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बदलाव के दौर में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती

एजबेस्‍टन में आज तक एक भी मैच नहीं जीत पाया है भारत

एजबेस्‍टन का टेस्‍ट शुभमन गिल एंड कंपनी की सबसे बड़ी परीक्षा होने वाली है। भारत पहले ही लीड्स टेस्‍ट हारकर सीरीज़ में 0-1 से पिछड़ा है। जसप्रीत बुमराह पहले ही घोषणा कर चुके थे कि वह इस सीरीज़ में तीन ही टेस्‍ट खेलेंगे। ऊपर से अमूमन अपने मिजाज़ से अलग इंग्‍लैंड का मौसम, जिसने भारतीय थिंक टैंक को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अतिरिक्‍त स्पिनर खिलाएं या नहीं। इन सबके बीच भारत फ‍िलहाल बदलाव के दौर से गुजर रहा है और अब देखना होगा कि यह युवा ब्रिगेड कैसे बैज़बॉल का सामना करती है।

बड़ी तस्‍वीर : चयन पर क्‍या फ़ैसला लेगा भारत?

भारत ने अपने पिछले नौ टेस्ट मैचों में से सिर्फ़ एक में जीत हासिल की है। नौ टेस्ट मैचों का ऐसा ख़राब क्रम देखने के लिए आपको एक दशक पीछे जाना होगा। साउथेम्‍प्‍टन 2014 से लेकर गॉल 2015 तक, भारत ने अपने नौ टेस्ट मैचों में से कोई भी नहीं जीता था।
वह दौर बदलाव का था। यह भी बदलाव का दौर है। दोनों ही मैचों में भारत ने अपनी मज़बूत स्थिति का फ़ायदा उठाने में विफल रहा। 2014-15 की सीरीज़ के साथ उस दौर का अंत गॉल में हार के साथ हुआ। मौजूदा सीरीज़ का नौवां टेस्ट पिछले सप्‍ताह हेडिंग्ली में एक ऐसा मुक़ाबला हार गया, जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा।
लेकिन हम 2014-15 को एक दशक के अंतराल से देख रहे हैं, और हम जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ। हम जानते हैं कि भारत ने 0-1 से पिछड़ने के बाद वापसी की, श्रीलंका को 2-1 से हराया, और टेस्ट क्रिकेट में अपने सबसे सफल दशक की शुरुआत की।
हम 2024-25 की ओर देख रहे हैं, जबकि हम इस दौर से गुज़र रहे हैं। हम इस कहानी का अगला अध्याय नहीं जानते।
वह अध्याय जो भी हो, इसकी शुरुआत एजबेस्टन से होगी। भारत ने यहां आठ प्रयासों में कभी जीत हासिल नहीं की है, जिसमें से सबसे हालिया हार तीन साल पहले हुई थी जब वे 3-1 से सीरीज जीतने के कगार पर थे, लेकिन जो रूट और जॉनी बेयरस्टो के चौथे इनिंग के शतकों ने इंग्लैंड को रोमांचक जीत दिलाई।
वह टेस्ट बेन स्टोक्स और ब्रेंडन मक्‍कलम के नेतृत्व में इंग्लैंड की अपने पहले चार टेस्ट मैचों में चौथी जीत थी। तब से लेकर अब तक इस सफ़र में उतार-चढ़ाव आए हैं, लेकिन बैज़बॉल ने इस बात के पुख्ता सबूत जुटाए हैं कि टेस्ट क्रिकेट खेलने का यह तरीक़ा विरोधी टीम पर बहुत ज़्यादा दबाव डालता है, ख़ासकर तब जब परिस्थितियां इंग्लैंड के खिलाड़ियों की ताक़त के अनुकूल हों।
यह सबको पता है कि इस युग में इंग्लैंड की सबसे बड़ी हार तब हुई है जब उनके विरोधियों ने परिस्थितियों पर नियंत्रण कर लिया था, कभी-कभी इस हद तक जैसा कि पिछले साल पाकिस्तान में हुआ।
भारत एजबेस्टन की पिच या मौसम को नियंत्रित नहीं कर सकता, और वे ड्यूक्स गेंद को बनाने के तरीके़ को भी नियंत्रित नहीं कर सकते। हालांकि, वे अपने चयन को नियंत्रित कर सकते हैं, कम से कम से लेकर काफ़ी हद तक। क्या वे जसप्रीत बुमराह को शामिल करते हैं, जिनके बचे हुए चार टेस्ट में से केवल दो खेलने की उम्मीद है और क्या वे बल्लेबाज़ी की गहराई को त्यागने और अपने दल में दूसरे विश्व स्तरीय विकेट लेने वाले गेंदबाज़ कुलदीप यादव को चुनने के लिए पर्याप्त साहसी हैं, यह देखना अभी बाक़ी है।
ऑलराउंडर की क़ीमत पर कुलदीप को शामिल करने से भारत को घरेलू मैदान पर बैजबॉल से 1-0 से पिछड़ने के बाद स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अन्य बातों को दरकिनार कर दिया और इंग्लैंड को भारत के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी संयोजन के ख़‍िलाफ़ अपना दृष्टिकोण आज़माने के लिए मजबूर किया।
2014-15 में नौ टेस्ट मैचों में मिली हार के बाद भारत की सफलता के पीछे भी यही सोच थी। नतीज़ों के ऐसे ही सिलसिले के बाद, 2025 का भारत किस तरह की सोच अपनाएगा?

हालिया फ़ॉर्म और नज़रों में : स्‍टोक्‍स और साई सुदर्शन

बतौर गेंदबाज़ बेन स्टोक्स की वापसी हो गई है। पिछले साल भारत दौरे के दौरान फ़‍िटनेस संबंधी चिंताओं ने उन्हें सिर्फ़ बल्लेबाज़ी की भूमिका तक सीमित कर दिया था और इससे इंग्लैंड का संतुलन बुरी तरह प्रभावित हुआ और उन्हें 4-1 से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, तब से वे नियमित रूप से गेंदबाज़ी कर रहे हैं और अपने पिछले तीन टेस्ट मैचों में से दो में कम से कम 35 ओवर फ़ेंक चुके हैं। हैमिल्टन में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ और पिछले हफ़्ते हेडिंग्ली में। हालांकि, बल्ले से स्टोक्स ने एक समस्या के संकेत दिए जो पिछले साल के भारत दौरे से ही उन्हें परेशान कर रही थी, जिसमें स्पिन के ख़िलाफ़ उनके डिफ़ेंस में भरोसे की कमी शामिल थी। उनके रिवर्स स्वीप अप्रोच ने उन्हें चौथी पारी में 33 रन बनाने में मदद की, लेकिन इससे भारत को यह भी पता चल गया होगा कि उन्हें क्या और कैसे गेंदबाज़ी करनी है।
हेडिंग्ली में, बीसाई सुदर्शन 40 से कम के प्रथम श्रेणी औसत के साथ जनवरी 1988 में तमिलनाडु के एक अन्य बाएं हाथ के बल्लेबाज़ डब्ल्यूवी रमन के बाद पुरुष टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज बने। उन्होंने दिखाया कि चयनकर्ताओं ने इसके बावजूद उन्हें क्यों चुना था और उन पर नंबर 3 पर बल्लेबाज़ी करने का भरोसा किया था। दूसरी पारी में 30 रन बनाते हुए उन्होंने गेंद को अपनी आंखों के सामने मारा, लेकिन दोनों पारियों में लेग स्टंप पर या उसके बाहर हाॅफ़-वॉली पर उनके आउट होने से पता चला कि टेस्ट मैचों के आक्रमण की योजना के ख़‍िलाफ़ खुद को बनाए रखने के लिए उन्हें अभी भी काम करना है।

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