गिल ने कप्तान के रूप में अपना दबदबा स्थापित किया
इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया कि शुभमन गिल तेज़ गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ बैज़बॉल पिचों पर खूब रन बनाने जा रहे थे, जिसका नेतृत्व क्रिस वोक्स कर रहे हैं, जहां अन्य गेंदबाज़ों ने पांच से ज़्यादा टेस्ट भी नहीं खेले हैं। एक तर्क़ से यह तय था कि गिल पांच टेस्ट में से एक में शतक बनाने जा रहे थे, भले ही ये बैज़बॉल पिचें न हों और सामना करने के लिए ज़्यादा ख़तरनाक आक्रमण हो।
यह ख़ास बल्लेबाज़ कब तक चूकता रहेगा? आप एशिया और वेस्टइंडीज़ के बाहर उनके 35 के औसत और कोई शतक नहीं होने की ओर इशारा कर सकते हैं, लेकिन वह इस सीरीज़ में 87.73 के नियंत्रण प्रतिशत के साथ आए, जो कि इस तरह की पिचों पर उनके लिए काफ़ी असाधारण है। गिल के पदार्पण के बाद से 32 बल्लेबाज़ों ने टेस्ट क्रिकेट में 3000 या उससे अधिक गेंदों का सामना किया है। केवल सऊद शक़ील, केन विलियमसन और अब्दुल्ला शफ़ीक़ ने इससे बेहतर प्रदर्शन किया है और हम जानते हैं कि पाकिस्तान किस तरह की पिचों पर अपना अधिकांश क्रिकेट खेलता है। तर्क़ ने यह भी कहा कि यह केवल समय की बात थी कि गिल की पहली कुछ ग़लतियां हाथ से नहीं जाएंगी और वह आगे बढ़ते रहेंगे।
हालांकि, भारतीय क्रिकेट या अधिकांश क्रिकेट इस तरह के तर्क़ पर नहीं चलता। ख़ासतौर पर तो नहीं। अगर इसमें कोई भावना न हो तो यह आधा तमाशा भी नहीं रह जाएगा। गिल भारत के टेस्ट कप्तान के तौर पर इंग्लैंड आए थे। यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। अनुभवी खिलाड़ियों पर भावनात्मक रूप से बहुत असर पड़ता है, टीम में जगह पक्की करने वाले युवा खिलाड़ी की तो बात ही छोड़िए।
केवल पिछली सीरीज़ में ही गिल को XI से बाहर किया गया था। हालांकि यह भी बड़ी बहस वाली कॉल थी। उन्हें उस जसप्रीत बुमराह से आगे कप्तानी मिली जिसने भारत को पिछले आठ मैचों में एकमात्र टेस्ट मैच जिताया था। उनको कप्तान के तौर पर केएल राहुल या भविष्य के विकल्पों ऋषभ पंत और यशस्वी जायसवाल से आगे रखा गया।
चयनकर्ताओं के पास अपनी एक वजह थी। वे जानते थे कि वे क्या कर रहे थे। वे अंतरिम विकल्पों से गुजर चुके थे। वे ऐसा खिलाड़ी चाहते थे जो कम से कम उतार-चढ़ाव वाला हो और ऐसा खिलाड़ी जो प्रत्येक मैच खेल सके।
जब आप कप्तान के रूप में स्पष्ट पसंद नहीं होते हैं, जब आप एमएस धोनी, विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे तीन बेहद आधिकारिक दीर्घकालिक कप्तानों के नक्शेकदम पर चल रहे होते हैं, तो आपको जल्द से जल्द उस अधिकार को हासिल करने के लिए रन बनाने की ज़रूरत होती है। और आपको अधिकार की ज़रूरत तब होती है जब आप कहते हैं कि आप जितनी जल्दी हो सके 20 विकेट लेने के लिए चार पुछल्ले बल्लेबाज़ों को खिलाने के लिए तैयार हैं।
इससे भी अधिक, जब आप ऐसे व्यक्ति हों जो बचपन से ही महानता के लिए चुने गए हों। जिसने भी उसे देखा है, वह दंग रह गया है। जब गिल जैसा बल्लेबाज़ शीर्ष पर पहुंच जाता है और तुरंत परिणाम नहीं देता है, तो लोगों को लगता है कि सब कुछ उसे सौंप दिया गया है। ऐसे समय में "प्रिंस" उपनाम दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता है।
इसलिए, जब गिल ने हेडिंग्ली के धूप भरे दिन और पिच के अधिक मददगार नहीं होने पर शतक बनाया, तो यह सबसे स्वाभाविक निष्कर्ष था, लेकिन वास्तव में ऐसा करने पर उनकी प्रतिक्रिया सामान्य से ज़्यादा बड़ी थी। हमेशा की तरह झुके लेकिन उससे पहले उन्होंने हेलमेट उतार दिया और खु़शी मनाई। साथी बल्लेबाज़ और उप-कप्तान पंत को गले लगाया और फिर झुककर सब कुछ किया
यह इन बल्लेबाज़ों की महारत का ही नतीज़ा है कि हम कह सकते हैं कि परिस्थितियों और आक्रमण को देखते हुए शतक बनाना शानदार था। शीर्ष स्तर पर हमेशा चुनौतियां होती हैं। इंग्लैंड ने शॉर्ट बॉल से उनका विकेट लेने की कोशिश की और इसके लिए फ़ील्ड भी तैयार की, लेकिन आमतौर पर गेंद को खींचने में माहिर गिल शॉट खेलने के तरीके़ को लेकर सतर्क थे।
गिल ने 17 बार शॉर्ट गेंद को खेला, जो कि टेस्ट पारी में उनके द्वारा खेली सबसे ज़्यादा गेंद थी, लेकिन ये सिर्फ़ एक बार सिर पर लगी थी और स्क्वायर के सामने गिल की आक्रामक ट्रेडमार्क पुल इसमें शामिल नहीं था। वे ज़्यादातर सिर्फ़ डीप स्क्वायर पर सिंगल के लिए पैडल करते दिखे थे। शतक पूरा करने के बाद ही उन्होंने हवा में एक शॉट खेला। सिर्फ़ दो शॉट स्क्वायर के सामने शॉर्ट-आर्म जैब थे : एक ग्राउंड के साथ मिडऑन पर और मिडऑन के ऊपर से। 17 में से ग्यारह पुल सिंगल थे और उनमें से चार डॉट थे।
ड्राइव और क्लिप शानदार थे। वह जॉश टंग के सामने क्रीज़ की गहराई में खड़े थे और वोक्स के सामने बाहर। कई मौक़ों पर, वह वोक्स के पास गए, लेकिन उन्हें तेज़ गेंदबाज़ों के सामने मापा गया। यह सिर्फ़ एक बेहतरीन बल्लेबाज़ था जो आक्रमण के ख़िलाफ़ मौसम की स्थिति का पूरा फ़ायदा उठा रहा था, लेकिन पारी इससे कहीं अधिक थी। यह लोगों को यह बताने के बारे में था कि उनकी प्रतिभा पर रिपोर्ट ग़लत नहीं थी। यह उस टीम पर नियंत्रण रखने के बारे में था जिसका नेतृत्व करने का ज़िम्मा उन्हें दिया गया है।
यह उन लोगों को सांत्वना देने के बारे में था जो उनसे पहले चले गए लोगों की यादों में डूबे हुए थे। यह भारत को यह बताने के बारे में था कि बल्लेबाज़ी ठीक रहेगी। यह कि वह अब गेंदबाज़ी को अधिकार के साथ नियंत्रित कर सकता है, जिसकी उसे टेस्ट मैच जीतने के लिए ज़रूरत है। उन्होंने यह सब ख़ूबसूरत तरीके़ से किया, यही तो बस सबसे बड़ी बात है।
सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में वरिष्ठ लेखक हैं।