आयुष दोसेजा: कोहली का बड़ा फ़ैन, रणजी ट्रॉफ़ी में मचा रहा धमाल
आयुष दोसेजा से जब पूछा जाता है कि वह क्रिकेट के अलावा खाली समय में क्या करते हैं? तो वह फटाक से दो टूक जवाब देते हैं, 'विराट कोहली के पुराने हाइलाइट्स वीडियोज़ देखता हूं।' दोसेजा का यह कोहली प्रेम 2011 के विश्व कप से शुरू हुआ था, जब वह सिर्फ़ 10 साल के थे। उन्होंने कोहली को टीवी पर बल्लेबाज़ी करते देखा और उनके मुरीद ही हो गए।
एक मौक़ा ऐसा भी आया, जब वह कोहली के आख़िरी रणजी मैच में खेल सकते थे। लेकिन टखने में चोट के कारण उनके हाथ से यह मौक़ा छिन गया। इससे वह बहुत निराश भी हुए, लेकिन अब वह संतुष्ट हैं कि उनका जब डेब्यू हुआ, तो उन्होंने इसे दोनों हाथों से भुनाया है।
अपने रणजी डेब्यू मैच में दोहरा शतक लगाने वाले दिल्ली के पहले बल्लेबाज़ बनने के बाद दोसेजा ने हिमाचल प्रदेश के ख़िलाफ़ दोनों पारियों में अर्धशतक लगाया है और अपनी टीम को जीत की तरफ़ ले गए हैं।
दोसेजा कहते हैं, "विराट कोहली मेरे हमेशा से आदर्श रहे हैं। पिछले साल मैं उनके साथ खेल नहीं पाया था क्योंकि मेरा टखना चोटिल हो गया था। इसके कारण मैं थोड़ा सा निराश भी था। लेकिन यह मेरे लिए छिपे हुए आशीर्वाद की तरह रहा। मैंने इस साल डेब्यू किया और मैं संतुष्ट हूं कि अभी तक अच्छा कर रहा हूं।"
अपना सब काम यहां तक की गेंदबाज़ी भी दाएं हाथ से करने वाले दोसेजा बल्लेबाज़ी बाएं हाथ से करते हैं, लेकिन उनका आदर्श कोई बाएं हाथ के बल्लेबाज़ नहीं है। वह कोहली का स्टांस, खेलने का तरीक़ा, स्ट्राइक बदलने की कला, फ़िटनेस और डाइट रूटीन सब फ़ॉलो करने की कोशिश करते हैं।
दोसेजा कहते हैं, "जब मैं 15-16 साल का था तो मेरा वजन 90 किलो था। मैं बल्लेबाज़ी अच्छा करता था, लेकिन फ़िटनेस के कारण मेरा चयन ऊपर के लेवल की टीमों में नहीं हो पाता था। फिर मैंने एक कठिन डाइट अपनाया। मैंने 5-6 साल तक मिठाई खाना छोड़ दिया और कार्ब इनटेक भी एकदम कम कर दिया। मैं सिर्फ़ प्रोटीन लेता था और जिम में बहुत मेहनत करता था। तब कहीं जाकर मेरा चयन दिल्ली की अंडर-23 टीम में हुआ और अब मैं यहां हूं।"
दिल्ली की तरफ़ से पिछले सीज़न की अंडर-23 सीके नायूडू ट्राफ़ी में खेलते हुए दोसेजा ने पांच मैचों की सात पारियों में दो शतकों और दो अर्धशतकों के साथ 105.40 की औसत से 527 रन बनाए और विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी के लिए दिल्ली की सीनियर टीम में चयनित हुए।
वहां तीन पारियों में वह कुछ ख़ास नहीं कर सके, लेकिन जब रणजी ट्रॉफ़ी का दूसरा चरण शुरू हुआ तो वह दिल्ली की रणजी टीम में भी थे। हालांकि टखने की चोट के कारण वह उन मैचों का हिस्सा नहीं बन पाए, जिनमें क्रमशः ऋषभ पंत और कोहली खेले थे।
लेकिन जब उन्हें नए सीज़न में मौक़ा मिला तो उन्होंने उसे हाथ से जाने नहीं दिया। हैदराबाद के ख़िलाफ़ रणजी डेब्यू पर बात करते हुए दोसेजा कहते हैं, "आप कोई भी मैच खेले तो आप थोड़ा नर्वस रहते हैं। मैं क्लब मैच भी खेलता हूं तो पहले से थोड़ा नर्व रहता है। लेकिन इस बार मेरे माइंडसेट में थोड़ा सा बदलाव आया है। पहले जब मैं अंडर-23 क्रिकेट खेल रहा था तो मैं अपने माइलस्टोन के लिए खेलता था। 70-80 पर रहता था तो अपने शतक के बारे में सोचता था।"
"लेकिन इस बार मैं इस माइंडसेट के साथ आया था कि बिल्कुल भी अपने शतक के बारे में सोचना नहीं है और पॉज़िटिव ब्रांड ऑफ़ क्रिकेट व फ़ियरलेस क्रिकेट खेलनी है। टीम प्रबंधन का भी हमेशा यही कहना है कि हमें सीधी जीत लेनी है, तो सकारात्मक क्रिकेट ही खेलना है।"
दोसेजा ने इस सकारात्मक क्रिकेट की छाप तब दिखाई, जब हिमाचल प्रदेश के ख़िलाफ़ सीधी जीत हासिल करने के लिए दूसरी पारी में उनकी टीम को तेज़ रन चाहिए थे। पहली पारी में 133 रन की बढ़त हासिल कर चुकी दिल्ली की टीम ने तीसरे दिन की समाप्ति तक 350 रन के ऊपर की बढ़त का लक्ष्य तय किया था, जिसे ख़राब रोशनी के कारण खेल समाप्त होने तक दोसेजा ने अपने उपकप्तान यश ढुल के साथ लगभग हासिल कर लिया था।
तेज़ बल्लेबाज़ी के चक्कर में दिल्ली के तीन विकेट गिरने के बाद दोनों ने पहले कुछ ओवरों तक पारी को संभालने की कोशिश की और फिर जब दोनों के पांव जम गए तो दोनों ने मैदान के चारों तरफ़ शॉट खेले। आलम यह था कि गेंदबाज़, कीपर और एक कवर या प्वाइंट के फ़ील्डर को छोड़कर बाक़ी सारे फ़ील्डर उनकी इस साझेदारी के दौरान बाउंड्री के पास खड़े थे।
बुख़ार से जूझ रही इस जोड़ी ने 117 गेंदों में 155 रनों की साझेदारी की। ढुल ने 59 गेंदों में आठ चौकों और दो छक्कों की मदद से 70 और दोसेजा ने 73 गेंदों में आठ चौकों की मदद से 62 रन बनाए।
दोसेजा कहते हैं, "बुख़ार तो रस्सी के बाहर ही होता है सर, अंदर जाकर हमको सकारात्मक ही रहना होता है और टीम के लिए खेलना होता है। हम दोनों को 101-102 का बुख़ार था और हम दवा खाकर मैदान में उतरे थे। बुख़ार तो उतर गया था, लेकिन शरीर में थोड़ी कमज़ोरी थी। इसलिए हम फ़ील्डिंग के दौरान बीच-बीच में मैदान से बाहर भी जा रहे थे। लेकिन हमने बस यही बात की कि जब तक दिल्ली के लिए खेल रहे हैं, तो भिड़ के खेलेंगे।
"टीम प्रबंधन ने भी सबकी भूमिका स्पष्ट की थी कि सकारात्मक क्रिकेट खेलनी है और रन रेट छह से ऊपर ही रखना है ताकि उन्हें जल्द से जल्द बल्लेबाज़ी के लिए बुलाया जा सके।"
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं।dayasagar95