फुटबॉल मैदान पर प्रैक्टिस, उधार की किट और अब बने नागालैंड क्रिकेट का भरोसेमंद चेहरा
नागालैंड के दीमापुर की मिट्टी को फ़ुटबॉल का जुनून विरासत में मिला है, लेकिन उसी मिट्टी से निकला एक ऐसा चेहरा है, जिसने बल्ले और गेंद के ज़रिए क्रिकेट में एक नई पहचान गढ़ी है। बचपन में जब चारों ओर "सचिन-सचिन" की गूंज सुनाई देती थी, तब इस बच्चे के मन में क्रिकेट के प्रति वह प्यार जागा, जो आज नागालैंड की पहचान बन चुका है। कई बार जब चीज़ें मुश्किल हो जाती हैं तो लोग हौसला छोड़ देते हैं, लेकिन नागालैंड के इमलिवति लेमतूर ने उम्मीद नहीं छोड़ी।
33 साल के लेमतूर ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया था, तो वह दौर ऐसा था, जब दीमापुर में कोई क्रिकेट स्टेडियम नहीं था। फ़ुटबॉल के मैदान पर ही मिट्टी समतल करके पिच बनाई जाती थी और वहीं क्रिकेट के सपने बुने जाते थे। प्रैक्टिस के लिए आधारभूत सुविधाएं नहीं थीं तो कोच और अन्य सुविधाओं के बारे में क्या ही बात करनी। हालांकि अब बाएं हाथ के इस स्पिनर के नाम 100 से अधिक प्रथम श्रेणी विकेट हैं और अब तो वह प्रथम श्रेणी क्रिकेट में शतक भी लगा चुके हैं।
2008 में पहली बार लेमतूर को राज्य की अंडर-19 टीम में जगह मिली और वहीं से उनका सफ़र शुरू हुआ। हालांकि, उस समय तक नागालैंड को BCCI से फ़ुल मेंबरशिप नहीं मिली थी तो राज्य में सीनियर क्रिकेट नहीं होता था। जब सीनियर क्रिकेट बंद हो गया, तो ज़िंदगी ने करवट ली और लेमतूर दूसरे सफ़र पर निकल गए।
ESPNcricinfo से बात करते हुए लेमतूर ने कहा, "बचपन से टीवी पर क्रिकेट देखता था। सचिन तेंदुलकर को देखकर क्रिकेट के प्रति लगाव पनपा। मैंने किसी तरह खेलना शुरू कर दिया था और अंडर-23 तक खेलता रहा। उसके बाद सीनियर क्रिकेट नहीं था तो मुझे आगे खेलने का मौक़ा नहीं मिल पाया। आगे कोई रास्ता नहीं दिखा तो स्कूल में पीटी टीचर की नौकरी शुरू कर दी। 2018 में जब नागालैंड को फ़ुल मेंबरशिप मिली तो सीनियर क्रिकेट आया और मैंने सोचा कि एक बार फिर ट्राई किया जाए। मैंने ट्रॉयल दिया और मेरा चयन हो गया। तब से लेकर अब तक खेल ही रहा हूं।"
लेमतूर का परिवार आर्थिक रूप से बहुत मज़बूत नहीं था। पिता चीनी मिल में नौकरी करके चार बच्चों का पालन-पोषण कर रहे थे, जिनमें लेमतूर, उनके बड़े भाई और दो बहनें शामिल थीं। अचानक पिता की नौकरी चली गई और परिवार गहरे आर्थिक संकट में फंस गया। इस समय लेमतूर को उनकी मौसी ने काफ़ी मदद दी और 10 साल तक अपने पास रखा। इस बीच घर का ख़र्च चलाने के लिए उनकी मां ने छोटे-मोटे काम करने शुरू कर दिए थे।
वह बताते हैं, "मेरी आंटी (मां की बहन) ने मेरी काफ़ी मदद की है। पिताजी का नौकरी जाने के बाद परिवार बड़ी मुश्किल में पड़ गया था। मेरी आंटी ने तब मुझे अपने पास रखा और 10 सालों तक मेरी पढ़ाई और अन्य चीज़ों का ख़र्चा उठाती रहीं। वह बैंक में काम करती थीं तो उनके लिए मेरा ख़र्च उठाना मेरे परिवार की अपेक्षा आसान था।"
जब आर्थिक तौर पर आप कमज़ोर होते हैं तो आपके लिए क्रिकेट जैसा खेल काफ़ी महंगा साबित होने लगता है। ख़ास तौर पर जब आप बल्लेबाज़ी करते हो क्योंकि बल्लेबाज़ के लिए किट काफ़ी महंगी हो जाती है। लेमतूर के लिए तो किट ख़रीदना भी उस वक़्त किसी सपने जैसा था। वह एक लोकल क्लब के मालिक का बल्ला, पैड और बैग इस्तेमाल करते थे। लेमतूर के मुताबिक वह क्लब प्रोफ़ेशनल भी नहीं था, लेकिन मालिक ने फिर भी काफ़ी मदद की।
पहली किट ख़रीदने को लेकर वह बताते हैं, "हमें केवल अपने ग्लव्स ख़रीदने होते थे और बाकी सामान दीमापुर में एक क्लब के मालिक हमें देते थे। 2008-09 के सीज़न में पहली बार जब अंडर-19 खेलते हुए 2500 रुपए प्रति मैच के हिसाब से फ़ीस मिली तो वापस आते समय कोलकाता में रुककर मैंने अपनी पहली किट ख़रीदी थी।"
इतने संघर्षों के बाद आज लेमतूर नागालैंड के सीनियर टीम के अहम सदस्य हैं। हाल ही में उन्होंने तमिलनाडु के ख़िलाफ़ 146 रनों की यादग़ार पारी खेली और अपने प्रोफ़ेशनल करियर का अपना पहला शतक लगाया। यह लेमतूर के लिए किसी सपने जैसा था क्योंकि एक समय तो उन्हें यह भी नहीं पता था कि वह सीनियर क्रिकेट खेल भी पाएंगे या नहीं।
अपनी पारी के बारे में उन्होंने कहा, "पहली बार शतक लगाई थी और वग भी तमिलनाडु जैसी टीम के ख़िलाफ़ तो उस दिन लगा जैसे सालों की मेहनत रंग लाई। इस शतक के बाद मेरा आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ गया है। अब BCCI ने काफ़ी अच्छी व्यवस्था कर दी है और हमारे यहां ट्रेनिंग की सुविधाएं भी काफ़ी बेहतर हो गई हैं। इसका पूरा लाभ लेने की कोशिश है।"
33 साल के हो चुके लेमतूर वास्तविकता में जीना पसंद करते हैं और वह बहुत आगे की नहीं सोचते हैं। आगे के अपने लक्ष्य के बारे में पूछने पर वह झट से बोलते हैं कि उनकी उम्र अब भारत या IPL खेलने वाली नहीं रही है तो वह उस ओर देख भी नहीं रहे। हालांकि, उनका पूरा ध्यान अपने राज्य को क्रिकेट के नक्शे पर बहुत आगे ले जाने पर है।
लेमतूर ने हंसते हुए कहा, "IPL या इंडिया खेलने का चांस तो नहीं है क्योंकि उम्र काफ़ी हो गई है। उसके लिए युवा खिलाड़ियों को देखा जा रहा है। मेरा लक्ष्य यह है कि हम किसी तरह रणजी ट्रॉफ़ी के एलीट ग्रुप में बने रह सकें। यदि मैं टीम को एलीट में बनाए रख सका तो यह मेरे लिए उपलब्धि होगी। पहले भी हम एलीट खेले हैं, लेकिन उस बार सारे मैच हारकर बाहर हो गए थे। पिछले सीज़न प्लेट में हमने अच्छा किया और सबको हराते हुए एलीट में पहुंचे हैं। अब यहीं पर रहना है, इसके नीचे नहीं जाना है।"