उमा छेत्री: काजीरंगा के जंगलों से भारतीय टीम तक का अविश्वसनीय सफ़र
कल्पना कीजिए कि कक्षा पांच की एक छोटी सी लड़की, जंगलों के बीच रोज़ाना लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलकर क्रिकेट सीखने अपने एकेडमी जाती है और फिर रात के सन्नाटे में, अकेले ही घने जंगलों, पहाड़ों और जंगली जानवरों के डर के बीच, घर वापस आती है।
यह कहानी है भारत की विकेटकीपर बल्लेबाज़ उमा छेत्री की, जिन्होंने रविवार को बांग्लादेश के ख़िलाफ़ मैच में अपना वनडे डेब्यू किया। असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क के कांधुलीमारी गांव की छेत्री 10 साल की उम्र से ही अपने घर से हर रोज 10 किलोमीटर पैदल चलकर बोकाखाट की क्रिकेट एकेडमी तक जाती थीं।
ऐसी जगह से कभी कोई लड़की भारतीय क्रिकेट टीम तक पहुंचे, यह किसी फ़िल्मी कहानी का हिस्सा लगता है। लेकिन महिला विश्व कप 2025 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ भारतीय टीम के लिए डेब्यू करने वाली छेत्री की कहानी कोई कल्पनाकृत फ़िल्मी कहानी नहीं है। यह उस जिद का नाम है, जो हार मानने से इनकार करती रही। छेत्री की कहानी बताती है कि जुनून और दृढ़ संकल्प के सामने भौतिक बाधाएं दम तोड़ देती हैं।
जंगल, पहाड़ और उसके आस-पास बसे लोगों में एक चीज़ ज़रूर होता है- कभी हार न मानना और कभी निराश न होना। छेत्री ने इसी जज़्बे को अपनी पहचान बनाई। आज वह असम की पहली खिलाड़ी हैं, जिन्होंने विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलने का मौक़ा हासिल किया।
छेत्री के भाई बिजॉय छेत्री ने ESPNcricinfo को कहा, "हमारी मां (दीपा छेत्री) ने उसे हमेशा यही बताने की कोशिश की है कि हमेशा यह याद रखो कि तुमने कहां ग़लती की है। उसे ठीक करो और आगे बढ़ो। सफल होना या न होना बिल्कुल मायने नहीं रखता, लेकिन ग़लतियों को ठीक न करना बिल्कुल सही बात नहीं है।"
घरेलू क्रिकेट में लगातार शानदार प्रदर्शन, WPL में चयन और फिर एमर्जिंग एशिया कप 2023 में भारतीय टीम का हिस्सा बनने के बाद से छेत्री लगातार राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नज़रों में रहीं।
उनको भारतीय टीम के सबसे मेहनतकश खिलाड़ियों में से एक माना जाता है। बांग्लादेश के ख़िलाफ़ डेब्यू के समय जब स्मृति मांधना ने उन्हें कैप सौंपी, तो उन्होंने कहा, "आप (उमा छेत्री) टीम के सबसे मेहनती खिलाड़ियों में से एक हो। आपकी चपलता और फ़िटनेस हम सबको काफ़ी मोटिवेट करती है। अभी तो यह बस पहला मैच है। आगे आप भारत को कई मैच जितावाओगे।"
जब छेत्री को विश्व कप की कैप दी जा रही थी, तो उनके कोच, उनका पूरा गांव और उनके चार भाई उस पांचवीं कक्षा की छेत्री को याद कर रहे थे, जिसने एक दिन अचानक क्रिकेट खेलने का मन बनाया और अपने बड़े भाई से कहा कि 'मुझे क्रिकेट खेलना है।'
कांधुलीमारी में पूरे गांव ने उनका पहले मैच बड़े पर्दे पर देखा था। उनके बचपन के कोच राजा रहमान, छेत्री के क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं, "2011 में उमा, अपने भैया के साथ हमारी एकेडमी में आई। उसने सिर्फ़ इतना कहा कि मैं क्रिकेट खेलना चाहती हूं। लेकिन कुछ ही दिनों में हमें समझ आ गया कि यह लड़की कुछ बड़ा करेगी। एक साल के अंदर ही वह राज्य के सीनियर क्रिकेट टूर्नामेंट का हिस्सा बन चुकी थी।"
"हर रोज़ अकेले 10-11 किलोमीटर पैदल चलकर आना और फिर वापस जाना, वह भी एक ऐसे इलाक़े में जहां ख़तरनाक जानवर रहते हैं। उनके समर्पण को देखते हुए, आस-पास के सभी लोगों ने उनकी काफ़ी मदद की। मेरा ही एक दोस्त उसे कभी घर छोड़ देता था तो कभी दोपहर का खाना खिला देता था। किसी ने कपड़े दिए तो किसी ने किट, लेकिन वह इन समस्याओं को भुलाकर सिर्फ़ मेहनत करती रही। अगर बारिश होती, तो वह एक प्लास्टिक ओढ़ कर भी एकेडमी पहुंच जाती, पर अभ्यास कभी मिस नहीं करती।"
हांगकांग में एमर्जिंग एशिया कप के लिए छेत्री का चयन हुआ, तो उस समय को याद करते हुए उनके भाई गणेश छेत्री बताते हैं कि उस ख़बर ने उनके पूरे संघर्ष को सार्थक बना दिया। गणेश आज भी कांधुलीमारी में रहते हैं और एक साधारण सा किराना का दुकान चलाते हैं।
वह कहते हैं, "हमारे पिता किसान हैं और सिर्फ़ बड़े भैया (राजू छेत्री) मैकेनिक का काम करते थे। हमने पहली बार सूद पर पैसे लेकर और कुछ लोगों की मदद से उमा के लिए किट ख़रीदा था। लेकिन जैसे ही उमा का ज़िले की टीम में चयन हुआ, गांव में बाढ़ आ गई और उसका पूरा किट बाढ़ में बह गया।
"उस दिन उमा बहुत रोई, हम भी मायूस हो गए कि उसका सफ़र शायद रुक जाएगा। लेकिन बोकाखाट के सर और कुछ लोगों ने उसका किट फिर से ख़रीद कर दिया और उसका क्रिकेट जारी रहा।"
छेत्री की ज़िद सिर्फ़ मैदान पर नहीं, बल्कि अपने जीवन के फैसलों में भी दिखती है।
BCCI.TV को दिए गए एक बयान में वह बताती हैं, "एक बार मेरे भैया ने मुझसे पूछा था कि क्या तुम्हें क्रिकेट के साथ ही आगे बढ़ना है या अगर इससे कोई जॉब मिली, तो तुम उस पर ध्यान दोगी? तो मैंने तुरंत मना कर दिया। फिर उन्होंने कहा कि तुम बोकाखाट की जगह गुवाहाटी चली जाओ, वहां ज़्यादा सुविधाएं हैं। तो मैंने साफ़ कहा था - 'मैं यहीं से खेलते हुए भारतीय टीम के लिए पहुंचूंगी, आप देखना।'"
इसे छेत्री ने सच कर दिखाया। उन्होंने न सिर्फ़ अपना वादा निभाया, बल्कि लाखों लोगों को दिखाया कि जब समर्पण और ज़िद मिलती है, तो काज़ीरंगा के साये से भी विश्व कप का सपना सच हो सकता है।
राजन राज ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं