिन ने 115 गेंदों में 120 रनों की पारी खेली थी। गौतम गंभीर और युवराज सिंह के बल्ले से भी अर्धशतक आए थे। स्कोर का पीछा करते हुए इंग्लैंड की टीम भी इसके क़रीब पहुंचने का ठानकर आई थी। पहले विकेट के लिए एंड्रयू स्ट्रॉस और केविन पीटरसन के बीच 68 रनों की साझेदारी हुई। इसके बाद तीसरे विकेट के लिए जो साझेदारी हुई उसने भारत की चिंता बढ़ाने का काम किया। स्ट्रॉस और इयान बेल (69) ने 170 रन जोड़ते हुए मैच को काफ़ी हद तक इंग्लैंड के पक्ष में कर दिया था। आठ विकेट शेष थे और इंग्लैंड को छह से कुछ अधिक रन प्रति ओवर बनाने की जरूरत थी।

जहीर खान ने तब लगातार गेंदों में इन दोनों को आउट करके भारत को वापसी का मौका दिया। जहीर ने अपने अगले ओवर में पॉल कॉलिंगवुड को भी आउट किया और इंग्लैंड का स्कोर 285/5 हो चुका था। 46वें ओवर में हरभजन सिंह ने मैट प्रायर का विकेट लिया और फिर 307 के स्कोर पर माइकल यार्डी के रूप में इंग्लैंड को सातवां झटका लगा। यहां से इंग्लैंड को 15 गेंदों में 31 रनों की जरूरत थी। 49वें ओवर में पीयूष चावला को दो छक्के पड़े, लेकिन आखिरी गेंद पर उन्होंने इंग्लैंड का आठवां विकेट भी गिरा दिया था। आखिरी ओवर में 14 रन चाहिए थे और मुनफ़ पटेल गेंदबाज़ी के लिए आए। पहली तीन गेंदों पर उन्होंने नौ रन दे दिए थे और फिर अगली दो गेंदों पर भी तीन रन बन गए। इसका मतलब आखिरी गेंद पर इंग्लैंड को जीत के लिए दो रन चाहिए थे, लेकिन आखिरी गेंद पर केवल एक ही रन बना और मैच टाई हो गया।

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