विश्व कप के बाद महिला क्रिकेट की एक नई सुबह
विश्व क्रिकेट में बड़ा बदलाव
ऐसा आपने कई बार किसी को कहते हुए सुना होगा कि अब ऑस्ट्रेलिया का वक़्त गया, अब भारत का दौर है। कई बार जब इस विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया का जिक्र हुआ तो कई लोगों तो यह भी चाह रहे होंगे कि अब फिर से ऑस्ट्रेलिया न जीते। जब पिछले गुरुवार को नवी मुंबई में हरमनप्रीत कौर ने ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराया तो यह एक ऐसा ऐलान था मानो यह उनका घर था। ऑस्ट्रेलिया तो सिर्फ़ किराए पर वहां रह रहा था।
सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया को बाहर करना मुश्किल भी था और आसान भी। भारत को फ़ाइनल में पहुंचाने के लिए जेमिमाह रोड्रिग्स ने अपने ज़िंदगी की सबसे बेहतरीन पारी खेली। साथ ही ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों और फ़ील्डरों ने भी कई ग़लतियां कीं।
उस जीत के बाद हरमनप्रीत कौर एक अलग ही रूप में दिखीं। वह शांथ थीं। उनका आत्मविश्वास साफ़ झलक रहा था। और भावनाओं में भरी होने के बावजूद वह पूरी तरह से नियंत्रण में थीं। साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ फ़ाइनल में मिल जीत के बाद जिस अंदाज़ में उन्होंने टीम को संयम के साथ सेलिब्रेशन के लिए बुलाया, वह "चलो काम पूरा हो गया" जैसा अहसास था।
पहली बार ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड या न्यूज़ीलैंड के अलावा किसी और टीम का नाम उस ट्रॉफ़ी पर दर्ज हुआ है। क्या भारत अगले साल T20 संस्करण में वेस्टइंडीज़ की तरह उन तीनों के साथ अपना नाम जोड़ पाएगा?
- वैल्करी बेंस
तुम्हारा वक्त भी आएगा साउथ अफ़्रीका
साउथ अफ़्रीका ने इस फ़ाइनल से पहले दो T20 विश्व कप के फ़ाइनल खेले थे। कुल मिला कर लगातार यह उनका तीसरा विश्व कप फ़ाइनल था। इस तरह का प्रदर्शन साफ़ दिखाता है कि उनका क्रिकेट एक अलग स्तर पर प्रगति कर रहा है। फ़रवरी 2023 से अब तक साउथ अफ़्रीका एकमात्र देश है जिसने पुरुष, महिला और अंडर-19 तीनों स्तरों पर हर टूर्नामेंट के नॉकआउट में जगह बनाई और कुल तक छह फ़ाइनल खेले हैं। लेकिन सिर्फ़ एक फ़ाइनल (वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप मेंस) को जीत पाना चिंता की बात है।
हालांकि इन सब चीज़ों के बावजूद एक ऐसी महिला टीम के लिए जिसने सिर्फ़ बारह साल पहले प्रोफेशनल दर्जा पाया और जिसके कोच को पद संभाले अभी दस महीने हुए हैं, यह नतीजा उम्मीद से कहीं बेहतर रहा। नदिन डी क्लार्क के परिपक्व फ़िनिश से लेकर नोनकुलुलेको म्लाबा के लगातार दूसरे टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा विकेट लेने तक, साउथ अफ़्रीका की जुझारू भावना कहती है कि उनका सबसे अच्छा वक़्त अभी आना बाकी है। फिरदौस मुंडा
फासला कम हो रहा है
इस वर्ल्ड कप ने महिला क्रिकेट में ताक़त के संतुलन में बदलाव के संकेत साफ़ तरीक़े से दिए हैं। अगर भारत की ऑस्ट्रेलिया पर सेमीफ़ाइनल जीत ने एक नए युग का आगाज़ किया, तो बांग्लादेश और पाकिस्तान के साहसी प्रदर्शनों ने दिखाया कि अंतर कितनी तेज़ी से कम हो रहा है। बांग्लादेश ने साउथ अफ़्रीका को आख़िरी ओवरों तक पहुंचाया और इंग्लैंड को लगभग चौंका दिया। पाकिस्तान ने भी ऑस्ट्रेलिया को बेथ मूनी के बचाव से पहले काफ़ी तनाव में डाल दिया था इंग्लैंड के ख़िलाफ़ जीत के काफ़ी क़रीब थी लेकिन बारिश ने खेल बिगाड़ दिया।
इन टीमों की सबसे बड़ी ताक़त उनका अनुशासित गेंदबाज़ी आक्रमण रहा। बांग्लादेश की स्पिन और पाकिस्तान की सीम बोलरों ने कई मौक़ों पर मैच की दिशा तय की। लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी में अभी वह निरंतरता और धैर्य नहीं है जो शीर्ष टीमों को हराने के लिए चाहिए। बेहतर इंफ़्रास्ट्रक्चर और निरंतर निवेश उनके टीमों के विकास की कुंजी होंगे। भारत की यह वर्ल्ड कप जीत उन सबके लिए प्रेरणा बन सकती है कि एशिया की अन्य टीमें भी भविष्य में इसी तरह से हावी हो सकती हैं। - श्रुति रविंद्रनाथ
पहले विकेट, फिर रन
इस वर्ल्ड कप की शुरुआत कई बल्लेबाज़ी क्रम के ढहने वाली पारियों से हुई और यह रुझान बाद में सपाट पिचों पर भी जारी रहा। ख़ासकर इंदौर और विशाखापत्तनम में खेले गए शुरुआती मैचों में तो यही देखने को मिला। गुवाहाटी और कोलंबो में धीमी पिचों पर स्पिनरों को ज़्यादा मदद मिली, जिसके कारण स्कोर कम रहे। टूर्नामेंट के शुरुआती 21 मैचों में सिर्फ़ तीन बार 300 से ऊपर का स्कोर बना, जबकि नवी मुंबई में पहले बल्लेबाज़ी का औसत स्कोर 271 रहा और गुवाहाटी में सबसे कम 186।
वर्ल्ड कप के अंत तक 133 छक्के लग चुके थे। यह किसी भी संस्करण में अब तक के सबसे ज़्यादा हैं। 2017 के 111 और 2022 के 52 सिक्सर लगे थे। खेल के तेज़ और बड़े स्कोर की दिशा में बढ़ने का एक और संकेत यह था कि इस वर्ल्ड कप में रन रेट 5.14 रहा, जो अब तक का सबसे ऊंचा औसत है।
विशाल दीक्षित
नवी मुंबई की विशेष धुन
DY पाटिल स्टेडियम में असली महिला क्रिकेट प्रशंसक जुटते हैं। जैसे "बकेट हैट कल्ट", युवाओं का एक समूह जो भारत के मैचों में हर खिलाड़ी के लिए अपने गानों और नारों से माहौल बना देता है। भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया सेमीफ़ाइनल (34,651) और साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ फ़ाइनल (39,555) तो खचाखच भरे ही थे। लीग मैचों में भी शानदार भीड़ रही । भारत बनाम बांग्लादेश मैच में 25,965 दर्शक जुटे थे, जो किसी भी महिला वर्ल्ड कप लीग मैच के लिए रिकॉर्ड) है। वहीं भारत बनाम न्यूज़ीलैंड मैच में 25,166 दर्शक आए थे।
गुवाहाटी और इंदौर के दर्शकों को शायद पता नहीं था कि उन्हें क्या देखने को मिलेगा, क्योंकि वहां महिला अंतर्राष्ट्रीय या WPL मैच कम हुए हैं। इन शहरों में विश्व कप आयोजित करने का मक़सद खेल को फैलाना भी था, ख़ासकर तब जब एम चिन्नास्वामी ( हादसे के बाद बंद), चेपॉक (नया आउटफ़ील्ड बिछाया जा रहा था) और ईडन गार्डन्स (नवीनीकरण) जैसे मैदान उपलब्ध नहीं थे। मुंबई के वानखेड़े में शुरुआती लीग मैचों पर मानसून का ख़तरा भी था।
नवी मुंबई चरण ने दिखाया कि किसी आयोजन को नियमित रूप से देखने का मौक़ा मिले तो वह अपने आप उत्साह पैदा करता है। भारत की इस जीत का सबसे अच्छा उपयोग यही होगा कि भविष्य में अधिक मैच टियर-2 और टियर-3 शहरों में रखे जाएं ताकि वहां की दिलचस्पी बनी रहे, न कि सिर्फ़ बड़े टूर्नामेंटों में उन्हें इस्तेमाल किया जाए।
- एस सुदर्शनन
न्यूज़ीलैंड अब कहां जाए?
T20 विश्व कप की मौजूदा चैंपियन और अपनी अनुभवी कप्तान सोफ़ी डिवाइन के अंतिम वनडे विश्व कप में विदाई देने वाली न्यूज़ीलैंड टीम के पास प्रेरणा की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनका प्रदर्शन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। बारिश ने असर ज़रूर डाला, लेकिन एक जीत के अलावा उनका अभियान बेहद फीका रहा। सबसे बड़ी चिंता यह रही कि युवा खिलाड़ियों से अपेक्षित योगदान नहीं मिला। डिवाइन सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज़ रहीं और एल ताहूहू सबसे प्रभावी गेंदबाज़ रहीं। सवाल यह है कि अगली पीढ़ी कहां से आएगी और कितनी जल्दी तैयार होगी।
वेस्टइंडीज़ की टीम भी अब यही सोच रही होगी कि वापसी का रास्ता क्या है। पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसी टीमों की प्रगति के बीच आठ टीमों वाला टूर्नामेंट उनके लिए और मुश्किल हो गया है। हालांकि 2029 संस्करण में दस टीमें होंगी। लेकिन तब भी कोई गारंटी नहीं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती महिला क्रिकेट में वित्तीय मदद की कमी और कई द्वीपों में फैली डोमेस्टिक संरचना के कारण अभ्यास शिविर आयोजित करने की जटिलता है।
- फिरदौस मुंडा